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बाहुबली 2 मूवी रिव्यू: भावनाओं में बहे बिना देखिए तो फिल्म... नहीं तो देह की नुमाइश!

फिल्म बाहुबली-2 में अधिकतर कलाकारों की बेहद खराब एक्टिंग है. साथ ही रूढ़िवादिता से भरी-पूरी कहानी है

Anna MM Vetticad

बाहुबली के मुरीद काफी दिनों से #WKKB हैशटैग के जरिए बाहुबली-2 को लेकर जोर-शोर से चर्चा कर रहे थे.

WKKB का अंग्रेजी में विस्तार है Why Katappa Killed Baahubali? हिंदी में ये बेहद लोकप्रिय सवाल है कि कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा? ये सवाल बाहुबली सीरीज की पहली फिल्म के आखिरी सीन से उठा था.


बात दो साल पुरानी हो गई, मगर सवाल का जवाब नहीं मिला. अब चाहने वालों को उम्मीद थी कि बाहुबली-2 में इस सवाल का जवाब तो जरूर मिलेगा.

लेकिन दर्शकों के सामने इस सवाल के साथ एक और सवाल खड़ा हो गया. #DRTOHS.

पहली फिल्म में आदिवासी युवक शिवुदू को पता चलता है कि वो तो महान अमरेंद्र बाहुबली का बेटा महेंद्र बाहुबली है. उसका महिषमति साम्राज्य का सिंहासन उसके निर्दयी चचेरे भाई बल्लभदेव और चाचा बिज्जलदेव ने छीन लिया था.

बाहुबली-2 में महेंद्र को अपना सिंहासन छीने जाने की कहानी पता चलती है. जिसके बाद वो अपने पिता और मुंहबोली दादी शिवागामी की मौत का बदला लेता है. साथ ही वो अपनी मां देवसेना को कैद से छुटकारा दिलाता है.

पहली फिल्म की तरह ही बाहुबली-2 में काल्पनिक कहानी है. पौराणिक किरदार हैं और राजमहल की साजिशें हैं. इन्हें शानदार तस्वीरों की मदद से बड़े पर्दे पर और भी खूबसूरती से उतारा गया है.

बाहुबली-2 में...बाहुबली-1 के मुकाबले किस्सा-कहानी और पुराने पड़ चुके रीति-रिवाज की हिस्सेदारी कम हुई है. इसमें पारिवारिक साजिशों का हिस्सा बढ़ा है. स्पेशल इफेक्ट भी खूब डाले गए हैं.

प्लास्टिक का महिषमति

किसी भारतीय फिल्म में स्पेशल इफेक्ट के जरिए इतना विशाल मंजर पेश करने का ख्याल भी दिलचस्प है और इसे देखने का तजुर्बा भी शानदार है. दो साल पहले जब बाहुबली-1 रिलीज हुई थी तो उसमें प्लास्टिक के बने महिषमति के महल के गेट जैसी कमियां साफ झलकी थीं.

इस बार वो कमी तो दूर कर ली गई मगर पिछली फिल्म में झरने का जो सीन था उस जैसा शानदार सीन इस फिल्म में नहीं है. इसके बावजूद बाहुबली-2 में निर्देशक एस. एस. राजमौली ने पूरी कहानी को बेहद शानदार तरीके से बड़े पर्दे पर पेश किया था.

इसके किरदार, किरदारों के लिबास, महल के नजारे और एकदम नए दिखने वाले स्टंट सब मिलाकर इस फिल्म के देखे जाने को बेहद शानदार तजुर्बा बना देते हैं.

ऐसी फिल्म को शानदार बनाने में सबसे बड़ी जरूरत होती है कि इसकी कहानी, इसके किरदार और इसके सीन मिलकर ऐसा मंजर पेश करें जो काबिले यकीन न हो.

जैसे, हम टॉम क्रूज, ब्रूस विलिस और जेम्स बॉन्ड के किरदारों को अजेय मानते हैं. उसी तरह हम यह भी यकीन करना सीखें कि ऐसा वाकई होता है कि जब अमरेंद्र एक हाथी पर उसके सूंड़ के जरिए सवार होता है. फिर जंग के सीन तो बेहद शानदार हैं.

युद्ध की जो तस्वीरें इस फिल्म में पेश की गई हैं वो दिल में बेयकीनी पैदा करती हैं. मगर फिल्म देखने के तजुर्बे को शानदार बनाती हैं. फिल्म के स्टंट, एम.एम. कीरावनी का बैकग्राउंड संगीत और गानों की मदद से कहानी को आगे बढ़ाने का नुस्खा, बाहुबली-2 को ऐसा बनाता है जिसे देखना आपके लिए मजबूरी बन जाए.

कलाकारों की ओवरएक्टिंग

फिल्म के कई सीन में आपको लगेगा कि कलाकारों ने ओवरएक्टिंग की है. राणा डग्गुबाती और शेट्टी तो अपने किरदारों के हिसाब से ही ढले हैं. जबकि निर्देशक राजमौली की कोशिश हर बात को हर सीन को बढ़ा-चढ़ाकर ही पेश करने की थी.

प्रभास का किरदार ऐसा है जो आपको उससे मोहब्बत करने को मजबूर करेगा. खास तौर से वह सीन जिसमें देवसेना भगवान कृष्ण के बारे में एक गीत गाती है.

फिल्म के बाकी के किरदार तो हंसी में ही उड़ा देने लायक हैं.

ऐसा लगता है कि इन सबके बीच सबसे खराब एक्टिंग का अवार्ड पाने का कोई मुकाबला चल रहा है. नासिर अपने अभिनय से सोहराब मोदी को पीछे छोड़ने की कोशिश करते दिख रहे हैं.

हर सीन में जो एक्स्ट्रा कलाकार हैं, फिर चाहे वो सैनिक हों, दरबारी हों या प्रजा सबके सब मजाकिया लगते हैं. देवसेना के प्रेमी के रूप में सुब्बा राजू का किरदार तो इतना खराब है कि उसे समाज के लिए खतरा घोषित कर दिया जाना चाहिए.

वैसे खराब एक्टिंग की महारानी का अवार्ड तो कृष्णा को जाना चाहिए जिसकी आंखें पूरी फिल्म में जाने क्या तलाशती नजर आती हैं. कुल मिलाकर ये कहें कि बाहुबली-1 बरसों से चली आ रही सड़ी-गली कहानियों और परंपराओं को शानदार सीन के साथ पेश करने की कोशिश थी.

जिसमें विकलांगता को शैतानी से जोड़ दिया गया. जिस तरह से शिवुदू और तमन्ना भाटिया के किरदार अवंतिका के बीच के रिश्ते को पेश किया गया था उससे शिवगामी की ताकत भी कमजोर दिखाई दी थी.

पिछली फिल्म के मुकाबले बाहुबली-2 एक कदम आगे है. देवसेना का किरदार बेहद मजबूत दिखाया गया है. वह इस बार शिवुदू या अमरेंद्र की सहयोगी भर नहीं. वह उसकी लड़ाई में साझीदार है.

लेकिन इस फिल्म में अवंतिका के किरदार को एकदम किनारे लगा दिया गया. पहली फिल्म में उसका रोल बेहद शानदार था. उसके मिशन को बाद में शिवुदू ने अपना मिशन बनाया था. जब अवंतिका को शिवुदू से प्यार होने के बाद अपने स्त्रीत्व का एहसास हुआ.

लेकिन बाहुबली-2 में अवंतिका के रोल को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह फिल्म उसके बगैर भी बनाई जा सकती थी. ऐसे में क्रेडिट रोल में तमन्ना भाटिया का नाम चौथे नंबर पर देना भी समझ में नहीं आया. क्योंकि तमन्ना का रोल महज तो वैसा नहीं है.

शायद उन्हें स्टार होने की वजह से चौथे नंबर पर जगह दी गई. बाहुबली-2 को देखने पर निर्देशक राजमौली को लेकर कुछ सवाल उठते हैं. पहला तो उनकी यह सोच कि राज करने का काम सिर्फ क्षत्रिय का है?

सड़ी-गली सोच

हमारे समाज में बरसों से चली आ रही इस सोच को उन्होंने फिल्म में भी पेश कर दिया. यानी अच्छा रोल हो या खराब, क्षत्रिय के बगैर समाज की कल्पना नहीं की जा सकती. फिर शिवागामी और देवसेना के किरदारों को दुर्गा जैसे अवतार में पेश किया गया है. साथ ही महेंद्र और अमरेंद्र के रोल को बाहुबली बनाकर पेश करना भी इस दुनिया से परे की बात है.

बाहुबली-2 फिल्म में शानदार नजारे हैं, हिला देने वाले स्टंट हैं, बेहद खराब एक्टिंग है और रूढ़ियों से भरी-पूरी कहानी है. हां, हिंदी फिल्म की डबिंग बेहद शानदार है. इसके लिए मनोज मुंतशिर को सलाम. मनोज ने ही इस फिल्म के हिंदी के डायलॉग और गीत लिखे हैं.

फिल्म को देखने का हर शख्स का अपना अलग तजुर्बा है और उसकी अपनी अलग राय है. पर मेरी बात करें तो सवाल यह नहीं कि कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा? बल्कि सवाल यह है कि क्या राणा डग्गुबाती ने फिल्म में अपनी कमीज उतारी? (#DRTOHS-does Rana take of his shirt).

तो इस सवाल का जवाब है, हां, प्रभात ने भी ऐसा किया. दोनों ही कलाकारों ने अपने कपड़े फाड़कर अपने शरीर की नुमाइश की है. इन दिनों हर दूसरी भारतीय फिल्म में हीरो के बदन दिखाने का यही फॉर्मूला तो आजमाया जा रहा है. फिर बाहुबली में ऐसा क्यों नहीं होता?

कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा? इस सवाल का जवाब इतना चौंकाने वाला नहीं था फिर भी फिल्म पैसा वसूल है.