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डॉन से सरकार तक: सिनेमा को क्यों पसंद है अंडरवर्ल्ड के सच्चे-झूठे किस्से

‘डॉन’ फिल्म की फ्रेंचाइज को आज तक फरहान अख्तर और शाहरुख खान चला रहे हैं.

Girijesh Kumar

'I’ll make him an offer he can’t refuse'

फ्रांसिस फोर्ड कपोला की ‘गॉडफादर’ जिसने भी देखी है उसे डॉन वीतो कोरलियोन का ये डायलॉग जरूर याद होगा और ये भी याद होगा कि अपने ‘गॉड-सन’ से ये वादा करने बाद के बाद कैसे डॉन वीतो कोरलियोन उस फिल्मकार तक मैसेज पहुंचाता है कि वो उसके बेटे को अपनी फिल्म में रोल दे दे. और कैसे इनकार करने वाले उस फिल्मकार के होश उड़ जाते हैं जब सुबह उसे अपने ही बिस्तर में अपने पसंदीदा घोड़े का कटा हुआ सिर मिलता है.


आज भी नजीर है 'गॉडफादर'

रोंगटे खड़े कर देने वाले खून-खराबे और सांसें रोक देने वाले गैंगवॉर से भरी गॉडफादर सिनेमा के इतिहास में इतनी बड़ी फिल्म साबित हुई कि आज भी दुनिया भर के फिल्म प्रशिक्षुओं के लिए रेफरेंस के तौर पर इस्तेमाल की जाती है.

दो सीक्वल के साथ गॉडफादर ट्रायोलॉजी गैंगस्टर, अंडरवर्ल्ड और माफिया कैटेगरी की फिल्मों में ऊंचा मुकाम रखती है.

हॉलीवुड में गॉडफादर के अलावा भी ढेरों बेहतरीन फिल्में बनीं जो अंडरवर्ल्ड, माफिया और गैंगस्टर को समर्पित रहीं.

मिसाल के तौर पर द लॉन्ग गुड फ्राइडे, स्कारफेस, वंस अपॉन अ टाइम इन अमेरिका, द अनटचेबल्स, गुडफेल्लाज, गैंग्स ऑफ न्यूयॉर्क, अमेरिकन गैंगस्टर, कसीनो और रोड टू पर्डिशन वगैरह. लेकिन मर्लन ब्रांडो और अल पचीनो की भूमिका से सजी गॉडफादर की जो जगह है वो कोई नहीं ले पाया.

गॉडफादर की निरंकुश सत्ता, उसका गैरकानूनी सिंडिकेट और सरकार को साधकर चलने का अंदाज आनेवाले वक्त में फिल्मकारों के लिए मिसाल बन गया.

अंडरवर्ल्ड पर क्यों बनती हैं फिल्में?

दरअसल दुनिया के हर हिस्से में अपने अपने तरीके से चलने वाला संगठित अपराध जितनी बड़ी सच्चाई है, उतना ही बड़ा सच रहा है हर दौर सरकार और सिस्टम को लेकर एक विद्रोही जनभावना.

उस विद्रोही भावना की वजह से ही समाज में समानांतर सत्ता चलाने वाली एक ताकत तैयार होती है. उस असंतोष का ही असर होता है कि आपराधिक ताकत में भी लोगों को एक तरह का नायकत्व दिखने लगता है.

कानून को ताक पर रखकर समानांतर सत्ता चलाने वाली उस ताकत को कभी गॉडफादर, कभी डॉन तो कभी भाई का नाम दिया जाता है.

फिल्में चूंकि हमारे समाज का आईना होती हैं इसलिए दुनिया भर के सिनेमा में ऐसी ताकतों को खूब ग्लैमराइज किया गया.

ये बेवजह नहीं है कि हिंदी सिनेमा में भी दाऊद इब्राहिम, हाजी मस्तान, करीम लाला, वरदराजन मुदलियार से लेकर छोटा राजन, अरुण गवली और मान्या सुर्वे जैसे असल जीवन के खलनायक बार-बार देखने को मिलते हैं.

विरोधी गैंग के बीच उनका खौफ, खतरों से खेलने की उनकी फितरत और पूरे सिस्टम से लोहा लेने की ताकत दर्शकों की नजर में उन्हें दिलेर नायक बना देती है.

बॉलीवुड में अंडरवर्ल्ड  

याद कीजिए, जिस अमिताभ बच्चन ने 1973 में ‘जंजीर’ में इंस्पेक्टर विजय बनकर तालियां बटोरी थीं उन्हीं अमिताभ बच्चन को 1975 में ‘दीवार’ में कुख्यात तस्कर हाजी मस्तान की जिंदगी पर आधारित किरदार दिया गया तब भी वो शशि कपूर पर भारी ही रहे.

साल 1978 में तो अमिताभ बच्चन ने बाकायदा ‘डॉन’ नाम से ही फिल्म की जिसकी फ्रेंचाइज को आज तक फरहान अख्तर और शाहरुख खान चला रहे हैं.

सदी के महानायक कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन ने एक बार फिर ‘अग्निपथ’ में मुंबई के दुस्साहसी गैंगस्टर मान्या सुर्वे की भूमिका निभाई थी. इस फिल्म के लिए अमिताभ ने अपनी आवाज तक बदली थी. कहा जाता है कि डायलॉग डिलिवरी में उन्होंने गॉडफादर के मर्लन ब्रांडो की नकल की थी.

मान्या सुर्वे का किरदार एक बार फिर नजर आया फिल्म शूटआउट ऐट वडाला में जिसमें जॉन अब्राहम ने ये भूमिका निभाई. सत्ता से टकराने वाले किरदारों में गुजरात की महिला गैंगस्टर संतोखबेन भी शामिल है जिसकी जिंदगी पर 1999 में शबाना आजमी अभिनीत ‘गॉडमदर’ बनाई गई थी

गैंगस्टर और माफिया थीम से खास लगाव रखने वाले रामगोपाल वर्मा की अब तक की फिल्मों में ‘सत्या’ और ‘कंपनी’ सबसे ज्यादा सराही गई है. ये दोनों ही फिल्में अंडरवर्ल्ड की कहानी है.

माना जाता है कि ‘सत्या’ अंडरवर्ल्ड डॉन अरुण गवली और मोहन रावले की दोस्ती और दुश्मनी पर बनी थी जबकि ‘कंपनी’ दाऊद इब्राहिम और छोटा राजन के बनते बिगड़ते रिश्तों पर आधारित थी.

समानांतर सत्ता को सलामी 

इन दो फिल्मों के बाद रामू का ध्यान बाला साहेब ठाकरे की तरफ गया. दरअसल शिवसेना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे की छवि भी ऐसी थी कि उन्हें राजनीति का गॉडफादर कहा जाता था.

महाराष्ट्र में सरकार किसी की भी रही हो, सत्ता किसी के भी हाथ में रही हो, मराठी मानुस और हिंदुत्व की राजनीति करनेवाले बाल ठाकरे का दरबार अपने अंदाज में चलता था.

करीब चार दशक तक ठाकरे अपने लिए नियम कानून खुद बनाते रहे और धड़ल्ले से अपनी शर्तों पर जीते रहे. माना जाता है कि रामगोपाल वर्मा की ‘सरकार’ की कहानी पूरी तरह ठाकरे परिवार पर केंद्रित है.

यहां तक कि अमिताभ के किरदार का नाम भी बाला साहेब ठाकरे की तर्ज पर सुभाष नागरे रखा गया है. ‘सरकार 3’ रुपहले पर्दे पर रिलीज हो चुकी है और इस तरह सिनेमा में समानांतर सत्ता को सलामी का सिलसिला लगातार जारी है.