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जन्मदिन विशेष : रोज 4 घंटे कसरत करने के बाद भी क्यों बढ़ गया था अमजद खान का वजन?

फिल्मों में एक दूसरे के खून के प्यासे अमिताभ-अमजद रीयल लाइफ में गहरे दोस्त थे

Abhishek Srivastava

बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि मशहूर विलेन अमजद खान को शोले, फिल्म के निर्देशक रमेश सिप्पी की बहन की वजह से नसीब हुई थी. दरअसल उस वक्त अमजद थियेटर किया करते थे और जिस विदेशी नाटक के हिंदी रुपांतर में वो अफ्रीकन का किरदार निभा रहे थे उसी नाटक के मंचन में रमेश सिप्पी की बहन भी काम रही थीं.

रमेश सिप्पी को प्ले देखने के लिये जब उनकी बहन ने आमंत्रित किया तो सिप्पी साहब थियेटर की ओर कूच कर गए. वहीं पर उनको अमजद खान के दर्शन पहली बार हुये और पहली बार में ही उनके अभिनय और हाव भाव को देखकर उनको लगा की शोले को अपना गब्बर मिल गया है.


अपनी राय पर मुहर लगाने के लिये अगले ही दिन रमेश सिप्पी ने अमजद को अपने दफ्तर आने के निमंत्रण दिया और उसके बाद दाढ़ी, कारतूस और मैली-कुचैली पुलिस की वर्दी में उनका लुक टेस्ट लिया. कहने की ज़रुरत नहीं हैं की उस वक्त इतिहास रचा जा रहा था जिसकी जानकारी ना रमेश सिप्पी को थी और ना ही अमजद को.

गब्बर सिंह के किरदार को जो शोहरत मिली उसकी मिसाल आज भी नहीं मिलती. लेकिन यहां बताना जरूरी हो जाता है कि जब फिल्म की शूटिंग शुरू हुई तो तो शुरुआती दिक्कतों की वजह से लोगों ने फिल्म की मशहूर लेखक जोड़ी सलीम- जावेद के कान भरने शुरू कर दिये कि अमजद के बदले किसी और को लेना चाहिये लेकिन ये सिप्पी साहब का अमजद में अडिग विश्वास था जो आगे चलकर लोगों के सिर चढ़कर बोला. आगे चलकर अमजद ने उस सभी फिल्मों से किनारा कर लिया था जिसके लेखक सलीम-जावेद थे.

अमजद की शख्सियत कुछ ऐसी थी जिसकी वजह से लोग उनके कायल हो जाते थे. चरित्र अभिनेता जयंत के बेटे अमजद खान ने अपनी पहली ही फिल्म से अपने शानदार अभिनय का सिक्का चला लिया था. 130 से ऊपर फिल्मों में काम करने वाले अमजद ने फिल्मों में एक से बढ़कर एक शानदार अदाकारी के नमूने दिये.

शायद 70 के दशक की जिन फिल्मों में अमिताभ बच्चन ने अपने अभिनय के जलवे बिखेरे थे उनमें से कई यादगार इसलिये भी बने क्योंकि उनके सामने अमजद खान जैसा बेहतरीन अदाकार था जो उनके साथ कदम से कदम मिलाता था.

शोले का गब्बर एक ऐसा किरदार था जिसके पीछे अमिताभ बच्चन और संजीव कुमार भी पड़े थे लेकिन अमजद की बहुमुखी प्रतिभा शोले के बाहर भी थी. इस कमाल के अदाकार ने अपने फिल्मी कैरियर में तमाम ऐसी फिल्में कीं जिसका जिक्र कम होता है और गब्बर की वजह से वो कहीं हाशिये पर आ गये.

जरा याद कीजिये फिल्म याराना में किशन का रोल या फिर कुर्बानी में पुलिस इंस्पेक्टर का रोल या फिर मुकद्दर का सिकंदर का दिलावर - इन सभी किरदारों को देखकर यही लगा मानो अमजद उन किरदारों को खुद जी रहे हों.

बच्चों से बेहद प्यार करने वाले अमजद फिल्म जगत के उन चुनिंदा लोगों में से थे जो हर किसी की मदद करने को हमेंशा करने हमेंशा तैयार रहते थे. कम शब्दों में कहे तो इंसानियत उनका मज़हब था.

उनके बच्चे जब चोटिल हो जाते थे तो वो सेट से भाग कर आते थे और जिस अंदाज में अपने बच्चों की परेशानी देखकर रोने लगते थे उसे देखकर कोई कह नहीं सकता था कि ये अभिनेता पर्दे पर लोगों को डराता है. लेकिन ऐसा नहीं की अमजद ने फिल्मों में ही अपने अभिनय का ही जौहर दिखाया, निर्देशन की दुनिया में भी उन्होंने अपने हाथ आजमाया लेकिन सफलता उनको नहीं मिली.

निर्देशन की दुनिया में उन्होंने कदम रखा फिल्म 'अधूरा आदमी' से लेकिन पूरी फिल्म बनने के बावजूद भी उस फिल्म को सिनेमाहाल्स के दर्शन नसीब नहीं हुये. इसके बाद उन्होंने शत्रुघ्न सिन्हा को बतौर हीरो लेकर फिल्म चोर पुलिस बनाई. इस फिल्म के बारे में ऐसा कहा जाता है कि ये उस जमाने से थोड़े आगे की फिल्म थी और हिंसा और सेक्स की वजह से डेढ़ साल तक ये फिल्म सेंसर बोर्ड के चंगुल में फसीं रही.

जब तक ये फिल्म रिलीज हुई तब तक दर्शकों का उस फिल्म से उनका रुझान पूरी तरह से खत्म हो चुका था. इस फिल्म के बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि इस फिल्म ने अमिताभ और अमजद की दोस्ती की परीक्षा ली थी. उस वक्त अमिताभ सांसद बन चुके थे और फिल्म को सेंसर बोर्ड के पचड़े से निकालने के लिये अमजद ने उनसे गुहार लगाई लेकिन अगले ही दिन इस बात की खबर अखबारों में सुर्खिया बन चुकी थी तब अमिताभ बच्चन ने यही सोचा की मदद करना खतरे से खाली नहीं होगा लिहाजा उन्होंने अपने हाथ खींच लिये थे.

अमजद खान और अमिताभ बच्च्न ने भले ही पर्दे पर एक दूसरे की जान के प्यासे सरीखे किरदार कई फिल्मों में अदा की हों लेकिन हकीकत यही थी की दोनों के बीच गहरी दोस्ती थी. एक किस्से के मुताबिक़ अमिताभ बच्चन सन 1978 में अपनी फिल्म द ग्रेट गैंबलर के लिये गोवा में शूटिंग कर रहे थे. अमजद खान को भी इस फिल्म के लिये साइन किया गया था.

ये फिल्म पूरी तरह से अमजद के लिये अनलकी साबित हुई. जिस दिन उन्होंने ये फिल्म साईन की थी उसी दिन उनके पिता जयंत का देहांत हो गया था और जब वो फिल्म के पहले शेड्यूल की शूटिंग के लिये गोवा खुद गाड़ी चलाकर अपनी पत्नी और बेटे के साथ मुंबई से चले तो पणजी पहुंचने के पहले ही उनकी गाड़ी का भयानक एक्सीडेंट हो गया था जिसकी वजह से अमजद बुरी तरह से जख्मी हो गये थे.

हालात इतने बुरे थे कि सर्जरी की जरूरत आ पड़ी जिसके लिये पूरी फार्मेंल्टी खुद फिल्मों के महानायक अमिताभ ने अदा की थीं. इस दुर्घटना की वजह से उस फिल्म को अमजद नहीं कर पाये और आगे चल कर फिल्म के निर्देशक शक्ति सांमत ने उत्पल दत्त को उनके रोल के लिये साइन किया था.

बहुत लोगों को लगता होगा कि अपने आखिरी दिनों में अमजद खान के शरीर का वजन जो बढ़ गया था वो शायद उनके खाने पीने कि आदतों की वजह से हुआ होगा. लेकिन सच्चाई इससे कोसों दूर हैं. अमजद सही मायने में एक ऐसे अभिनेता थे जो अपने सेहत का खासा ध्यान रखते थे और रोजमर्रा की दिनचर्या में तीन से चार घंटे कसरत करना उनके लिये नियम था लेकिन गोवा में 11 पसलियों में जो उनको चोट आई थी और जो स्टीयरिंग का एक हिस्सा उनके लंग्स में घुस गया था उसने धीरे धीरे अमजद की सेहत को खोखला करना शुरु कर दिया.

आगे चल कर इसने विकराल रुप धारण कर लिया था. एक घातक अटैक की वजह से उनको बेल्स पल्स नाम की बीमारी हो गई थी जिसकी वजह से उनके चेहरे का आधा हिस्सा पैरालाइज हो गया था. बीमारी ने ऐसी अपनी रंगत दिखाई जिसका असर उनके शरीर के वजन पर भी पड़ने लगा और मजबूरी में उनको इन सभी चीजों को शिकार होना पड़ा.

अमजद खान का कैरियर भले ही कमर्शियल फिल्मों से भरा पड़ा हैं लेकिन ये भी सच है कि जब सत्यजीत राय ने अपनी पहली और आखिरी हिंदी फिल्म शतरंज के खिलाड़ी बनाई तो संजीव कुमार के अलावा उन्होंने अमजद खान को भी याद किया. अमजद की अदाकारी लाखों में एक थी. इस कमाल के अदाकार को उनकी 25वीं पुण्य तिथि पर नमन है.