वी. शांताराम की पारखी नजर का ही कमाल था कि उन्होंने स्टूडियो-दर -स्टूडियो नकली जेवरों की सप्लाई करने वाले रवि कपूर नामक एक लड़के को हिंदी सिनेमा का 'जंपिंग जैक' जितेंद्र बना दिया.
लेकिन नकली जेवर बेचने वाले जितेंद्र को असली अभिनेता बनाने के लिए वी. शांताराम को भी कुछ कम पापड़ नहीं बेलने पड़े.
अपनी पहली फिल्म में एक डायलॉग को सही तरीके से बोलने के लिए जितेंद्र ने इतने रीटेक किए कि शांताराम जैसे शांत स्वभाव वाले निर्देशक भी अपना धीरज खो बैठे.
25 रीटेक के बाद भी जब जितेंद्र सही डायलॉग नहीं बोल पाए तो अंत में हार कर शांताराम ने गलत डायलॉग को ही ओके कर दिया और इस तरह जितेंद्र की भी सिनेमा में एंट्री हो गई.
7 अप्रैल, 1942 को एक जौहरी परिवार में जन्में जितेंद्र का रूझान बचपन से हीं फिल्मों की ओर था और वह अभिनेता बनना चाहते थे. वह अक्सर घर से भागकर फिल्म देखने चले जाते थे.
जितेंद्र ने अपने सिने कैरियर की शुरुआत 1959 में प्रदर्शित फिल्म 'नवरंग' से की, जिसमें उन्हें छोटी सी भूमिका निभाने का अवसर मिला.
यूं मिली पहली फिल्म
जितेंद्र के पिता ज्वेलरी के व्यवसाय के अलावा फिल्मों में प्रयुक्त होनेवाले नकली जेवरों की सप्लाई भी किया करते थे. इसी सिलसिले में जितेंद्र विभिन्न स्टूडियोज के चक्कर लगाया करते थे.
एक दिन वे फिल्मालय पहुंचे, जहां वी. शांताराम की फिल्म ‘नवरंग’ की शूटिंग चल रही थी. शांताराम की नजर जब जितेंद्र पर पड़ी, तो उन्होंने उनकी पढ़ाई के बारे में पूछताछ की. बातचीत के दौरान जितेंद्र ने शांताराम से फिल्मों में काम करने की अपनी इच्छा को जाहिर किया.
शांताराम जितेंद्र के पिता के मित्र थे, इसलिए ना कहकर उन्हें नाराज नहीं करना चाहते थे. उनकी इच्छा को देखते हुए शांताराम ने उन्हें नवरंग में हीरोइन संध्या के साथ एक छोटी सी भूमिका दे दी.
यूं बने जंपिंग जैक
इस तरह भले ही जितेंद्र की शुरुआत हो गई लेकिन सही मायने में उन्हें वी. शांताराम ने फिल्म 'गीत गाया पत्थरों ने' से ब्रेक दिया. इस फिल्म के बाद जितेंद्र अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए.
वर्ष 1967 में जितेंद्र की एक और सुपरहिट फिल्म 'फर्ज' प्रदर्शित हुई. रविकांत नगाइच निर्देशित इस फिल्म में जितेंद्र ने डांसिंग स्टार की भूमिका निभाई. इस फिल्म के बाद जितेंद्र को 'जंपिंग जैक' कहा जाने लगा.
'फर्ज' की सफलता से डांसिंग स्टार के रूप में जितेंद्र की छवि बन गई. इस फिल्म के बाद निर्माता निर्देशकों ने अधिकतर फिल्मों में उनकी डांसिंग छवि को भुनाया.
निर्माताओं ने जितेंद्र को एक ऐसे नायक के रूप में पेश किया जो नृत्य करने में सक्षम है. इन फिल्मों में 'हमजोली' और 'कारंवा' जैसी सुपरहिट फिल्में शामिल हैं.
इस बीच जितेंद्र ने 'जीने की राह', 'दो भाई' और 'धरती कहे पुकार' के जैसी फिल्मों में हल्के-फुल्के रोल कर अपनी बहुआयामी प्रतिभा का परिचय दिया.
250 से अधिक फिल्मों में किया काम
चार दशक के लंबे करियर में जितेंद्र ने 250 से भी अधिक फिल्मों मे अभिनय का जौहर दिखाया.
उनके कैरियर की कुछ उल्लेखनीय फिल्में है मेरे 'हुजूर', 'खिलौना', 'हमजोली', 'कारंवा', 'जैसे को तैसा', 'परिचय', 'खुशबू', 'किनारा', 'नागिन', 'धरमवीर', 'कर्मयोगी', 'जानी दुश्मन', 'द बर्निंग ट्रेन', 'धर्मकांटा', 'जुदाई', 'मांग भरो सजना', 'एक ही भूल', 'सौतन की बेटी', 'मवाली', 'जिस्टस चौधरी', 'हिम्मतवाला', 'तोहफा', 'धर्माधिकार', 'आशा', 'खुदगर्ज', 'आसमान से उंचा', 'मां' जैसी बेहतरीन फिल्मों में काम किया.
बतौर अभिनेता सिनेमा में जितेंद्र का योगदान ये है कि उन्होंने सिनेमा के नायकों को देवदास जैसी छवि से बाहर निकाल कर एक मस्तमौला आकार दिया.
डांसिंग स्टार की उनकी छवि को ही आगे चलकर मिथुन चक्रवर्ती और गोविंदा जैसे नायकों ने अपनी फिल्म में भुनाया और स्टार बन गए.