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दर्शकों की नब्ज पर बेहतरीन पकड़ रखते थे देव आनंद

जन्मदिन के मौके पर पढ़िए कि राजनीति में क्यों थी देव आनंद की रुचि और अशोक कुमार ने कैसे ढूंढा था बॉलीवुड का ये कोहिनूर

Abhishek Srivastava

देव आनंद को कभी भी फिल्म इंडस्ट्री में कमाल का अभिनेता नहीं माना गया है. पचास और साठ के दशक में जो दिलीप कुमार, राज कपूर और देव आनंद की तिकड़ी थी उनमें से देव आनंद का नंबर तीसरा ही था. लेकिन अपने स्टाइल और अपने तौर तरीकों से देव आनंद ने इस कमी को बखूबी मिटा दिया था. फिल्म जगत में ऊर्जा का कोई पर्यायवाची शब्द हो सकता है तो वो देव आनंद ही हैं.

अपने आखिरी दिनों में भी वो दस घंटे नियमित रूप से काम करते थे. पुराने स्कूल से होने की वजह से देव आनंद का नाता फाउंटेन पेन से नहीं छूटा था. उन्होंने अपनी जीवनी रोमांसिंग विद लाइफ पूरी सफ़ेद पन्नों पर स्याही से लिखी थी और कंप्यूटर का सहारा बिल्कुल नहीं लिया था. सही मायनों में किसी को उस ज़माने में प्रोग्रेसिव कहा जा सकता था तो वो देव साहब ही थे. अगर इल्लीगल माइग्रेशन के मुद्दे को उन्होंने सालों पहले अपनी फिल्म देस परदेस में रुपहले परदे पर उतरा तो वही दूसरी तरफ जब मादक द्रव्यों के सेवन का चलन अभी आगे चल कर ज़ोर पकड़ने ही वाला था तो उन्होंने हरे राम हरे कृष्णा के निर्माण कर दिया था 1970 में.


शत्रुघ्न सिन्हा को दिया था मौका

उनकी पारखी निगाहें भी थी. शत्रुघ्न सिन्हा जब फिल्म इंस्टिट्यूट से पास होने के बाद रोल की तलाश में भटक रहे थे तब उनको सहारा मिला था देव आनंद का. शत्रुघ्न सिन्हा ने उनसे मिलने से पहले फिल्मों में छोटे मोटे रोल ही निभाए थे लेकिन जब एक पाकिस्तानी आर्मी अफ़सर का किरदार उन्होंने प्रेम पुजारी में किया तब एक तरह से फिल्म जगत को उन्होंने एक शानदार अभिनेता दे दिया था. फिल्म में उनके उनके सिगरेट पीने के अंदाज़ ने उनकी झोली में कई फिल्में डाल दी थी. आगे चल कर उन्होंने ज़ीनत अमन, जैकी श्रॉफ़, तब्बू जैसो को ढूंढ निकाल कर फिल्म इंडस्ट्री के ऊपर एक तरह से मेहरबानी की.

अशोक कुमार ने बनाया स्टार

लेकिन अगर उन्होंने थोक के भाव से सितारों को ढूंढा था तो कुछ वैसे ही उनके हुनर को किसी ने सही मायने में पहचाना था तो वो दादा मुनी यानी की अशोक कुमार थे. बात 1948 की है जब देश आज़ाद हो चुका था और देव आनंद की पहली फिल्म हम एक हैं फ़्लॉप फिल्मों की फ़ेहरिस्त में जा चुकी थी. देव आनंद को काम की तलाश थी और वो दरबदर बम्बई के स्टूडियो की ख़ाक छान रहे थे. काम की तलाश उनको मशहूर बॉम्बे टॉकीज तक ले आई. वह के बगीचे में वो बेंच पर बैठ कर किसी का इंतज़ार कर रहे थे और उसी वक़्त अशोक कुमार सिगरेट ब्रेक के लिए किसी के साथ बाहर आए. जिस मुद्दे पर वह अपने सहकर्मी के साथ बात कर रहे थे वो था की बॉम्बे टॉकीज की अगली फिल्म में किस सितारे को लीड रोल के लिया जा सकता है. मिहिर बोस ने अपनी किताब बॉलीवुड - ए हिस्ट्री में इन दोनों की मीटिंग के बारे में लिखा है जो कुछ इस तरह से हुआ था.

अशोक कुमार - तुम यहां क्यों बैठे हो, क्या चाहिए तुम्हें?

देव आनंद - सर मेरा नाम देव आनंद है और मैं एक अभिनेता हूं. मैं नौकरी की तलाश में हूं.

अशोक कुमार - क्या तुम इसके पहले अभिनय कर चुके हो? क्या तुम फिलहाल किसी फिल्म में काम कर रहे हो?

देव आनंद - जी हां मैंने एक फिल्म में काम किया है लेकिन वो चली नहीं. अभी मेरे पास कोई काम नहीं है

अशोक कुमार - चलो मेरे साथ

जी हां अशोक कुमार का चलो मेरे साथ कहना उनके जिंदगी का टर्निंग पॉइंट होने वाला था. लेकिन आगे की डगर उतनी आसान नहीं होने वाली थी देव आनंद के लिए. फिल्म के निर्देशक शाहिद लतीफ़ किसी भी कीमत पर देव को पानी फिल्म में लेना नहीं चाहते थे और अशोक कुमार उनको जी जान से मनाने में लगे हुए थे. शाहिद लतीफ़ का मानना था की देव आनंद के लुक्स एक चॉकलेट बॉय की तरह था. शाहिद लतीफ़ ने अपनी फिल्म में अशोक कुमार को लेने का मन पहले से ही बना लिया था. लेकिन अशोक कुमार भी कहा मानने वाले थे.

उस वक़्त उनका सारा ध्यान उनकी आने वाली फिल्म महल के प्री प्रोडक्शन के ऊपर था. फिल्म के नाम को उन्होंने सार्थक किया और अपनी बात मनवा ही ली. फिल्म जिद्दी से देव आनंद की बॉम्बे टॉकीज में एंट्री हुई. 2000 रुपये माहवार पाने के साथ साथ देव आनंद को उस फिल्म से सफलता भी नसीब हुई. उस फिल्म की एक सबसे बड़ी बात यह भी थी की उसी फिल्म के दौरान उनका गायक किशोर कुमार से मिलना हुआ जो अपने सिंगिंग करियर की शुरुआत उसी फिल्म से कर रहे थे. कहने की जरुरत नहीं की ये एक ऐसी दोस्ती थी जो सालों चली.

राजनीति में भी उतरे थे देव साहब

जब लोग आज के ज़माने में क्रॉस ओवर फिल्मस की बात कर रहे हैं तो ये कारनामा देव आनंद ने सत्तर के दशक में ही दिखा दिया था जब उन्होंने हॉलीवुड की फिल्म थे इविल विदिन में काम किया था. इस फिल्म की पूरी शूटिंग फ़िलीपीन्स में हुई थी. फिल्म में अफ़ीम के बारे बात की गई थी जो यहाँ के सेंसर बोर्ड को नागवार गुज़री और इसी वजह से यह फिल्म हिंदुस्तान के सिनेमा हॉल्स का रुख नहीं कर पाई.

आपतकाल के दौरान उन्होंने नेशनल पार्टी ऑफ़ इंडिया नाम की एक राजनैतिक पार्टी बना ली थी. यहां तक कि जब राज कपूर पहली बार अपने आइडल चार्ली चैपलिन से मिले थे तो उस तीन घंटे की मुलाकात के गवाह खुद देव साहब थे. देव आनंद ने सितारों की भीड़ में भी अपनी एक अलग पहचान बना कर रखी. उनका फिल्म जगत में योगदान अमिट है.

(यह लेख हमने पिछले साल 26 सितंबर को छापा था.)