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बॉलीवुड का हॉरर: सिल्वर स्क्रीन पर बेहतरीन ‘भूतों’ का दोबारा सफर

बॉलीवुड की वो गिनी-चुनी हॉरर फिल्में, जो कई मामलों में बेहतरीन हैं

Abhishek Srivastava

भारतीय सिनेमा ने कुछ साल पहले अपनी 100वीं वर्षगांठ मनाई. पर अजीब बात है कि जब स्तरीय हॉरर फिल्मों की बात होती है तो देश में बनी ऐसी फिल्मों को उंगलियों पर गिना जा सकता है.

इसे वैचारिक दिवालियापन कहिए अथवा इस शैली के प्रति अनादर का भाव या फिर बॉक्सऑफिस पर इस तरह की फिल्मों के औसत कलेक्शन को वजह मानिये, तथ्य यही है कि हमारे देश में ऐसी फिल्मों की संख्या बेहद कम है.


'दोबारा : सी योर इविल' की इस हफ्ते रिलीज हो रही है. इस अवसर पर बॉलीवुड के इतिहास में झांकना और इस दौरान बनी स्तरीय हॉरर फिल्मों को याद करना बुरा विचार नहीं होगा.

'दोबारा: सी योर इविल' फिल्म का पोस्टर.

गहराई (1980, निर्देशक: अरुणा विकास)

गहराई को अरुणा राजे और विकास देसाई की निर्देशक जोड़ी ने एक साधारण से बजट में 1980 में बनाया था. यह सचमुच एक हॉरर फिल्म थी, जो थिएटरों में रिलीज हुई तो तहलका मच गया.

इस फिल्म ने ‘भारतीय रास्ते’ का अनुसरण किया और और 70 के दशक के मशहूर चिपको आंदोलन को बड़ी नफासत से श्रद्धांजलि अर्पित की. काला जादू विषय पर केंद्रित इस फिल्म ने सुनिश्चित किया कि कहानी में रचे गए डरावने दृश्यों पर सभी गौर करें.

इस फिल्म से पद्मिनी कोल्हापुरी ने फिल्मी दुनिया में कदम रखा था. फिल्म में अनंत नाग लीड रोल में थे. फिल्म में घने कोहरे के बीच सफेद साड़ी में लिपटी महिला या मुखौटे से खून टपकते डरावने दृश्य जैसा कुछ भी नहीं था.

फिल्म में अगर कुछ था तो सिर्फ जबदस्त तनाव और कुटिलता से भरी एक कहानी जो फिल्म को आगे बढ़ाती है. इस साल सिनेमा प्रेमियों के सामने कुर्बानी, शान, कर्ज और द बर्निंग ट्रेन जैसी फिल्में परोसी गई थीं. इनके बीच गहराई ताजा हवा के झोंके की तरह थी.

फिर वही रात (1980, निर्देशक: डैनी)

दिलचस्प बात यह है कि इस साल गहराई के अलावा एक और बेहतरीन हॉरर फिल्म फिर वही रात भी बॉक्स ऑफिस पर उतरी. फिल्म ने 2.8 करोड़ रुपए की कमाई की, जो समय के लिहाज से बड़ी रकम थी.

फिल्म में राजेश खन्ना और डैनी के मुख्य किरदार थे. राजेश खन्ना ने एक मनोवैज्ञानिक की भूमिका निभाई थी. फिल्म के क्लाइमेक्स में एक पुरानी हवेली तो थी, लेकिन यह रामसे ब्रदर्स की हॉरर फिल्मों से बहुत अलग थी. यह डैनी के निर्देशन में बनी पहली और आखिरी फिल्म थी.

आरडी बर्मन के संगीत ने फिल्म में रोमांच, रहस्य और डर पैदा करने में काफी मदद की थी, लेकिन यही बात फिल्म के गानों के बारे में नहीं कही जा सकती. हालांकि यह फिल्म आज के हिसाब से पुरानी पड़ चुकी लग सकती है, फिर भी यह एक साहसिक और दिलचस्प कोशिश थी.

रात (1992, निर्देशक: राम गोपाल वर्मा)

रात को राम गोपाल वर्मा ने उस समय निर्देशित किया था जब उनका नाम ताजगी और नए प्रयोगों का पर्याय था और जिनका लोहा माना जाता था. रात के साथ ही आरजीवी की हॉरर शैली की फिल्मों का सफर शुरू हुआ जो आज भी जारी है.

फिल्म में बॉलीवुड के नामी-गिरामी चेहरे नहीं थे, लेकिन इसमें जोरदार अभिनेता थे. फिल्म में रेवती के परिवार के एक अर्ध-शहरी क्षेत्र में जाकर बसते ही अजीब-अजीब बातें होने लगती हैं.

फिल्म टॉप गियर में तब पहुंची है जब रेवती अपने माता-पिता के नए घर जाने के लिए बस स्टैंड से पैदल चलती है. कैमरा उसे दूसरे व्यक्ति की तरह फॉलो करता है और कुछ ही देर बाद बिल्ली के एक मृत बच्चे का सीक्वेंस आता है.

इसके बाद रेवती के सबसे अच्छे दोस्त की हत्या और रेवती के ब्वॉयफ्रेंड के खून की कोशिश होती है. ये सभी घटनाक्रम कहानी में तनाव और डर पैदा करते हैं. उस दृश्य पर गौर करिए जब रेवती लोगों के साथ फिल्म देख रही है और कैमरा धीरे-धीरे उसके चेहरे से जूम आउट होता है. ऐसा लगता है कि यह आरजीवी हमेशा के लिए खो गया.

भूत (2003, निर्देशक: राम गोपाल वर्मा)

एक बार फिर राम गोपाल वर्मा और इस बार अभिनेताओं के चेहरे के भावों ने कमाल किया.

भूत देश की ऐसी पहली स्तरीय हॉरर फिल्म थी जिसमें शहर के हलचल के बीच बहुमंजिला इमारत में 'भूत' की लोकेशन दिखाई गयी थी. फिल्म का प्रभाव इतना जबरदस्त था कि लोगों ने थोड़ी देर के लिए विश्वास कर लिया कि मकड़ी के जालों से अटी पड़ी पुरानी हवेलियों के अलावा शहरी जंगलों में भी 'भूत' रह सकते हैं.

प्रेतात्मा ने उर्मिला को वश में कर लिया. उसके लाचार पति की भूमिका में अजय देवगन ने खौफ के मंजर को बखूबी उतारा. लेकिन कई सितारों वाली इस फिल्म में डर का माहौल बनाने में सबसे अच्छा काम कैमरा डिपार्टमेंट ने किया.

आरजीवी ने ऐसे एंगल्स का इस्तेमाल किया जो कोई और कल्पना भी नहीं कर सकता था. मुझे फेमस स्टूडियोज में फिल्म का प्रेस शो याद है जब मेरा एक सहयोगी डर और तनाव के कारण कुर्सी से गिर गया था.

कोहरा (1964, निर्देशक: बिरेन नाग)

वहीदा रहमान और बिश्वजीत अभिनीत कोहरा ने डाफ्ने डु मौरिअर के उपन्यास रेबेका से प्रेरणा ली थी. साफगोई से कहें तो यह अल्फ्रेड हिचकॉक की रेबेका की बेशर्म नकल थी.

वहीदा रहमान और बिश्वजीत की शादी के बाद फिल्म एक पुरानी हवेली में पहुंचती है. हवेली में वहीदा रहमान को बिश्वजीत की पहली पत्नी की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत की जानकारी मिलती है. इसके बाद वहीदा रहमान को एक परालौकिक अनुभव होता है और वे बिश्वजीत की पहली पत्नी की खोज करती हैं. ब्लैक एंड व्हाइट कोहरा यह सुनिश्चित करता है कि यह फिल्म रात में अकेले न देखी जाए.