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अंडरटेकर: अंधेरे का खेल रचता जादूगर...

अंडरटेकर जिसका असली नाम मार्क विलियम कैलावे है, एक मिथकीय रूप से रचा हुआ किरदार है

Pradeep Awasthi

रिंग में उसको हांफते और संघर्ष करते देख ये ख्याल नहीं आया, न ही उसके हारने पर ये ख्याल आया. लौटते हुए जब वो रुका और वापस रिंग में आया, तो लगा कि अब क्या? उसने पहले अपने ग्लव्ज निकाले, फिर कोट और फिर हैट.

ये तीनों चीजें वो रिंग में एक के ऊपर एक रखकर चला गया. शरीर लौट गया, रिंग के बीचोबीच रखा लिबास एक सांकेतिक कविता में बदल गया. तब मुझे गीत चतुर्वेदी की एक कविता की लाइन याद आई – ‘सारे सिकंदर घर लौटने से पहले ही मर जाते हैं’


अंडरटेकर जिसका असली नाम मार्क विलियम कैलावे है, ठीक उसी तरह मिथकीय रूप से रचा हुआ किरदार है, जैसे मनोरंजन के लिए कई किरदारों को गढ़ा जाता है, जैसे मानवता बचाने के लिए गढ़ा गया सामान्य मानवीय क्षमताओं से ज़्यादा ताकतवर एक सुपरहीरो. एक ऐसा सुपरहीरो जैसा बनने की चाहत या जिसकी नकल करने की चाहत एक उम्र तक तो लगभग हर बच्चे में रही होती है.

इससे पहले कि मुझे अज्ञानी समझा जाए, यहीं स्पष्ट कर देना चाहता हूं. मैं पूरी तरह समझता हूं कि रेसलिंग एक एंटरटेनमेंट स्पोर्ट्स है जहां सब कुछ एक कहानी की तरह चलता है. तय रहता है कौन जीतेगा, कौन हारेगा और खेल को रोचक बनाने के लिए तरह-तरह की दुश्मनियां और दोस्तियां गढ़ी जाती हैं. इसीलिए जिन्हें कहानियां सुनना और कहानियों में जीना अच्छा लगता है, उन्हें यकीनन अंडरटेकर नाम से रचे गए इस किरदार में दिलचस्पी रहेगी.

मुझे मेरे बचपन वाला अंडरटेकर याद है, जिसके लिए घंटों पहले से इंतजार किया करता था, प्रार्थना किया करता था भगवान से कि बस लाइट न जाए और इस बार के शो में अंडरटेकर जरूर आए. एक बार तो ऐसा हुआ कि उसके आने के संकेत के रूप में घंटी बजी और बत्ती गुल. मैंने जाने कितना कोसा भगवान को कि आखिर क्यों वो मेरा ही दुश्मन बना बैठा है.

बिल्कुल ऐसा ही तब हुआ था जब 2003 क्रिकेट विश्व कप के फाइनल में हम ऑस्ट्रेलिया से बुरी तरह हार रहे थे. मैं कोस भी रहा था, रो भी रहा था कि क्यों मेरे साथ ही ऐसा होता है, मेरी ही टीम क्यों हारती है हमेशा. घंटी बजती थी, अंधेरा छाता था, एक खास तरह का बैकग्राउंड म्यूजिक बजता था, कड़कती बिजलियों और नीली काली रोशनियों के बीच से काली हैट और लम्बा काला ओवरकोट पहने, एक लम्बे चौड़े शरीर का साया उभरता था. धीमी, शालीन और शांत चाल. उतना ही शांत और भावहीन चेहरा जो बोलता बहुत कम था.

कई ओढ़े हुए किरदारों में यही था जो सबसे मशहूर भी हुआ और आश्चर्यजनक रूप से डरावना होते हुए भी दर्शकों और छोटे बच्चों के लिए मनोरंजक. ऐसा किरदार जिसके आते ही प्रतिद्वंदियों की घिग्घी बंध जाती थी, जो रिंग में या तो गिरता नहीं था या गिर जाए तो झटके से उठ बैठता था, जो अपशब्दों, दूसरों के उपहास और धोखाधड़ी का सहारा न लेते हुए रिंग में सारे बदले लेता था, जिसके बारे में कहानियां यूं बनाई गईं कि वो अपने प्रतिद्वंदियों के दिमाग से खेलता है, उनके दिमाग में डर भर देता है.

ये एक पूरा रचा गया किरदार था जो अपनी ओर खींचता था. 1990-91, माने शुरू के सालों में वो आत्माओं के साथ रहने वाला एक डेडमैन था जिसकी जान एक बर्तन में बंद थी.

मनोरंजन के लिए है जानते बूझते हुए भी बचपन में जो एक बार मन में बस गया, तो बस गया. हम सबको दरअसल एक हीरो चाहिए होता है जिसमें हम वो सब कुछ देख सकें जो हम नहीं हैं या नहीं हो पाएंगे कभी.

भारतीय परिदृश्य में सोचें तो हमारे यहां का सबसे बड़ा हीरो अमिताभ बच्चन रहा जो गुस्सैल था, स्वाभिमानी था, अपने हक के लिए लड़ना जानता था और पूरी सड़ी हुई व्यवस्था से अपने तरीके से अकेले ही भिड़ जाता था. वो कभी शहंशाह का रूप धरता था तो कभी कुली का. उसी तरह रूप धरता रहा हमारे बचपन का अंडरटेकर, कभी फीनाम, कभी डेडमैन, कभी अमेरिकन बैडऐस, जिसके हारने पर दिल धक से रह गया हर बार. कभी उसने अपने दुश्मनों को ताबूत में सुलाकर घर भेजा, कभी उसके दुश्मनों ने उसको. एक कहानी उसके भाई केन की भी बनाई गई.

एक ऐसे काम में 26 साल लगातार जुटे रहना, जो खास तौर से शारीरिक ताकत पर निर्भर है, इसने भी अंडरटेकर के किरदार को बड़ा बनाया. 26 साल का करियर, वर्ल्ड रेसलिंग फेडरेशन के सबसे बड़े सालाना इवेंट रेसलमेनिया में 25 बार शिरकत, 23 जीत और दो हार.

इसके बाद आखिरकार अंडरटेकर अपना किरदार तोड़कर वापस मार्क विलियम कैलावे बन गया. इस स्पोर्ट्स के असली नकली होने को लेकर कई बातें चलीं जिनसे ये पता चलता है कि फाइट्स स्टेज्ड और निर्णय पहले से तय होते हैं. रेस्लर्स से ज्यादा तो ये अभिनेता होते हैं, जो अपनी स्टोरीलाइन्स को एक हद तक हर जगह निभाते हैं. कई मौके ऐसे आये जब कुछ स्टोरीलाइन्स असलियत में भी बदल गईं.

ऐसा समय भी आता है जब जीवन ढलान पर होता है. अपने करियर के आखिरी कुछ वर्षों में अपने चाइल्डहुड हीरो को संघर्ष करते देखना, उसका रिंग में हांफना, अपने पसंदीदा मूव्स उतनी चपलता से न कर पाना, नए आए रेस्लेर्स से हारते हुए देखना, बढ़ती उम्र के साथ शरीर की शक्ति का जवाब देना, देखना कि आखिरकार वो उठ नहीं पाया, दिल टूटने जैसा था.

जैसा दुख एक समय तूफानी बल्लेबाज रहे सचिन तेंदुलकर को टेनिस एल्बो से जूझते हुए देखकर होता था, उसे साधारण से गेंदबाजों के सामने संघर्ष करते देखकर होता था, या एक समय अपने फेवरेट रहे रॉजर फेडरर को क्ले कोर्ट पर राफेल नडाल के सामने संघर्ष करते और हारते हुए देखकर होता था, ठीक वैसा दुख.

लेकिन वो उत्साह कभी नहीं भूलेगा जब कॉपी में कवर चढ़ाकर अंडरटेकर की फोटो वाली ही स्लिप चिपकानी होती थी. एक खेल होता था ट्रम्प कार्ड वाला, ताश के पत्तों की तरह, जिसमें सबसे कीमती कार्ड अंडरटेकर वाला होता था. इस रेसलमनिया के बाद अंडरटेकर ने प्रोफेशनल रेसलिंग से भावुक अलविदा लिया.

मार्क विलियम कैलावे ने अपने फेसबुक पेज लिखा –

मन में आता है काश ये भी इनकी कोई स्टोरीलाइन ही हो. शुक्रिया टेकर फॉर पुटिंग अप सच अ लॉन्ग एंड वंडरफुल शो.