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Birthday Special : आज के फिल्ममेकर्स के गॉडफादर हैं महेश भट्ट

महेश भट्ट के जन्मदिन के मौके पर पढ़िए उनकी और परवीन बॉबी की लवस्टोरी की कई अनसुनी कहानियां

Abhishek Srivastava

महेश भट्ट को अगर हिंदी सिनेमा के निर्देशकों का गाडॅफादर कहा जाए तो ये कहीं से भी गलत नहीं होगा. ये महेश भट्ट ही थे जिन्होंने अनुराग कश्यप को अपने स्ट्रग्ल के दिनों में निराश और हताश होने के बाद जब उन्होंने मुम्बई छोड़ने का मन बना लिया थे तब महेश भट्ट ने उन्हें कुछ पैसे देकर वापस रोक लिया था.

इम्तियाज अली जब अपने शुरुआत के दिनों में अपनी फिल्म की कहानी उनको सुनाने गए थे तो झट से उनको फिल्म बनाने का ऑफर महेश भट्ट की ओर से मिल गया था. जब अनुराग बसु अपनी फिल्म कुछ तो है के रिलीज के बाद पुरी तरह से हताश हो गये थे तब उनको सहारा देने वाले और कोई नहीं बल्कि महेश भट्ट थे. यहां तक की इस हफ्ते रिलीज हो रही फिल्म न्यूटन के निर्देशक अमित मसुरकर का भी जब काम नहीं मिलने का लंबा दौर चला था तब महेश भट्ट ने उनसे अपनी मर्डर 3 लिखवाकर उनकी भी मदद की थी. आज महेश भट्ट भले ही फिल्म ना बनाते हों लेकिन फिल्म मेंकिेंग की दुनिया में उनका ओहदा आज भी वही है जो 1998 में उनकी आखिरी रिलीज ज़ख्म के वक्त था.


महेश भट्ट के फिल्मों पर ग़ौर करें तो एक बात पूरी तरह से साफ दिखाई देती है और वो ये है कि उनकी सभी फिल्मों की दुनिया उनकी ही निजी दुनिया से कहीं ना कहीं टकराती है. अर्थ, जन्म, ज़ख्म, वो लम्हे से लेकर हमारी अधूरी कहानी तक - इन सभी फिल्मों में उनके आसपास के जीवन के रंग छुपे हुए थे. लेकिन जब निर्देशन के दुनिया में उनकी फिल्मों का डंका बजता था तब कमोबेश उसी दरमियान मैगज़ीन और अखबारों में महेश भट्ट और परवीन बॉबी की प्रेम कहानी के चर्चे भी उनके पन्नों में सजे रहते थे. हिंदी फिल्मों की तरह इस कहानी का सुखद अंत नहीं था.

जब परवीन बॉबी हिंदी फिल्म जगत पर राज कर रही थीं तभी महेश भट्ट का उनसे मिलना हुआ था. शादीशुदा होने के बावजूद महेश भट्ट टाइम मैगज़ीन के कवर पर पहली बॉलीवुड अभिनेत्री होने का रुतबा हासिल करने वाली इस अभिनेत्री के आगे विवश हो चुके थे. उन दिनों परवीन अमर अकबर एंथनी की शूटिंग में अगर व्यस्त थीं तो महेश फिल्म जगत में अपने पैर जमाने की जी तोड़ कोशिश कर रहे थे.

परवीन बॉबी अपने रिश्ते तब कबीर बेदी से तोड़ चुकी थी और उनकी भावनाएं आहत थीं. ऐसे मौके पर महेश भट्ट में उनको एक सच्चा साथी दिखा जिसके कंधे पर अपना सर रख कर वो चीजों को उनके साथ बांट सकती थीं. दोनों का रिश्ता 1977 से लेकर 1980 तक तीन साल तक चला. महेश भट्ट ने अपने फिल्मफेयर के एक पुराने इंटरव्यू में ये कबूल किया था कि परवीन की जिस चीज ने उन्हें सबसे ज्यादा आकर्षित किया था तो वो उनकी हंसी और कुशाग्र बुद्धि थी. उनके लिये परवीन ग्लैमर की इंतेहा थीं और अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जीती थीं. कहते हैं कि समय का पहिया सबसे बलवान होता है और समय को ये पसंद नहीं था. परवीन बॉबी को अपने पिता की वजह से अनुवांशिक मानसिक बीमारी से दो चार होना पड़ा और इसी बीमारी ने आगे चल कर इन दोनों के बीच के रिश्ते में खलनायक की भूमिका अदा की.

इस बेहद ही डरावने दौर के बारे में महेश भट्ट ने कई बार बात भी की है. उस शाम जब वो उनसे उनके घर मिलने के लिए पहुंचे तो उनको परवीन पूरे मेकअप के साथ मिलीं. चौंकाने वाली बात ये थी कि उनके हाथ में छुरी थी और वो बेहद डरी हुई थीं. जब महेश भट्ट दरवाज़े से अंदर आए तो उनको दरवाज़ा तुरंत बंद करने का आदेश मिला. साथ में उन्हें ये भी सुनने को मिला की 'वो लोग' उन्हें मारने के लिए आए हुए हैं. इसके बाद भी महेश को परवीन बॉबी की और तमाम हरकतों से दो चार होना पड़ा जो कहीं से भी नार्मल नहीं कही जा सकती थी. उसी दौरान परवीन नमाज़ भी पढ़ने लगी थी जो उन्होंने इसके पहले कभी नहीं किया था.

महेश भट्ट का मानना था की जिससे वो प्यार करते थे उस व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी थी. चिकित्सकों की प्राथमिक जांच में ही इस बात का पता चल गया कि परवीन को सिजोफ्रेनिया हो चुका था. महेश भट्ट ने उनके इलाज के लिए बैंगलोर से लेकर अमेरिका तक के चक्कर काट लिए लेकिन बीमारी ज्यों की त्यों बनी रही. उनके इस चिकित्सा के दौर में अभिनेता डैनी और कबीर बेदी जो उनके पुराने प्रेमी रह चुके थे, ने पूरा साथ दिया. हालात इस क़दर डरावने हो चुके थे कि बात इलेक्ट्रिक शॉक तक आ पहुंची थी. खाने के पहले वो महेश को वही खाना खिलाती थीं सिर्फ ये जानने के लिए की खाने में किसी तरह की दवा तो नहीं मिलाई गई है.

एक दिन बैंगलोर में जब महेश, परवीन के साथ थे तब परवीन ने उनके सामने एक कठिन चुनौती रख दी और उनको कहा की वो उनको या उनके गुरु यू जी कृष्णमूर्ति के बीच एक किसी को चुन लें क्योंकि दोनों का मानना था की परवीन को फिल्मों में काम नहीं करना चाहिए. महेश और उनके गुरु इस बात पर सहमत थे कि फिल्मों में काम करने से उनकी हालात और बिगड़ सकती है. लेकिन इसके बाद दोनों अपने रास्ते चले गये ये कहने की जरूरत नहीं है.

बहुत कम लोगों के पता है कि महेश भट्ट ने उनको लेकर एक फिल्म भी शुरू की थी जिसका नाम था अब मेरी बारी. लेकिन उनकी बीमारी की वजह से वो फिल्म 11 रील बनने के बाद आगे नहीं बन पाई और उसे ठंडे बस्ते में डालना पड़ा. और यही ये वक्त था जब महेश नशे के पूरे आदी हो चुके थे.  महेश भट्ट ने परवीन बॉबी को आखिरी बार मुम्बई के हालीडे इन में देखा था जब ये दोनों वहां के बुक स्टोर में एक दूसरे के सामने रुबरु हुये. ये वो वक्त था जब टेलीविजन पर खाड़ी युद्ध का सीधा प्रसारण हो रहा था. वक्त इतने बदल चुके थे कि किसी ने भी दूसरे से एक शब्द कहने की जहमत नहीं उठाई.

लेकिन परवीन बॉबी की याद उनके ज़हन में मानो हमेशा के लिए बस गई थी. जब सफलता ने उनके कदम पहली बार चूमे तो उसमें परवीन का बड़ा हाथ था. उनकी बहुचर्चित और बेहद सफल फिल्म अर्थ का ताना बाना उनके और परवीन के रिश्ते के इर्द गिर्द ही बुना गया था. परवीन के कठिन हालात उनसे देखे नहीं गए थे और अर्थ उसी का एक गुबार था. जब परवीन बॉबी की मौत रहस्मयी हालात में 2005 में उनके जुहू के फ्लैट में हो गई थी तब उनकी बाड़ी को क्लेम करने वाला कोई नहीं था. ऐसे मौके पर महेश भट्ट ने इस बात को सुनिश्चित किया की उनको पूरे सम्मान के साथ सुपुर्दे खाक किया जायेगा. इस ट्रैजिक प्रेम कहानी की झलक आज भी महेश भट्ट की फिल्मों में नजर आ जाती है. महेश भट्ट ने कई बार इस बात को माना है कि परवीन का उनकी जिंदगी में आना एक तरह से उनके कैरियर के लिए टर्निंग प्वाइंट था. चार असफल फिल्म देने के बाद जब अर्थ उनकी पांचवीं फिल्म रिलीज हुई तब सफलता ने उनके कदम चूमे.