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Meri Pyaari Bindu Review: इतनी भी प्यारी नहीं है परिणीति-आयुष्मान की 'बिंदु'

स्टोरी में ज्यादा दम नहीं है लेकिन आयुष्मान-परिणीति के लिए ये फिल्म एक बार देखी जा सकती है

Kumar Sanjay Singh

यशराज फिल्म्स के पास प्यार की इतनी वैरायटी है कि कभी-कभी ये भाव खुद भी कंफ्यूज हो जाता है कि आखिर हम इंसानी जिस्म के किस हिस्से में निवास करें. ऊपर से तुर्रा ये है कि ये बैनर युवाओं की नब्ज पकड़ने का दावा भी करता है.

इंसान की फितरत बदलती है. भाव तो स्थायी होते हैं. स्थायी और अस्थायी भाव का ये कंफ्यूजन अब लगभग यशराज की सभी फिल्मों में नजर आने लगा है. बहरहाल, आज के युवाओं में प्यार और करियर के बीच एक अजीब सा कंफ्यूजन है. इसके बीच बैलेंस बनाने की जद्दोजहद में वो उम्र का बड़ा हिस्सा गुजार देते हैं और जब किसी फैसले पर पहुंचते हैं तो उनकी स्थिति 'नौ दिन में चले अढ़ाई कोस' जैसी हो जाती है.


फिल्म में अभिमन्यु बने आयुष्मान और बिंदु बनी परिणीति इसी ऊहापोह के शिकार नजर आते हैं. आयुष्मान एक राइटर बने हैं जिन्हें पहले महानता का रोग था लेकिन बाद में जब उन्हें पता चला कि बुद्धि के सहारे जीविका चलाने का चलन अब रहा नहीं तो उन्होंने प्रेम से जुड़े अनुभवों को किताब की शक्ल में ढाल दिया और मामला जम गया.

ढीली है कहानी

इस फिल्म में 80 के दशक की लव स्टोरी को अलग अंदाज में पेश किया गया है. फिल्म अभिमन्यु की सोच के मुताबिक आगे बढ़ती है. बिंदु के करिदार को मिस्ट्री बनाकर रखा गया है. बात घूम फिरकर वहीं कहानी पर अटक जाती है.

इन दिनों हिंदी सिनेमा एक ऐसे दौर से गुजर रहा है जहां कंटेंट ही बॉस है. स्टार पॉवर, तकनीकी कलाबाजी, बैनर्स की पुरानी रेपुटेशन अब ज्यादा कारगर नहीं है. निर्माता आदित्य चोपड़ा और मनीष शर्मा वक्त की इस सच्चाई से मुंह मोड़ने की कोशिश करते दिखाई दे रहे हैं.

निर्देशक अक्षय रॉय ने अगर ये फिल्म किसी और बैनर के लिए बनाई होती तो शायद उन्हें ज्यादा फ्रीडम मिलता और बॉक्स ऑफिस के दबाव से मुक्त होकर अपना जौहर खुलकर दिखा पाते.

आयुष्मान-परिणीति की लाजवाब केमिस्ट्री

फिल्म की सबसे बड़ी खूबी फ्लैशबैक और आज के बीच का जबरदस्त तालमेल है. ये तालमेल दर्शकों को बांधे रखेगा. दूसरी बड़ी खूबी फिल्म के प्रमुख कलाकार आयुष्मान खुराना और परिणीति चोपड़ा के बीच की लाजवाब केमिस्ट्री है. आयुष्मान खुराना अपनी काबिलियत पहले ही साबित कर चुके हैं लेकिन परिणीति को टाइपकास्ट होने से बचने की जरूरत है.

परिणिति अगर जिस्म को आकर्षक बनाने के बजाय एक्टिंग स्किल पर काम करे तो लंबी पारी खेलने की हकदार होगी. फिल्म के आकर्षक लोकेशन इसमें एक्स्ट्रा पॉइंट जोड़ते हैं. मुंबई और कोलकाता की लोकेशंस को बड़ी ही खूबसूरती के साथ दिखाया है.

अच्छा है फिल्म का संगीत

रेट्रो गाने को लेकर निर्माता और निर्देशक दोनों कितने क्रेजी हैं ये तो इस फिल्म के टाइटल से ही पता चल जाता है लेकिन शायद इतना ही काफी नहीं था. बेचारे संगीतकार जोड़ी सचिन-जिगर को तो मौका ही नहीं मिला लेकिन जहां मिला वहां उन्होंने अपना कमाल दिखा दिया. कुल मिलाकर यशराज की ये बिंदु इतनी प्यारी तो नहीं है लेकिन बुरी भी नहीं है. एक बार तो इसे देखना बनता ही है.