view all

Half Girlfriend रिव्यू: नाम जितनी ही बेमतलब है यह फिल्म

मोहित सूरी का कहना है कि इस कहानी पर उन्होंने अपने तीन कीमती साल लगाए हैं

Kumar Sanjay Singh

एक लड़का है बिहार से आया हुआ माधव झा, जाहिर है अंग्रेजी में हाथ थोड़ा तंग तो होगा ही. एक कॉन्वेंट में पढ़ी लिखी लड़की है रिया, जिसे बास्केटबॉल और सिंगिंग में काफी रूचि है. ये दोनों एक कॉलेज में आपस में टकरा जाते हैं.

बास्केटबॉल का कॉमन इंटरेस्ट दोनों को नजदीक लाता है. जैसा कि अमूमन होता आया है 'हंसी तो फंसी' वाले फॉर्मूले से झा को लगता है कि मामला जम गया लेकिन ये फॉर्मूला कॉन्वेंटगामिनी कन्याओं के मामले फिट नहीं बैठता. लड़की को दिल देने से गुरेज है लेकिन लड़के की जिद है. दोनों मिल कर तीसरा रास्ता निकालते हैं.


खालिस भदेस शब्दों में कहें 'खा खुजा बत्ती बुझा' वाला सॉल्यूशन. जरा रुकिए, कहानी खत्म नहीं हुई. अभी केवल इंटरवल हुआ है, इस पूरे डेढ़ घंटों की कवायद को अगर संक्षेप में समझना है तो माधव झा की इस फिलॉसफी के साथ समझिए -'देती है तो दे वर्ना कट ले.'

दिल नहीं मिले लेकिन जिस्म को जिस्म की भाषा समझ में आ गई. शायद फिलहाल दोनों के लिए यही काफी था. रिया अपने दोस्त से शादी कर लंदन चली गई और माधव अपने गांव ठेठ डुमरिया जहां उनके परिवार का स्कूल चलता है. शहर में माधव लड़की देखता है और गांव में सपने. माधव का सपना है स्कूल को आगे बढ़ाना, समाज की सेवा वगैरह वगैरह.

इसी सिलसिले में भटकते माधव की मुलाकात एक बार फिर रिया से होती है. इस बार ट्विस्ट ये है कि रिया को कैंसर है और बस तीन महीने की बात है. रिया वापस चली जाती है. माधव उसके पीछे न्यूयॉर्क पहुंचता है तो देखता है कि रिया तो टाइम्स स्क्वायर पर कंसर्ट कर रही है. फिर?

हिंदी फिल्म के दर्शक इतने भी वो नहीं हैं. खैर... ये मजाक नहीं एक कहानी है जो बैंकर से लेखक और फिर निर्माता चेतन भगत ने लिखी है और इसी पर निर्देशक मोहित सूरी ने 'हाफ गर्लफ्रेंड' बनाई है.

ऐसा लगता है कि जब चेतन भगत इस नॉवेल को लिख रहे होंगे तब उनके दिमाग में जरूर आम मसाला मुंबइया फिल्म का प्लॉट घूम रहा होगा. वैसे बता दूं कि जैनेन्द्र जिज्ञासु नामक एक लेखक ने दावा किया था कि चेतन भगत ने ये उपन्यास उनकी कहानी 'पूरब का बेटा' से चुराई है. बहरहाल ये चेतन भगत का पांचवां उपन्यास है जिस पर फिल्म बनी है.

मोहित सूरी जैसी फिल्में बनाने में माहिर हैं उस हिसाब से तो ये कहानी फिट है लेकिन ऐसा लगता है मोहित युवाओं की नब्ज पकड़ने में चूक गए. गर्लफ्रेंड के मामले में शहरी युवाओं की सोच भले ही 'देती है तो दे वर्ना कट ले' जैसी दिखती हो लेकिन ऐसा है नहीं.

मोहित सूरी का कहना है कि इस कहानी पर उन्होंने अपने तीन कीमती साल लगाए हैं. अगर तीन साल खर्च करने के बाद मोहित 'हाफ गर्लफ्रेंड' जैसी फिल्म बनाते हैं, तो बेहतर है कि कम से कम समय में 'आशिकी 2 और एक विलेन' जैसी फिल्म ही बनाएं. इससे उनका समय भी बचेगा और 2 घंटे 32 मिनट तक थिएटर में बैठ कर खुद को कोसने वाले दर्शकों का भी.

फिल्म की स्टारकास्ट की बात करें तो अर्जुन कपूर चेतन भगत की पसंद हैं और श्रद्धा कपूर मोहित सूरी की. अर्जुन इससे पहले चेतन भगत के ही नॉवेल पर बनी '2 स्टेट्स' में नजर आए थे और श्रद्धा की ये मोहित के साथ यह तीसरी फिल्म है. शायद इसलिए दोनों इस फिल्म में हैं.

रोल को सूट करने वाली बात है तो श्रद्धा कपूर भले ही अपने फ्रेंच और अंग्रेजी ज्ञान के कारण किरदार को शूट करती हो लेकिन अर्जुन कपूर को एक बिहारी युवक के रूप में जी उमेंठ-उमेंठ कर बिहारी एक्सेंट वाली हिंदी बोलते देखना अब तक का सबसे वाहियात मजाक है.

यहां ये बताना जरूरी है कि 2014 में जब चेतन की ये किताब पब्लिश हुई थी तो बिहार में काफी हंगामा हुआ था. क्यों हुआ था ये बताने के लिए अर्जुन कपूर एक बेहतर किरदार हैं. कैरेक्टर रोल्स में सीमा विस्वास दर्शकों के लिए एकमात्र सांत्वना है. फिल्म का म्युजिक वाकई अच्छा है. फिल्म का सॉन्ग 'फिर भी तुमको चाहूंगा' और 'बारिश' पहले ही पॉपुलर हो चूका है. 'बारिश' को अभी तक 55 मिलियन से अधिक और 'फिर भी तुमको चाहूंगा' को 30 मिलियन से अधिक लोग सोशल मीडिया पर देख चुके हैं.

इस फिल्म के लिए मोहित ने अरिजीत सिंह की आवाज में एक 18 मिनट का लंबा गाना रिकॉर्ड किया था लेकिन शायद समय की कमी को देखते हुए उसकी लम्बाई कम कर दी गई है.

फिल्म का क्लाइमैक्स न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वेयर पर फिल्माया गया है. बढ़िया सिनेमेटोग्राफी के कारण ये आंखों को सुकून देता है. कहते हैं कि सिनेमेटोग्राफर विष्णु राव और मोहित सूरी ने फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन से इसके लिए स्पेशल परमिशन ली थी और इसे सुबह चार बजे काफी तामझाम के साथ फिल्माया गया ताकि उचित माहौल क्रिएट किया जा सके. कुछ तक दोनों इसमें सफल भी रहे हैं.

फिल्म में यूएन हेडक्वार्टर के कुछ एक्सक्लूसिव सीन्स भी हैं जो पहली बार किसी हिंदी फिल्म में दिखेंगे. इसके लिए परमिशन की ये कहकर ली गई कि ये फिल्म रूरल एरिया में शिक्षा का प्रसार कर रही है. मानना पड़ेगा मोहित सूरी ने अमेरिकियों को भी मामू बना दिया. अब बारी हिंदी फिल्म के दर्शकों की है.