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Film Review : घटिया निर्देशन ने फन्ने खान की ‘जान’ निकाल दी

फन्ने खान का निर्देशन अगर राकेश ओमप्रकाश मेहरा खुद करते तो अच्छा होता. ऐश्वर्या राय जैसे बड़े स्टार को भी फिल्म में जाया कर दिया

Abhishek Srivastava

फन्ने खान देखने के बाद ये लगता है कि अगर इस फिल्म की कमान राकेश ओम प्रकाश मेहरा के हाथों में होती तो इस फिल्म का स्वरूप कैसा होता. रंग दे बसंती और भाग मिल्खा भाग बनाने वाले राकेश मेहरा की हैसियत इस फिल्म में बतौर निर्माता हैं और निर्देशन की कमान को उन्होंने अपने अरसे पुराने असिस्टेंट अतुल मांजरेकर के हवाले कर दिया है.

अतुल की अनुभवहीनता नजर आती है जिस वजह से फिल्म के स्क्रीनप्ले में कुछ जगहों पर बड़े गड्ढे और कुछ जगहों पर बेहद सतही ट्रीटमेंट देखने को मिलता है. फन्ने खान एक बेहद ही औसत दर्जे की फिल्म है जिसका स्तर ऊंचा होता है अनिल कपूर और न्यूकमर पिहू सैंड की वजह से.


लेकिन अनिल कपूर भी अकेले फिल्म में क्या करें जब उनका साथ किसी ने भी नहीं दिया है - ना फिल्म के बाकी कलाकारों ने और ना ही कैमरे के पीछे के लोगों ने.

फन्ने खान एक अंडरव्हेलम्मिंग फिल्म है जिसको देखते वक्त एक आशा बनी रहती है कि अब कुछ नया होगा लेकिन फिल्म खत्म हो जाती है लेकिन उस नयापन को देखने का मौका आखिर तक नहीं मिलता है. ऑस्कर के लिए नामांकित हुई एक बेल्जियन फिल्म एव्रीबॉडी फेमस की ये हिंदी रूपांतर है और इस बात का मुझे पक्का यकीन है कि ओरिजिनल फिल्म से जुड़े लोग इस फिल्म को देखकर ज्यादा खुश नहीं होंगे.

एक नाकाम सिंगर की कहानी

फन्ने खान की कहानी प्रशांत शर्मा (अनिल कपूर) की है जो किसी ज़माने में ऑर्केस्ट्रा में गाया करता था और उसका सपना एक गायक बनने का था. लेकिन वक्त की मार की वजह से उसे एक फैक्टरी में नौकरी करनी पड़ती है और अपने सपनों को भूलना पड़ता है. उसके अपने सपने तो धूमिल हो चुके हैं लेकिन अब उसका सपना है अपनी बेटी लता (पिहू सैंड) को एक गायिका बनाने का जिसके लिए वो पुरजोर कोशिश करता है. प्रशांत की बेटी में गाने के सारे हुनर है लेकिन उसका मोटापा उसके हुनर के बीच आड़े आ जाता है.

लोग उसको उसकी पोशाक और उसके वजन की वजह से उसको आंकते हैं ना कि उसके गाने की वजह से. बीच में प्रशांत की नौकरी भी चली जाती है लेकिन पैसे कमाने के लिए वो टैक्सी भी चलाने को तैयार हो जाता है. अपनी आर्थिक परिस्थिति और बेटी को गायक बनाने के लिए उसे पैसो की दरकार है और इस बीच जब उसे मौका मिलता है तब वो देश की सबसे बड़ी गायिका बेबी सिंह (ऐश्वर्या राय बच्चन) को अगुवा कर लेता है जिसमें उसका साथ देता है उसका दोस्त अभिर (राजकुमार राव).

जब बेबी सिंह प्रशांत के हालात से अवगत होती है तब वो अपने तरीके से उनका साथ देने लगती है. इसी बीच प्रशांत, बेबी सिंह के मैनेजर को धमकी देकर अपनी बेटी के लिए गाने का एक मौका निकाल लेता है. फिल्म के आखिर में स्टेज शो के जरिये, लता, प्रशांत और फिल्म के बाकी सभी किरदार शो के लाइव होने की वजह से एक दूसरे से रूबरू होते हैं टेलीविज़न पर जहां पर आखिर में प्रशांत के सपनों को पंख मिल ही जाते हैं.

फिल्म मे ना म्यूजिक है और न ही ड्रामा

फन्ने खान से मुझे ढेरों शिकायतें हैं. ये फिल्म वाकई में एक ड्रामा है जिसमे हाई टेंशन की उम्मीद रहती है. हाई टेंशन तो भूल जाइये आपको टेंशन के दीदार भी नहीं होंगे. अनिल कपूर एक मध्यमवर्गीय परिवार के मुखिया हैं लेकिन फिल्म में ऐसा एक भी सीन नहीं है जिसमें इस बात को हाईलाइट किया गया है की उनको पैसों की सख्त जरुरत है.

महज डायलॉग से ये चीजें पूरी नहीं हो जाती हैं. कुछ वही हाल है पिता और बेटी के रिश्ते को लेकर. पिता अपनी बेटी से बेहद प्यार करता है लेकिन बेटी अपने पिता को ओल्ड-फैशंड समझती है. इन दोनों के बीच के टेंशन को भी फिल्म में ठीक तरह से नहीं दिखाया गया है. अति हो जाती है क्लाइमेक्स के दौरान जब फिल्म के क्लाईमेक्स में अनिल कपूर, राजकुमार राव और ऐश्वर्या राय बच्चन से मिलने जाते हैं लेकिन उनका कोई भी नामो निशान नहीं है.

अरे भई जब मामला किसी को अगुवा करने का है तो राजकुमार राव का यह फर्ज बनता है की मिल से निकलने के पहले वो अनिल कपूर को बता दें कि वो कहा जा रहे है. सिनेमेटिक लिबर्टी का इससे शानदार नमूना और क्या हो सकता है कि दो किरदारों को आपने कुछ समय के लिए गायब कर दिया और जब मर्जी हुई तब आप उनको फिल्म में वापस ले आए.

अनिल लाजवाब बाकी बेकार

अभिनय के नाम पर सिर्फ अनिल कपूर ही फिल्म में ऐसे है जिनके चेहरे पर हर तरह के भाव नजर आते हैं. एक पिता और एक फेल्ड सिंगर की भूमिका को उन्होंने बखूबी अंजाम दिया है. अनिल कपूर के दोस्त अभिर की भूमिका में राजकुमार राव हैं और देखकर लगता है कि पता नहीं वो फिल्म में क्या काम कर रहे हैं.

किरदार पर तो लिखावट कुछ है ही नहीं, खुद राव का अभिनय भी बेहद औसत दर्जे का है जो कहीं से भी कोई छाप नहीं छोड़ता है. बेबी सिंह सिंगर की भूमिका में ऐश्वर्या राय बच्चन है लेकिन शायद उनको किसी ने ये यही बताया की जरूरी नहीं की एक गायिका अपनी निजी जिंदगी में भी ग्लैमरस दिखाई दे. उनके ग्लैमर, कपड़े और वेशभूषा पर ज्यादा ध्यान दिया गया है.

उनके बोलने चलने का लहजा भी थोड़ा अटपटा लगता है. उनका अभिनय औसत ही माना जाएगा अलबत्ता लता की भूमिका से पिहू सैंड बॉलीवुड में अपना डेब्यू कर रही हैं और पहली फिल्म होने के बावजूद उनका आत्मविश्वास झलकता है.

इस हफ्ते आपके पास फन्ने खान से बेहतर विकल्प हैं    

अतुल मांजरेकर का निर्देशन फिल्म में औसत दर्जे का है और कहीं से भी ये फिल्म आपका ध्यान खींचने में कामयाब नहीं हो पाएगी. नेटफ्लिक्स के ज़माने में इस तरह के कंटेंट के ख़रीदार कौन होंगे इस बात को जानने में मेरी दिलचस्पी रहेगी. लेकिन फन्ने खान को एक बुरी फिल्म बनाने में सबसे बड़ा मुजरिम है इसका स्क्रीनप्ले जिसको देखकर लगता है कि किसी को अपना काम खत्म करने की जल्दबाज़ी थी.

सबसे बड़ी बात ये है की यह फिल्म एक तरह से म्यूजिकल फिल्म है लेकिन इस फिल्म मे एक भी ऐसा गाना ऐसा नहीं है जिसको आप सिनेमा हॉल से बाहर निकल कर दो घंटे के लिए भी याद रखे.

अमित त्रिवेदी का जादू पूरी तरह से बेअसर है और इस तरह के संगीत की उम्मीद उनके बिलकुल नहीं थी. दर्शक खुद को ठगा महसूस करेंगे. इस फिल्म की बाकी कसर मुल्क और कारवां इस हफ्ते पूरी कर देंगे जो फन्ने खान से कोसो बेहतर फिल्म है. फन्ने खान को आप बड़े ही आसानी से मिस कर सकते हैं. इस हफ्ते आपके पास कई विकल्प हैं.