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'दंगल' गर्ल विवाद: ट्रोल व्यक्तिगत आजादी पर हमला है

ट्रोल से बचने का बेहतर तरीका तो यही है कि आप सोशल मीडिया पर हों ही ना. लेकिन यह अपने आप में कोई समाधान नहीं है.

Akshaya Mishra

ट्रोल को कैसे और किन लफ्जों में याद करें? बुरा और बदरंग - ट्रोल के बारे में जेहन में शुरुआती तौर पर यही लफ्ज कौंधते हैं. ट्रोल एकदम ही बेशऊर होता है. इतना बेशऊर कि उसे इंसान कहना एक भूल है.


ट्रोल को बस जंतु या जानवर ही कहा जा सकता है. किसी ड्रैगन की तरह ट्रोल अपने मुंह से आग उगलते हैं. वो अपने भीतर जमा तमाम गुस्से, नफरत और नकार का वहशीयाना तेवर और तेजी के साथ इजहार करता है.

ट्रोल निहायत गंदा होता है. हर जगह चला आता है और उसके बारे में कुछ भी अनुमान लगा पाना मुश्किल होता है. इंटरनेट और वाई-फाई के जमाने में लोगों को सताने और धमकाने की ट्रोल की ताकत हद दर्जे तक बढ़ी हुई है. ट्रोल किसी आदमी की जिंदगी एकदम दयनीय बना डालता है.

अगर आप ट्रोल के बारे में इन बातों से सहमत नहीं हैं तो जरा जायरा वसीम से पूछिए. जायरा ने आमिर खान की फिल्म दंगल में गीता फोगाट के बचपन का किरदार निभाकर हमारा दिल जीता है.

जायरा ने अपने सूबे की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती से मुलाकात क्या कर ली, सोशल मीडिया पर ट्रोल उसके पीछे पड़ गये. ट्रोल की सताई इस बच्ची को परेशानी में एक माफीनामा लिखना पड़ा. आखिर जायरा ने ऐसी कौन सी खता की थी. ट्रोल मान बैठे थे कि जायरा ने कश्मीरियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है.

ट्रोल से दंगल में मिला आमिर का साथ

'अगला दंगल कब है'- फिल्म में पहलवान के रुप में एक लड़के से अपना पहला मुकाबला हारने के बाद वह पिता महावीर फोगाट से पूछती है. फिल्म में यह वो लम्हा है, जब वह मन से अपनी ताकत को लेकर कायम सारे शक-शुब्हे दूर झटक देती है. उसके भीतर साहस का संचार होता है. लेकिन यह फिल्म की बात है.

असल जिंदगी में 16 साल की इस लड़की को हार मानने के लिए मजबूर किया गया. अपने बेशक्ल दुश्मन से मुकाबला करना उसके लिए मुमकिन ना हो सका.

मैं जानती हूं कि बहुत से लोगों को मेरे हाल के काम या कुछ लोगों से मेरे मेल-मुलाकात का बेहद बुरा लगा है. मैं उन सब से माफी मांगना चाहती हूं जिन्हें मैंने अनजाने में दुखी किया। मैं चाहती हूं, वे लोग समझें कि बीते छह महीने में कश्मीर में जो कुछ हुआ है, उसे देखते हुए मैं उनकी भावनाओं से कतई बेखबर नहीं.

कुछ इन्हीं लफ्जों में जायरा ने अपना दुख फेसबुक पोस्ट में बयान किया है. फेसबुक पोस्ट में उसने मान लिया कि वह किसी की रोल मॉडल नहीं है और जो कुछ कर रही है वह नाज के काबिल नहीं है. यह जाहिर करता है जायरा हिम्मत हार बैठी है.

दंगल फिल्म में जायरा के सह-अभिनेता हैं आमिर खान. उन्होंने जायरा का पक्ष लेते हुए अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा है.

मैंने जायरा का बयान पढ़ा. मैं समझ सकता हूं कि जायरा को किन हालात में यह सब लिखना पड़ा. जायरा ! याद रखना कि हम सब तुम्हारे साथ हैं. तुम्हारे जैसी काबिल, कमउम्र, मेधावी, मेहनती, शरीफ, होशमंद और साहसी बच्ची सिर्फ हिन्दुस्तान के लिए ही नहीं पूरी दुनिया के बच्चों का रोल-मॉडल है. तुम निश्चित ही मेरे लिए एक रोल-मॉडल हो. तुमपर अल्लाह की मेहर बरसे..!

बेशक आमिर के जज्बात कद्र के काबिल हैं लेकिन परेशान-हाल जायरा का भला इन बातों से नहीं होने वाला.

(फोटो: पीटीआई)

जायरा को लेकर सोशल मीडिया पर मचे बवाल की वजह इतनी वाहियात है कि बहस के काबिल नहीं. लेकिन चिन्ता की बात यह है कि ट्रोल बहुत ताकतवर हैं, वे किसी को भयभीत कर सकते है, धमका सकते हैं. अगर ट्रोल के मन में महबूबा मुफ्ती को लेकर कोई गुस्सा था तो वे इस गुस्से का इजहार सीधे-सीधे उनसे ही करते.

इस तरह जायरा को निशाना बनाना बेतुका है. लेकिन ट्रोल ने कब कोई मतलब की बात की है ? उनका बरताव नया नहीं है. ट्रोल ने बड़े लंबे वक्त से सोशल मीडिया को अपनी ठोकरों का मैदान बना रखा है. वे अपना निशाना चुनते हैं और उसपर बेरहमी से टूट पड़ते हैं.

किसी के भी पीछे पड़ सकते हैं ट्रोल

ट्रोल के इस्तेमाल को लेकर देश के सियासत के मैदान के खिलाड़ी भी बहुत चतुर साबित हुए हैं. ट्रोल के सहारे वे अपने प्रतिद्वन्द्वी का मुंह बंद करा देते हैं. कोई नापसंद हो तो उसे ओछा साबित करने के लिए ट्रोल की मदद लेते हैं और जिसे चाहते हैं उसे ही मसीहा बनाकर पेश करते हैं.

शनिवार को जायरा वसीम ने जम्मू-कश्मीर की सीएम महबूबा मुफ्ती से मुलाकात की थी (फोटो: पीटीआई)

सोशल मीडिया पर जब आम आदमी पार्टी और बीजेपी की भिड़ंत हो तो यह बात सबसे ज्यादा साफ नजर आती है. बाकी पार्टियों ने भी इस चलन को अपनाना शुरु किया है. ट्रोल के निशाने पर आने से राजनेता भी नहीं बचते.

लेकिन उन्हें कठोर आलोचना सहने की आदत होती है और वे जैसे को तैसा की शैली में जवाब भी दे सकते हैं. ऐसे में राजनेता का ट्रोल के निशाने पर होना अपने आप में कोई खास बात नहीं. दुख तब होता है जब जायरा जैसी निर्दोष बच्ची या फिर खुले मन से अपनी बात कहने वाले बुद्धिजीवियों और उन सरीखे लोग ट्रोल के निशाने पर होते हैं.

ट्रोल के करतब को यह कहकर नहीं टाला जा सकता कि ऐसा तो होना ही है. आप सोशल मीडिया पर हैं तो ट्रोल की घिनौनी हरकत भुगतनी ही होगी. ऐसा सोचने पर एक सच्चाई की अनदेखी होगी.  ट्रोलबाजी दरअसल व्यक्ति की आजादी पर हमला है.

ट्रोल के हमले का शिकार व्यक्ति मानसिक कष्ट तो झेलता ही है उसकी शख्सियत भी कुंद हो सकती है. फिलहाल, ट्रोल से बचने का बेहतर तरीका तो यही है कि आप सोशल मीडिया पर हों ही ना. लेकिन यह अपने आप में कोई समाधान नहीं है. अच्छे लोग लुच्चे-लफंगों के लिए कोई जगह क्यों खाली करें?

एक बेहतर तरीका यह भी है कि सोशल मीडिया पर डटे रहें और लोहा लेते रहें. लेकिन ट्रोल अपनी तादाद में इतने ज्यादा हैं कि हर किसी के पास उनसे भिड़ने का माद्दा नहीं हो सकता.

एक खतरा यह भी है ट्रोल से भिड़ते-भिड़ते आखिर को आप खुद ही उनके जैसे ना बन जायें. ट्रोल के खतरे से निपटने के लिए कानून के अभाव में जायरा सरीखे लोगों को आमिर और सभ्य समाज के समर्थन की जरूरत पड़ती रहेगी.