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BIRTHDAY SPECIAL : 'फ़िरोज़ ख़ान' जिसने बॉलीवुड को स्टाइल और स्वैगर की एबीसीडी सिखाई

पढ़िए कि आखिर क्यों राज कपूर की पार्टी में शम्मी कपूर और फिरोज खान के बीच चले थे लात-घूंसे

Abhishek Srivastava

अभिनेता फ़िरोज़ खान लंदन में सन 1979 में अवकाश मनाने गए हुए थे. शाम के वक़्त जब शराब पीने का मन किया तो उन्होंने रुख किया एक पब की ओर जहां पर उनके दोस्त बिद्दू उसके क्लब में काम किया करते थे. वहीं पर पहली बार उन्होंने पाकिस्तान की गायिका नाज़िया हसन को गाते हुए सुना. बस फिर क्या था उन्होंने उसी वक़्त तय कर लिया की वो अपने दोस्त बिद्दु के साथ मिलकर नाज़िया हसन के गानों को अपनी आने वाले फिल्म में रखेंगे.

पाकिस्तानी सिंगर्स को दिया मौका


कहने की जरुरत नहीं की वो फिल्म उनके करियर की सबसे बड़ी फिल्म साबित हुई और उसकी सफलता में नाज़िया हसन के गांव का बहुत बड़ा हाथ था. वो फिल्म थी क़ुर्बानी जिसने उस वक़्त के स्टार ऋषि कपूर को डिप्रेशन में धकेल दिया था. यहां पर ये किस्सा कम मायने रखता है, अगर कुछ यहां पर कहने का आशय है तो वो यह है कि फ़िरोज़ खान अपने ज़माने से कुछ आगे ही चलते थे. आगे चल कर पाकिस्तान के सिंगर्स का जादू बॉलीवुड में सर चढ़ कर बोला. ये तो महज एक उदाहरण था. 1972 की फिल्म अपराध में जब वो कार रेसर बने तो फिल्म इंडस्ट्री ने दांतों तले उंगलियां दबा ली थीं. और जब अपनी फिल्म धर्मात्मा के लिए शूटिंग के सिलसिले में अफ़ग़ानिस्तान चले गए तो लोगों ने कहा की कोई ऐसा कैसे कर सकता है.

स्टाइल के थे महारथी

फ़िरोज़ खान की शख़्सियत कुछ ऐसी ही थी. रगों में पठानी खून ने उनको ये सिखाया था कि वो दुनिया के हिसाब से नहीं चलेंगे बल्कि दुनिया को वो अपने हिसाब से चलाएंगे. पाश्चात्य सभ्यता को सही मायने में कोई हिंदी फिल्मों को परदे पर ले आया था तो वो फ़िरोज़ खान ही थे. धर्मात्मा अगर हॉलीवुड की मशहूर फिल्म गाड़फादर की रीमेक थी तो जब उन्होंने अपनी कई फिल्मों में काऊ बॉय हैट पहना तो लोगों ने उनकी तुलना क्लिंट ईस्टवुड और स्टीव मक्क्वीन सरीखे दिग्गजों के साथ कर दी. उनके बोलने और बन्दूक पकड़ने के अंदाज़ ने उनको लाखों दिलों का चहेता बना दिया था.

ऐसे मिला फिल्मों में मौका

फ़िरोज़ ने कभी कॉलेज जाने की जहमत नहीं उठाई थी. जब सीनियर कैंब्रिज की परीक्षा उन्होंने पास कर ली तब उन्होंने सीधा बॉम्बे का रुख किया था. वाडिया एंड ब्रदर्स के यहां नौकरी की तो उनकी पगार 300 रुपये थी और जिस मकान में वो रहते थे उसका रेंट भी 300 रुपये था. और पैसे कमाने के लिए वो क्लब में स्नूकर के खेल में बेट्स लगाते थे. वाडिया एंड ब्रदर्स ने ही उनको अपनी फिल्म रिपोर्टर राजू के लिए 1000 रुपये माहवार पर साइन कर लिया था. और इस तरह से उनकी फ़िल्मी पारी शुरू हुई. आगे चल कर उन्होंने हिंदी फिल्मों में सही मायने में स्टाइल का आग़ाज़ किया. अपनी फिल्म क़ुर्बानी में महज एक सीन के लिए उन्होंने एक मर्सीडीज़ गाड़ी को उड़ा दिया था. क़ुर्बानी ने 1980 में बॉक्स ऑफ़िस पर 1 करोड़ रुपये का व्यापार किया था और यह आंकड़ा किसी को भी हैरान कर सकता है.

हेमा मालिनी को बुलाते थे 'बेबी'

ये फ़िरोज़ खान ही थे जिनके अंदर इतनी कूवत थी कि वो ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी को बेबी कह कर बुलाते थे. फ़िरोज़ खान के तेवर शुरू से ही जुदा थे यह उनकी शुरुआती फिल्मों से ही पता चल गया था. मौका था फिल्म ऊंचे लोग की शूटिंग के दौरान, उस फिल्म में उनके सह कलाकार अशोक कुमार और राजकुमार थे. शूटिंग के पहले ही दिन उनकी मुलाकात जब राजकुमार से सेट पर हुई तो राजकुमार उनको डायलॉग बोलने के तरीके सीखाने लगे.

विनोद खन्ना से थी बेहद खास दोस्ती

कुछ समय के बाद फ़िरोज़ खान ने बड़े ही नम्र तरीके से उनको कह दिया की राज जी आप अपना काम कीजिए और मैं अपना काम करूंगा, अगर जरुरत होगी तो मैं आपकी मदद ले लूंगा. उस ज़माने में राजकुमार से इस तरह की बात करना अपने आप में सामने वाली की हिम्मत के बखान करता है. बहुत काम लोगों को इस बात का इल्म है कि सत्तर के दशक में फ़िरोज़ खान को अमिताभ बच्चन के साथ काम करने के तीन मौके मिले थे और उन तीनों को ही उन्होंने ठुकरा दिया था. उनमें से एक फिल्म थी हेराफेरी जिसमे फ़िरोज़ खान का रोल आगे चल कर उनके जिगरी दोस्त विनोद खन्ना ने किया था.

राजकपूर की पार्टी में झगड़ा

ऋषि कपूर ने अपनी जीवनी में भी फ़िरोज़ खान से जुड़े एक क़िस्से का बखान किया है. मौका था बॉबी के शूटिंग से पहले का जब राज कपूर उसके गानों की रिकॉर्डिंग में व्यस्त थे. मैं शायर तो नहीं के रिकॉर्डिंग के बाद ये गाना उनको इतना पसंद आया कि आनन फानन में उन्होंने एक पार्टी का आयोजन कर डाला. जो लोग उस पार्टी में आए थे उनमें से फ़िरोज़ खान भी शामिल थे. फ़िरोज़ कुछ दिन पहले ही कनाडा में अपनी फिल्म इंटरनेशनल क्रूक की शूटिंग खत्म करके हिंदुस्तान लौटे थे और अपनी अगली फिल्म धर्मात्मा के प्री प्रोडक्शन में लगे हुए थे.

भिड़ गए थे फिरोज खान-शम्मी कपूर

उसी पार्टी में शम्मी कपूर भी जिनका वजन उस वक़्त कुछ बढ़ा हुआ था और घनी दाढ़ी की वजह से थोड़े बुजुर्ग लग रहे थे. नशे की हालत में फ़िरोज़ खान ने उनको कह दिया की वो ऐसे लग रहे हैं कि मानो वो उनके पिता का रोल धर्मात्मा में कर सकते हैं. ये रोल आगे चल कर कपूर खानदान से ही जुड़े प्रेम नाथ ने किया था. लेकिन उनका यह कहना था की शम्मी कपूर और फ़िरोज़ खान में एक दूसरे को गाली देने का दौर शुरू हो गया जो आगे चल कर मुक्कों में तब्दील हो गया.

अगर रणधीर कपूर शम्मी कपूर को खींच रहे थे तो वही दूसरी ओर वही काम संजय खान अपने भाई के लिए कर रहे थे. पार्टी में इस तरह के विघ्न से राज कपूर आग बबूला थे और फ़ौरन दोनों को उनकी गाड़ी में बैठाने का एलान किया. लेकिन मज़े की बात यह थी घर नहीं जाकर इन दोनों ने रुख किया हाजी अली की तरफ और तड़के तक और शराब के नशे में एक दूसरे के कंधे पर रोते रहे.

अपनी अधिकतर फिल्मों में उन्होंने अपने किरदार का नाम राजेश ही रखा. ये फ़िरोज़ खान ही थे जिन्होंने अपनी फिल्म क़ुर्बानी संजय गांधी को डेडिकेट किया था. फिल्मों में स्टाइल और स्वैगर लाने वाले इस अभिनेता को सलाम है.