कमांडो-2 शुरु होती है प्रधानमंत्री मोदी के नोटबंदी के फैसले की तारीफों से और खत्म होती है गरीब किसानों के बैंक खातों में 15-15 लाख रुपये जमा होने पर. अंत में किसान अपने आंसू पोंछते हुए हंस रहे होते हैं.
जिस तरह पूरा देश अभी तक कंफ्यूज है कि नोटबंदी का फैसला क्यों लिया गया था, उससे भी ज्यादातर लोग यह सोचकर कंफ्यूज हैं कि देवेन भोजानी ने बतौर डायरेक्टर अपनी यह पहली फिल्म क्यों बनाई?
वैसे भोजानी का काम आज तक हमें हंसाने का रहा है और इस फिल्म को देखकर भी आप हंस सकते हैं, ठहाके मारकर. अगर पैसे आपकी जेब से ना गए हों तो.
कहानी
'कहानी' अगर आप इसे कहानी मानें तो! यह है कि देश के भ्रष्ट नेताओं और उद्योगपतियों के काले धन को विदेश में जमा करने वाला सबसे बड़ा दलाल विकी चड्ढा मलेशिया में बैठा है.
देश की गृहमंत्री, जिसका खुद का बेटा भी काले धन वालों शामिल है, विकी को भारत लाने के लिये एक टीम भेजती हैं. इस टीम में कमांडो करण सिंह (विद्युत जामवाल), पुलिस इंस्पेक्टर भावना रेड्डी (अदा शर्मा) और एसीपी बख़्तावर (फ्रैडी दारुवाला) शामिल हैं.
और हां! मुसलमानों की देशभक्ति प्लस शहादत, को अब तक के सबसे बचकाने ढंग से दिखाने के लिये साइबर सेल का अफसर ज़फ़र भी है.
तो खैर! मलेशिया में मोटू-पतलू के कार्टून के लेवल वाला चूहे-बिल्ली का खेल चलता है. विकी की पत्नी मारिया (ईशा गुप्ता) विकी को मार देती है और रहस्योद्घाटन करती है कि वो ही विकी है.
इसके बाद मारिया बेहद बचकाने ढंग से एक लाख करोड़ रुपयों को अपने अकाउंट में ट्रांसफर करने की कोशिश करती है लेकिन करण अपने बॉलीवुडिया टेलेंट से वो सारा पैसा गरीब किसानों के बैंक खातों में ट्रांसफर कर देता है...और नोटबंदी की हैप्पी एन्डिंग.
फिल्म में एक्टिंग या डायरेक्शन वगैरह कुछ होता तो उसकी कुछ बात भी करते. तो उसको जाने ही देते हैं. लेकिन इसके बावजूद भोजानी ने हम पर एक बहुत बड़ा एहसान किया है और वो यह कि उन्होंने फिल्म में कोई गाना नहीं रखा.
‘हरे राम हरे कृष्णा’ वाला जो री-अरैंज्ड सॉन्ग है, गनीमत है कि वो फिल्म खत्म होने के बाद आता है.
फिर भी अगर कोई कहे कि यार, फिल्म में किसी के लिये तो कुछ होगा. तो हां! बॉडी फुलाने वाले लौंडों को विद्युत के मसल्स दिखाने वाले कुछ सीन्स अच्छे लग सकते हैं. इसके अलावा इसमें किसी के लिये कुछ भी नहीं है.
अंत में
'ऑफिस-ऑफिस' सीरियल में पटेल बने देवेन भोजानी का डॉयलॉग था, 'इसमें दो बातें होंगी. या तो तुम रिश्वत दोगे, या नहीं दोगे. ना देने का तो सवाल ही नहीं. और अगर रिश्वत दी तो दो बातें होंगी...'
तो हम भी भोजानी को बोलते हैं कि 'या तो ऐसी फिल्म बनती या नहीं बनती. ना बनने का तो सवाल ही नहीं क्योंकि बॉलीवुड में ऐसी फिल्म बनाने वाली महान आत्माओं की कोई कमी तो है नहीं.
अब इससे ज्यादा क्या कहें! तो कमांडो-2 को मिलता है आधा स्टार.