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केरल में टीपू सुल्तान ने बोए हिंदू-मुसलमान झगड़े के बीज

केरल में जब एक मस्जिद पर गुंबद बनाने को लेकर मुसलमानों का विवाद हो गया तो टीपू सुल्तान को आमंत्रित किया गया था

Tufail Ahmad

भारतीय मुसलमानों में कट्टरपंथ फैलाने का मुद्दा कुछ समय से जोर पकड़ रहा है. कुछ लोग यह कह लगातार आंख मूंदे हुए हैं कि ‘किसी और देश में ऐसा होता है ’ जबकि कुछ लोगों ने स्थिति की गंभीरता को समझना शुरू कर दिया है और वे इससे निपटने के तरीके सुझा रहे हैं. तुफैल अहमद ऐसी परिस्थितियों और परिदृश्यों का जायजा ले रहे हैं जिनसे महाराष्ट्र, हैदराबाद, केरल और समूचे भारत में युवा कट्टरपंथी बन रहे हैं. श्रृंखला का चौथा और आखिरी हिस्सा.

महाराष्ट्र और हैदराबाद के अलावा केरल भी उन इलाकों में शामिल है जहां कई मुसलमान युवाओं में इस्लामिक स्टेट यानी आईएस के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है और वे कट्टरपंथी बन रहे हैं.


जुलाई महीने के शुरू में केरल से 25 युवा सीरिया गए. इससे पहले जुलाई 2010 में स्थानीय इस्लामी कट्टरपंथियों ने प्रोफेसर टीजे जोसेफ का हाथ काट दिया था क्योंकि उन्होंने एक प्रश्न-पत्र में पैगंबर मोहम्मद से जुड़ा एक ऐसा सवाल रखा जिसे ईशनिंदक माना गया. अहम बात है कि यह हमला किसी एक व्यक्ति ने नहीं, बल्कि एक पूरे समूह ने किया था.

इस मामले में 18 मुसलमानों को बरी कर दिया गया. तीन लापता हैं जबकि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) नाम के एक संगठन के 13 सदस्यों को मई 2015 में दोषी करार दिया गया.

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प्रोफेसर जोसेफ का हाथ काटने की ठीक वैसी ही धार्मिक वजह थी जैसी वजह पिछले साल शार्ली हेब्दो पर हमले की थी, जब अल कायदा से जुड़े दो भाइयों सैद कोएची और शेरिफ कोएची ने पेरिस में इस फ्रेंच पत्रिका के दफ्तर पर हमला किया था.

सुन्नी मुसलमान और मुजाहिद मुसलमान

यह लेखक हाल में केरल के दौरे पर गया और स्थानीय लोगों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे दो शब्दों को सुनकर हैरान था. सुन्नी मुसलमान और मुजाहिद मुसलमान. केरल के लोग सुन्नी मुसलमानों को शांतिपूर्ण मानते हैं, मतलब आस पड़ोस में रहने वाले सामान्य लोग.

(फोटो. रॉयटर्स)

दूसरे हैं मुजाहिद मुसलमान, जिनका संबंध, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई सोचे तो जिहादियों से जोड़ेगा जो आईएस जैसा एक राज्य कायम करना चाहते हैं. लेकिन यहां मामला थोड़ा अलग है.

केरल में मुजाहिद मुसलमानों को ऐसे अति धर्मनिष्ठ मुसलमानों के तौर पर देखा जाता है जिनका हिंदुओं के साथ निरस्त्र संघर्ष चल रहा है.

ऐसे मुसलमानों का मुख्य संगठन है 'केरला नदवात उल मुजाहिदीन' (केएनएम) और इसके सदस्य खुद को सुधारवादी बताते हैं. बहुत से गैर मुसलमान पत्रकार भी उन्हें सुधारवादी ही लिखते हैं. लेकिन 'सुधारवादी' शब्द दो वजहों से विवादास्पद है.

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पहली वजह, केएनएम एक सलफी गुट है जो मिस्र और सऊदी अरब के धर्मशास्त्रियों से प्रभावित है. दूसरी वजह, तबलीगी जमात जैसे सभी इस्लामी समूह भी खुद को सुधारवादी कहते हैं.

अकसर तर्क दिया जाता है कि केरल में इस्लाम शांतिपूर्ण है और इसकी वजह ऐतिहासिक बताई जाती है. उत्तर भारत में इस्लाम मुसलमान आक्रमणकारियों के जरिए पहुंचा, जबकि केरल में पैगंबर मोहम्मद के दौर में ही व्यापार के जरिए इस्लाम पहुंच गया था.

लेकिन केरल में ही हम देखते हैं कि यहां इस्लाम अपने दो मूल काल खंडों में बंटा है. पहला काल है मक्का वाला काल, जिसमें पैगंबर मोहम्मद और उनके अनुयायी शांतिपूर्ण तरीके से मक्का में रहते थे और उपदेश देते थे. वहां पर वे अल्पसंख्यक थे और लड़ नहीं सकते थे.

दूसरा काल है मदीना काल, जिसके दौरान पैगंबर के नेतृत्व में उनके मदीना के ठिकाने से सीरिया जाने वाले गैर मुसलमान व्यापारियों के काफिलों पर छापे मारे गए और गैर मुसलमानों के खिलाफ बहुत से युद्ध लड़े गए और मुनफकीन (मुसलमानों के बीच पाखंडियों) की मस्जिदें तोड़ी गई और इस्लाम थोपा गया.

कट्टरपंथ के ऐतिहासिक बीज

पश्चिम एशिया से केरल में पहुंचने वाले मुसलमान पहले लोग नहीं थे.

इस्लाम के जन्म से बहुत पहले, वहां अरब कारोबारियों के जहाज पहुंचने की परंपरा रही है. यहूदी और ईसाई जाहिर तौर पर वहां पहुंचने वाले पहले लोग थे और उनके बाद मुसलमान पहुंचे.

बाद की सदियों में यहूदियों की जनसंख्या बढ़ी नहीं, लेकिन ईसाइयों और मुसलमानों की जनसंख्या भी बढ़ी और उनका प्रभाव भी, जैसा कि आज भी है.

लेकिन केरल में इस्लाम से जुड़ा पहला विवाद तब शुरू हुआ जब 1498 ईस्वी में वास्कोडिगामा के नेतृत्व में पुर्तगाली लोग वहां पहुंचे. वे यूरोप से वहां इस्लाम बनाम ईसाईयत का विचार लेकर पहुंचे. हिंदुओं ने व्यापार और अपने सहअस्तित्व के सिद्धांत के कारण मुसलमानों का साथ दिया.

टीपू सुल्तान. (फोटो. विकीकॉमन्स)

इसे केरल में मुसलमानों का मक्का वाला शांतिपूर्ण काल कहा जाता है जब उनकी संख्या बहुत कम थी. जिन दो मुसलमान शासकों ने केरल में मुसलमानों के मक्का काल को खत्म किया वे थे हैदर अली और उसका बेटा टीपू सुल्तान.

आज केरल के उन इलाकों में कट्टरपंथ महसूस किया जा सकता है जहां इन मुसलमान शासक बाप-बेटों ने हमले किए थे. हैदर अली ने 1771 में मालाबार इलाके में हमला किया और टीपू सुल्तान ने 1789 में.

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तिरुवनंतपुरम में रहने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार जीके सुरेश बाबू बताते हैं कि जब एक मस्जिद पर गुंबद बनाने को लेकर मुसलमानों का विवाद हो गया तो टीपू सुल्तान को आमंत्रित किया गया था. उस समय गुंबद बनाने की अनुमति सिर्फ तीन हिंदू मंदिरों को थी.

टीपू सुल्तान बहुत सख्त था. उसने हिंदुओं को गोमांस खाने और इस्लाम कबूलने को मजबूर किया था. उनके हमलों के कारण कुछ भी हों लेकिन हैदर और टीपू ने वहां हिंदू-मुसलमान विवाद के बीज बोए और इस तरह केरल में इस्लाम की जिंदगी का मदीना काल शुरू हुआ.

ईरान के जरिए सीरिया और इराक

कोझिकोड में रहने वाले और केएनएम से जुड़े एक अध्यापक मुजीब रहमान इस बात को मानने से इनकार करते हैं कि जुलाई में केरल से जाने वाले 25 मुसलमान आईएस में शामिल होने के लिए सीरिया गए.

वह कहते हैं कि केरल के मुसलमान लंबे समय से लंबी अवधि के लिए यमन जाते रहे हैं. यह सही है कि मुजाहिद मुसलमान अति धर्मनिष्ठ इस्लाम का पालन करने के लिए यमन और श्रीलंका जाते रहे हैं. लेकिन धार्मिक कारण एक जटिल मुद्दा है. भारत एक दार-उल-इस्लाम (इस्लाम का घर) नहीं है और इसीलिए मुसलमानों को मुस्लिम देशों में जाने को कहा जाता है.

यही धार्मिक कारण था जिसके आधार पर मौलाना अबुल कमाल आजाद और मौलाना अब्दुल बारी समेत कई मुस्लिम नेताओं ने एक फतवा दिया था कि भारत के मुसलमानों को अफगानिस्तान चले जाना चाहिए. इसे हिजरत आंदोलन के तौर पर भी जाना गया जो खिलाफत आंदोलन से निकला था.

लेकिन ऐसा नहीं लगता कि केरल से 25 मुसलमान अति धर्मनिष्ठ इस्लाम का पालन करने के लिए गए थे. इमिग्रेशन के रिकॉर्ड से पता चलता है कि आपस में एक दूसरे को जानने वाले ये लोग अफगानिस्तान और ईरान गए, जहां से उन्हें सीरिया जाना था. तेहरान से होकर जाने की खास वजह हो सकती हैं.

पहली, इस समय भारत और ईरान के संबंध बहुत अच्छे हैं और संभव है कि वहां भारतीयों के आने के इरादों पर ईरानी अधिकारी शक न करें.

दूसरी वजह, वहां पहुंचने वाले भारतीय कह सकते है कि वे शिया श्रद्धालु हैं और इराक में धार्मिक स्थलों की यात्रा करने जा रहे हैं.

तीसरी वजह, इस समूह में महिलाएं भी थी जिसके चलते ईरानी अधिकारियों को शक करना और भी मुश्किल होगा.

चौथी वजह, 11 सितंबर 2001 के हमले के बाद के बरसों में अल कायदा और आईएस जिहादी अफगानिस्तान और पाकिस्तान तक आने जाने के लिए ईरानी इलाके का ही इस्तेमाल करते रहे हैं.

कट्टरपंथ की बयार

इन युवाओं को कट्टरपंथी बनाने के सिलसिले में 12 अगस्त को एक इस्लामी मौलवी मोहम्मद हनीफ को कन्नूर जिले में पेंरिंगठूर से गिरफ्तार किया गया. इसके अलावा केरल के युवाओं को कट्टरपंथी बनाए जाने के और भी मामले हैं.

(फोटो. रॉयटर्स).

कोवलम के एक युवक को जम्मू कश्मीर में लड़ने के लिए भर्ती किया गया. जम्मू कश्मीर में ही 2008 के दौरान केरल के चार लोग मारे गए थे. कतर में काम कर रहे केरल के कम से कम दो लोग आईएस में शामिल हो गए हैं. यूएई में कुछ युवकों का पता चलने के बाद उन्हें केरल भेज दिया गया है जबकि कम से कम चार को प्रत्यर्पित किया गया है.

एक पत्रकार आईएस में शामिल होने के लिए सीरिया चला गया. 6 अगस्त को पता चला कि आईएस के लिए भर्तियां करने वाले एक व्यक्ति ने केरल के 40 मुसलमानों को बरगला लिया है.

आईएस से पहले कट्टरपंथ पर नजर डालें तो संकेत मिलता है कि केरल इस्लामी कट्टरपंथी राज्य के भीतर नहीं, बल्कि उसके बाहर हमले करना चाहते हैं. इनमें 1998 के कोयंबटूर धमाके और 2008 के बेंगलुरु धमाके का जिक्र किया जा सकता है.

कुल मिलाकर केरल में अब इस्लाम शांतिपूर्ण नहीं रहा.