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जानवरों को बचाना है तो... सिर्फ सोचने से नहीं, काफी कुछ करना पड़ेगा

देश के चिड़ियाघरों में जानवरों की उचित देखभाल की बजाए घूमने आने वालों की सुविधा का ख्याल रखा जाता है

Maneka Gandhi

सवाल यह कतई नहीं कि शहर के सरकारी चिड़ियाघर या एक्वेरियम में जानवरों के साथ क्या सलूक होता है. यह बात बिल्कुल जानी-पहचानी है कि पशुओं के साथ बर्ताव बुरा ही होता है. वह दुर्दशा में रखे जाते हैं, कम रोशनी और बेढंगे पिंजरों में कैद ये पशु भूख से छटपटाते हैं. समस्या के समाधान के लिहाज से सोचें तो पहला काम बुनियादी सुविधाओं में सुधार करना होगा.

क्या सचमुच चिड़ियाघर ऐसे ही होने चाहिए ? क्या इस किस्म के चिड़ियाघर किसी भी तरह दुनिया की खुशी, ज्ञान और सेहत में कोई इजाफा करते हैं ? क्या मनुष्यों को छोड़ इन चिड़ियाघरों से किसी और जीव के लिए सम्मान का कोई भाव झांकता है? मुझे लगता है, इन सारे ही सवालों का जवाब है- नहीं !


मौज-मस्ती की चीज समझा जाता है

बच्चों को जैसे सर्कस दिखाने ले जाते हैं उसी तरह उन्हें चिड़ियाघर घुमाने के लिए भी ले जाया जाता है. शेर और बाघ की दहाड़, डालियों पर बंदरों की उछल-कूद और चटख रंगीन तोते को ‘टिवी टी टूट’ करते देखना-सुनना तकरीबन लोगों की आदत में शुमार हो चला है. परंपरागत तौर पर इसे मौज-मस्ती की चीज समझा जाता है. लेकिन सच्चाई यह है कि शेर और बाघ अपनी सीलन भरी कोठरी के एक कोने में अविचल पड़े रहते हैं. वो बंद-बंद निहार रहे लोगों को बेजान नजरों से ताकते रहते हैं.

(फोटो: रॉयटर्स)

बंदर बड़ी उदासी और अनमने-से होकर किसी कोने में बैठे होते हैं और अपनी तरफ फेंके जा रहे पत्थरों की बौछार से किसी तरह बचने की जुगत लगा रहे होते हैं. तोते अपने लिए बनाये घोंसलेनुमा गड्ढों से शायद ही कभी बाहर सिर निकालते हैं.

जो जानवर बेचैनी के आलम में अपने पिंजरे के चक्कर काटते हैं उन पर शरारती लोग, खासकर बच्चे पत्थर-ढेले फेंकते हैं. दिल्ली के चिड़ियाघर में एक चिड़िया की आंख में किसी ने छाते की नोक घोंप दी, बेचारा मूक प्राणी दर्द से छटपटाकर मर गया. दिल्ली के ही चिड़ियाघर में कुछ जानवर मृत मिले. चिड़ियाघर घूमने आये लोगों ने इनके आगे कुछ खाना फेंका था और इस खाने के भीतर उन्होंने ब्लेड रख दिया था. ब्लेड लगे इस भोजन ने पशुओं की पेट की अंतड़ियों को काट डाला और वो दर्दनाक मौत मर गये.

चिड़ियाघर के तकरीबन सारे जानवर जंगल से पकड़े गये होते हैं. चूंकि चिड़ियाघर के परिवेश में ये जानवर बच्चे नहीं जन पाते इसलिए कुछ दिनों के अंतराल पर इनके बदले और पशु जंगल से लाने पड़ते हैं. गर्मी के दिनों में इन पशुओं का पानी सूख जाता है, गर्मी और प्यास से बेहाल होकर वो मर जाते हैं.

(फोटो: रॉयटर्स)

बिना अपराध आजीवन कैद की सजा

जाड़े के दिनों में जानवरों के पिंजरों में पर्याप्त रोशनी नहीं होती. पकड़े गये ये जानवर बिना किसी अपराध के आजीवन कैद की सजा काट रहे होते हैं, उनके रहने-जीने का परिवेश बड़ा ही क्रूर और गंदगी भरा होता है. फिर जरा यह भी सोचिए कि जो पेशेवर लोग जानवरों को पकड़कर चिड़ियाघरों में बेचते हैं उनके हाथों किसी एक जानवर को पकड़ने के चक्कर में कितने निरीह जानवर मारे जाते होंगे?

ह्वेल पकड़कर रखने वाले एक्वेरिया के एक प्रोग्राम में दिखाया गया कि ह्वेल को पकड़ने के लिए कंटीले फांस का प्रयोग किया जाता है. डाल्फिन या फिर बड़ी मछलियां कंटीले फांस पर लगे भोजन को मुंह में निगल लेती हैं, फिर उन्हें बेरहमी से खींचा जाता है. इस चक्कर में अक्सर उनकी मौत हो जाती है फिर उन्हें मरी हुई हालत में समंदर में फेंक दिया जाता है.

ह्वेल को फांसने के लिए जो जाल बिछाया जाता है उससे छूटने के लिए जोर लगाने के क्रम में कम से कम तीन ह्वेल की जान जाती है. तब जाकर एक ह्वेल जिंदा पकड़ में आती है.

(फोटो: रॉयटर्स)

तुलनात्मक रुप से देखें तो चिड़ियाघर के बारे में विकसित हुआ जीव विज्ञान (जू-बॉयलॉजी) अभी नया है. दुनिया के ज्यादातर चिड़ियाघरों को इस बात की जानकारी ही नहीं कि ऐसा कोई विज्ञान भी है. भारत के तो सारे ही चिड़ियाघर जू-बॉयलॉजी के नाम से अपरिचित हैं. इस सवाल पर विचार ही नहीं किया गया कि चिड़ियाघर क्या चीज होती है या उसे कैसा होना चाहिए. मान लिया जाता है कि चिड़ियाघर वह जगह है जहां जानवरों को कैद में रखा जाता है.

अनूठी सुविधाएं मुहैया कराई जाएं

चिड़ियाघर मौज-मजे भर की चीज नहीं है. किसी जू-लॉजिकल गार्डन में अनूठी सुविधाएं मुहैया करायी जा सकती हैं. गेराल्ड ड्युरेल दुनिया के बेहतरीन चिड़ियाघरों में से एक के कर्ता-धर्ता हैं. उनका चिड़ियाघर जर्सी (ब्रिटिश आधिपत्य का एक स्वायत्त शहर) में है. गेराल्ड ड्युरेल के मुताबिक चिड़ियाघर को एक भारी-भरकम प्रयोगशाला, शिक्षा संस्थान और पशुओं की संरक्षण-शाला के तौर पर काम करना चाहिए.

चिड़ियाघर ऐसी जानकारियों का पूरा भंडार तैयार कर सकते हैं जो जंगली जानवरों के संरक्षण में मददगार हों. अगर चिड़ियाघर ठीक से चलाया जाए तो इस बात का बारीकी से अध्ययन किया जा सकता है कि, कोई जंगली जानवर कितने दिनों तक गर्भधारण करता है. उसका शावक रोजाना किस हिसाब से बड़ा होता है और शावक की देखभाल कोई जंगली पशु कैसे करता है.

(फोटो: रॉयटर्स)

जहां तक पशुओं के संरक्षण का सवाल है, चिड़ियाघर में अच्छी सुविधाएं हों तो वे अपनी देखरेख में ज्यादा से ज्यादा जंगली पशुओं का प्रजनन करा सकते हैं. इससे जंगली जानवरों की कम होती तादाद पर एक हद तक अंकुश लगाया जा सकता है. इस मामले में सबसे अहम बात यह है कि जंगली पशुओं की जिस प्रजाति की संख्या बहुत ज्यादा घट गई है, प्रजनन के जरिए उस प्रजाति के पशुओं की चिड़ियाघर में अच्छी खासी संख्या तैयार की जा सकती है.

चिल्ल-पौं से डर जाते हैं जानवर

बनरगट्टा चिड़ियाघर में मुझे सुनहरे रंग के सुंदर असमी लंगूर नजर आये. इन्हें एक बड़े से पिंजरे में रखा गया था. आस-पास शोर मचाते बच्चों की चिल्ल-पों से डरकर लंगूर पिंजरे के ऊपरी छोर पर सहमे हुए बैठे थे. इन लंगूरों के पास अपना निजी ऐसा कोई स्थान नहीं था जहां वे खुद को छुपा सकें.

लंगूरों की देखरेख में लगे व्यक्ति ने मुझे बताया कि इनकी आयु बड़ी कम होती है और बड़े कम अंतराल पर इनकी जगह दूसरे लंगूर लाकर रखने होते हैं. इस प्रजाति के लंगूर अब बहुत कम तादाद में बचे रह गये हैं. इस शर्मीले जानवर को अपने ढंकने-छुपने की कोई जगह हासिल नहीं है. ना ही उनके प्राकृतिक परिवेश को बेहतर बनाने के लिहाज से ही कोई कदम उठाया गया है.

अगर चिड़ियाघर को रत्ती भर भी समझ होती तो इन लंगूरों के प्रजनन के लिए एक सधा हुआ कार्यक्रम चलाया जाता. यह लंगूरों के संरक्षण की एक तरकीब साबित होता. ऐसे में चिड़ियाघर लंगूरों के एक बैंक की तरह काम करता.

(फोटो: रॉयटर्स)

चिड़ियाघर का मुख्य काम ऐसे ही बैंक तैयार करना होना चाहिए. दुनिया में अच्छे चिड़ियाघर गिनती के ही हैं. इन बेहतरीन चिड़ियाघरों में पशुओं के प्रजनन का नियंत्रित कार्यक्रम चलाकर दुर्लभ प्रजाति के पेरे डेविड हिरण, यूरोपियन बाइसन (जंगली सांड़), बोन्टेबोक (एक किस्म का बारहसिंघा) और नेने गूज (एक किस्म की बत्तख) बचाये गये हैं.

पशुओं का संरक्षण होना चाहिए

भारत में विलुप्ति की कगार पर खड़े वन्य पशु प्रजातियों की संख्या एक हजार से ज्यादा ही होगी, इससे कम नहीं. जैसी सहायता शेर और बाघ को बचाने के लिए दी गई है (इसको लेकर भी मेरे कुछ ऐतराज हैं) वैसी ही सहायता चिड़ियाघर के मार्फत इन पशुओं को बचाने के लिए दी जानी चाहिए. चिड़ियाघर में ऐसे पशुओं का संरक्षण तो होना ही चाहिए. इन पशुओं से संबंधित शोध और प्रजनन की भी व्यवस्था की जानी चाहिए.

इसके लिए जरुरी होगा कि चिड़ियाघर में काम करने वाले बहुत से लोगों को प्रशिक्षण दिया जाए. उन्हें यह बताया जाए कि, किसी विशेष प्रजाति के पशु के रख-रखाव और बढ़वार के लिए कैसा बर्ताव जरुरी है. सरकार चाहे तो जर्सी जू ट्रस्ट में काम करने वाले लोगों को बुला सकती है जो हमारे जू-वार्डेन को प्रशिक्षण देंगे.

(फोटो: रॉयटर्स)

इसके अलावा आर्किटेक्टस को भी प्रशिक्षण देने की जरुरत है. अभी आर्किटेक्ट जानवरों की सुविधा का ध्यान रखकर चिड़ियाघर तैयार नहीं करते, उनका जोर इसे चिड़ियाघर घूमने आये लोगों के मौज-मजे को ध्यान रखकर तैयार करने पर होता है.