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REVIEW लैला-मजनूं : कश्मीर की वादियों में कहीं ‘खो गई’ लैला-मजनूं की स्टोरी

इम्तियाज अली की देखरेख में बनी इस फिल्म से बॉलीवुड को दो ‘अच्छे एक्टर्स’ मिल गए हैं लेकिन फीका है स्टोरी का जादू

Hemant R Sharma

बॉलीवुड के फिल्ममेकर्स अब इस मुगालते में न रहें कि क्रिएटिव लिबर्टी के नाम पर वो बिना लॉजिक वाली स्टोरीज से दर्शकों का मनोरंजन भी करते रहेंगे और बॉक्स ऑफिस पर कमाई भी. इसी चेतावनी के साथ चलिए शुरू करते हैं प्रमोशन में चमकी फिल्म लैला-मजनूं का रिव्यू.

लैला-मजनूं को देखकर इसके मेकर्स को क्रिएटिव सैटिस्फैक्शन हो सकता है, पर लोगों के सैटिस्फैक्शन की बात अगर करें तो वो बाहर आकर दूसरों को इस फिल्म को देखने के लिए कहेंगे, इसकी उम्मीद काफी कम है. एकता कपूर और इम्तियाज अली जैसे बड़े फिल्ममेकर्स से ऐसी फिल्म की उम्मीद कम थी क्योंकि लोग उनसे हर बार पिछले रिकॉर्ड्स को तोड़ने और पिछली से बेहतर फिल्म की उम्मीद रखते हैं.


नए जमाने की स्टोरी टैलिंग के दौर में वो पिछली लैला-मजनूं से बड़ी लकीर खींच पाने में तो बिल्कुल ही कामयाब नहीं हो सके हैं. इसलिए इस फिल्म की धमक दूर तक और देर तक सुनाई दे पाएगी इसकी उम्मीद ज्यादा मत कीजिए.

स्टोरी

कहानी कश्मीर से शुरू होती है. तृप्ति डिमरी (लैला) कॉलेज में पढ़ने वाली एक लड़की है. थोड़ी आशिक मिजाज़ और अल्हड़. क़ैस(अविनाश तिवारी) अपने पुराने ट्रैक रिकॉर्ड की वजह से बदनाम है और आवारा भी. एक रात एक्सिडेंटल तरीके से लैला उससे टकरा जाती है. क़ैस के पास उसकी टॉर्च रह जाती है. इसी रात को क़ैस का दिल लैला पर आ जाता है और वो चोरी छुपे उसका पीछा करना शुरू कर देता है. लैला को ढूंढकर वो उसकी टॉर्च वापस करने आता है. लैला उससे टॉर्च तो वापस नहीं लेती लेकिन फिर से मिलने पर अपना नंबर जरूर उसे दे देती है.

लैला के पिता बने परमीत सेठी को जब ये बात पता चलती है तो वो इमोशनली ब्लैकमेल करके  लैला की शादी इब्बन (सुमित कॉल) से करवा देते हैं. क़ैस लैला के पिता को शादी के लिए पहले मनाता है, फिर धमकाता है. लैला के मना करने पर वो कहीं गायब हो जाता है. चार साल बाद कैस अपने पिता का इंतकाल होने पर वापस लौटता है. वापस आने पर लैला उसे मिल तो जाती है लेकिन वो उसे पाने के पहले जैसी कोशिशें न करके, अपनी ही दुनिया में खो जाता है. फिल्म की स्टोरी में डायरेक्टर साजिद अली क़ैस को मजनूं बनाकर स्टोरी को जस्टिफाइ करने की कोशिशें करते हैं.

एक्टिंग

स्टोरी से शिकायतें जरूर हैं लेकिन अविनाश तिवारी और तृप्ति डिमरी को ढूंढ़कर निकालने और फिर उनसे अच्छी एक्टिंग करवाने के लिए साजिद अली को बधाई देनी चाहिए. अविनाश तिवारी ने मजनूं के कैरेक्टर को बेहद ही संजीदगी से निभाया है और उसमें उन्हें सफलता भी मिली है. तृप्ति डिमरी लैला के रोल में अच्छी लगी हैं. इन दोनों को इस बार बेस्ट डेब्यू के लिए अवॉर्ड्स की झड़ी लगने वाली है. सुमित कॉल लैला के पति के रोल और विलेन के तौर पर जंचे हैं.

कश्मीर भी फिल्म का हीरो है

फिल्म में कश्मीर की खूबसूरती देखने में अच्छी लगती है. इसे दुनिया का स्वर्ग क्यों कहा जाता है ये इस फिल्म में खूब जस्टिफाइ हुआ है. आतंकवाद की मार झेल रहे कश्मीर को इस फिल्म में देखकर आपको प्यार हो जाएगा.

डायरेक्शन

इम्तियाज अली के भाई साजिद अली ने इस फिल्म का डायरेक्शन किया है. फिल्म की नायिका तृप्ति ने एक इंटरव्यू में मुझसे कहा था कि चौबीस में से पच्चीस घंटे उनके दिमाग में फिल्म की स्टोरी चलती रहती है. साजिद की इस फिल्म को देखकर ये बात थोड़ी अतिश्योक्ति लगती है. फिल्म का दूसरा हाफ देखकर आपको साजिद से शिकायत हो सकती है. लेकिन पहले हाफ में स्टोरी को वो बिना बोर किए साध ले गए हैं. फिलहाल पहली फिल्म से उनको ज्यादा जज करना जल्दबाजी होगी है.

संगीत

इम्तियाज अली की फिल्मों जब वी मेट से लेकर जब हैरी मेट सेजल तक का संगीत आज भी उसी शिद्दत से सुना जाता है. लेकिन इस फिल्म के दो गाने आपको ज्यादा अच्छे लगेंगे. हाफिज और ओ मेरी लैला....इस गाने को आप अपने मन में बसाकर घर तक ले आएंगे. बाकी गानों से ज्यादा दिन याद रखने की उम्मीद न रखें.

वरडिक्ट

अविनाश तिवारी, तृप्ति डिमरी और कश्मीर देखने के लिए ये फिल्म देखने आप थिएटर्स तक जा सकते हैं. लेकिन आपको फिल्म देखकर आने के बाद लॉजिक पर बात करने की आदत हो तो कृपया एक बार सोचकर ही टिकट पर पैसे खर्च करें.