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व्यंग्य: नया वित्त वर्ष मूर्ख दिवस से ही क्यों शुरु होता है?

कुल मिलाकर मूर्ख दिवस मूर्ख बनने और बनाने के बीच मूर्खता को साधने का दिन है

Piyush Pandey

वाह ! फिर एक अप्रैल आ गया. मूर्खता को जश्न की तरह मनाने का पर्व.

लेकिन-क्या आपने कभी सोचा है कि मूर्ख दिवस से ही नए वित्त वर्ष का आरंभ


क्यों होता है? चूंकि आप लोग यह नहीं सोच पाए, इसलिए इतना विशिष्ट चिंतन

का जिम्मा मेरी खोपड़ी पर आ गया. तो लघु निबंध के रुप में प्रस्तुत

निम्नलिखित पंक्तियां इसी मूर्खता, सॉरी चिंतन का परिणाम हैं.

मूर्ख दिवस यानी मूर्खों का दिन. मूर्खता शाश्वत होती है. आप कितने भी

व्रत रख लीजिए, जप कर लीजिए, कोर्स कर लीजिए, कुंजी पढ़ लीजिए लेकिन

मूर्खता नहीं पा सकते. यह टेलेंट ईश्वर प्रदत्त है. स्वाध्याय से तो नहीं, हां स्वकर्मों से इसमें चमक जरुर पैदा कर सकते हैं.

मूर्ख सदैव सुखी होते हैं

जो अक्लमंद मूर्खता के भीतर छिपे आनंद के अद्भुत राज को जान लेते है, वे

अपनी सारी अक्लमंदी को ताक पर रखकर सिर्फ मूर्ख बने रहना चाहते हैं. एक

लिहाज से यह ढोंग है. ओढ़ी हुई मूर्खता के अपने खतरे हैं. लेकिन, मूर्खता के लाभ अनंत हैं और जो इस बात को समझ गया, समझिए तर गया. येड़ा बनकर पेड़ा खाना मुहावरा मूर्खता के साथ अक्लमंदों के प्रयोग के बाद ही जन्मा.

मूर्खों के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि उनसे किसी को कोई उम्मीद

नहीं होती. जिस व्यक्ति से कोई उम्मीद ना करे तो वो व्यक्ति संसार का

सबसे सुखी व्यक्ति होगा ही.

मूर्ख सदैव सुखी होते हैं. वे किसी लाफ्टर क्लब में नहीं जाते. वे किसी शांति शिविर में नहीं जाते. वे मूर्खता के आसरे सुख को भोगते हैं. सुख के इस अद्भुत सूत्र का उत्सव है मूर्ख दिवस. लेकिन, इसी दिन वित्त वर्ष की शुरुआत क्यों.

नया वित्त वर्ष यानी अगले वर्ष का संपूर्ण आर्थिक लेखा-जोखा. सरकार का भी

आम आदमी का भी. मजेदार बात है कि सरकार आम आदमी को मूर्ख मानती है और आम आदमी सरकार को मूर्खों का गुट. दोनों अपनी अपनी जगह न केवल ठीक हैं बल्कि मूर्खता के प्रतिमान बनाए रखने में अपने अपने तरीके से योगदान देते हैं.

लेकिन, विराट प्रश्न यह है कि मूर्ख दिवस के दिन ही वित्त वर्ष की शुरुआत

के क्या ‘मूर्खिक कारक’ हैं.

मूर्ख दिवस मूर्खताओं के लिए आरक्षित है. इस कदर की समाचार पत्र,

टेलीविजन चैनल भी इस दिवस को धूमधाम से मनाते हैं. कोरी गप्प

छापकर-दिखाकर. अप्रैल फूल बनाया जाता है.

कुल मिलाकर इस दिन यह साबित किया जाता है कि हम सब मूर्ख हैं. वित्त वर्ष के पहले ही दिन इस बात का अहसास हो जाने के बाद आम आदमी और आम आदमी की सरकार दोनों को मूर्खता से परहेज नहीं रहता.

आम आदमी खुद से ही सवाल करता है मैं कितना बड़ा मूर्ख हूं

आम आदमी खुद को मूर्ख मानते हुए खुद से ही सवाल करता रहता है कि हाय मैं कितना बड़ा मूर्ख हूं जो फलां शेयर में निवेश कर डाला. हाय मैं कितना बड़ा मूर्ख हूं जो शर्मा जी के चक्कर में अपने बच्चों को महंगे स्कूल में भेज दिया.

हाय, मैं भी कितना बड़ा मूर्ख हूं कि शादी से पहले गर्लफ्रेंड को महंगे गिफ्ट देता रहा. हाय मैं कितना मूर्ख हूं कि 8 नवंबर को शाम 8 बजे जिसने नोटबंदी की खबर दी, मैंने उसे ही मूर्ख माना.

सैकड़ों मूर्खताएं और सैकड़ों वाक्य. उधर, सरकार चलाने वाले कहते हैं,

हाय-ये कैसे मूर्खों का देश है, जिन्हें हर गड़बड़ में सरकार दोषी दिखाई देती है. हाय ये कैसे मूर्खों का देश में कन्याकुमारी में गाड़ी का एक्सीडेंट हो जाए तो भी प्रधानमंत्री दोषी और ट्रंप अगर सीरिया को धमकी दे तो मुसलमानों का भारत में क्या होगा-इसका जवाब भी प्रधानमंत्री दें.

वित्त मंत्री सोचते हैं कि हाय कैसे मूर्ख मंत्रियों से पाला पड़ा है,जो सिर्फ मांगते रहते हैं लेकिन उन्हें समझ नहीं आता कि आमदनी चवन्नी और खर्चा रुपैया कैसे हो सकता है. सवा अरब के देश में टैक्स देने वाले सवा तीन करोड़ लोग नहीं हैं, लेकिन मांगने वाले सब हैं. हद है !

मूर्खता का नए सिरे से लुत्फ लीजिए

कुल मिलाकर मूर्ख दिवस मूर्ख बनने और बनाने के बीच मूर्खता को साधने का

दिन है ताकि अगला साल भांति भांति की मूर्खताएं करने के बाद हम सभी उसका ठीकरा किसी वित्तीय कारण पर फोड़ सकें.

संक्षिप्त चिंतन यही है. वैसे मूर्ख अगर प्रतिबद्ध हो, तो एक दिन क्या, पूरा साल उसका, पूरा साल क्या, पूरे पांच साल उसके. फिर पांच साल बाद तो गली गली में लोग मूर्ख बनते हैं, और बनाने वाले टोपी पहनकर आते ही हैं.

हद तो यह कि मूर्ख बनाने के लिए बाकायदा एक पुस्तिका छाप दी जाती है. कहने वाले उसे घोषणापत्र कहते हैं, लेकिन समझदार जानते हैं कि ऐसे घोषणापत्रों में जिन घोषणाओँ का जिक्र होता है, उन पर कोई अक्लमंद यकीन नहीं कर सकता. यानी जो लोग यकीन करते हैं वो मूर्ख हैं.

खैर, नया वित्त वर्ष आ गया है. मूर्खता का नए सिरे से लुत्फ लीजिए.

हालांकि, सुनने में आ रहा है कि सरकार वित्त वर्ष की तारीख 1 अप्रैल से

बदलने की तैयारी कर रही है. तो क्या मूर्ख वित्त वर्ष से पहले ही बनाए

जाएंगे? पता नहीं !