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REVIEW RAID : आप कहेंगे ऐसी ‘रेड’ बार-बार पड़े

इस फिल्म को आप अजय देवगन की सबसे अच्छी फिल्मों में से एक कह सकते हैं

Abhishek Srivastava

एक बात तो पक्की है कि अगर किसी फिल्म में अजय देवगन के चेहरे पर हंसी के दीदार नहीं होते हैं तो उस फिल्म को जनता जरूर पसंद करती है. चाहे वो महेश भट्ट की ज़ख्म हो या फिर प्रकाश झा की गंगाजल या रोहित शेट्टी की सिंघम या फिर कुछ समय पहले आई निशिकांत कामत की दृश्यम - इन फिल्मों का बॉक्स आफिस पर कुछ भी हश्र रहा हो लेकिन इन सभी फिल्मों में अजय के संजीदा अभिनय ने सभी का मन मोह लिया था.

राजकुमार गुप्ता की रेड उसी परंपरा को आगे बढ़ाती है. रेड 1980 में लखनऊ में हुए एक सांसद के घर पर पड़े छापे की सत्य घटना पर आधारित है जब छापे के बाद आयकर विभाग को 420 करोड़ रुपये मिले थे. राजकुमार गुप्ता की दो घंटे आठ मिनट की यह फिल्म आपको पूरी तरह से बांध कर रखेगी. इस हफ्ते आपको अपने वीकेंड प्लान बनाने पर ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी क्योंकि रेड आपका पूरा मनोरंजन करेगी.


रेड का घटनाक्रम दमदार है 

फिल्म की कहानी 1980 में लखनऊ में हुई एक सत्य घटना पर आधारित है. आयकर आयुक्त अमय पटनायक को कहीं से फोन पर एक टिप मिलती है कि सांसद रामेश्वर सिंह के घर पर अघोषित संपत्ति है. समय के साथ पर फोन पर ही अमय पटनायक को और भी टिप मिलते रहते हैं और कुछ दिनों के बाद आयकर विभाग का केस इतना मजबूत हो जाता है कि अमय पटनायक अपने बाकी अधिकारियों की पलटन के साथ रामेश्वर सिंह के घर पर छापा मार देते हैं.

शुरुआत में पूरी टीम को कई तरह की परेशानियों से दो चार होना पड़ता है. रामेश्वर सिंह का एक लम्बा चौड़ा कुनबा है जिसमे उनकी मां, उनके भाई और उनकी पत्नियां, बेटे और बेटियां सभी शामिल हैं. इन सभी को छापे के बारे मे समझाने के अलावा उनको रामेश्वर सिंह के राजनैतिक शक्ति का भी एहसास होता है. शुरू में तो टीम के हत्थे कुछ भी हाथ नहीं लगता है लेकिन जैसे समय बीतता है एक के बाद एक परतें खुलती चली जाती हैं. बाद में मामला प्रधानमंत्री तक पहुंच जाता है. अमय पटनायक इन सभी रोड़ों को अपने रास्ते से कैसे अलग करते हैं यही रेड की कहानी है.

अजय देवगन और सौरभ शुक्ला का शानदार अभिनय 

इस बात में कोई शक नहीं है कि पूरी फिल्म को अजय देवगन अपने कंधों पर लेकर चलते हैं. देखकर अच्छा लगता है कि अजय देवगन ने अपने रोल के साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं किया है. फिल्म में उनकी आंखें बोलती हैं और उनका व्यवहार चित्रण पूरी तरह से एक आयकर अधिकारी से मेल खाता है.

कहने में कोई हर्ज नहीं कि अमय पटनायक का किरदार उनके निभाए गए अब तक के किरदारों में एक बेहतरीन किरदार है. फिल्म देखने में मजा तब ही आता है जब हीरो जितना ही ताकतवर विलेन भी होता है और सच यही है की रामेश्वर सिंह के रोल में सौरभ शुक्ला ने अजय का पूरा साथ दिया है. एक घबराए हुए सांसद कम बाहुबली के रोल में सौरभ शुक्ला पूरी तरह से उभर कर सामने आयें है.

मध्यांतर के बाद जब वो छापे को बंद करवाने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देते हैं तब उन सीन्स देखने में खासा मजा आता है. इलियाना डिक्रूज़ मालिनी के रूप में फिल्म में अजय देवगन की बीवी के रोल में हैं. भले ही उनका रोल छोटा है लेकिन छाप छोड़ने में वो पूरी तरह से कामयाब रही हैं. फिल्म में किरदार ऐसे भी हैं जिनके बारे में लिखना जरूरी हो जाता है और वो है अमित स्याल और 85 साल की पुष्पा जोशी.

अमित स्याल एक भ्रष्ट आयकर अधिकारी के रोल में हैं उनका काम बेहद शानदार है तो वहीं दूसरी तरफ सौरभ शुक्ला की मां के रोल में पुष्पा जोशी ने दिखा दिया है की 85 साल की उम्र में भी अभिनय का दमखम है उनमें. कम शब्दों में कहें तो जिन सपोर्टिंग एक्टर्स का चयन राज कुमार गुप्ता ने अपने फिल्म के लिए किया है वह तीर निशाने पर जैसा ही है.

राज कुमार गुप्ता का निर्देशन बेहतरीन 

इस फिम का निर्देशन किया है राज कुमार गुप्ता ने और लगभग पांच सालों के बाद उन्होने किसी फिल्म का निर्देशन किया है. कहने की जरुरत नहीं कि जब एक अच्छा और कमाल का निर्देशक जब इतना समय लेता है अपनी अगली फिल्म बनाने के लिए तो वो जुर्म ही माना जाएगा. बहरहाल इसके पहले आमिर और नो वन किल्ड जेसिका जैसी शानदार फिल्में बनाकर जनता के मानस पटल पर छाने वाले राज कुमार इस फिल्म में भी पूरी तरह से फार्म में हैं.

कहीं भी फिल्म पर उनकी पकड़ ढीली नहीं दिखाई देती है. फिल्म का नैरेशन उन्होंने काफी सरल रखा है और यह फिल्म के लिए एक तरह से प्लस प्वाइंट है. कहीं भी फिल्म में किसी तरह का उलझाव नहीं है या फिर जटिलताए नहीं दिखाई देती हैं. उनकी पिछली फिल्म घनचक्कर बॉक्स आफिस पर कामयाब नहीं रही थी. लेकिन रेड उसका दुःस्वप्न भुला देगी. राज कुमार गुप्ता ने कही भी गलती नहीं की है. उनसे फिल्म में सिर्फ एक गलती हुई है और वो है गानों को फिल्म मे जगह देकर. फिल्म को लिखने वाले हैं रितेश शाह और एक तरह से उन्होंने स्क्रीन पर रेड का टेंशन जीवंत कर दिया है.

गानों ने डाला फिल्म में खलल

फिल्म में जो भी गाने आते है वो फिल्म की रफ़्तार को ढीली कर देते हैं जिसको देखकर कोफ्त मचती है. कहने की जरुरत नहीं की की इस फिल्म को बनाने में एक म्यूजिक कंपनी के भी पैसे लगे हुए हैं लिहाजा उनको भी कहीं ना कहीं अपनी उपस्थिति का औचित्य साबित करना था और निर्माता होने की वजह से निर्देशक को झुकना भी पड़ा होगा. लेकिन यह सब मामूली कमियां हैं फिल्म में. रेड एक शानदार फिल्म है. एक घटना होने के बाद घटनाक्रम का पहिया कैसे बदलता है इसको बड़े ही लाजवाब तरीके से फिल्म में दर्शाया गया है. इस रेड को आप मिस नहीं कर सकते.