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Birthday Special : कार में टक्कर मारकर शक्ति कपूर को मिला था जिंदगी का सबसे अहम रोल

जन्मदिन विशेष में पढ़िए शक्ति कपूर के जीवन की कुछ अनसुनी दास्तान

Abhishek Srivastava

ये बड़ा ही अजीब इत्तेफाक कहा जाएगा कि शक्ति कपूर और नसीरुद्दीन शाह पुणे के फिल्म इंस्टीट्यूट में 21 लोगों के एक्टिंग बैच में अकेले अभिनेता निकले जिनके रास्ते बिल्कुल अलग थे लेकिन दोनों ने मिलकर फिल्म जगत पर अपना सिक्का चलाया. भले ही शक्ति कपूर का नाम विलेन की फेहरिस्त में प्राण, अजीत, अमजद खान, प्रेमनाथ या फिर के एन सिंह की तर्ज पर नहीं लिया जाता है लेकिन जिस अभिनेता ने 600 के ऊपर फिल्मों में काम किया हो तो उसको कम आंकना गलत होगा.

दिल्ली के करोल बाग में जन्मे चार बच्चों में शक्ति दूसरे थे. घर में बच्चों का लालन पालन उनके पिता की कनाट प्लेस में स्थित टेलरिंग की दुकान से होता था. शक्ति की विलेन वाली हरकतें बचपन से ही थीं. बुरे बर्ताव की वजह से उनको तीन स्कूलों से निकाला गया था. बच्चों से लड़ने की प्रवृत्ति उनके अंदर बचपन से ही थी. जब उनको पता चला कि उनके पिता थोड़े कंजूस किस्म के हैं और पैसे बचाकर रखने की आदत में विश्वास रखते थे तो शक्ति ने एक तरह से विद्रोह कर दिया था. कुछ बड़े होने पर पिता चाहते थे कि बेटा उनके व्यापार में उनका साथ दे लेकिन शक्ति का मन ट्रैवल एजेंसी खोलने की तरफ था.


बात इसी के चलते और भी बिगड़ गई. लेकिन खेल कूद में दिलचस्पी की वजह से उनको दिल्ली विश्वविद्यालय के किरोड़ीमल कॉलेज में स्पोर्ट्स कोटा से दाखिला जरूर मिल गया. कालेज के ही दिनों में शक्ति मॉडलिंग भी किया करते थे और उनको अभिनय के पंख देने वाला कोई और नहीं बल्कि वो पानवाला था जिसके यहां से सिगरेट खरीदी जाती थी. विष्णु पानवाले ने शक्ति की फोटो अपने दुकान में लगा रखी थी. इसी बीच जब शक्ति को अपना पहला एड सूर्या बंसी शूटिंग के लिए मिला तो इसके लिए उनको 150 रुपये मिले जो जाहिर सी बात है सिगरेट और शराब पर लुटा दिए गए थे. 43 प्रतिशत मार्क्स लाकर शक्ति कैसी भी पास तो हो गए लेकिन आगे का कैरियर किस तरफ जाएगा इस बात की जानकारी उनको नहीं थी. यहां पर उनके दोस्तों की टोली ने उनका पूरा साथ दिया.

उनके दोस्त एस पी रथावल ने उनको बिना बताए पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट का फॉर्म खुद के लिए भी भरा और शक्ति के लिए भी. यहां भी किस्मत ने साथ दिया और शक्ति को साक्षात्कार के लिए पुणे बुलाया गया और फिर उन्होंने अपने हुनर का परिचय पैनल के सामने दिया जिसमें शामिल थे ऋषिकेश मुखर्जी, अशोक कुमार और कामिनी कौशल. यहां बताना जरूरी हो जाता है कि उनके दोस्त एस पी रथावल का दाखिला फिल्म इंस्टीट्यूट में तो नहीं हो पाया अलबत्ता कुछ सालों के बाद वो 1998 में दिल्ली में जब बीजेपी की सरकार बनी तो वो उसमें मिनिस्टर जरूर बन गए.

शक्ति कपूर के फिल्म इंस्टीट्यूट में दाखिले की कहानी दिलचस्प थी तो उतनी ही दिलचस्प उनके पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट के दिन भी थे. पहले ही दिन उनका पाला पड़ा मिथुन चक्रवर्ती से जो उनसे एक साल सीनियर थे. पहले ही दिन जब वो कैंपस में घुसे और जब सामने मिथुन मिल गए तो शक्ति ने उनको बीयर पीने का न्योता दे दिया. मिथुन ने उस वक्त तो मना कर दिया लेकिन रात में मिथुन अभिनेता विजेंद्र घाटगे के साथ मिलकर उनको एक दूसरे रूम में ले गए जहां पर उनके मुंह पर पानी फेंकने के बाद उनके लहराते हुये बालों को कैंची से छोटे कर दिया और साथ में ये धमकी भी दे डाली की अगर वो पीते हुए दोबारा पकड़े गए तो अंजाम इससे भी बुरा हो सकता है.

इस वाकिए के बाद शक्ति ने खुद को अपने रुम में भले ही कुछ दिनों के लिए नजरबंद कर लिया लेकिन मिथुन के साथ एक ऐसी कमाल की दोस्ती पनपी जो आज तक जिंदा है. एक्टिंग की पढ़ाई के दौरान ही शक्ति को एड फिल्म करने के ऑफर मिलने लगे थे और इसी कड़ी में उनको पहली फिल्म खेल खिलाड़ी का भी मिल गई 5000 रुपये में. शक्ति को काम मिलते गया लेकिन वो रोल आना बाकी था जिससे उनको पहचान मिलती. वो वक्त किसी ऑफिस या स्टूडियो में नहीं आया बल्कि मुंबई के लिंकिंग रोड पर आया. जब एड से कमाई बढ़ गई तक शक्ति ने एक फीएट गाड़ी ले ली.

ये इत्तेफाक की बात थी कि लिंकिंग रोड पर शक्ति की फीएट की फिरोज खान की मर्सीडीज से रास्ते में भिड़ंत हो गई. जब शक्ति ने फिरोज खान को अपनी गाड़ी से निकलते देखा तो उनके तेवर बिल्कुल बदले हुये थे. हर्जाना की बजाय वो उनकी आने वाली फिल्म में रोल के लिए मांग करने लगे.

ये बात शक्ति कपूर को बाद में फिल्म कुर्बानी के लेखक के के शुक्ला से पता चली कि फिरोज खान उनकी गाड़ी को टक्कर मारने वाले को ढूंढ़ रहे थे अपनी फिल्म में विलेन के रोल के लिए. इसके बाद शक्ति कपूर ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. सन 1981 में उनके लिए समय बदलना शुरू हुआ, उसी साल सुनील दत्त ने अपने बेटे संजय दत्त की लांच फिल्म रॉकी के लिए शक्ति को बतौर विलेन साइन किया और उनका नाम भी सुनील कपूर से शक्ति कपूर बदल दिया.

शक्ति कपूर के करियर में एक और अहम मोड़ उसी दौरान आया था विलेन रंजीत की वजह से. रंजीत की अपने सेक्रेट्री जोशी जी से किसी बात को लेकर कहा सुनी हो गई थी जिस वजह से जोशी जी ने रंजीत का काम छोड़ दिया. जब शक्ति कपूर के साथ वो जुड़े तो एक साथ उनकी झोली में 35 फिल्में एक साथ दिला दी. जब कार खरीदने की बारी आई तब वहां भी जोशी जी ने अपना कमाल दिखाया. ये तब की बात है जब रोमु सिप्पी फिल्म सत्ते पे सत्ता के लिए शक्ति को साइन करना चाहते थे.

जोशी जी ने रोमु सिप्पी के सामने शर्त रख दी की शक्ति फिल्म तभी साईन करेंगे जब साइनिंग अमाउंट में उनको एक कार दी जाए. फिल्म कितनी कामयाब हुई ये बताने की जरूरत नहीं है. लेकिन पैसे कि अहमियत कितनी होती है ये बात शक्ति ने अभिनेता जितेंद्र से सीखी. साउथ की कई फिल्में एक साथ करने की वजह से दोनों में अच्छी खासी दोस्ती हो गई थी और उसी दौरान जितेंद्र को पता चला कि शक्ति को स्पोर्ट्स कारों का बेहद शौक है. तब जितेंद्र ने उनको उस वक्त अपना पैसा रियल एस्टेट में लगाने की हिदायत दी थी जिसकी वजह से मुंबई के जूहु और दिल्ली के ग्रेटर कैलाश इलाके में उनके शानदार बंगले हैं.

लेकिन ये भी सच है कि शक्ति के लिए कई बार उनके रील और रियल लाइफ की लकीर धुंधली भी पड़ी. 2005 में उनको एक टीवी चैनल के स्टिंग आपरेशन का शिकार बनना पड़ा जिसमें उनको कास्टिंग काउच करते हुए दिखाया गया था. मामला उस वक्त इतना बढ़ गया था कि शक्ति को फिल्म जगत की सबसे बड़ी संस्था फिल्म एंड टीवी प्रोड्यूसर्स गिल्ड असोशियेशन ने बैन कर दिया लेकिन पुख्ता सबूत ना होने की वजह से तीन के अंदर बैन उठा भी लिया.

तोहफा, हिम्मतवाला, राजा बाबू से लेकर अंदाज अपना अपना में यादगार रोल निभाने वाले शक्ति ने आजकल फिल्में करने की रफ्तार कम कर दी है जिसकी वजह जाहिर सी बात उम्र ही है लेकिन इस बात में कोई शक नहीं कि अपने रोल्स की वेरायटी की वजह से शक्ति ने अपनी छाप बॉलीवुड पर तो छोड़ ही दी है.