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रिव्यू अक्सर 2 – ऐसी फिल्में बनाने वाले 'अक्सर' फेल हो जाते हैं

अक्सर 2 में हर किस्म का मसाला होने के बाद भी ये फिल्म दर्शकों को बांधे रखने में नाकाम साबित होती है

Abhishek Srivastava

अक्सर 2 साल 2006 में आई फिल्म अक्सर की सीक्वल है जिसमे इमरान हाश्मी और डिनो मोरिया मुख्य भूमिका में थे. अगर उस फिल्म के बॉक्स ऑफ़िस परफॉरमेंस को याद करें तो वो फिल्म किसी भी एंगल से कोई कमाल की फिल्म नहीं थी. इसलिए इस बात को देखकर बेहद ताज़्ज़ुब होता है की उसी फिल्म के निर्देशक अनंत महादेवन ने उसकी सीक्वल बनाने की सोची.

पहली अक्सर में उसके बेहतरीन गानों की सिवा शायद आज की तारीख में किसी को और कुछ याद नहीं होगा. फिल्म की शुरुआत तो अनंत ने अच्छे ढंग से की है लेकिन जब कहानी को दूसरे लेवल पर ले जाने की बात आती है तब फिल्म की कहानी अपने पटरी से उतर जाती है. एक ऐसी फिल्म जिसमे लगभग हर दस मिनट के बाद कोई किसिंग सीन या सेक्स का तड़का दिया गया हो उस फिल्म के इरादों के बारे में आप आसानी से अंदाज़ा लगा सकते हैं.


स्टोरी

अक्सर 2 की कहानी मैडम खम्बाटा (लिलेट दुबे) के बारे में है जिनके पास अपार सम्पति है. वृद्ध होने की वजह से वो अपने मैनेजर पैट्रिक शर्मा (गौतम रोड़े) को खुद के लिए एक केयर टेकर ढूंढने का काम सौंपती है. शीना रॉय (ज़रीन खान) इस नौकरी के लिए अपना आवेदन देती है लेकिन मिसेस खम्बाटा उसके आवेदन को अस्वीकार कर देती है. इस बीच गौतम को इस बात का इल्म नहीं होता है की इस नौकरी के लिए कोई इतनी खूबसूरत लड़की अपना आवेदन देगी लिहाजा पैट्रिक अपनी मालकिन को उसको एक मौका देने के लिए मना लेता है.

पैट्रिक, शीना के असहाय हालत की वजह से उसका फायदा उठाना शुरू कर देता है. हालात इस क़दर तक पहुंच जाते है कि पैट्रिक शीना को शारीरिक सम्बन्ध बनाने के लिये उस पर दबाव डालना शुरू कर देता है. शीना अपने बॉयफ़्रेंड रिक्की के लिए सब कुछ करने को तैयार हो जाती है क्योंकि रिक्की हालात का मारा हुआ है और उसके दिन अच्छे नहीं चल रहे हैं. बाद में पैट्रिक जब एक विवाद में फंस जाता है तब चीज़ें बदलनी शुरू हो जाती हैं और कहानी की परतें खुलनी शुरू हो जाती हैं.

इस फिल्म की सबसे कमाल की बात यही है कि मध्यांतर के पहले फिल्म की कहानी बड़ी ही तेज़ रफ़्तार से भागती है जिसको देखकर काफी मज़ा आता है लेकिन इस मिस्ट्री थ्रिलर की कुछ परतें खुल जाती है और उसकी बाद जब घटनाएं फिल्म में होती है तब वो इंटरेस्ट लेवल पहले के बराबर नहीं रख पाती है.

एक्टिंग

इसी फिल्म से क्रिकेटर श्रीसांत ने अपनी फिल्म करियर की शुरुआत की है एक वकील के रोल में. टीवी की दुनिया में धूम मचने के बाद अपनी पहली फिल्म में गौतम रोड़े अपनी भूमिका में जंचे हैं. एक शातिर इन्वेस्टमेंट बैंकर जो औरतों का शौक रखता है की भूमिका में उन्होंने जान डाली है. लेकिन वही ज़रीन खान को देख कर लगता है कि ये मोहतरमा आखिर अभिनय करना कब सीखेंगी. ज़ाहिर सी बात है जिस रोल में थोड़ा बहुत सेक्स का तड़का लगा हो तो उसको निभाने में अभिनय कला की उतनी जरुरत नहीं रहती है. कहने की जरुरत नहीं है की फिल्म की कमजोर कड़ी में वो भी शामिल है. श्रीसांत को अभी और भी पहाड़ चढ़ने हैं अपने अभिनय में धार लाने के लिए और उनका अभिनय बेहद ही साधारण है.

ट्विस्ट्स भी नहीं बचा सके फिल्म

यह फिल्म एक मिस्ट्री थ्रिलर बनने की कोशिश जी जान से करती है यह इस बात से जाहिर होता है की फिल्म में ढेर सारे ट्विस्ट्स का समागम है. ऐसा लगता है की कहानी में ट्विस्ट्स का सिलसिला कब खत्म होगा. हर चीज़ की भी एक हद होती है और फिल्म के दूसरे हाफ में ऐसा लगने लगता है कि आप इनसे बोर हो चुके हैं. अनंत महादेवन जब फिल्म के पहले हाफ में किरदारों के एक दूसरे के साथ जब साज़िश रचते हुए दिखते हैं तो उसे देखने में मज़ा आता है लेकिन दूसरे हाफ में जब इसकी दौड़ क्लाइमेक्स की ओर शुरू हो जाती है तब लगता है की आखिर फिल्म में हो क्या रहा है. फिल्म के सिनेमोटॉग्रफर है मनीष चंद्र भट्ट और उनका काम बेहद शानदार है. बल्कि उनके काम के बारे में ये कह सकते हैं कि इस बेहद ही साधारण फिल्म में वो आशा की किरण बन कर नज़र आते हैं.

वरडिक्ट

कहने की जरुरत नहीं कि यह फिल्म बेहद ही साधारण है और अगर आप इसे ना देखें तो भी आपकी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ेगा. इस इरोटिक थ्रिलर में आपको थ्रिल होने के मौके कम ही मिलेंगे. अच्छा मौका है पहली अक्सर देखने का अगर आपने उससे ना देखी हो तो. कुछ नहीं तो उस फिल्म के गाने आपका दिल बहला कर रखेंगे.