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FILM REVIEW : साहेब बीवी और गैंगस्टर 3 की सबसे कमजोर कड़ी गैंगस्टर ‘संजय दत्त’ हैं

इससे पहले तिग्मांशु धूलिया साहेब बीवी और गैंगस्टर की दो फिल्म्स और भी बना चुके हैं लेकिन हर बार कहानी पर पकड़ खोती जा रही है

Abhishek Srivastava

साहेब बीवी और गैंगस्टर 3 के प्रोमोशन के दौरान फिल्म में बीवी का किरदार निभाने वाली माही गिल ने दावा किया था कि तीसरे भाग में मजा तीन गुना होगा लेकिन उनके दावे की पोल खुल गई फिल्म को देखने के बाद.

तीन गुना मजा तो दूर की बात है इस फिल्म को देखने में किसी भी तरह का कोई मजा नहीं है. चाहे वो तिग्मांशु धूलिया के निर्देशन की बात हो या फिर इस फिल्म के सितारों का अभिनय.


किसी में भी सुर ताल नजर नहीं आता है सिवाए जिमी शेरगिल और माही गिल को छोड़कर. जाहिर सी बात है लोग इसकी तुलना पहले और दूसरे भाग से जरूर करेंगे और उस मामले में ये फिल्म उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाती है. पहले फिल्म में गैंगस्टर की भूमिका में इरफान खान थे और दूसरे में रणदीप हुड्डा और इस बार उसी भूमिका को जिया है संजय दत्त ने और ये कोई राज नहीं है कि संजय दत्त कोई कमाल के अभिनेता नहीं है. इरफान और रणदीप से उनकी अगर तुलना की जाए तो उनका तीसरा स्थान ही रहेगा. साहब बीवी और गैंगस्टर 3 को देख कर लगता है कि फिल्म को बेहद जल्दबाज़ी में बनाया गया है और कहानी में कई समझौते किए गए हैं.

रजवाड़े को बचाते रह गए साहेब

कहानी शुरू होती है लंदन से जहां पर उदय प्रताप सिंह (संजय दत्त) एक क्लब चलते हैं. क्लब चलाने के साथ साथ वो कुछ अवैध तरीके के धंधे में भी लिप्त हैं जिनको फिल्म में ठीक तरह से दिखाया नहीं गया है. कुछ कारणवश उनको लंदन से हिंदुस्तान वापस आना पड़ता है और जब रहने की बात आती है तब वो अपने रजवाड़े पिता हरी सिंह (कबीर बेदी) के पास चले जाते हैं.

सुहानी (चित्रांगदा सिंह) उनकी रखैल है जिससे वो बेहद प्यार करते हैं. वहीं दूसरी तरफ आदित्य प्रताप सिंह (जिमी शेरगिल) जेल से अपनी सजा काट कर वापस आते हैं जिसका कारण दूसरे भाग में दिखाया गया था. उनकी अनुपस्थिति में उनकी सांसद बीवी माधवी सिंह (माही गिल) रजवाड़े की देखभाल करने के साथ साथ रजवाड़े को अपनी गिरफ्त में लेने के लिए साजिश भी बुनती रहती है. और इसी कोशिश में वो अपनी सौतन यानी की आदित्य प्रताप सिंह की दूसरी बीवी रंजना (सोहा अली खान) की हत्या कर देती है.

आदित्य प्रताप सिंह वापस आने के बाद रजवाड़े को अपनी मुट्ठी में वापस लेने की पूरी कोशिश करते हैं और इसी सिलसिले में 1971 में सरकार ने रजवाड़ों का जो प्रिवी पर्स खत्म कर दिया था उसको वापस शुरू करने के लिए मुकदमा करते हैं और उनकी इस कोशिश में बाकी रजवाड़े भी उनका साथ देते हैं.

इसी बीच उदय प्रताप सिंह को एक हेरिटेज होटल के लिए जब जमीन की दरकार होती है तब उनके सामने कई मुश्किलें सामने आती हैं लेकिन कुछ साजिश भरी चालों की वजह से उनको अपनी परेशानी का हल तो मिल जाता है लेकिन उसकी आखिरी कड़ी एक रशियन रौलेट का खेल होता है जहां पर आदित्य और उदय एक दूसरे के सामने होते हैं और रिवाल्वर का ट्रिगर बारी-बारी से एक दूसरे के ऊपर तानते हैं.

लेकिन खेल के बीच में ही जब उदय को इस बात की खबर मिलती है कि सुहानी की हत्या उसके खुद के पिता और भाई ने मिलकर कर दी है तब वो आग बबूला हो जाता है और दोनों को खत्म कर देता और इस पूरे प्रकरण में खुद भी मारा जाता है. इस फिल्म का अंत भी ऐसा रखा गया है की वो एक और सीक्वल को जन्म दे सकता है.

जिमी शेरगिल और माही ने बचाई फिल्म की लाज

ये फिल्म किसी की वजह से आप बर्दाश्त कर सकते हैं तो वो निश्चित रूप से जिमी शेरगिल और माही गिल की वजह से ही है जो साहेब और बीवी के रोल में पूरी तरह से जंचे हैं. देखकर उनको लगता है कि अपने-अपने किरदार पर उन्होंने काफी मेहनत की है.

जिमी के बोलने चलने के अंदाज उनको एक रजवाड़ा का रूप देता है तो वही दूसरी तरफ माही गिल बीवी के रोल में वाकई में एक साहेब की बीवी नज़र आती है. उनका अंदाज काफी हद तक रजवाड़े खानदान के असल लोगों की याद दिलाता है.

इसके अलावा फिल्म में अभिनय के मामले में ऐसा और कुछ भी नहीं है जिसके ऊपर शब्द भरे जाए. उदय प्रताप सिंह की भूमिका में संजय दत्त बेहद औसत नजर आते हैं. पहली बात तो यही है की वो इस फिल्म में मिस फिट नज़र आते है. 60 साल के वो होने वाले हैं और उनकी उम्र उनके चेहरे पर अब पूरी तरह से झलकती है. अब वो रोमांस करे और गाना गाएं तो ये बात पचाने में दिक्कत होती है.

इसके अलावा उनके अभिनय में कोई पैनापन भी नहीं है जो किसी तरह की छाप छोड़ सकें. चित्रांगदा सिंह फिल्म में फिलर का ही काम करती है. उनके किरदार को फिल्म से निकाल भी दिया जाए तो कहानी पर कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ेगा.

संजय के महिमामंडन ने बिगाड़ी फिल्म

इस फिल्म को देखते वक़्त यही लगता है कि इसके निर्माता और निर्देशक दोनों ही संजय दत्त से वशीभूत हो गए थे. फिल्म में बिना किसी वजह के उनके किरदार को लार्जर देन लाइफ बना दिया गया है जिसकी जरुरत बिलकुल भी नहीं थी.

ही इज द बाबा गाना उनका महिमामंडन करता है और उसको देख कर यही लगता है की संजय दत्त के मान मर्दन के लिए कहानी से किसी तरह का समझौता कर लिया गया था. संजय दत्त का फिल्म में अलग ट्रैक है और जिमी शेरगिल का अलग लेकिन जब दोनों ट्रैक मिलते है तब कोई चिंगारी नहीं निकलती है.

फिल्म को संजय चौहान और तिग्मांशु धूलिया ने साझा रूप से लिखा है और देख कर लगता है की कहानी लिखते वक्त वो उचट गए थे किसी चीज़ से. संजय दत्त के महिमा मंडन का खामियाजा पूरी फिल्म को भुगतना पड़ा है क्योंकि उनकी वजह से कहानी भटक गई है.

कहानी में कभी कोई हाई पॉइंट नहीं आता जहां से चीजें बदलनी शुरू होती है. अलबत्ता फिल्म में एक कमाल का सीक्वेंस है जो इतिहास रच सकता था लेकिन लगता है कि हिंदी फिल्मों के दर्शकों के डर की वजह से उसे पूरी तरह से अधपका छोड़ दिया है.

जी हां मैं फिल्म के रशियन रौलेटे सीक्वेंस की ही बात कर रहा हूं जब जिमी और संजय दत्त बारी बारी से रिवाल्वर से मौत का खेल खेलते है जहां पर एक की मौत निश्चित होती है. इस पूरे सीन को इतनी बेरहमी से रौंद दिया गया है जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. असली लेखक वही होता है जो अपनी कलम और कहानी के साथ किसी तरह का समझौता नहीं करता है. अगर उस सीक्वेंस में अगर संजय दत्त या जिमी मे से किसी एक की मौत हो जाती तो शायद वो फिल्म को किसी और मोड़ पर ले जा सकता था. रोना तब आता है जब उस सीक्वेंस के तुरंत बाद संजय दत्त की मौत किसी और वजह से हो जाती है.

साहेब बीवी और गैंगस्टर एक कमजोर फिल्म है

यह फिल्म कहीं से भी पहले और दूसरे भाग से बेहतर नहीं है. तिग्मांशु धूलिया से ढेरों उम्मीदें थी और उनका नाम उन निर्देशकों की श्रेणी में शुमार होता है जो अपनी कहानी कहने के लिए किसी भी तरह से समझौता नहीं करते हैं.

लेकिन संजय दत्त को लुभाने और भुनाने के चक्कर में उनकी कहानी दम तोड़ देती है. गनीमत है की इस फिल्म में जिमी और माही ने अपने सटीक अभिनय से इसको पूरी तरह से डूबने से बचा लिया है. और हां ये फिल्म भी बॉलीवुड की उन तमाम फिल्मों की तरह है जो ये समझते हैं की लाउड बैकग्राउंड स्कोर देकर वो फिल्म के टेंशन को और बढ़ा सकते हैं.

शायद उनको ये बात समझने की सख़्त जरुरत है की लाउड बैकग्राउंड स्कोर से फिल्म का मजा खराब हो जाता है और ये सर में दर्द का कारण भी बनता है. मुमकिन है की इसकी चौथी भाग भी बने क्योंकि फिल्म को कुछ ऐसे तरीके से ही खत्म किया गया है. साहेब बीवी और गैंगस्टर एक अच्छी फ्रेंचाइजी बन चुकी है बस अगली फिल्म बनाते वक़्त उनसे यही गुज़ारिश होगी की वो सितारों के चक्कर में ना पड़कर असल अभिनेताओं की ही कहानी कहने के लिये मदद लें. मनोरंजन के नाम पर इस फिल्म का जायका फीका है.