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'गांधी-द म्यूजिकल': संगीत में बंधा मोहनदास से बापू बनने का सफर

राष्ट्रपिता के जीवन और संघर्षों को संगीत नाटक के माध्यम से बखूबी दिखाया गया है

Runa Ashish

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को इस पीढ़ी ने सिर्फ पढ़ा है लेकिन 'गांधी-द म्यूजिकल' अंग्रेजी म्यूजिकल के जरिए लोग बापू को देख भी सकेंगे. इसी बात को जेहन में रखकर निर्देशक ने इस म्यूजिकल को बनाया और वो बहुत हद तक सफल भी हुए हैं.

नाटक की शुरुआत में अफ्रीका में बसे देसी लोग और वहां रहने वाले भारतीय लोगों को साथ मिलकर डांस करते हुए दिखाया गया है.


गोरों ने उस समय के दक्षिण अफ्रीका में कैसे हालात पैदा कर दिए थे. ऐसे में गांधी का उस देश पहुंचकर एक सुनवाई के दौरान अपनी पगड़ी ना उतारना, कैसे उस गुलाम देश में आजादी नाम का शब्द कानों में फुसफुसा गया.

कैसे उस देश में दो-दो क्रांतिकारियों का जन्म हुआ. एक तो गुलाम देश और दूसरा मोहनदास करमचंद गांधी. इसके बाद कैसे ये क्रांतिकारी- देश प्रेमी विदेशी धरती से आजादी के बीज बोने भारत आया. कैसे वो बीज एक वटवृक्ष का रूप लेता गया, ये ही कहानी है इस म्यूजिकल की.

देश में आजादी का हुंकार भरा

स्मोक स्क्रीन यानी धुंए पर अंग्रेजों की आकृति देखना बड़ा ही अनोखा अनुभव था. बोमन की आवाज में वो रौब और उसके सामने एक लाचार से नवयुवक, गांधी जी की असमंजस से भरी आवाज.

फिर एक वही गांधी अपने फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट से बाहर फेंके जाने की वजह से अपनी मंजिल तक ना पहुंच सका. इतने गुस्से में आया कि उसे अपनी राह साफ दिखने लगी. उसी बापू ने एक दिन बोमन की आवाज के सामने अपने देश में आजादी का हुंकार भर दिया.

लेकिन वो ही राष्ट्रपिता अपने पुत्र हरिलाल के दिल में अनजाने में ही कुंठा को भी जन्म दे गए.

किसी भी नाटक का अपना एक ग्राफ होता है. इस नाटक का सबसे बड़ा हाई प्वाइंट था जब लोगों ने बापू के उस स्वरूप को देखा जिसे वो देखते और सुनते आए हैं.

(यहां आप नाटक के अंत तक ये ही सोचते रहते हैं कि युवा गांधी ने अपना गेटअप इतनी जल्दी कैसे बदला. हालांकि नाटक के अंत में जब आप दोनों गांधी से मिलते हैं तब जाकर आपको जवाब मिलता है).

आंखों देखी जीवनी बन गई

नाटक वहीं से लोगों के लिए कहानी से ज्यादा आखों देखी जीवनी बन गई. म्यूजिकल में किसी भी बड़े और भव्य सेट की कल्पना आप कर रहे हों तो जरा रुकिएगा.

यहां आपको अपने बीच में आकर खड़े हुए किसी क्रांतिकारी के बुलंद आवाज से रूबरू होने को मिलेगा. कहीं कोई खड़ा अंग्रेजों को ललकार रहा होगा तो कभी बापू के आगमन पर फूल बरसाता मिलेगा.

आपको अपने पास से साक्षात गांधी दांडी यात्रा करते दिखेंगे तो उठकर आप छू ना लेना... वो डिस्टर्ब हो जाएंगे. उन्हें नमक सत्याग्रह करने के लिए दांडी यात्रा को चालू रखना है.

इस लार्जर दैन लाइफ वाले बापू को देखने के बाद आपको वो दुख में डूबे, खुद में गुम हो जाने वाले गांधी भी दिखेंगे जो जलियांवाला बाग के बाद हुए विद्रोह यानी चौरा-चौरी हत्याकांड की माफी मांगते भी दिखेंगे. मुहम्मद अली जिन्ना के पार्टी छोड़कर जाने पर हरिजन के सामने अपने दुख को बांटते भी दिखेंगे. साथ ही उस तिरंगे के सामने मूक वक्ता भी बने दिखेंगे जब जवाहर लाल नेहरू हिंदुस्तान और जिन्ना पाकिस्तान की मांग कर रहे थे.

बापू की पवित्रता पर गर्व 

आपको गांधी के सेंस ऑफ ह्यूमर पर प्यार भी आएगा जब वो अंग्रेजों को दो टूक जवाब देंगे. फिर ये कहना कि बापू- बापू नहीं होता अगर संग बा (कस्तूरबा) नहीं होती. इस बात पर आपको बापू की पवित्रता पर गर्व भी होगा.

दर्शकों में कई लोग अपने 10 साल उम्र के बच्चों को भी लेकर यह म्यूजिकल नाटक देखने आए थे. जिनके लिए ये नाटक कम और पढ़ाई का अगला अध्याय जैसा था.

आखिर क्या इस म्यूजिकल को परफेक्ट बनने से रोकता है? 

गांधी द म्यूजिकल आप पर खुमारी बनकर ना चढ़ जाए ऐसा हो नहीं सकता लेकिन फिर भी कुछ बातें हैं जो इस म्यूजिकल को सर्वव्यापी बनाने से रोक सकती है, वो है इसका अंग्रेजी में होना. मनोरंजन और उसमें छुपा प्यार भरा संदेश जब तक जन-जन तक नहीं पहुंचे वो मंजिल तक नहीं पहुंच पाता.

आशा है इसका हिंदी रूपांतरण भी जल्दी लोगों के सामने आए. कला की कोई भाषा नहीं होती लेकिन कला अपने चरम तक तो भाषा पर सवार हो कर ही पहुंचता है.