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FILM REVIEW : ‘हिचकी’ देखने की वजह सिर्फ रानी मुखर्जी होनी चाहिए

इस फिल्म की कहानी में कुछ नयापन नहीं है

Abhishek Srivastava

हिचकी से रानी मुखर्जी पांच साल के बाद रुपहले पर्दे पर एक बार फिर से नजर आई हैं और मानना पड़ेगा कि शुरुआत उन्होंने वहीं से की है जहां से उन्होंने चीजों को छोड़ा था. अपनी पिछली फिल्म मर्दानी में.

कहने का आशय यही है कि बेहतरीन अभिनय का नमूना उन्होंने एक बार फिर से दिया है. पिछली बार रानी मुखर्जी अपनी फिल्म में किसी बीमारी की मरीज़ बनी थीं तब उन्होंने धूम मचा दी थी. जी हां बात यहां पर ब्लैक की हो रही है जिसमें उन्होंने एक डेफ ब्लाइंड का किरदार निभाया था.


इस फिल्म का सबसे सकारात्मक पहलू यही है कि शरीर के एक डिसऑर्डर को बड़े ही सरल तरीके से बताया गया है और कहने की कोशिश की गई है कि इस तरह के न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के इंसान भी असंभव को संभव कर दिखाने का भी माद्दा रखते हैं.

हिचकी एक अच्छी कोशिश है लेकिन अगर सिद्धार्थ मल्होत्रा बच्चों वाले सीक्वेंसेस को कम फिल्मी रखते तो उसका ज्यादा असर होता. इस फिल्म को देखने की अकेली वजह है रानी मुखर्जी बाकी फिल्म के अन्य पहलुओं के बारे में हम यही बात नहीं कह सकते.

एक अंडरडॉग की कहानी

हिचकी की कहानी नैना माथुर की है जिनको टुरेट सिंड्रोम है जिसकी वजह से उनके शरीर के कुछ एक क्रियाओं पर उनका वश नहीं रहता है. समय समय पर उनको हिचकी आती है और मुंह से आवाजें निकलती रहती हैं. घर पर वो अपने मां और भाई के साथ रहती हैं और उनके पिता अलग रहते हैं.

नैना को एक पढ़ाने की नौकरी की दरकार है लेकिन इस डिसऑर्डर की वजह से उसे नौकरी मिलने में सफलता नहीं मिल पाती है. समय के चलते नैना को उसी के स्कूल में कुछ महीनों के लिए पढ़ाने की एक अस्थाई नौकरी मिल जाती है.

नैना के क्लास में वो बच्चे होते हैं जिनको स्कूल को मजबूरी वश लेना पड़ा है सरकार के शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत. ये वो बच्चे हैं जो स्कूल की बगल की बस्ती में रहते हैं लेकिन जब उनका स्कूल बंद हो गया तब संत नोटकर स्कूल को उनको मजबूरी वश अपने स्कूल में लेना पड़ा. स्कूल के सीनियर टीचर मिस्टर वाडिया उनको हीन भावना से देखते हैं तो वहीं दूसरी ओर स्कूल के प्रिसिंपल का नज़रिया थोड़ा अलग है. नैना को इन बच्चों को पढ़ाने में शुरुआत में कई बाधाएं आती हैं लेकिन अंत में नैना अपनी हिम्मत और निश्चय के चलते सभी बाधाओं को पार कर लेती है.

रानी ने आगे बढ़ाई फिल्म

हिचकी की कहानी के एक अंडर डॉग की कहानी है और कहने की जरुरत नहीं कि इस जॉनर को दुनिया भर के लोग पसंद करते हैं. आपको पता है कि शुरू में क्या होगा, फिल्म के बीच में क्या होगा और फिल्म किस तरह से खत्म होगी.

लेकिन इंसान के जुझारू प्रवृति की कहानी आपको हमेशा बांध कर रखती है. हिचकी भी कोई अपवाद नहीं है आप हर वक्त नैना माथुर के किरदार के लिए चीयर करते है. फिल्म के ट्रीटमेंट मे किसी भी तरह का नयापन ना होने की वजह से एक हद के बाद ये आपको बोर करने लगता है. आप यही सोचते हैं कि इसके पहले आप ऐसी कई फिल्में देख चुके हैं. लेकिन स्कूल के सीक्वेंसेस को अगर फिल्म के निर्देशक फिल्मी अंदाज नहीं देते तो मज़ा कुछ और हो सकता था.

यहां देखिए फिल्म का ट्रेलर

किसी भी स्कूल में इस तरह के बच्चे आपको नहीं मिलेंगे भले हो वो कितने शैतान क्यों ना हों और यहीं पर फिल्म अपनी जमीन छोड़ देती है.

आमिर खान की फिल्म तारे जमीन पर की तरह अगर यह फिल्म भी थोड़ी जमीन पर रहती तो इसका फ्लेवर काफी अलग होता. हिचकी अंग्रेजी फिल्म फ्रंट ऑफ़ द क्लास से प्रेरित है लेकिन मेरा यह मानना है कि अगर यह तारे ज़मीन पर से प्रेरित होती तो शायद इसकी कई खामियां अपने आप छुप जातीं.

कहानी में नहीं कोई नई बात

नैना माथुर के रोल में रानी मुखर्जी ने एक बार फिर से साबित कर दिया है की इस दौर की शानदार मौजूदा अभिनेत्रियों में उनका नाम अभी तक शुमार है भले ही वो पांच साल के बाद परदे पर नज़र आई हों. उनके अभिनय के खास बात यही है कि बड़े ही सहज तरीके से उन्होंने टुरेट सिंड्रोम से जूझती एक महिला का किरदार निभाया है, जो अपने कदमों पर खुद खड़ा होना चाहती है.

रानी के अभिनय में किसी भी तरह की मिलावट नजर नहीं आती है. फिल्म को अपने कंधे पर लेकर रानी चलती है. उनका पूरा साथ निभाया है नीरज कबि ने मिस्टर वाडिया की भूमिका में. अपनी सीमा में रहकर कैसे नीरज कबि रानी के क्लास के बच्चों के साथ एक दुर्भावना मन में रखते हैं यह बखूबी उन्होंने निभाया है. हिचकी में स्कूल के प्रिसिंपल बने है शिव सुब्रमण्यम और वह परदे पर एक लम्बे अर्से के बाद नजर आए हैं. उनका काम भी शानदार है. अलबत्ता रानी के स्कूल के बच्चों का भी फिल्म में लम्बा चौड़ा रोल है और उसमें से कुछ ने सटीक अभिनय किया है तो कुछ ओवर एक्टिंग के शिकार भी हुए है.

सिर्फ रानी के लिए देखें हिचकी

फिल्म में गाने जरूर हैं लेकिन उनका असर कुछ खास नहीं है. इस बात में कोई संदेह नहीं है कि हिचकी की कहानी काफी प्रेरणादायक है लेकिन यह भी सच है कि इस फिल्म के ट्रीटमेंट में कुछ नयापन नहीं है. यह उन्हीं फिल्मों की कतार में शामिल होती है जिनके दर्शन थोक के भाव से इसके पहले हो चुके हैं. एक क्लास के बच्चों को सफल बनाने के लिए रानी मुखर्जी जो पैंतरे आजमाती हैं उनमें किसी भी तरह का नयापन नहीं है.

अगर बच्चे गरीब तबके से आते हैं तो आपके स्कूल की क्लास एक चलती बस में या फिर एक प्रोजेक्टर के स्क्रीन पर नहीं हो सकती और वो भी एक ऐसी बस्ती में जिसका लुक थोड़ा डिजाइनर लगता है. रानी मुखर्जी अकेले इस फिल्म को देखने की सबसे बड़ी वजह है. अगर कुछ नया आपको हिचकी में देखना है तो उसकी कल्पना भी आप मत कीजिएगा.