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FILM REVIEW : कालाकांडी एक प्रयोगशाला है जहां सैफ अली खान खान तेजाब की शीशी हैं

ये फिल्म उन लोगों को ज्यादा पसंद आएगी जिन्हें बॉलीवुड में एक्सपेरिमेंट्स पसंद हैंं

Abhishek Srivastava

कालाकांडी का दर्शक वर्ग दो गुटों में बंटा हुआ होगा यह कहने की जरुरत नहीं है. कुछ ऐसे भी होंगे जो इस फिल्म को सिरे से खारिज कर देंगे और कुछ वैसे भी होंगे जिनका यही कहना होगा की ऐसी फिल्में और भी बननी चाहिए क्योंकि यह फिल्म जगत के लिए कुछ नया है.

मैं भी इस फिल्म को एक मौका दूंगा और यही कहूंगा कि ऐसी फिल्मों को प्रोत्साहन की बेहद आवश्यकता होती है और और सिनेमाघरों में दर्शक दीर्घा खाली रहीं है तो मुमकिन है कि भविष्य में इस तरह की फिल्मों को बनाने की जहमत कोई नहीं करेगा. कालाकांडी एक ऐसी फिल्म है जो फिल्म जगत के निश्चित नियमों को हर बार तोड़ती है. इस फिल्म में कोई हीरो हीरोइन नहीं है, कुछ है तो वो है घटनाएं और उससे जुड़े किरदार. अगर आप फिल्मों में प्रयोग देखना पसंद करते हैं और लीक से अलग फिल्मों की चाहत रखते हैं तो आप कालाकांडी देख सकते हैं अन्यथा आपके पैसे ही बर्बाद होंगे.


कहानी

फिल्म में तीन अलग-अलग कहानियां अलग-अलग ट्रैक पर चलती हैं. पहली कहानी में सैफ अली खान हैं जो एक बैंक में ऊंचे ओहदे पर काम करते हैं लेकिन जब डॉक्टर उनको बताता है कि उनके पेट में कैंसर है तब उनको यही लगता है कि ज़मीन उनके पैरों के नीचे से किसी ने खींच ली है. अपने भाई की शादी की पार्टी में जब उनका दोस्त एक शक्तिशाली ड्रग देता है तब उनकी दुनिया बदल जाती है.

सैफ को यही लगता है कि इतने साल उन्होंने जिंदगी के गंवा दिए हैं लिहाजा वो अब हर काम करने की कोशिश करते हैं जिसे उन्होंने पहले नहीं किया. और इसी कोशिश में वो पहुंच जाते हैं एक ट्रांसजेंडर के पास. दूसरी कहानी कुणाल रॉय कपूर और शोभिता धूलिपाला की है. शोभिता को अगले दिन पढ़ाई के सिलसिले में अमेरिका जाना है लेकिन उसी रात उसे अपने दोस्त को जन्मदिन की बधाई देने के लिए उसकी पार्टी में भी जाना है. उसी पार्टी में जब पुलिस की रेड पड़ती है तब वहां भी मामला कुछ अलग हो जाता है.

वहां से निकलने की कोशिश में वो कामयाब तो हो जाती हैं लेकिन दो शूटर उसकी गाड़ी से टकरा जाते हैं. तीसरी और आखिरी कहानी में विजय राज और दीपक डोबरियाल शामिल हैं जो एक गैंगस्टर के लिए काम करते हैं. अमीर बनना उनका सपना है और इसके लिए वो एक साजिश भी बुनते हैं. आखिर में तीनों कहानियां बड़े ही विचित्र अंदाज़ में एक दूसरे से टकराती हैं.

अलग चश्मे से देखनी होगी कालाकांडी

इस फिल्म की कहानी जो मैंने ऊपर बयां की है उसको पढ़ने के बाद यही लगेगा कि फिल्म की कहानी एक कमर्शियल कहानी की ही तर्ज पर है लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं है. यह पूरी फिल्म क्वर्कि एलिमेंटस से भरी पड़ी है. जाहिर सी बात है कि निर्देशक के पास इसकी वजह है क्योंकि सैफ अली खान की किरदार ने ड्रग्स लिया है लिहाजा आपको फिल्म भी उसी चश्मे से दिखने पड़ेगी. और उसके बाद आपको मज़ा आएगा. लेकिन फिल्म देखते वक्त अगर यह विचार आपके दिमाग से निकल गया तो बेहतर यही होगा की आप फिल्म से अपनी कन्नी बीच में ही काट लें. फिल्म में ऐसे भी मौके हैं जब आप दिल खोल कर हसेंगे और ये कुछ वैसा ही है जैसे ट्रैजेडी में कॉमेडी होती है. मैं इस बात को दोबारा कहूंगा कि इस फिल्म को एक अलग चश्मे से देखना बेहद ही जरुरी है.

सैफ, विजय और दीपक का सधा हुआ अभिनय

अगर अभिनय की बात करें तो सभी ने इस फिल्म में अपनी भूमिकाओं में जान डाली है लेकिन खास नाम लेना पड़ेगा सैफ अली खान, विजय राज और दीपक डोबरियाल का. सबसे पहले बात सैफ की ही करेंगे. यह अफसोस की बात है कालाकांडी से उनके खाते में एक हिट की बजाय एक फ्लॉप ही दर्ज होगी क्योंकि यह फिल्म एक ख़ास तबके के लिए ही है. लेकिन सैफ ने बता दिया है कि उनकी अभिनय क्षमता अब एक अलग स्तर पर पहुंच चुकी है.

रिलीन का किरदार फिल्म में एक ऐसा किरदार है जिसको अपने अंदर के कई परतों को खोलना बेहद ही जरुरी है और यहां पर कहना पड़ेगा कि इस रोल को यादगार बनाने के लिए सैफ अली ने हर कोशिश की है. उनकी यह कोशिश काबिले तारीफ है. सैफ ने वो हर काम किया है जो शायद एक बड़ा सितारा अपनी फिल्म में वो काम करने के पहले दो बार सोचेगा. विजय राज़ और दीपक डोबरियाल छुटभैये माफिया के रोल में इस फिल्म में हैं और जब भी वो दिखाई देते हैं हर फ्रेम में साथ ही नजर आते हैं और उनकी जुगलबंदी जबरदस्त है. इतने सहज ढंग से एक कठिन रोल को अंजाम देना कोई आसान काम नहीं है लेकिन दीपक और विजय ने शानदार तरीके से इसको अंजाम दिया है.

वरडिक्ट

इस फिल्म के निर्देशक अक्षत वर्मा हैं जो इसके पहले आमिर खान प्रोडक्शन की फिल्म डेली बेली लिख चुके हैं. काफी कुछ अंदाजा था कि ये फिल्म भी डेली बेली की तरह अतरंगी होगी. निर्देशन की कमान उनके हाथों में होने की वजह से उन्होंने कोई भी काम बेमन से नहीं किया है. अलबत्ता फिल्म के दूसरे हाफ में उतनी मस्ती नहीं है जितना पहले हाफ में है. दूसरे हाफ में यही लगता है की अक्षत को कुछ जल्दी है. कालाकांडी पूरी तरह से एक प्रयोग है जिसमें आपको अभिनय के सभी रस चाहे वो कॉमेडी हों या ट्रैजेडी सभी कुछ देखने को मिलेगा. फिल्म के अधिकतर डायलॉग अंग्रेजी में होने की वजह से भी इसका दायरा थोड़ा सीमित हो जाता है. लेकिन अगर आप फिल्मों में प्रयोग के पक्ष में हैं तो आप कालाकांडी आजमा सकते हैं.