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इस्लामी कट्टरपंथ से निपटने के 10 सूत्र

इस्लाम एक दर्शन, एक धर्म, एक तरह की राजनीति और एक तरह के विचारों का आंदोलन है.

Tufail Ahmad

संपादकीय नोट: यह लेख भारत में कट्टरपंथ से निपटने के मुद्दे पर हुई एक हालिया कांफ्रेस में दिए गए तुफैल अहमद के व्याख्यान पर आधारित है.

इस्लामी कट्टरपंथ पर चलिए कुछ बिंदुओं पर विचार करते हैं.


पहला, हिंदू पंडितों को कश्मीर से निकाल दिया गया. हमने पलटवार नहीं किया और ना ही आत्मघाती हमलावर बने. तो क्या कायरता भारतीयों की मानसिकता में है?

कुरान और हदीस (पैगंबर मोहम्मद की परंपराएं) नहीं बदलेंगे, तो क्या कोई ऐसा रास्ता है, जिससे भारतीय राज्य मुसलमानों में बदलाव ला सके?

दूसरा, भारत के लिए जिहादी खतरा अगले एक दशक में खत्म नहीं होगा क्योंकि इसका समर्थन पाकिस्तान कर रहा है, जहां जिहादी गुट राज्य का हिस्सा हो गए हैं, ठीक हिज्बुल्लाह और हमास की तरह और

जिहादी बांग्लादेश में मजबूत हो सकते हैं क्योंकि वहां इस्लामी कट्टरपंथी विपक्ष को कभी न कभी सत्ता में आना ही है.

तीसरा, 1648 में वेस्टफालियन शांति संधि से अंतरराष्ट्रीय राज्य व्यवस्था तैयार हुई और जिसकी अगुवाई 1945 से संयुक्त राष्ट्र कर रहा है.  इसकी नाकामी का एक नतीजा है यह जिहादवाद. चूंकि तब से संयुक्त राष्ट्र में कोई सुधार नहीं हुए हैं, इसलिए दुनिया के कई हिस्से अस्थिर रहेंगे.

चौथा, जिहादवाद आंशिक रूप से मध्यपूर्व से पैदा होता है. वहां जिहादी समूह फैलते रहेंगे क्योंकि उन्हें काबू में करने के लिए बड़ी ताकतें मिलकर कोई बड़ा कदम नहीं उठा रही हैं.

पांचवा, एक चिंताजनक तस्वीर दिखाई देती है: अफगान जिहादियों ने मध्य पूर्व में जाकर जिहादी गुट कायम किए. सीरिया के चरमपंथी भी दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में यही करेंगे.

छठा, भारत ‘मिनी यानी छोटे जिहादवाद’ का सामना कर रहा है. यह हमें बम धमाकों या फिर केरल में टीजे जोसेफ के हाथ काटने की शक्ल में दिखता है.

इसका सिलसिला तभी से शुरू हो जाता है, जब इस्लाम धर्म स्वीकार करने से इनकार करने पर दिल्ली में गुरु तेग बहादुर का सिर कलम कर दिया गया.

1901 में एक शरणार्थी ने अमेरिकी राष्ट्रपति विलियम मैक किनली की हत्या कर थी. शरणार्थी एक दर्शन से प्रेरित था. जिहादवाद की जड़ें भी दर्शन में ही हैं.

इस्लाम एक दर्शन, एक धर्म, विचारों की एक व्यवस्था, एक विचारधारा, एक तरह की राजनीति और एक तरह के विचारों का आंदोलन है. जैसा कि फ़र्स्टपोस्ट में छपे एक लेख में कहा गया है, कट्टर इस्लाम ही इस्लाम की कार्य पद्धति है. जिहादवाद कट्टर इस्लाम का हथियारों से लैस संस्करण है. शांतिपूर्वक हो या हिंसक तरीके से, यह हमारे जीवन पर शरिया के नियमों को लागू करना चाहता है.

जहां तक बात मुस्लिम शादी, तलाक, विरासत और वक्फ की है तो भारत पहले ही शरियत के मुताबिक चल रहा है, जिससे हमारी न्याय व्यवस्था और महिलाओं के अधिकार प्रभावित हो रहे हैं.

मुझे 'हिंसक चरमपंथ' टर्म इस्तेमाल किए जाने पर आपत्ति है. इसकी शुरुआत फिलहाल व्हाइट हाउस में रहने वाले शख्स की निजी संवेदनशीलताओं को देखते हुए की गई थी और डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति पद संभालने के बाद इसमें बदलाव होना निश्चित है.

इसमें माना जाता है कि अहिंसक चरमपंथी पहले स्टेज का कैंसर है, जिसे स्वीकार किया जा सकता है. डेविड कैमरुन ने बर्मिंघम में साफ कहा था, 'हमारे पास इसके अहिंसक और हिंसक, दोनों पहलुओं से निपटने की रणनीति होनी चाहिए.'

कट्टरपंथ से निपटने का पहला कदम: समस्या की जड़ का पता लगाना

कट्टरपंथ से निपटने के लिए जो पहला कदम उठाना होगा, वह है समस्या का सही-सही उसके नाम के साथ पता लगाना. जैसे ट्यूबरोक्लोसिस को कैंसर नहीं कहा जा सकता है, उसी तरह जिहादवाद को हिंसक चरमपंथ नहीं कह सकते. साम्यवाद, फासीवाद और जिहादवाद पढ़े लिखे वर्गों के बीच से ही पैदा होते हैं. वे कभी जनसमुदाय के बीच से पैदा नहीं होते.

इस पर गौर करिए: उर्दू साप्ताहिक नई दुनिया की नसीम हिजाजी की लिखी एक किताब और तलवार टूट गई को सिलसिलेवार तरीके से छाप रहा है. इसकी एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि बराक ओबामा मक्का में काबा पर बम गिराने की योजना बना रहे हैं.

इसी साल 17वें रमजान (23 जून) को पटना से छपने वाले रोजनामा संगम, दिल्ली से छपने रोजनामा सहाफत और मुंबई से छपने वाले रोजनामा इंकलाब जैसे उर्दू अखबारों ने गजवा-ए-बदर की प्रशंसा में लेख छापे. गजवा-ए-बदर काफिरों के खिलाफ पैगंबर मोहम्मद का पहला युद्ध था.

2015 में हैदराबाद के एक मौलवी ने पेरिस में चार्ली हेब्दो पर हमला करने वालों की नमाज-ए-जनाजा का नेतृत्व किया. याद रखें: शांतिपूर्ण समूह और व्यक्तिगत तौर पर कट्टरपंथी मुसलमान.

दूसरा कदम: कट्टरपंथ विरोधी कानून

दूसरा कदम होगा एक कट्टरपंथ विरोधी कानून बनाना. इस कानून में प्रावधान होना चाहिए कि संपादकों और इस्लामी मौलवियों द्वारा जिहाद का शांतिपूर्ण तरीके से महिमामंडन करना भी अपराध है. इसके तहत सुरक्षा एजेंटों को सुरक्षा और कानूनी संरक्षण देना होगा. एफबीआई जैसे स्टिंग ऑपरेशन करने होंगे. इसके तहत स्टिंग ऑपरेशन में जमा किए गए सबूतों अदालत में मान्य बनाना होगा.

इस्लाम अलगाववाद की एक भाषा है. अफगानिस्तान में मुसलमान गैर मुसलमानों की मदद से सोवियतों के खिलाफ लड़े और युद्ध के बाद उन्होंने अपना रास्ता अलग कर लिया. 1857 में मुसलमान हिंदुओं के साथ मिल कर अंग्रेजों के खिलाफ लड़े, लेकिन बाद में उन्होंने अपने रास्ते अलग कर लिए.

सर सैयद अहमद खान ने एक मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाई, जिसने पाकिस्तान आंदोलन को जन्म दिया और फिर पाकिस्तान बना.

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान मुसलमानों ने हिंदुओं से अलगाव चुना. अब मुसलमान अलग कोटा मांग रहे हैं. ध्यान रखिए: इस्लाम एकीकरण को चुनौती देता है.

तीसरा कदम: राष्ट्रीय एकीकरण की नीति

एक एकीकरण की नीति तैयार करनी होगी. इसमें गरीबी रेखा से नीचे जीने वाले बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा, मुफ्त कपड़े और मुफ्त किताबें देने की राष्ट्रीय नीति अपनानी होगी. भले ही उनका धर्म और जाति कुछ भी हो. इससे जाति और धर्म आधारित कोटा की राजनीति अप्रासंगिक हो जाएगी और भारत के बहुलतावाद को इस्लाम की तरफ से मिलने वाली चुनौती पर भी काबू किया जा सकेगा.

हमने विचारों के तीन औपनिवेशिक आंदोलन देखे हैं: अमेरिकी, ब्रिटिश और इस्लामिक. इसमें अमेरिकी और ब्रिटिश उपनिवेशवाद दोतरफा प्रक्रिया थे, जबकि इस्लामी उपनिवेशवाद एक तरफा गली है. मुल्तान एक हिंदू शहर था, जो अब नहीं है. लाहौर सिखों का शहर था जो अब नहीं है.

विचारों के आंदोलन के रूप में इस्लाम ने अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश और कश्मीर से हिंदू सभ्यताओं को खत्म कर दिया. अब बीरभूम जिले में दुर्गा पूजा पर प्रतिबंध है.

चौथा कदम: भारतीय प्राचीन सभ्यताएं पढ़ाइए

स्कूलों में पहली कक्षा से लेकर 12वीं तक भारतीय प्राचीन विषयों और विचारकों से जुड़ी किताबें लागू की जाएं. चूंकि इस्लाम ने स्वदेशी सभ्यताओं को नष्ट कर दिया है, इसलिए बच्चों को अगर प्राचीन विषयों और सभ्यताओं के बारे में पढ़ाया जाएगा तो इससे उन्हें मदद मिलेगी. वे हमारी अपनी जीवनशैली की रक्षा के लिए बौद्धिक रूप से तैयार हो पाएंगे.

भारत में 2050 तक सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी होगी और यह 31.1 करोड़ होगी. हिंदू नेता अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में पढ़ाते हैं. वहीं भारतीय राज्य ने मुसलमान बच्चों को पढ़ाने की अपनी जिम्मेदारी मदरसों को सौंप दी है, जो स्कूल नहीं है. बल्कि दकियानूसी बातें फैलाते हैं और आजाद सोच पर पाबंदियां लगाते हैं.

पांचवां कदम: मदरसों को स्कूल मत मानिए

सभी मदरसों का स्कूल का दर्जा खत्म कर दीजिए और शिक्षा का अधिकार कानून (आरटीई) लागू करिए जिसके तहत 6 से 14 साल के सभी बच्चों को स्कूल भेजा जाना जरूरी है.

सवेरे 9 बजे से शाम 5 बजे तक सभी हिंदू और मुस्लिम बच्चों को स्कूल में होना चाहिए. आरटीई में कपिल सिब्बल के संशोधन को नए सिरे से लिखने की जरूरत है जो मदरसों को रियायत देता है. आरटीई बदला जा सकता है क्योंकि शिक्षा का अधिकार बुनियादी अधिकार है. आरटीई एक्ट अपने आप में एक अधिकार नहीं है.

साथ ही धर्म का अधिकार एक बुनियादी अधिकार है. लेकिन सभी बुनियादी अधिकारों के बीच यह सबसे निचला अधिकार है. बच्चे के लिए शिक्षा का अधिकार हमेशा धर्म के अधिकार से ऊपर रहेगा.

इसके अलावा अगर आप 18 साल की उम्र से पहले वोट नहीं दे सकते; अगर आप 18 साल की उम्र से पहले शादी नहीं कर सकते तो आपको 18 साल की उम्र से पहले धर्म का भी कोई अधिकार नहीं.

धर्म आधारित शासन और तानाशाही शासन व्यवस्थाओं में आम राय समानताओं से उभरती है. लोकतंत्र में आम राय मतभेदों से उभरती है. भारत अपनी आम राय और सुरक्षा अपने लोगों, अपने कानून और अपनी विविधता से प्राप्त करता है.

भारत की एकजुटता के लिए पैदा खतरे से हम अपनी शिक्षा व्यवस्था से जरिए ही निपट सकते है. फिलहाल हमारी पिछली पीढ़ियां इसमें नाकाम ही रही है.

छठा कदम: तुलनात्मक धर्मों पर किताब

पहली कक्षा से 12वीं तक तुलनात्मक धर्मों पर किताब की एक श्रृंखला शुरू करिए. इन किताबों के जरिए यहूदी, पारसी और नास्तिकता समेत सभी धर्मों की नैतिक बातों को पढ़ाया जाना चाहिए.

इस्लामी सुधार उस दिन शुरू होंगे जब जमीयत उलेमा ए हिंद और जमात ए इस्लामी महिलाओं को अपना नेता चुनने लगेंगे. लेकिन महिला विरोधी होने के नाते, वे ऐसा नहीं करेंगे. भारतीय राज्य कुछ कर सकता है.

सातवां कदम: मुसलमान बच्चों को साइंस पढ़ाइए

पहली कक्षा से बारहवीं तक सभी मुस्लिम बच्चों के लिए गणित, भौतिकी और अर्थशास्त्र की पढ़ाई अनिवार्य की जानी चाहिए.

साथ ही भारतीय राज्य को स्कूली शिक्षा के जरिए कुश्ती जैसे खेलों को बढ़ावा देना चाहिए. सभी नागरिकों के लिए दो साल की अनिवार्य सैन्य सेवा लागू की जाए और इसमें 18 साल से ज्यादा उम्र वाली मुस्लिम महिलाओं को भी शामिल किया जाए.

जिहादी वीडियो इस्लाम की नफरत भरी शिक्षाओं को दिखाते हैं. यहां तक कि आम जिंदगी में भी, इस्लामी कट्टरपंथी गैर मुसलमानों और उदारवादी मुसलमानों के खिलाफ बहुत से नफरत भरे शब्द और वाक्य इस्तेमाल करते हैं.

आठवां कदम: कुफर जैसे शब्दों के इस्तेमाल को अपराध करार दिया जाए

एक कानून बनाना चाहिए जिसके तहत कुफर (काफिर), मुरताद (धर्म छोड़ने वाला) मुनफकीन (पाखंडी) और जिहाद जैसे शब्दों के इस्तेमाल को अपराध घोषित कर दिया जाए.

ये शब्द बहुलतावाद के लिए खतरा हैं, जो भारतीय सभ्यता की पहचान है. अगर गृहमंत्री एक आतंकवादी को बचाने के लिए एक शपथपत्र में संशोधन करते हैं तो गृह मंत्रालय भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है.

अगर कोई आईपीएस अधिकारी एक भारतीय नागरिक का सिर कलम करने पर 51 लाख रुपए के इनाम की घोषणा करने वाले बिजनौर के एक इस्लामी विद्वान की बजाय कमलेश तिवारी को गिरफ्तार करता है तो वह मुसलमानों को कट्टरपंथी बना रहा है. भारत को दूर दराज के इलाकों में स्थित पुलिस थानों पर सौ अरब डॉलर का निवेश करना होगा.

कट्टरपंथी इस्लाम, हिंदू इस्लामी कट्टरपंथियों की मदद के बिना कामयाब नहीं हो सकता. ऐसे लोगों में सबसे ऊपर महात्मा गांधी हैं, जो इस्लामी खिलाफत का समर्थन करते थे. हिंदू-भारतीय नेता सोचते हैं कि कट्टरपंथ से निपटने और बहुलतावाद को बढ़ावा देने में सूफीवाद मददगार साबित हो सकता है.

नौवां कदम: कट्टरपंथ के खिलाफ फतवा

एक सूफी कांफ्रेस कराइए जिसमें एक फतवा जारी किया जाए. फतवे में ये बातें शामिल हों: पहली, शिया मुसलमान हैं, दूसरी अहमदी मुसलमान हैं, तीसरी, कोई मुस्लिम महिला राष्ट्राध्यक्ष बन सकती है. चौथी, कोई गैर मुसलमान एक इस्लामी देश का राष्ट्राध्यक्ष हो सकता है. पांचवी, पैगंबर मोहम्मद की आलोचना करने पर किसी हत्या नहीं की जाएगी. छठी, इस्लाम छोड़ने पर किसी का सिर कलम नहीं किया जाएगा. सातवीं, समलैंगिक समुदाय के लोगों की हत्या नहीं की जाएगी. इस फतवे में यह भी हो कि तुलनात्मक धर्म विषय पर किताबों को स्कूल में शामिल किया जाए.

कट्टरपंथ इस्लाम, इस्लामी संस्थानों के जरिए जुड़ा है. बहुत सारे इस्लामी समूह और संगठन लोगों में जिहादी मानसिकता पैदा करते हैं. ये संगठन इस्लाम की सभी विचारधारों से जुड़े हैं. जहां तक सुरक्षा और खतरे की बात है तो सभी संप्रदाय मुलमानों को कट्टरपंथी बनाते हैं.

दसवां कदम: मदरसों का एनजीओ की तरह रजिस्ट्रेशन हो

सभी मदरसों, मस्जिदों, खानका (मठ) और दरगाहों का एनजीओ की तरह रजिस्ट्रेशन होना चाहिए और उनका पैनकार्ड बनाना चाहिए.

सभी संस्थानों को हर तीन महीनों में अपनी आय और अपने नेताओं के नामों की रिपोर्ट सरकारी वेबसाइट पर अपलोड करनी चाहिए.

याद रखिए: भारत धर्म के नाम पर ही विभाजित हुआ- उसे बीजेपी या आरएसएस ने नहीं बांटा. जरा इसके बारे में सोचिए: किस समय यह विचार स्वीकार्य हो गया कि भारत का विभाजन करना ठीक होगा?

इंटरनेट के दौर में, राष्ट्रों पर विचारों का हमला होगा. टीवी की बहसें पैलेट गनों और गोलियों से भी ज्यादा ताकतवर हैं. सुप्रीम कोर्ट से ज्यादा असर फतवों का दिखता है. जैसा कि हम कश्मीर में देखते हैं. जिहाद सेनाओं के लिए कहीं ज्यादा खतरनाक हो सकता है. हम कश्मीर को इस्लाम के हाथों गंवा रहे हैं.