ईशा गुप्ता ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 2012 में हिट फिल्म जन्नत से की थी लेकिन पांच साल गुजरने के बावजूद बॉलीवुड के कट थ्रोट कॉम्पिटीशन के जमाने में अपनी छाप छोड़ने में नाकामयाब रही हैं. पिछले साल की सफल फिल्म रुस्तम में भी वो नजर आईं थी लेकिन वैंप के किरदार से उनको ज्यादा फायदा नहीं मिला. भले ही रुस्तम की वजह से उनको कमांडो मिल गई लेकिन बात वही रही - ढाक के तीन पात.
ईशा को जल्द ही मिलन लूथरिया की फिल्म बादशाहो में एक बार फिर से अपना हुनर दिखाने का मौका मिलेगा लेकिन ये भी सच है कि जब इस फिल्म का प्रोमोशन शुरु हो चुका है तो लोग ईशा की इस फिल्म के बारे में बात ना करके उनके बिंदास तस्वीरों के बारे में बात कर रहे हैं जो उन्होंने कुछ दिनों पहले अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर पोस्ट की थीं. अब ये सोची समझी नीति थी या कुछ और. इन सभी मुद्दों पर ईशा ने फर्स्टपोस्ट हिंदी से एक खास बातचीत की.
ईशा, आपने किन वजहों से बादशाहो साइन की?
हर कोई मुझसे ये बात पूछता है. हकीक़त यही है कि फिल्म के निर्देशक मिलन लूथरिया ने मुझे कॉल किया था. उस कॉल के बाद मैं समझ गई थी और मन ही मन में मैंने फिल्म करने की हामी भर दी थी क्योंकि ये मिलन की फिल्म थी. सच बात तो ये है कि फिल्म क्या है और किस तरह की है ये मेरे लिये ज्यादा मायने नहीं रखती थी. मिलन मुझसे मिले और दो मिनट में मुझे कहानी का सार बता दिया और ये भी बताया कि संजना का किरदार पूरी फिल्म में क्या है और कहां फिट बैठता है. मुझे याद है की हम लोग एक रेस्त्रां में मिले थे और वो कहीं बाहर से आ रहे थे. उन्होंने उस दिन इस बात का भी खुलासा किया की जब उन्होंने मुझे पहली बार देखा था तो उन्हें इस बात का इल्म हो गया था कि बादशाहो के लिये संजना उनको मिल गई है.
ईशा, जब कोई कलाकार किसी मल्टीस्टारर फिल्म में काम करता है तो हमेशा इस बात की आशंका बनी रहती है कि फिल्म में रोल से कहीं समझौता ना हो जाये या फिर किसी दूसरे कलाकार का रोल आपके रोल के ऊपर कहीं भारी ना पडा. इन सारी बातों का डर था आपके अंदर?
चलिये आप मुझे एक बताईये कि आपने शोले देखी है. शोले एक मल्टीस्टारर फिल्म थी और इससे आपको आपके सवाल का जवाब मिल गया होगा. मैं ये नहीं कह रही हूं कि बादशाहो शोले की बराबर की फिल्म होगी और मैं दोनों के बीच किसी तरह की तुलना भी नहीं कर रही हूं मैं ऐसा इसलिये कह रही हूं कि ये एक ऐसी मल्टीस्टारर फिल्म थी जिसे हम आज भी याद करते है. मैं तो उस वक्त पैदा भी नहीं हुई थी जब ये फिल्म रिलीज हुई थी. अगर कोई चीज मायने रखती है तो वो है किरदार की महत्ता. अगर आपका किरदार फिल्म के लिये महत्वपूर्ण है तो आपकी महत्ता बनी रहेगी. ऐसा ही है की फिल्म में मैं कोई सजावट के लिये रोल कर ही हूं. अगर आप अजय, इमरान या फिर विद्युत का किरदार देखें तो हर कोई एक दूसरे से अलग है. लुक की भी बात करे तो मैं और इलियाना एक दूसरे से बिल्कुल जुदा दिख रहे हैं. आप मेरे किरदार को देखकर कह सकते हैं कि इसे किसी मदद की जरुरत नहीं है और अपना हर काम खुद करने में सक्षम हैं.
चलिये तो अब ये भी बता दीजिये कि फिल्म में आपका किस तरह का किरदार निभा रही हैं?
मैं इसके बारे में ज्यादा खुलासा नहीं कर सकती हूं बस इतना बता सकती हूं कि संजना फिल्म के बाकी मर्दों की तरह उनमें से एक है. आप ने फिल्म के ट्रेलर में भी देखा होगा की बाकी लड़कों के साथ मैं खड़ी हूं. इसका मतलब ये भी नहीं की वो टामबॉय है. उसके अंदर जो औरत छुपी हुई है उसे वो भली भांति जानती है. संजना एक मजबूत औरत है. फिल्म में मेरा लुक काफी हद तक परवीन बाबी और ज़ीनत अमान का जो अंदाज़ उनके सत्तर की दशक की फिल्मों में होता था, वहां से प्रेरित है. लंबे चौड़े बेल्ट और बेल बाट्म्स - ये सब कुछ आपको देखने को मिलेगा. ये कुछ इस तरह का रोल है.
फिल्म की पृष्ठभूमि 1975 की है जब देश में इमरजेंसी लगी थी. उस समय की कौन-कौन सी चीजें हमें फिल्म में देखने को मिलेंगी?
फिल्म का बैकड्रॉप सत्तर के दशक का है लेकिन हमने फिल्म में इमरजेंसी नहीं दिखाई है. फिल्म में लोग सिर्फ उसके बारे में बात करते हैं और उसी के द्वारा पता चलता है कि फिल्म की कहानी आपातकॉल की पृष्ठभूमि में चल रही है. हमने फिल्म में सत्तर के लुक को लेकर काफी ध्यान दिया है. चाहे वो उस जमाने की गाड़ियां हो या फिर लोगों की वेषभूषा. हमने ये भी दिखाया है कि उस वक्त बिजली की किल्लत के चलते कई जगहों पर बहुत कम समय के लिये बिजली नसीब होती थी. हमने गैस से चलने वाला लालटेन फिल्म में दिखाया है. आजकल तो बिजली चालित और बैट्री चालित लालटेन देखने को मिल जाती है. अभी कुछ दिनों पहले जो हमारा फिल्म का गाना रिलीज हुआ था जो मेरे और इमरान के ऊपर फिल्माया गया है उसमें हमने चक्रा दिखाया है जिसकी वजह से लोग एक जगह से दूसरे जगह जाते थे. इन सारी चीज़ों से हमने सत्तर का माहौल फिल्म में दिखाया है. हमने फिल्म के बैकड्राप में राजनीति इत्यादि से प्रेरित कुछ भी नहीं दिखाया है.
शूटिंग के दौरान ऐसा कोई मौका आपने अनुभव किया जब आपको लगा कि आप सत्तर के दशक में पहुंच गई हैं?
जी हां अपने कॉस्ट्यूम और मेकअप की वजह से. ये सब कुछ मुझे बड़ा कूल सा लगा. जो जीप मुझे फिल्म के लिये चलानी पड़ी उसे चलाने में मुझे काफी मशक्क्त करनी पड़ी. जिन गाड़ियों का हमने फिल्म में इस्तेमाल किया है वो काफी बड़ी गाड़ियां थी और पुराने होने की वजह से एक छोटे फासले को भी तय करने में वो अक्सर बीच में रुक जाती थी. ये एक सोने की डकैती की फिल्म है और इस वजह से गाड़ियां हरदम फिल्म में चलते हुये दिखाई देती हैं. शूटिंग के वक्त सबसे पहले अजय गाड़ी को चला रहे थे और जब मेरी बारी आई तो मुझसे स्टियरिंग संभाला ही नहीं जा रहा था, वो इतने बड़े साइज के थे. लेकिन फिल्म सत्तर में बेस्ड है इसलिये हम किसी भी तरह की कोई लिबर्टी नहीं ले सकते थे. शुक्र है कि अंत में हम सभी ने चीजों को अच्छी तरह से संभाला. ये सब कुछ करने में बेहद मज़ा आया. मुझे नहीं लगता है कि असल जिंदगी में कोई ओपन जीप फिर कभी चलाउंगी.
शायद आपने चक्रव्यूह के बाद इस फिल्म के लिये एक्शन किया है.
चक्रव्यूह में थोड़ा सा एक्शन किया था और इस फिल्म में भी थोड़ा ही है. काश मुझे कोई प्रॉपर एक्शन फिल्म करने का मौका मिले. मैं जिस तरह से अपना वर्क आउट करती हूं उसके लिये मैं एक्शन फिल्मों के लिये बिल्कुल फिट हूं. आजकल मैं एमएमए भी करती हूं. इस फिल्म के लिये मुझे अपने बॉडी का शेप थोड़ा बदलना पडा. मैं हमेशा से एक एथलीट रही हूं. संकट से घिरी हुई युवती वाला हाल मेरा कभी नहीं रहा है मैं उनमें से हूं जो हालात से निपटती हूं. मुझे लगता है कि मैं हमेशा से एक अल्फा वुमेन रही हूं.
जब भी कोई नया कलाकार अजय के साथ काम करता है तब अजय सेट पर उसका स्वागत अपने की तरीके से करते है मेरा मतलब मज़ाक करके...कुछ ऐसा हुआ था आपके साथ?
नहीं ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था मेरे साथ. मैं फिल्म शुरु करने के कुछ दिन पहले उनसे मिली थी. स्क्रिप्ट रीडिंग के दौरान सभी से मिलना हुआ था और मिलन सर ने माहौल को काफी खुशनुमा बना दिया था. पहले दिन जब मैं अजय से मिली तो उनको सर कह कर संबोधित किया उसके बाद उन्होंने खुद ही बोला की मुझे सर बुलाने की कोई जरुरत नहीं है. ये अलग बात है कि शूटिेंग के दौरान सभी अपने जोक्स का शिकार मुझे बनाते थे.
जब भी सेट पर मैं खाना खाती थी तो अजय हमेशा मेरे ऊपर कमेंट करते थे. जब भी मैं खाने के लिये कहती थी कि मुझे ये खाना है, मुझे वो खाना है तो अजय कहते थे तुमने अभी तो खाया है. सबसे खराब बात ये थी कि पूरे फिल्म के दौरान जब भी मैं खाने का आर्डर देती थी तो अजय आसपास ही रहते थे और मेरी बात सुन लेते थे और यही कहते थे कि तुमने अभी तो खाया है. उन्होंने दूसरों के ऊपर प्रैंक किया. ये अच्छा था कि मैं लड़कों के गैंग में शामिल हो गई थी इसी बहाने उनके मज़ाक से बच गई. वैसे भूत वगैरह के नाम पर कई बार डराने की कोशिश की लेकिन वो सफल नहीं हुए.
डकैती की पृष्ठभूमि की आपकी सबसे पसंदीदा फिल्म कौन सी है.
मेरे ख्याल से द फास्ट एंड द फ्यूरियस मेरी पसंदीदा फिल्म है.
सत्तर के दशक की और कौन सी चीजें आपको पसंद हैं?
मैं तो उस वक्त पैदा भी नहीं हुई थी लेकिन ये भी सच है कि सत्तर को लेकर मैं ज्यादा मंत्र मुग्ध नहीं हूं. मैं इतनी पुरानी फिल्में नहीं देखती हूं जब तक वो फिल्म शोले जैसी ना हो. ये मेरे लिये ज़रुरी नहीं है कि मैं हर एरा की फिल्में देखूं. मैं एनीमेशन फिल्में काफी देखती हूं. डर्टी हैरी सीरिज़ की मैं बड़ी फैन हूं और क्लिंट ईस्टवुड की फिल्में देखना कौन नहीं पसंद करेगा.
रुस्तम से आपके करियर को कितना फायदा मिला?
रुस्तम की वजह से मुझे कमांडो मिली थी तो एक तरह से आप कह सकते हैं कि रुस्तम से मुझे फायदा मिला. रुस्तम की जब शूटिंग चल रही थी तब विपुल शाह फिल्म के सेट पर आए थे और तब उनको फिल्म में मेरे रोल के बारे में पता चला. जब रुस्तम रिलीज हुई थी तब मैं बैंकाक में कमांडो की शूटिंग कर रही थी.
ईशा आपको फिल्म जगत में पांच साल हो गये है, क्या काम के लिये आज भी उन फोन कॉल्स का इंतजार आपको करना पड़ता है?
नहीं नहीं, मुझे लगता है कि आज भी मैं उस फोन कॉल के इंतजार में रहती हूं. मेरी समझ से बादशाहो के लिये जो फोन मेरे पास मिलन का आया था वो उसी में एक कड़ी थी. फोन कॉल का इंतजार मुझे आज भी रहता है.
आपको क्या लगता है फोन कॉल के इंतजार का सिलसिला कब खत्म होगा?
मुझे लगता है बादशाहो के रिलीज के बाद. बादशाहो एक कमाल की फिल्म है. अगर मिलन जैसे कमाल के निर्देशक मुझ में विश्वास रखते हैं तो मुझे इस बात का यकीन है. मैं मिलन की फैन रही हूं. मैंने काफी समय के बाद कच्चे धागे देखी थी क्योंकि उस वक्त मैं छोटी थी और वो फिल्म उस वक्त हमारे माता-पिता के लिये थी. आप इस तरह की फिल्में नहीं देखते जब आप छोटे होते हैं तो.
जब मैंने आगे चल कर टैक्सी नं 9211 देखी तब मैंने कहा कि क्या फिल्म है. जब भी ये फिल्म टीवी पर आती है, मैं इसे ज़रुर देखती हूं. मैंने उस फिल्म को देखने के बाद ही ये तय कर लिया था कि जो भी इस फिल्म का निर्देशक है मुझे उसके साथ आगे चल कर ज़रुर काम करना है. जब उनका कॉल मेरे पास आया था तब मैंने उनको बोला था कि आप द डर्टी पिक्चर, वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई सब भूल जाइए अगर आपकी किसी फिल्म को मैं बेहद पसंद करती हूं तो वो टैक्सी नंबर 9211 ही है. बहुत सारे लोग को वो फिल्म याद तक नहीं होगी लेकिन मुझे विश्वास ही कभी नहीं होता है कि उस फिल्म के निर्देशक के साथ मैं काम कर रही हूं.
आपके पास कानून की अच्छी खासी डिग्री है, फिल्म जगत में जबसे आप काम कर रही हैं इसकी कभी जरुरत पड़ी आपको?
मेरे पास कुकिंग की भी डिग्री है. ऐसा नहीं की ये सब डिग्रियां मुझे मदद नहीं करती हैं. मुझे इस बात की बेहद खुशी है कि मेरे पास दिमाग है. मुझे कोई हल्के में नहीं ले सकता है और ना ही कोई मेरे ऊपर कमेंट कर सकता है क्योंकि मुझे पता है कि मैं क्या बोलती हूं. मुझे खुशी है कि मेरे पास ग्रेजुएशन है. मेरे घर का बैकग्राउंड बेहद ही मामूली है. मेरे पिता वायु सेना में थे और ऐसा भी नहीं की वो एक कमर्शियल पायलट थे जहां पर उनको ढेर सारे पैसे मिलते थे. वो देश की सेवा में थे और ये एक अलग बात है. मेरी मां एक हाउस वाईफ थीं लेकिन अब वो औरतों के लिए अपनी संस्था की मदद से ढेर सारे चैरिटी का काम करती हैं. मेरा पूरा परिवार दिल्ली में है.
मेरी बहन एक फैशन डिज़ाइनर है. मैं इस बात पर पूरा भरोसा करती हूं कि जो आपके मुकद्दर में लिखा है वो ज़रुर हो कर रहेगा. मैं न्यू कैसल गई थी अपने लॉ की पढ़ाई के लिए. इसके लिए मुझे स्कॉलरशिप भी मिला था. वहां पर मैं पढ़ाई के अलावा काम भी करती थी. वो काफी मंहगा कोर्स था. मुझे याद है मेरे पिता ने मुझसे कहा था कि अगर मैं अपना कोर्स खुद मैंनेज कर सकती हूं तो ठीक है वरना आगे वो पढ़ाई का खर्चा नहीं उठा पाएंगे. उनकी इस बात से मुझे काफी बल मिला. ये अच्छा है कि आपके पास एक अच्छी शिक्षा है जिसके बेसिस पर आप आम जिंदगी में उसे इस्तेमाल करें और उन चीजों के बारे में बात करें जो दुनिया के लिये जरूरी है.
जब आप पढ़ाई पूरी करके हिंदुस्तान आई थीं तो क्या आपने लीगल सर्किल में काम किया था?
नहीं, वो मैं नहीं कर पाई थी क्योंकि मेरी मां को ब्रेन ट्यूमर हो गया था और इसी वजह से में अपने कोर्स का इस्तेमाल नहीं कर पाई. मेरे जिंदगी के दो साल उनकी देखरेख में चले गये थे. मुझे उनका कीमोथेरेपी इत्यादि सब देखना पड़ा था.
मैं ये नहीं पूछुंगा कि आपने कुछ दिनों पहले अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर अपनी बेबाक तस्वीरे क्यूं डाली थीं बल्कि मेरा सवाल ये होगा कि उनको पोस्ट करने के पीछे वजह क्या थी?
नहीं नहीं उसके पीछे किसी तरह की कोई वजह नहीं थी. जैसे मैं अपने बाकी तस्वीरे पोस्ट करती हूं, वैसे ही मैंने उन तस्वीरों को भी पोस्ट किया. ये शूट की हुई तस्वीरें थी जिनको मैंने पोस्ट किया था.
ट्रालर्स की वजह से आपको तकलीफ हुई?
क्या आपको मुझे देखकर लगता है कि मुझे किसी भी तरह की कोई तकलीफ हुई होगी सिवाए इस फ्लू के जो दो हफ्ते से मुझे परेशान कर रहा है. मैं लंदन में थी और वहीं से मैंने इन तस्वीरों को पोस्ट किया था. मैं ट्रॉलर्स के लिये तैयार थी और मुझे पता था कि वो मेरे ऊपर हमला करेंगे. लेकिन इस पूरे प्रकरण में अगर किसी बात को लेकर मुझे बेहद खुशी हुई तो वो था मीडिया का सपोर्ट जो मुझे भरपूर मिला.
भगवान की कृपा की वजह से आज मैं यहां पर हूं. मुझे याद है कि कुछ समय पहले किसी ने ट्वीटर पर लड़कियों को लोग क्यों मॉलेस्ट करते हैं इसकी वजह बताई थी, मैंने उसको जवाब दिया और बदले में मुझे गंदी बातें लिखीं. उस वक्त भी मीडिया ने मुझे सपोर्ट किया था. फिर मैंने कहा की वाह क्या बात है. मुझे पता नहीं था कि मेरी तस्वीरों का पूरा मुद्दा इतना बड़ा हो चुका है. पहले ये शहर तक सीमित था लेकिन उसके बाद ने राष्ट्रीय मुद्दा बन गया. मुझे सिर्फ एक ही बात की चिंता होती है कि दुनिया आजकल कहा जा रही है और लोग न्यूक्लियर युद्ध की बात करे है. ये बेहद ही अफसोस की बात है कि लोग इसके बारे में बात नहीं कर रहे हैं और छोटी चीज़ों पर ध्यान दे रहे हैं.
लेकिन आपने जो तस्वीरें डाली थीं उसको देखकर लगा कि आप कोई पांइट साबित करना चाहती हैं?
मैं किसी भी तरह का कोई प्वाइंट साबित नहीं करना चाहती थी. मैं अपने शरीर से बेहद प्यार करती हूं. मैं बेहद ही सेक्सी हूं और इसलिये इन तस्वीरों को पोस्ट जरूर करुंगी. मुझे किसी भी तरह का कोई प्वाइंट साबित नहीं करना था.