view all

Exclusive : 'सफलता-असफलता' दोनों से ही मुझे फर्क नहीं पड़ता-इमरान हाशमी

इमरान हाशमी ने अपने 14 साल के फिल्मी करियर पर पूछे गए हर सवाल का बेबाक जवाब दिया है

Abhishek Srivastava

अपने 14 साल के करियर में इमरान हाशमी ने एक मुकाम हासिल कर लिया है. किसी वक्त सीरियल किसर के नाम से जाने जाने वाले इमरान की पिछली कुछ फिल्मों में उन्होंने सम्मान के साथ साथ इस टैग से मुक्ति भी दिलाई है. अपने बच्चे के कैंसर की बीमारी की वजह से बीते कुछ साल इनकी निजी जिंदगी अगर डावाडोल रही तो इनके फिल्मी करियर के साथ भी कुछ अच्छा नहीं हो रहा है. बादशाहो से वो दर्शकों के दिलों पर एक बार फिर से राज करने की कोशिश करेंगे. फर्स्टपोस्ट हिंदी से एक अंतरंग मुलाकात में इमरान ने अपनी करियर की गलतियों के साथ साथ इस बात को भी माना की शायद 20 साल के बाद लोग सिनेमाहॉल जाना बंद कर दें.

इमरान आपने कुछ दिनों पहले ट्वीट के जरिये बताया था कि फिल्म जगत में आपके 14 साल पूरे हो गए है. पीछे आप देखते हैं तो ये पूरा सफर कैसा लगता है?


मुझे पता नहीं. ये दर्शकों को तय करना पड़ेगा. लेकिन मैं समझता हूं कि इन 14 सालों में मैंने खुद का एक स्किल सेट बना लिया है और वो साल दर साल बेहतर ही होता चला गया है. मुझे लगता है कि शुरु के कुछ सालों में मुझे इस बात को लेकर मान्यता नहीं मिली थी. शुरु के कुछ फिल्मों में लोगों को लगा था कि मैं खुद को दोहरा रहा हूं अगर हम फिल्मों की शैली की बात करें तो और इस वजह से मैं रोल्स को लेकर सीमित हो गया था लेकिन उसके बाद का फेज मेरे लिये काफी शानदार रहा.

मेरे लिये बदलाव की लहर आई फिल्म आवारापन से जो बॉक्स ऑफिस पर उतनी चल नहीं पाई थी. उसके बाद जन्नत आई और फिर वंस अपॉन ए टाईम इन मुंबई से चीजें मेरी लिये पूरी तरह से बदल गईं. मुझे लगता है कि इन फिल्मों से एक तरह से मुझे फिल्म जगत में मान्यता मिली की मैं भी उनका एक हिस्सा हूं. अपने 14 साल के फिल्म करियर में मैंने कई उतार चढ़ाव देखे लेकिन फिर भी मैं इस बात को कहूंगा कि 14 सालों में मेरा कोई बुरा या अच्छा फेज नहीं था. इस सफर में आप हमेशा सीखते रहते हो.

लेकिन मुझे लगता है कि 14 सालों में आप काफी स्टेबल हो गए हैं अपने फिल्म करियर को लेकर

एक अशांत फेज मेरे जीवन में 3 साल पहले आया था जब कई चीजें मेरी आंखों के सामने ध्वस्त होते हुई दिखीं. अपना मानसिक संतुलन बनाये रखने के लिये आपको ठहराव की जरुरत होती है क्योंकि मैं उस वक्त कई चीजों को खुद भी बिगाड़ सकता था. जब मुझे पता चला कि मेरा अपने ही परिवार में मेरा अपना बेटा कैंसर से पीड़ित है तो उस वक्त की मनोस्थिति को किसी के सामने भी बयां करना बेहद मुश्किल होता है. ये मेरे लिये मेरे जीवन का सबसे अंधकार वाला फेज था. मुमकिन था कि इसकी वजह से मेरा करियर और मेरा परिवार दोनों गर्त में जा सकते थे. इन सभी के बीच जरूरी होता है कि आप ढांढस और आशा बनाये रखें और निरंतर आगे बढते रहें और पुरानी बातों में सिमट कर ना रहें.

चलिये अब आपकी आने वाली फिल्म बादशाहो के बारे में कुछ बातें करे लेते हैं. देख कर तो यही लग रहा है कि सफलता आपके कदम एक बार फिर से चूमने वाली है.

मैं भी यही आशा कर रहा हूं. लेकिन मेरा यही मानना है कि आपको कभी भी प्रमाण के बिना चीजों पर भरोसा नहीं करना चाहिए. फिल्म जगत में इतने साल बिताने के बाद ये सीख मुझे मिली है. लोग पहले से ही अपनी राय बना लेते हैं कि अरे इसको तो सफलता ज़रुर मिलेगी. मेरा मानना है कि ये सब कुछ एक सेफ्टी नेट के समान ही होता है. ये मेरे लिये भी एक सेफ्टी नेट होता फिल्म साइन करने के पहले की अरे इस फिल्म के काम करने वाली टीम एक हिट टीम है और इसके पहले इन्होंने कई सफल फिल्में दी हैं लेकिन इस तरह की सोच को बिखरते हुये मैंने अपने करियर में खुद देखा है और इसका उदाहरण है मेरी और विद्या बालन की फिल्म द डर्टी पिक्चर. इसके बाद जब घनचक्कर आने वाली थी तब लोगों ने कहा था कि ये तो शर्तिया हिट होने वाली है.

क्या मालूम मैं उस फिल्म में थोड़ा ढीला रहा होउंगा लेकिन फिर हमारी अधूरी कहानी के दौरान भी यही परिणाम देखने को मिला. मेरे कहने का मतलब है कि इस फिल्म जगत में कुछ भी हो सकता है और इसलिये आपको अपने काम को लेकर हमेशा सतर्क रहना पड़ेगा और आगे और मेहनत करके और भी बेहतर काम दिखाना पड़ेगा. हम बादशाहो को एक अलग दिशा में लेकर गए हैं. इसकी दुनिया और फिल्म की शैली थोड़ी अलग है.

इमरान ये बात भी है कि अक्सर दो सितारों की जोड़ियों की बात हम सत्तर और अस्सी के दशक में सुनते थे मसलन अमिताभ बच्चन और विनोद खन्ना या फिर अमिताभ बच्चन और शशि कपूर लेकिन बाद में ये चीज लुप्त सी हो गई थी. अब उसी जोड़ी की याद आप और अजय देवगन आज के जमाने में दिलाते हैं.

मुझे पता नहीं और ये जोड़ी बिल्कुल हीरो हीरोईन की जोड़ी की तरह है. कुछ दिनों पहले कोई कह रहा था कि हमारी जोड़ी जय - वीरू जैसी है. ये अच्छी बात है. मैंने बादशाहो के प्रेस कांफ्रेंस में कुछ दिनों पहले ये बात कही थी कि आप दो सितारों की केमिस्ट्री पर काम नहीं कर सकते हैं, ये खुद बख़ुद आ जाती है. मुझे लगता है कि एक समानता हम दोनों में है जिस तरह के लोग हम दोनों हैं. मैं सेट पर ये सोच कर नहीं आता हूं कि इस जोड़ी को पिछली फिल्म में लोगों ने पसंद किया था इसलिये अब हमें 200 प्रतिशत ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी. मुझे लगता है कि हम दोनों के बीच का सौहार्द काम करता है और उसमें विश्वास करने का मन करता है.

फिल्म का प्लॉट क्या है? सुना है कि इसकी पृष्ठभूमि 1975 के आपातकाल की है?

मिलन ने इस फिल्म का आइडिया मुझसे सात साल पहले शेयर किया था जब हम वंस अपॉन ए टाईम इन मुंबई की शूटिंग कर रहे थे. कहानी तो उन्होंने कच्चे धागे की शूटिंग के दौरान ही सुनी थी. ये एक सच्ची कहानी है जो आपातकाल के दौरान हुई थी. ये सोने के बारे में है जो जयगढ़ की महारानी के किले से मिला था. जब सोने को दिल्ली सेना और पुलिस की मदद से ले जाया जा रहा था ट्रकों में भरकर तब ये अचानक गायब हो गया. आजतक किसी को भी पता नहीं है कि ये सोना आखिर गया कहां. अगर आप गूगल करेंगे तो इसके बारे में आपको और जानकारी मिलेंगी. इस फिल्म के लिये हमने ये कहानी चुनी है और इसका कुछ हिस्सा हमने छह किरदारों के माध्यम से काल्पनिक कर दिया है. हमने ये बताने की कोशिश की है कि आखिर उन सोने के खज़ाने के साथ क्या हुआ होगा.

आपकी सबसे पसंदीदा डकैती की पृष्ठभूमि वाली फिल्म कौन सी है?

मुझे ओशन सीरिज़ से बेहद लगाव है. लेकिन डकैती वाली फिल्मों के साथ मेरी कुछ परेशानियां भी हैं. मैं इन शैली की फिल्मों का फैन नहीं हूं और शायद यही वजह है कि इसके पहले मैं इस तरह की कई फिल्मों को मना कर चुका हूं. मेरा मानना है कि इन फिल्मों में स्टाइल ज्यादा और सबस्टेंस कम होता है. ये सारी स्लिक फिल्में थीं लेकिन फिल्मों में किसी तरह का कोई हुक नहीं था.

लेकिन आपको लगता नहीं की डकैती वाली फिल्मों में स्टाइल फिल्म का एक अहम हिस्सा होता है.

स्टाइल ज़रुर होना चाहिए लेकिन सबस्टेंस के बिना ये ऐसी ही लगता है कि आप किसी वैक्यूम में कदम रख रहे हैं. ये बहुत ही खोखली लगती है. लेकिन बादशाहो के बारे में कहूंगा कि इस फिल्म के जो किरदार है उनका खाका मिलन ने बेहद ही अच्छे तरीके से बनाया है. ये हमें एक ऐसे युग में ले जाती है जो बेहद ही दिलचस्प था और मेरा मानना है कि दर्शकों को भी ये पसंद आयेगा.

जब घनचक्कर, हमारी अधूरी कहानी, राजा नटवरलाल और अजहर जैसी फिल्म नहीं चली थी तो आपको कितना धक्का लगा था. ये सारी फिल्में एक के बाद एक आई थीं.

इसमें कोई दो राय नहीं है कि जब आप किसी फिल्म में पूरी जान डाल देते हैं और अपने जीवन के सौ दिन देते हैं और जब दर्शक उसे नकार देते हैं तो बेहद अफसोस होता है और उस शुक्रवार और शनिवार को इसकी पीड़ा रहती है. मेरे शुरुआत के करियर में कई ऐसे पल आए थे लेकिन अब मैं इन बातों को समझ चुका हूं और इसके लिये मैं अपनी जड़ों को धन्यवाद देता हूं.

मैंने अपनी शुरुआत छोटी सी उम्र में कामयाबी पाने वाले किसी बच्चे के जैसे नहीं की थी जिसके ऊपर फिल्मों का जुनून है और आते ही सिने जगत में धमाल मचा दिया हो. मैंने अपनी शुरुआत एक सहायक अभिनेता से की थी इसलिये मैंने अपनी करियर में सीढ़ियां चढी हैं. कई लोगों ने मुझे मेरी शुरु की कुछ फिल्मों के बाद नकारा मान लिया था लेकिन मैंने मेहनत की और इसलिये खुद को बचाये रखा. शायद आपको सुनकर ये अटपटा लगे लेकिन सफलता और असफलता...दोनों से ही मुझे फर्क नहीं पड़ता है.

लेकिन ये सीख आती कहां से है?

मेरी समझ से ये सीख मुझे मेरे परिवार से मिली थी जहां पर सभी को कठोर आलोचना से दो चार होना पड़ता था. हमसे ये उम्मीद की जाती थी कि हम जो भी काम करेंगे उसमें महारथ हासिल करेंगे. मुझे लगता है कि जब मैं विपरीत परिस्थिति में होता हूं तब मेरा काम बेहतर निकलता है. मैं अपने आपको अकेला या स्वयं पर दया करने वाला पात्र नहीं समझता हूं. वैसे ही बाहर एक दुनिया है जो हमेशा आपको नाकारा साबित करने पर तुली रहती है. मैंने अपने आपको बोला की अगर मैं 14 साल तक यहाँ बने रह सकता हूं तो इसका मतलब ये है मेरे आलोचक मेरे बारे में कुछ नहीं जानते है. मुझे पता है कि मैं अपना काम पूरी लगन और ईमानदारी से करता हूं और जो मेरी फिल्में नहीं चली थीं उसमें भी मैंने ईमानदारी से काम किया था. लेकिन ये भी सच है कि फिल्मों के चलने के लिये कई चीजें काम करती है जो आपके हाथ में नहीं होती है. तो यही सब सोच कर मैं निर्माता बन गया कि चलो उन सारी चीजों में से कुछ पर तो मेरा कंट्रोल होगा. देखता हूं कि मेरा ये नया सफर कहा मुझे ले जाता है.

अगर हालिया माहौल की बात करे तो फिल्म जगत के लिये अच्छा समय नहीं चल रहा है. क्या ये बात आपको परेशान करती है?

जी हां बिल्कुल परेशान करती है. लेकिन मैं चीजों का पॉजिटिव साइड देखना पसंद करुंगा. सभी को पता है कि क्या हो रहा है. हमें फिल्मों के बनाने में एक बुनियादी बदलाव की जरुरत है. अब हमें ये बात मान लेनी पड़ेगी की बदलाव की हवा आज कल बह रही है. सोशल मीडिया, सैकड़ों टीवी चैनल, ओटीटी प्लेटफॉर्म, हॉलीवुड फिल्में, रिजनल फिल्में, क्रिकेट इन सभी ने फिल्मों पर एक तरह से आक्रमण कर दिया है. वो फ़िल्में जो वाहियात होती है कुछ घंटो के बाद ही उनकी पोल खुल जाती है पब्लिक डोमेन में. दस साल पहले यही बात निकल कर दिनों के बाद सामने आती थी. आजकल के दौर में औसत फिल्मों का कोई दर्जा नहीं होता है.

जब तक फिल्म अच्छी या बेहद अच्छी नहीं होगी, कोई भी सिनेमाहॉल नहीं जाने वाला है क्योंकि अब उनके पास तमाम विकल्प हैं. मैं खुद फरवरी में एक फिल्म की शूटिंग शुरु करने वाला था लेकिन मैंने नहीं की क्योंकि उसकी स्क्रिप्ट 100 प्रतिशत नहीं थी. मैंने साफ मना कर दिया की मैं शूटिंग नहीं करुंगा. इस वजह से मैं 3 महीने घर पर खाली बैठा और मैं घर पर बैठने वालो में नहीं हूं. ये मेरे जीवन का सबसे बोरिंग फेज था. मुझे अपने दर्शकों को कुछ ऐसी नहीं देना था जिसको लेकर मेरे अंदर खुद ही विश्वास नहीं था. शायद ये फिल्म मैं तीन साल पहले कर लेता.

निर्माता को यही बोलता कि देखिये मेरे पास डेट्स हैं आप ले लिजिये और फिल्म की शूटिंग पूरी कर लिजिये आगे चलकर बाकी की चीजें देख लेंगे. लेकिन अब आगे चलकर देख लेंगे ये वाला रवैया नहीं चलेगा. मेरे समझ से प्री प्रोडक्शन के जो काम होते हैं उन पर खास ध्यान देने की जरुरत है क्योंकि ये कई चीजों की जड़ है. मुझे सोच कर डर लगता है कि आने वाले 20 सालों में क्या होने वाला है, क्या पता लोग सिनेमाघरों में फिल्में देखने जायेंगे या नहीं.

लेकिन इमरान एक कहावत है कि अगर आप उनको हरा नहीं सकते तो उन में शामिल हो जाईये, मेरा मतलब नेटफ्लिकस और अमेजॉन से है.

मुझे इनके लिये काम करने में खुशी होगी. लेकिन यहां अच्छे लेखन की बेहद कमी है. आप अमेरिका के टीवी शोज देखिये, देखकर लगता है कि उनका लेखन फिल्मों से बेहतर है. जब तक लिखने का स्तर नहीं सुधरेगा चीजें नहीं बदलेगी. ऐसी नहीं है कि हमारे पास ऐसे लेखक नहीं है, तमाम लोग है बस आप उनको समय दीजिये. आप उनके सर के ऊपर टाईम लाइन नहीं लगा सकते है ये कह कर की फलां महीने में हम फिल्म शुरु करेंगे और आप तीन महीने के अंदर कहानी लिख कर दे दीजिये. आप ऐसा नहीं कर सकते हैं.

हिंदी फिल्में आपने देखनी शुरु की या नहीं?

हाहाहाहा. जी हां थोड़ा थोड़ा मैं देखने लगा हूं. ये मेरे पीआर ने मुझसे कहा था कि मुझे ये मीडिया के सामने कहना बंद करना पड़ेगा कि मैं हिंदी फिल्में नहीं देखता हूं. मैंने करण जौहर के शो पर भी ये बात कही थी कि मैं हिंदी फिल्में ना के बराबर देखता हूं. करण ने कहा था कि हिंदी फिल्मों के हिस्सा होने के बावजूद मैं ऐसा कैसे कर सकता हूं?

आपने विशेष फिल्मस के बैनर तले अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी लेकिन आज हालात ये है कि उनकी पिछली कुछ फिल्में बॉक्स ऑफिस पर नहीं चली हैं और वो मुश्किलों के दौर से गुज़र रहे हैं. आपको लगता नहीं कि आप, मोहित सूरी और आलिया भट्ट मिलकर उनको इस संकट की घड़ी से निकाल सकते हैं

मैंने उनके साथ काम किया है और काफी सफलता मिली है. मैं वाक़िफ़ हूं कि उनकी पिछली कुछ फिल्में बॉक्स ऑफिस पर नहीं चली हैं और ये उनके लिये आत्मविवेचन का वक्त है. जब मैंने 22 साल में उनको ज्वाइन किया था उस वक्त भी वो इसी तरह के दौर से गुज़र रहे थे. फिर उन्होंने मर्डर बनाई जिसकी वजह से कंपनी का भाग्य खुल गया. मैं ये नहीं कहूंगा कि ये वक्त उनके लिये परेशानी का है क्योंकि उनके पास महेश भट्ट नाम का एक बेहद ही कुशाग्र बुद्धि का इंसान है जो पल भर में चीजों को बदल सकते हैं.

असफल होना कोई बुरी बात नहीं है. जब भी कोई क्रिएटिव व्यक्ति कोई चीज करता है और अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलता है तो मुमकिन है कि वो असफल होगा. मैं अपने बेटे को सीखाना चाहूंगा की असफलता क्या होती है. जितनी बार असफल होना है तो हो क्योंकि इसी की वजह से चीजों को सीखने का मौका मिलता है. उस दिन मैंने बादशाहो के प्रेस कांफ्रेंस में ये बात कही थी कि अगर आप चाहते हैं कि आपकी फिल्म असफल ना हो तो इसका सबसे बेहतर उपाय यही है कि आप फिल्में ना बनाएं. अगर 80 प्रतिशत फिल्में नहीं चलती हैं तो क्या इसकी मतलब ये है कि फिल्म जगत बंद हो जाना चाहिए.

आपके प्रोडक्शन हाउस की फिल्मों का क्या स्टेटस है?

तीन फिल्में हैं जो हमें शुरु करनी है. इन तीनों पर अभी काम चल रहा है. जब तक मैं उनसे पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हो जाउंगा तब तक कोई भी फिल्म फ्लोर पर नहीं जाएगी. मुझे पता है कि काफी देरी हो चुकी है लेकिन उम्मीद इसी बात की है कि पहली फिल्म फ्लोर पर दो महीने के बाद चली जाएगी.