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‘डियर जिंदगी’ मूवी रिव्यू: बने-बनाए खांचे की फिल्म प्यारी आलिया और शाहरुख के साथ

डियर जिंदगी निश्चिच तौर पर बॉलीवुड फॉर्मूले के बने-बनाए खांचे की फिल्म हैं, लेकिन यह प्यार और परिवार को देखने का एक नया तरीका देती है.

Anna MM Vetticad

दो बातें. डियर जिंदगी निश्चिच तौर पर बॉलीवुड फॉर्मूले के बने-बनाए खांचे की फिल्म हैं. लेकिन यह प्यार और परिवार को देखने का एक नया तरीका देती है, और फिल्म के ज्यादातर हिस्से में यह बात नजर आती है.

आखिर में, जनता के तथाकथित मांग के आगे यह घुटने टेक देती है जिसे अब हम लगभग हर हिन्दी फिल्म में जरूरी मानने लगे हैं. लेकिन उस पड़ाव तक का सफर काफी दिलचस्प है और हमें अक्सर लगता है कि फिल्म के गैर-जरूरी पलों पर हमें ध्यान नहीं देना चाहिए.


जीवन के कई रंग दिखेंगे फिल्म में

'डियर जिंदगी' कायरा के इर्द-गिर्द घूमती है

लेखक-निर्देशक गौरी शिंदे की फिल्म ‘डियर जिंदगी’ उनकी कमाल की पहली फिल्म ‘इंग्लिश विंग्लिश’ के तीन सालों बाद आई है. जहां वह फिल्म करिश्माई श्रीदेवी को मुख्य आदाकारा के तौर पर बड़े पर्दे पर 15 सालों के बाद लेकर आई थी, यह फिल्म हिन्दी सिनेमा में नायक और नायिका की समझ को नए सिरे से परिभाषित करती है.

डियर जिंदगी कायरा (आलिया भट्ट) के इर्द-गिर्द घूमती है. मुंबई की एक प्रतिभाशाली सिनेमैटोग्राफर जो अपने मां-बाप को नापसंद करती है और अपने प्रेम संबंधों को लेकर आत्मविश्वास से भरी दिखती है.

हालांकि उन मर्दों को लेकर उसके मन में असुरक्षा की भावना भी है जिन्हें वह प्यार करती है. इसी असुरक्षा की भावना के चलते वह जानबूझकर अपने प्रेमियों का दिल दुखा देती है, इससे पहले कि वे उसका दिल दुखाएं.

दर्शकों को उसके इस व्यवहार को समझने के लिए मनोविज्ञान में किसी डिग्री की जरूरत नहीं है. कायरा अपने डर को लेकर स्वाभाविक तौर पर भ्रम में रहती है. वह आखिरकार पेशेवर मदद लेती है, और कुछ समझदार सलाहों के बाद उसे अपने जवाब मिल जाते हैं.

डियर जिंदगी का आॅफिशियल ट्रेलर

जब बॉलीवुड के इतिहास के सबसे बड़े सितारों में शामिल शाहरुख ख़ान फिल्म शुरू होने के 40 मिनट बाद स्क्रीन पर आते हैं, तो यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि यह एक बेहद गैर-परंपरागत फिल्म है.

आलिया भट्ट का किरदार कायरा शुरू से अंत तक कहानी के केन्द्र में है और उसके चिकित्सक की भूमिका निभा रहे शाहरुख ख़ान (डॉ. जहांगीर ख़ान) पहले हिस्से के आखिरी पलों में सामने आते हैं और अंतिम दृश्यों में कहीं नजर नहीं आते. 

मर्दों से भरे हुए उद्योग में जहां अभी भी ज्यादातर मुख्यधारा की फिल्में औरतों को एक मामूली कलाकार के रूप में पेश करती हैं, यह एक ऐसा फैसला है जिसमें गौरी शिंदे की हिम्मत और शाहरुख ख़ान में प्रयोग करने की चाहत नजर आती है.

एक दूसरे ‘बड़े ख़ान’ आमिर ने फिल्म ‘तारे जमीन पर (2007)’ में ऐसा ही जुआ खेला था जिसमें उन्हें खासी सफलता भी मिली थी. और कम से कम इस मामले में ‘डियर जिंदगी’ भी सफल है.

शाहरुख और आलिया

हॉट लगते हैं शाहरुख ख़ान

शाहरुख स्क्रीन पर कम नजर आते हैं, लेकिन जहां भी नजर आते हैं वहां असरदार दिखते हैं. असल में, डॉ. जहांगीर फिल्म में तब दिखाई देते हैं जब लगने लगता है कि फिल्म कमजोर पड़ रही है और खुद को दुहरा रही है.

उनका आना फिल्म में जान ला देता है. हालांकि बाद में फिल्म फिर कमजोर पड़ जाती है, लेकिन जिन दृश्यों में वे हैं वहां फिल्म जानदार है. इसके अलावा कायरा और डॉक्टर की बातचीत में इतनी गर्माहट है कि वह पूरी फिल्म पर छाई रहती है.

यह कहने में कोई दिक्कत नही होनी चाहिए कि अपने कैरियर के इस नये दौर में जब वे अपनी उम्र को गरिमा के साथ स्वीकार करने लगे हैं, थोड़ी सफेदी और झुर्रियों के साथ वे हॉट लगते हैं.

‘पटाखा’ हैं आलिया

एक दृश्य में कायरा गुस्से से उबलने लगती है जब उसे कोई ‘पटाखा’ कहता है. खैर, आलिया भट्ट वही तो हैं- जलवे और जोश से भरी हुई एक ‘पटाखा’. हर भूमिका उनके लिए एक सफर की तरह रही है और यही चीज उन्हें काफी असरदार बनाती है.

अपनी आकर्षक शख्सियत को उस सफर पर उन्होंने हावी होने नहीं दिया है. कायरा एक ही समय गुस्सैल और प्यारी है और आलिया भट्ट पूरी फिल्म में इस मुश्किल चुनौती को संभाले रखती है.

फिर भी, इन दोनों खूबसूरत सितारों को पेश करने के लिए कुछ और चीजों की जरूरत थी, जो ‘डियर जिंदगी’ के पास नहीं है.

जरूरत के वक्त कायरा के पास पहुंचने वाले चरित्रों को ठीक से गढ़ा नहीं गया है, जो इस फिल्म की एक असफलता है.

यह माना जा सकता है कि कायरा खुद के भावनात्मक संघर्षों में इस कदर उलझी हुई है कि उसे पता भी नहीं चलता कि उन लोगों के पास भी कोई समस्या है. लेकिन फिल्म के लेखन में उनकी उपेक्षा करने का यह कोई बहाना नहीं हो सकता. 

कायरा की भूमिका में आलिया

फ़ातिमा (इरा दूबे) एक शादीशुदा और समझदार दोस्त के अलावा क्या है? एक प्यारे, मददगार और शायद उम्र में छोटे दोस्त जैकी (यशविनी दयामा) की क्या अहमियत है?

वह मोटा सहयोगी मोटा और दिलचस्प होने के अलावा कौन और क्या है? उसका भाई किडडु (रोहित शर्राफ) जिसे वह पंसद करती है, उसका भाई किडडु होने के अलावा और क्या है? उसके प्रेमी सिड (अंगद बेदी), रघुवेन्द्र (कुणाल कपूर) और रूमी (अली ज़फ़र) एक रेस्टोरेंट के खूबसूरत मालिक, एक खूबसूरत निर्माता और एक खूबसूरत संगीतकार होने के अलावा कुछ और हैं?

दो ‘ओह-नो’ पल

और फिर आखिर के वे दो ‘ओह-नो’ पल. आप उन्हें जानते हैं जिनकी वजह से आपको कहना पड़ता है, ‘ओह नो, तुम भी डियर जिंदगी’?

उस परंपरागत नजरिये से वे मेल खाते हैं जिसमें हीरो और हीरोइन एक कहानी में अगर देर तक बात कर लें तो उनके लिए प्रेम करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता; और वे इस जरूरत पर भी रोशनी डालते हैं कि एक औरत की जिंदगी में मर्द का होना ही उसे संपूर्ण बनाता है.

यह दोनों सुझाव छिछले हैं. फिल्म उस समय तक मजबूती के साथ जो कहना चाह रही थी उसके महत्व को यह कम कर देता है. ओह नो, तुम भी डियर जिंदगी?

फिल्म में काफी कुछ देखने लायक

कई वजहों से फिल्म असंगत और हल्की है. फिर भी, फिल्म में काफी कुछ देखने लायक है.

संगीत का इस्तेमाल दिलचस्प है. अमित त्रिवेदी के महकते सुर और कौसर मुनीर के परंपरागत गीत काफी मजेदार है.

कायरा की अपने दोस्तों के साथ बातचीत भी खास है. डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी लक्ष्मण उतेकर गोवा के प्यारे दृश्यों से फिल्म को भर देते हैं, जो उस खूबसूरत राज्य के उन दृश्यों से काफी अलग हैं जिन्हें हम देखने के आदी रहे हैं. पूरे फोकस को शाहरुख और आलिया के चेहरों पर बनाए रखने के मामले में भी वे काफी कल्पानशील रहे हैं. फिल्म में समंदर की बीच पर आलिया के आखिरी दृश्य जरूर देखें.

एक ऐसे उद्योग में जहां मां-बाप को देवताओं की तरह दिखाया जाता है जिनकी पूजा की जानी चाहिए, ईश्वर को मिट्टी का बताने वाली ऐसी कहानी को सामने लाना काफी अलग अनुभव है. खासतौर पर, जब इस फिल्म के निर्माण में करण ‘इट्स ऑल अबाउट लविंग योर पैरेंट्स’ जौहर जुड़े हुए हों.

लेकिन सबसे अहम बात यह है कि ऐसी किसी फिल्म को देखना अच्छा लगता है जिसमें मनोरोगी-चिकित्सक की बातचीत पर लगे दाग को मिटाने की कोशिश की गई है. यह बॉलीवुड के पुराने दौर के पागलखाने के दृश्यों से काफी अलग है. 

कुछ संवाद हैं काफी मजेदार

'डियर जिंदगी' एक मिली-जुली फिल्म है. फिल्म में मुझे शाहरुख अच्छे लगे, आलिया हमेशा अच्छी लगती हैं. कहानी कई ऐसी चीजों को सामने लाती है जिसका बॉलीवुड में बहुत कम चलन है. फिल्म के कुछ संवाद तो काफी मजेदार हैं और एक खास नजरिया पेश करते हैं. मिला-जुलाकर यह एक बहुत अच्छी फिल्म के तौर पर सामने नहीं आती, क्योंकि लेखन में थोड़े और दम की जरूरत थी.

गौरी शिंदे और आलिया भट्ट

डियर गौरी शिंदे, प्यारी 'इंग्लिश विंग्लिश' के जरिये आपने एक चलन तोड़ा था. इस बार भी आपने कई तरह के चलन को किनारे रखा है. आप परिणाम की परवाह किये बिना सफर पूरा कर सकती थीं. हमें आपमें भरोसा है. प्लीज हमें जो आपमें भरोसा है उसमें भरोसा रखें. आभार, एक शुभचिंतक.

निर्देशक: गौरी शिंदे. कलाकार: आलिया भट्ट, शाहरुख ख़ान,  कुणाल कपूर, अली ज़फ़र, अंगद बेदी, यशविनी दयामा, इरा दूबे.  स्टार रेटिंग: 2.5 

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