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जन्मदिन विशेष : अब मुन्नाभाई बनकर दिलों पर राज करना चाहते हैं संजय दत्त

संजय दत्त अपने इस जन्मदिन पर हर कड़वी याद को भुला देना चाहते हैं

Abhishek Srivastava

संजय दत्त को डेडली दत्त यूं ही नहीं बोलते. 1981 में फिल्म रॉकी के साथ अपनी फिल्मी पारी की शुरुआत करने वाले संजय दत्त की खुद की निजी जिंदगी किसी मसालेदार हिंदी फिल्म से कम नहीं है और अगर राजकुमार हीरानी जैसा निर्देशक उनके जीवन पर फिल्म बनाने का निर्णय लेता है तो इस कथन पर मुहर तो लग ही जाती है.

जिन उतार चढ़ाव का सामना संजय दत्त ने अपनी जिंदगी किया है उसके देखकर यही कहने का मन करता है कि ऊपरवाला किसी और की जिंदगी में इस तरह का उतार चढ़ाव कभी ना दे. ड्रग्स, 93 के मुबंई धमाके, टाडा, मुन्नाभाई, सुनील दत्त, प्यार, इश्क ये सभी कुछ ऐसे शब्द और नाम है जो संजय दत्त की जिंदगी का सार है.


लोग ‘बाबा’ प्यार से संजय दत्त को बुलाते हैं और इसके पीछे की कहानी ये है कि जब भी संजू, सीनियर दत्त के साथ उनकी फिल्मों के सेट पर जाते थे तो सेट पर लोग उनको बाबा बाबा कह कर ही बुलाते थे और फिर से नाम चल कर आगे उनके साथ चिपक गया.

माता-पिता के लिये उनका इतना स्नेह कि संजू के छाती पर उनके नाम के टैटू आज तक गुदे हुये हैं. लेकिन आजकल जो नेपोटिज्म की बातें चल रही हैं शायद 80 के दशक में नहीं रहा होगा क्योंकि फिल्म देने के पहले पापा दत्त ने उनको रोशन तनेजा के एक्टिंग क्लास में एनरोल होने की हिदायत दी थी जहां जाकर उन्होने अभिनय की बारिकियां सीखीं.

डेढ दो साल की ट्रेनिंग के बाद ही उनको पिता ने लॉन्च किया. मशहूर विलेन गुलशन ग्रोवर उन दिनों उनके एक्टिंग टीचर हुआ करते थे और एक चैनल को दिये गये इंटरव्यू की बात मानें तो उनके उपर दबाव था परफार्म करने का.

1981 में फिल्म रॉकी से पापा सुनील दत्त ने संजय का तारुफ फिल्म जगत से तो करा दिया लेकिन बाद में ये संजय दत्त का टैलेंट था जिसकी वजह से उनको अगली फिल्म सुभाष घई की विधाता मिली.

विधाता फिल्म कुछ इस तरह की फिल्म थी जिसमें शायद कोई भी नया कलाकार काम करने से कतराता और वजह इसकी सिर्फ एक ही थी की उस फिल्म में फिल्म जगत को अभिनय का पाठ पढ़ाने वाले कलाकार थे - दिलीप कुमार, संजीव कुमार और शम्मी कपूर जैसे दिग्गज कलाकार उस फिल्म में काम करे थे.

लेकिन संजय दत्त के लिये इससे बेहतर मौका नहीं मिल सकता था अपने हुनर को बाहर लाने के लिये. कहने की जरुरत नहीं की उस फिल्म में संजय दत्त अच्छे नंबरों से पास होकर निकले. इसके बाद का समय संजय का नहीं था. फ्लाप फिल्मों की झड़ी और ड्रग्स की लत से संजय को जूझना पड़ा.

ड्रग्स के चंगुल में वो इस तरह से फंसे की आखिर में मदद की दरकार के लिये उनको अपने पिता सुनील दत्त से गुहार लगानी पड़ी. पिता ने मदद की और एक लंबी जद्दोजहद के बाद ही संजय उससे बाहर निकल पाये. संजय दत्त को अमेरिका के एक रिहैब सेंटर में लगभग दो साल का वक्त गुजारना पड़ा था इसके चंगुल से निकलने के लिये. बहुत कम लोगों को ये बात पता है की किसी जमाने में महेश भट्ट भी शराब के चंगुल में बुरी तरह से फंसे थे और उनकी इस लत से किसी ने छुटकारा दिलाने में मदद की थी तो वो संजू बाबा ही थे.

अमेरिका से वापस आने के बाद महेश भट्ट की फिल्म ‘नाम’ उनके लिये डूबते को तिनके का सहारा बन कर सामने आई. नाम बॉक्स ऑफिस पर इतनी बड़ी हिट हुई जिसकी उम्मीद खुद संजय को भी नहीं थी. कमाल की बात ये थी उस फिल्म को अभिनेता राजेंद्र कुमार ने अपने बेटे कुमार गौरव के करियर को संभालने के लिये बनाया था लेकिन बाज़ी मार ले गये संजय दत्त.

उसके बाद उन्होने अपनी आंखे मूंद कर फिल्में धड़ाधड़ साइन कर ली लेकिन उसका खामियाजा उनको फिर से भुगतना पड़ा. नामोनिशान, मर्दों वाली बात, इलाक़ा, कानून अपना अपना, हम भी इंसान हैं कुछ ऐसी फिल्में थीं जिसने संजय के करियर पर एक बार फिर से प्रश्नचिह्न लगा दिया. लेकिन थानेदार में उनको फिर से बचा लिया.

थानेदार फिल्म से ही उनकी कॉमेडी की धार भी निकल कर बाहर आई. सुभाष घई ने उनको एक बार फिर से याद किया और इस बार फिल्म थी खलनायक लेकिन ये नियति का ही संयोग था की फिल्म रिलीज के कुछ हफ्ते पहले 1993 के मुंबई बम धमाके के सिलसिले में वो टाडा के तहत में बंदी बना लिये गये.

कानून का पहिया लंबे समय तक चला जिससे उनको मुक्ति मिली फरवरी 2016 में. इस बीच संजय दत्त ने लगभग 6 साल टाडा कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले की वजह से जेल में बिताया.

ये संजय का संयोग था की जिस फिल्म ने उनके इमेज को एक नई दिशा दी वो पहले शाहरुख खान को आफर की गई थी लेकिन किंग खान ने कुछ वजहों से फिल्म करने से मना कर दिया था.

ये फिल्म थी निर्देशक राजकुमार हीरानी की मुन्ना भाई एमबीबीएस, जिसने संजय को एक नई पहचान दी. जनता के ज़ेहन में अब तक विलेन बने रहे संजय को मुन्ना भाई के किरदार ने एक ऐसी राहत दी जिसके लिये वो राजकुमार हीरानी का शुक्रिया पूरे जिंदगी तक अदा करेंगे.  उसी फिल्म के सीक्वल लगे रहो मुन्नाभाई ने उनकी इमेज को और ठोस रुप दिया.

अपने चलने बोलने और हॉलीवुड के रगेड स्टाईल की वजह से संजय दत्त ने सिने प्रेमियों के दिलो में खास वजह बनाई. लेकिन ऐसा भी नहीं की संजय अपने भलमनसाहत की आदत से फिल्म जगत में सभी का दिल जीत लिया. निर्देशक संजय गुप्ता के साथ उनकी अटूट दोस्ती की लोग फिल्म जगत में मिसाल देते थे लेकिन एक ऐसा भी वक्त आया जब संजय गुप्ता की कमोवेश हर फिल्म में काम करने वाले संजय दत्त दोस्ती में दरार पड़ने की वजह से दोनो दो किनारों पर चले गये.

सूत्रों की मानें तो सलमान खान के साथ उनकी दोस्ती के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ जब सलमान की पूर्व मैनेजर रेश्मा शेट्टी को लेकर दोनों में मनमुटाव हो गया. इस बार मुद्दा था रेश्मा का संजय के लिये काम ना निकाल पाना.

संजय की निजी जिंदगी भी उथल पुथल से भरी रही है. पहली पत्नी ऋचा शर्मा का साथ रहा 1996 तक जब उनका देहांत ब्रेन ट्यूमर की वजह से हो गया. दूसरी शादी उन्होने की मॉडल रिया पिल्लै से लेकिन वो शाद भी ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाई.

2005 में दोनो के बीच तलाक हो गया. उसके बाद संजय की जिंदगी में आई मान्यता जिनके साथ संजय फिलहाल हंसी खुशी जिंदगी बीता रहे हैं दो जुड़वां बच्चों के साथ. जेल से आने के बाद संजय की पहली फिल्म भूमि जल्द ही रिलीज होने वाली है. भूमि का निर्देशन किया है मेंरी कोम बनाने वाले ओमंग कुमार ने.

ग़ौरतलब है कि तमाम निर्देशकों के आफर के बीच संजू ने ओमंग कुमार की फिल्म की हामी भरी. संजय दत्त की आने वाली फिल्मी पारी काफी हद तक भूमि की बॉक्स ऑफिस परिणाम पर निर्भर करेगा जहां सितारों की किस्मत हर शुक्रवार को बदलती है. लेकिन संजय दत्त जिनको प्यार से लोग संजू बाबा भी बुलाते है के भविष्य को लेकर हम आशावादी ही रहेंगे क्योंकि जिस सितारे ने सन् 1981 से लोगों का मनोरंजन किया है वो कभी रुक नहीं सकता है.

आने वाले समय में उनकी बायोपिक दत्त भी जनता के सामने आयेगी जिससे लोग संजू के अनछुये पहलूओं से करीब से परिचित होंगे. कहने की जरुरत नहीं की आने वाले समय में रुपहले पर्दे पर एक अलग संजू के दर्शन लोगों को होंगे क्योंकि 1993 से चला आ रहा कंधे का बोझ अब हमेशा के लिये जा चुका है.