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Fraud Saiyaan Movie Review: फ्रॉड सैय्या लोगों को हंसाने का एक अच्छा अवसर था लेकिन...

अरशद वारसी की कॉमिक टाइमिंग और अभिनय सटीक है लेकिन कॉमेडी में चीजों को आदान प्रदान ज्यादा होता है. और अरशद इस मामले में खुद को अकेला महसूस करते है

Abhishek Srivastava

फ्रॉड सैय्या एक कॉन फिल्म है और कॉन फिल्मों की सबसे बड़ी खूबी इसी बात में होती है कि अगर फिल्म के अंदर चार पांच कॉन दिखाये गए है तो उनमे से कम से कम एक कॉन ऐसा होना चाहिए जिसको देख कर आप दांतों तले अपनी उंगली दबा ले या फिर आप ये कहे की मजा आ गया. लड़कियों से शादी करके उनको धूर्त बनाने का काम वैसे तो अरशद वारसी ने इस फिल्म में कई बार किया है लेकिन लगभग दो घंटे से कुछ कम अवधि की इस फिल्म में एक भी ऐसा मौका नहीं नजर आता है जब आप के मुंह से वाहवाही निकले. फ्रॉड सैय्या एक बेहद ही अधपके ढंग से बनाई गयी फिल्म है जिसमे क्षमताये अपार थी लेकिन कुछ भी स्क्रीन पर उभर कर सामने नहीं आ पाया है.

फिल्म की कहानी भोला के बारे में जिसका पेशा है लड़कियों से शादी करके उनके पैसे पर ऐश करना


फिल्म की कहानी भोला (अरशद वारसी) के बारे में है जिसका पेशा है लड़कियों से शादी करके उनको बेवकूफ बनाना और उनके पैसे पर ऐश करना. अपनी चिकनी चुपड़ी बातों में फांस कर वो लखनऊ से लेकर बनारस तक की कई लड़कियों को अपने जाल में फास चुका है. कहानी की शुरुआत होती है लखनऊ से जहां पर वो अपनी एक बैंक अधिकारी बीवी के साथ रहता है. जब बीवी के ताऊ जी मुरारी चौरसिया (सौरभ शुक्ल) का फोन आता है की वो शहर में ट्रेन से आने वाले है तब ताऊजी को स्टेशन से घर वापस लाने की जिम्मेदारी भोला के कंधे पर आ जाती है. भोला स्टेशन तो पहुंच जाता है लेकिन जब उसको कुछ लोग गोली चलकर उसको मारने की कोशिश करते है तब मामला संगीन हो जाता है. अपनी जान बचाने के लिए भोला उसी ट्रेन में सवार हो जाता है जिसमें उसकी बीवी के ताऊजी है जो किसी कारण से लखनऊ ना उतर कर उसी ट्रेन से बनारस जाने की सोचते है. सफर के दौरान मुरारी को इस बात का इल्म हो जाता है की भोला एक ठग है जिसके सम्बन्ध और कई लड़कियों से है. जब भोला को मुरारी के ऊपर विश्वास हो जाता है की वो उसके कॉन में उसका साथ देगा तब एक अलग ही सफर शुरू होता है जिसके तार भोला की पिछली शादियों से जुड़े है.

फिल्म का निर्देशन बेहद कमजोर है

फ्रॉड सैय्या में खामिया की भरमार है और इसका निर्देशन बेहद ही साधारण है. सिनेमैटिक लिबर्टीज एक के बाद एक ली गयी है. इस फिल्म के केंद्र बिंदु अरशद वारसी और सौरभ शुक्ल है जो कमोवेश फिल्म के हर सीन में नजर आते है. अब ये वही अरशद और सौरभ है जिनको इसके पहले हम 'जॉली एल एल बी' में देख चुके है. इस फिल्म में उनकी केमिस्ट्री थकी थकी नजर आती है. अगर आप दो कॉन आदमियों की बात कर रहे है तो सबसे पहले याद आती है अरशद वारसी और नसीर साब की फिल्म इश्क़िया जिसमें दोनों एक दूसरे के पूरक थे. लेकिन इस फिल्म में ऐसा कोई भी मौका देखने को नहीं मिलता है जिसको देख कर यह लगे की कुछ जादू होने वाला है. लखनऊ से लेकर बनारस तक के जोन की अगर हम बात करें तो वहां के लोगों की अलग बोलचाल और भाषा है. एक या दो किरदारों को छोड़ दे तो फिल्म में ऐसा कोई भी किरदार नहीं है जो वहां के लहजे में बात करता है. शायद निर्देशक इस बात को भूल गए है की अगर फिल्म मेकर को किसी विशेष जगह की कहानी कहनी है तो ये बेहद जरुरी है की वहां की भाषा पर पकड़ बनाई जाए.

अरशद वारसी इस फिल्म में अकेले ही कॉमेडी करते नजर आएंगे

अरशद वारसी की कॉमिक टाइमिंग और अभिनय सटीक है लेकिन कॉमेडी में चीजों को आदान प्रदान ज्यादा होता है. और अरशद इस मामले में खुद को अकेला महसूस करते है. सौरभ शुक्ल की कॉमिक टाइमिंग इस फिल्म में गायब नजर आती है. वरुण बडोला सपोर्टिंग कास्ट में है इस फिल्म लेकिन कहानी में उनको पूरी तरह से हाशिये पर डाल दिया गया है. सारा लॉरेन भी इस फिल्म में है और उनका काम भी साधारण है. समझ में नहीं आता है की इतने अच्छे अभिनेता को फिल्म में इतने कम समय के लिए क्यों लिया गया है. लगभग दो घंटे की यह फिल्म इंटरवल के बाद बोर करने लगती है और समय काटना मुश्किल हो जाता है. लेकिन ये भी कहना पड़ेगा की कुछ सीन्स फिल्म में ऐसे है जिनको देखकर आप ठहाके लगाएंगे लेकिन ऐसे मौके बेहद कम है. फिल्म में एक सीन है जब अरशद सारा से प्यार करने की कोशिश करते है और सारा उनको मन करती है. अरशद की जबरन कोशिश में हंसी का पूरा तड़का है लेकिन फिल्म के नरेशन से इसका कुछ लेना देना नहीं है इसलिए ये सीन औंधे मुंह गीत पड़ती है जब ये सीन खतम होता है तो. निर्देशक सौरभ श्रीवास्तव ने अगर कुछ समय और अपने स्क्रीनप्ले पर दिया होता तो बात कुछ और हो सकती थी लेकिन हकीकत यही है की फ्रॉड सैय्या के कुछ हंसी के सीन्स में आपको रोना आएगा.