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सावधान: बॉलीवुड के बॉक्स ऑफिस को निगलने के लिए तैयार हैं हॉलीवुड फिल्में!

हॉलीवुड फिल्मों की भारतीय बाजार में हिस्सेदारी 2 प्रतिशत से बढ़कर 22 प्रतिशत हो गई है, जो बॉलीवुड के निर्माताओं के लिए एक चिंता का विषय है

Bharti Dubey

हॉलीवुड फिल्म डेडपूल 2 ने पहले ही दिन बॉक्स-ऑफिस पर 11 करोड़ का बिजनेस किया और एवेंजर्स इनफिनिटी वॉर ने अब तक 200 करोड़ की कमाई कर ली है, जो साफ-साफ बॉक्स ऑफिस पर हॉलीवुड के दबदबे की तस्दीक करता है.

ट्रेड एनालिस्ट तरण आदर्श कहते हैं, “हॉलीवुड की फिल्में बड़ी संख्या में दर्शकों को अपनी तरफ खींचती हैं और आप वहां की फिल्मों के संदर्भ में ये नहीं कह सकते हैं हम उन्हें देख लेंगे. वो आपकी कमाई के एक बड़े हिस्से को हथिया रहे हैं और ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि वे दर्शकों के सामने अलग तरह का कंटेंट और कहानी परोस रहे हैं. अगर हम समय रहते नहीं जागे तो जल्द ही ऐसा होगा कि हमारे बिजनेस का एक बड़ा हिस्सा उनके पास चला जाएगा. इस साल की पांच टॉप की फिल्मों में तीन फिल्में हॉलीवुड की हैं - ब्लैक पैंथर, एवेंजर्स इनफिनिटी वॉर और डेडपूल-2.”


भारतीय सितारे इन फिल्मों के हिंदी वर्जन के लिए अपनी आवाज देकर हॉलीवुड फिल्मों की लोकप्रियता को और बढ़ा रहे हैं

वो आगे कहते हैं, “हमें अच्छे विषयवस्तु पर फिल्में बनाने की जरूरत है क्योंकि सिनेमा के रूपहले पर्दे को तो हमेशा से जीवन से ज्यादा रंगीन और बड़ा दिखाया गया है. भारत में रहने वाले दर्शक हमेशा से सिनेमा के पर्दे पर भव्यता और सुंदरता देखना पसंद करते हैं और हॉलीवुड उन्हें वो सब कुछ दे रहा है. अगर ये कहा जाए कि हॉलीवुड ने भारतीय दर्शको को एक तरह से उस भव्यता और दिव्यता का स्वाद चखा दिया है, जिसे आप रोक नहीं सकते तो ये गलत नहीं होगा.

उदाहरण के तौर पर बाहुबली को ही देख लें जो कि एक क्षेत्रीय भाषा में आयी हुई फिल्म थी, लोग ऐसी फिल्में देखने के लिए पैसा खर्च करने को तैयार हैं बशर्ते कि आप उन्हें अच्छे विषय पर बनी फिल्में दें, जो कि उन्हें हॉलीवुड बेझिझक दिए जा रहा है, जिसके बदले वे बड़ी आसानी से बड़ा बिजनेस और कमाई कर रहे हैं. उनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर खूब सफल हो रहीं हैं.”

रणवीर सिंह ने डेडपूल 2 में अपनी आवाज दी है

एक समय था जब भारतीय बॉक्स ऑफिस पर हॉलीवुड का हिस्सा, कुल कमाई का मात्र दो प्रतिशत से ज्यादा नहीं था लेकिन आज उनका यही हिस्सा बढ़कर 22 प्रतिशत तक पहुंच गया है. सदी के महानायक अमिताभ बच्चन जब बॉलीवुड पर हॉलीवुड के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंता जाहिर करते हैं तो असल में वे सही कर रहे हैं. यहां तक कि उन्होंने एवेंजर्स फिल्म का मजाक भी उड़ाया और कहा कि फिल्म में कंटेट था ही नहीं या फिर ये कि उन्हें फिल्म समझ में नहीं आयी.

अमिताभ ने ट्विटर पर लिखा, “अच्छा भाई साहिब, बुरा न मानना, एक पिक्चर देखने गए, ‘एवेंजर्स’….कुछ समझ नहीं या कि पिक्चर में हो क्या रहा है..!!!! ये सब लिखने के बाद उन्होंने वहां पे खूब सारे ईमोजीज भी बना दिए थे.” लेकिन, इससे भला क्या कोई फर्क पड़ जाता है, एवेंजर्स ने भारत में 1213 करोड़ रुपए कमा लिए हैं और अभी भी सिनेमा घरों में बनी हुई है.

डेडपूल-2 ने पहले ही दिन 11 करोड़ रूपये कमा लिए हैं और ऐसी उम्मीद है कि वो रिलीज़ के पहले हफ्ते में कम से कम 30 करोड़ तक की कमाई कर लेगी.

ट्रेड एनालिस्ट और इंडीपेंडेंट फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर गिरीश जौहर बताते हैं, “1980-90 के दशक में 2 प्रतिशत के मामूली से शेयर से साल 2018 में हॉलीवुड फिल्मों का रेवेन्यू बढ़कर 20 प्रतिशत हो गया है, और ये हर गुजरते हुए दिन के साथ- साथ बढ़ता ही जा रहा है.

पहले जंगल बुक ने मरणासन्न पड़ी भारतीय सिनेमा को जीवन दान दिया और अब बाहुबली के बाद एवेंजर्स की बारी है. वो भी तब जब फिल्म को कुछ ही गिने-चुने सिनेमाघरों में रिलीज किया गया है और लंबे वीकेंड या त्यौहारी छुट्टियों की परवाह किए बगैर. ये सब कुछ ऐसे तथ्य हैं जिन्हें हम नजरअंदाज तो बिल्कुल नहीं कर सकते हैं.''

अब हालात ऐसे हो गए हैं कि बॉलीवुड संभल-संभलकर आगे कदम बढ़ा रहा है, वो हॉलीवुड की किसी फिल्म के साथ बॉक्सऑफिस पर टकराने से बच रहा है. “प्रमुख हिंदी फिल्मों की रिलीज की तारीखें इस तरह से तय की जा रहीं हैं ताकि उनका टकराव हॉलीवुड की बड़ी फिल्मों से न हो, यानि अब लोगों के जेहन में डर ने जगह बनानी शुरू कर दी है. हमें इससे निपटने के लिए नए तरीके निकालने होंगे.”

ऐसी चर्चाएं भी हो रहीं हैं जहां हॉलीवुड फिल्मों के रिलीज पर कुछ पाबंदियां लगाने की बातें हो रहीं है लेकिन प्रदर्शक अक्षय राठी कहते हैं कि ये कोई समाधान नहीं है. उन्होंने कहा, ‘ये ग़लत है, अगर हम बुरी फिल्में बनाएंगे तो लोग भारतीय फिल्मों को देखने के लिए सिनेमाघरों तक नहीं आएंगे.

लेकिन हम ऐसी फिल्में बनाते हैं जिसमें दर्शक बंध जाता है और फिल्म देखकर उसके पैसा वसूल अनुभव पाता है जैसा कि बाहुबली, टाइगर जिंदा है और पीके तो दर्शक बड़ी संख्या में फिल्म देखने जरूर आएंगे. हालांकि लोग बड़ी संख्या में पद्मावत, बाग़ी-2 भी देखने आए थे- आगे भी हमारी नजरें रेस-3, ठग्स ऑफ हिंदुस्तान, ब्रह्मास्त्र जैसी फिल्मों पर लगी है. अमिताभ बच्चन सही कह रहे हैं कि युवा फिल्मकारों ने इस खेल और ज्यादा दिलचस्प बना दिया है, और अब वे अपने दर्शकों को उनके पैसे के अनुसार मनोरंजन देने की कोशिश में लगे हैं.

दीपिका पादुकोण रिटर्न ऑफ द जेंडर केज मे काम करके उसकी लोकप्रियता को भारत में और बढ़ा दिया

ऑरमैक्स के सीईओ शैलेश कपूर कहते हैं- ‘साल 2013 में जिन फिल्मों की नेट यानि शुद्ध बचत 375 करोड़ हुआ करती थी, वो 2017 आते-आते दोगुनी से भी ज्यादा होकर 801 करोड़ तक पहुंच गई है. जो औसतन 22% की सालाना ग्रोथ है. वे आगे कहते हैं, “हॉलीवुड का बिजनेस भारत में पिछले 6-7 सालों में बढ़ा है.

जब हम भारतीय सुपरस्टार्स के फिल्मों की ओपनिंग की तरफ देखते हैं तो ये साफ तौर पर महसूस किया जा सकता है कि एवेंजर्स और इनफिनिटी वॉर सरीखी फिल्मों के साथ ही उनके लिए एक नया मानक तैयार हो गया है. ये प्रदर्शनी वाले बिजनेस जैसे थियेटर के लिहाज़ से बेहतर है, क्योंकि थियेटर में विषय वस्तु पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है, सिर्फ भारतीय कंटेट पर निर्भर होने के अलावा. लेकिन वो बॉलीवुड के सामने एक तरह की चुनौती भी खड़ी कर देता है, क्योंकि ये साफ है कि दर्शक अब पहले से ज्यादा अंतराष्ट्रीय या यूं कहें कि विदेशी कंटेट की तरफ आकर्षित होते हैं और जरूरत पड़ने पर वो भारतीय कंटेट या फिल्मों की तुलना में उन्हें ही चुनेंगे जो उन्हें सिनेमा हॉल में ज्य़ादा बेहतर अनुभव प्रदान करने में सक्षम होता है.''

वो आगे कहते हैं, “दर्शक इंडस्ट्री में फर्क करना नहीं जानता है, वो ट्रेड या व्यवसाय से जुड़ा मसला है. एक आदमी जो थियेटर जाता है, उसके लिए जो चीज मायने रखती है वो फिल्म, उसका समय और टिकट पर खर्च किया गया पैसा है. वो सिर्फ ये देखता है कि जो समय और पैसा वो फिल्म देखने में लगा रहा है वो उस योग्य है भी या नहीं.

प्रियंका चोपड़ा ने बेवॉच में छोटा सा रोल किया था

उसके लिए इंडस्ट्री चाहे वो हॉलीवुड हो या बॉलीवुड वो ज्यादा मायने नहीं रखती है. कोई भी व्यक्ति इंडस्ट्री के नंबर (जो मैं अमूमन करता हूं) लेकिन वो विश्लेषण है, कंज्यूमर का व्यवहार नहीं. कंज्यूमर यानि दर्शक के मन में क्या चल रहा है या वो क्या सोचता है, उसे समझ पाना थोड़ा मुश्किल है.”

कपूर विषयवस्तु की एकरूपता (मसलन, बॉलीवुड को सिर्फ मास और फॉर्मूला फिल्में ही बनानी चाहिए) जैसे तर्क को भी मानने से इंकार करते हैं, उनके मुताबिक इन्हें गलत तरीके से समझा गया है. कोई भी या किसी भी व्यक्ति या फिल्म में इतनी ताकत नहीं होती कि वो भारत के 3.8 करोड़ बॉलीवुड के दर्शकों को किसी मुद्दे या फिल्म के मसले पर एकरूप या एक सोच का कर ले. ये सभी दर्शक अलग-अलग किस्म के हैं और फिल्मों को लेकर उनकी पसंद भी एक-दूसरे से अलग हैं, और वे जीवन में भी एक दूसरे से अलग चीज़ों की इच्छा रखते हैं.

छोटी-छोटी परेशानियों को अगर नजरअंदाज किया जाता है तो उसके कीई नतीजे सामने आ जाते हैं, जो हमारे भविष्य पर असर करता है. हालांकि, ये सच है कि लोगों के जीवन में बड़े पैमाने पर संतुष्टि भी होना चाहिए. ये जरूरी है कि लोगों का जीवन बेहतर हो फिर चाहे भले ही उनकी इच्छा की पूर्ती समुंदरपार से ही क्यों न की जाए. आप लाख कोशिश कर लें, लेकिन जिस चीज की आप बराबरी नहीं कर सकते हैं तो नहीं कर सकते इसका कुछ भी नहीं किया जा सकता है. क्योंकि कुछ चीजें या बातें हमारे बस के बाहर की होती हैं, चाहे वो स्केल के स्तर पर हो या फिर बजट या फिर दृष्टि.''

कपूर विषयवस्तु की एकरूपता (मसलन, बॉलीवुड को सिर्फ मास और फॉर्मुला फिल्में हीं बनानी चाहिए) जैसे तर्क को भी मानने से इंकार करते हैं, उनके मुताबिक इन्हें गलत तरीके से समझा गया है. कोई भी या किसी भी व्यक्ति या फिल्म में इतनी ताकत नहीं होती कि वो भारत के 3.8 करोड़ बॉलीवुड के दर्शकों को किसी मुद्दे या फिल्म के मसले पर एकरूप या एक सोच का कर लें.

ये सभी दर्शक अलग-अलग किस्म के हैं और फिल्मों को लेकर उनकी पसंद भी एक-दूसरे से अलग हैं, और वे जीवन में भी एक दूसरे से अलग चीज़ों की इच्छा रखते हैं. छोटी-छोटी परेशानियों को अगर नजरअंदाज किया जाता है तो उसके कीई नतीजे सामने आ जाते हैं, जो हमारे भविष्य पर असर करता है. हालांकि, ये सच है कि लोगों के जीवन में बड़े पैमाने पर संतुष्टि भी होना चाहिए. ये ज़रूरी है कि लोगों का जीवन बेहतर हो फिर चाहे भले ही उनकी इच्छा की पूर्ती समुंदरपार से ही क्यों न की जाए. आप लाख कोशिश कर लें, लेकिन जिस चीज़ की आप बराबरी नहीं कर सकते हैं तो नहीं कर सकते इसका कुछ भी नहीं किया जा सकता है. क्योंकि कुछ चीज़ें या बातें हमारे बस के बाहर की होती हैं, चाहे वो स्केल के स्तर पर हो या फिर बजट या फिर दृष्टि.''

हाल ही में आयी एक ताजा और छोटी सी रिपोर्ट में ये कहा गया है कि साल 2017 में हॉलीवुड का बॉक्स-ऑफिस कलेक्शन पहले से थोड़ा कम रहा है. लेकिन ब्लैक पैंथर और एवेंजर्स जैसी फिल्मों के बिजनेस ने और अब इनफिनिटी वॉर की सफलता ने साफ तौर पर ये बता दिया है कि इस साल हॉलीवुड की फिल्में बॉक्स-ऑफिस पर न सिर्फ पहले से ज्यादा सफल होंगी बल्कि पहले से ज्यादा पैसे भी कमाएंगी.

इस साल के अगले छह महीने में जो बड़ी हॉलीवुड फिल्में पूरी दुनिया में रिलीज़ होने जा रहीं हैं उनमें जुरासिक वर्ल्ड, एंट मैन और द वास्प शामिल हैं. इसके अलावा द नन और मिशन इंपॉसिबल-फॉल आउट भी आने वाले हैं. ट्रेड एनालिस्ट अतुल मोहन कहते हैं- “इन सभी आने वाली फिल्मों की भारत में एक बड़ी फैन फॉलोइंग है और ये तय है कि रिलीज़ होने पर ये बॉक्स ऑफिस पर छा जाएंगी. ”

वे आगे कहते हैं, “ये खेल निश्चित तौर पर बदल चुका है. आप देख सकते हैं कि कैसे और किस तरह से हॉलीवुड की फिल्मों का कलेक्शन भारतीय बाजार में लगातार बेहतर होता जा रहा है. ये बॉलीवुड के लिए चिंता की बात भी हो सकती है. भारतीय दर्शक अब जिस तरह से पहले से बेहतर और परिष्कृत उत्पाद यानि फिल्में, और उनमें अच्छी कहानियां को देखना पसंद कर रहे हैं वो साफतौर पर नजर आ रहा है.

हालांकि, इस सब में जो सबसे बड़ा फ्रेंचाईजी होगा उसे सबसे बड़ा मुनाफा होगा और वो धीरे धीरे अपने आपको खड़ा कर रहा है. जिस तरह से ऐसी फिल्मों के देखने के लिए मल्टीप्लेक्स की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है उससे इन फिल्मों की सफलता की गारंटी भी बेहतर हो रही है. सिनेमा का हमेशा से काम ही जीवन को बड़े कैनवास पर दिखाना है, जो हॉलीवुड बहुत ही अच्छे तरीके से कर रहा है.”

आम दिनों पर रिलीज़ होने वाली ये फिल्में, कम स्क्रीन और आईपीएल के बीच में रिलीज होने के बाद भी बड़ा बिजनेस करती हैं, एवेंजर्स, इनफिनिटी वॉर की सफलता को बॉलीवुड के लिए एक केस स्टडी के तौर पर भी देखा जा सकता है, ताकि वे आगे की अपनी रणनीति पर काम कर सकें. लेकिन, साथ-साथ हमें ये सोचकर खुश होना चाहिए इन फिल्मों की अपार सफलता ने लंबे समय से परेशान झेल रहे वितरकों और फिल्म प्रदर्शकों को राहत दी है. रिलीज़ के पहले ही दो दिनों में इन फिल्मों ने जिस तरह से 80-90% का बिजनेस किया है, उसको देखते हुए बॉलीवुड को भी अपनी कमर कसने की ज़रूरत है !”