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एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को एंटरटेन नहीं करती सरकार

पिछले दो बजट में सरकार ने फिल्म इंडस्ट्री को ठेंगा ही दिखाया है

Hemant R Sharma

ये डायलॉग आपने खूब सुना होगा कि फिल्में सिर्फ तीन चीजों की वजह से चलती हैं, एंटरटेनमेंट, एटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट. हर किसी को ये नाम एंटरटेनमेंट बहुत पसंद आता है. सरकार को भी, क्योंकि इससे उसे एंटरटेनमेंट टैक्स मिलता है.

सर्विस टैक्स और इनकम टैक्स से लेकर वैट तक कई तरह के टैक्स इस इंडस्ट्री पर भी वैसे ही लागू होते हैं जैसे दूसरी इंडस्ट्रीज पर. कुल 29 तरह के टैक्स एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को अलग-अलग राज्यों में शूट करने पर भी देने पड़ते हैं और ओवरसीज में शूट करने की कॉस्ट अलग है.


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ऐसा नहीं है कि फिल्मी पर्दे पर जो कुछ दिखता है असल जिंदगी में भी वैसा ही होता है. बजट आ रहा है और बजट से एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को भी काफी उम्मीदें हैं क्योंकि नोटबंदी की मार के बाद इस इंडस्ट्री की कमर टूट गई थी. फिल्म्स के सेट पर रोजमर्रा का काम कैश में होता है और कैशलैस के खेल के लिए ये इंडस्ट्री इससे पहले उतनी तैयार नहीं थी.

सिनेमा का प्राइम टाइम नोटबंदी की भेंट चढ़ गया

आपके टीवी सेट तक चैनल्स को लाने के लिए इंडस्ट्री सरकार को कई मल्टिपल टैक्स भी देती है, डीटीएच और केबल टीवी ऑपरेटर्स को कई तरह के टैक्स की मार झेलते हुए आप तक आपके फेवरेट चैनल्स पहुंचाने की जिम्मेदारी है. इनमें लाइसेंस फीस से लेकर सर्विस टैक्स और वैट जैसे कई स्तरीय टैक्स शामिल हैं.

सुपरसिनेमा मैगजीन के एडिटर, अमूल विकास मोहन के मुताबिक सबसे चौंकाने वाला आंकड़ा है कि 2016 में कुल 211 फिल्में रिलीज हुईं और सिर्फ 14 फिल्मों ने ही प्रॉफिट कमाया. 2016 फिल्मों के लिए बहुत अच्छा साल नहीं रहा. ज्यादातर फिल्में फ्लॉप हुईं और सिनेमा का प्राइम टाइम नवंबर और दिसंबर डिमॉनिटाइजेशन की भेंट चढ़ गया.

सरकार ने फिल्म और एंटरटेनमेंट को इंडस्ट्री का दर्जा तो दिया है लेकिन पिछले कई साल से इस इंडस्ट्री के साथ सौतेला व्यवहार ही किया है. अमूल बताते हैं कि अलग-अलग राज्यों में 30 से लेकर 54% तक एंटरटेनमेंट टैक्स हैं और राज्य अपनी सहूलियत के मुताबिक इस टैक्स को वसूलते हैं. ऐसे में फिल्मों की टिकिट्स का पैसा बढ़ना लाजमी है. मराठी ब्लॉकबस्टर फिल्म सैराट ने करीब 85 करोड़ रुपए का बिजनेस किया, सिर्फ एक ही टैरेटरी में इस फिल्म ने टैक्स फ्री होने के बावजूद इतना पैसा कमा लिया जितना कि बड़े स्टार्स की फिल्में नहीं कमा पातीं.

एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को बढ़ने का मौका

चीन के मुकाबले भारत का एंटरटेनमेंट मार्केट बहुत छोटा है. यहां 6 हजार स्क्रीन्स में फिल्में रिलीज होती हैं और वहां 20 हजार स्क्रीन्स हैं, हॉलीवुड, चाइनीस से लेकर हर भाषा की फिल्में वहां रिलीज होती हैं और खूब कमाई भी करती हैं. आमिर खान की पीके ही सिर्फ चाइना से 200 करोड़ कमा लाई थी.

सरकार को टैक्स में रियायत देते हुए एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री को बढ़ने का मौका देना होगा क्योंकि पिछले साल में कई बड़े कॉरपोर्ट स्टूडियोज को बंद करने या फिर अपना बिजनेस मॉडल बदलने का ऐलान करना पड़ा. यूटीवी और बालाजी इनमें मुख्य नाम हैं.

स्टार्टअप्स को भी सरकार से बजट में रियायत की ही उम्मीद है क्योंकि सरकार ने स्टार्टपअप की एडवर्टइजिंग पर तो खूब पैसा खर्च किया है लेकिन 500 में से सिर्फ गिनी चुनी कंपनियों को ही टैक्स में मामूली राहत मिलती है.

सरकार को अपने विज्ञापन कराने के लिए फिल्म इंडस्ट्री की मदद पूरी चाहिए लेकिन सरकार की मदद हमेशा अधूरी रहती है. खूब हो हल्ला होता है पर सरकार नहीं सुनती.

सरकार सुरक्षा देने में नाकाम

टैक्स की मार के अलावा सरकार फिल्ममेकर्स को सुरक्षा देने में भी नाकाम रही है, पिछले दिनों संजय लीला भंसाली के साथ हुई घटना और हर दूसरी फिल्म को पॉलिटिकल पार्टियों की आए दिन दी जाने वाली धमकियों से भी मेकर्स फिल्में बनाने में डरेंगे क्योंकि किसी भी मुद्दे पर फिल्म बना लीजिए, कोई ना कोई आपके खिलाफ या तो कोर्ट पहुंच जाएगा या फिर पॉलिटिकल पार्टी आपको धमकाएगी और सेंसर बोर्ड भी आप पर निगाह टेढ़ी किए ही तैयार रहता है.

ऐसे में एक्सपेरिमेंटल सिनेमा के सपने देखना और सिनेमा को बढ़ते हुए देखने की बातें करना फिलहाल बेमानी सी हैं क्योंकि पॉलिटिकल और टैक्स मॉडल आपकी राहों में कांटे बिछाने के लिए तैयार खड़े हैं.

उम्मीद की नजर से सरकार की तरफ ही देखा जा सकता है क्योंकि बजट से पहले बॉल सरकार के पाले में है इंतजार अब ज्यादा दिन का नहीं है.