भारतीय मुसलमानों में कट्टरपंथ फैलाने का मुद्दा कुछ समय से जोर पकड़ रहा है. कुछ लोग यह कह लगातार आंख मूंदे हुए हैं कि ‘किसी और देश में ऐसा होता है ’ जबकि कुछ लोगों ने स्थिति की गंभीरता को समझना शुरू कर दिया है और वे इससे निपटने के तरीके सुझा रहे हैं.
पेश है भारत में फैलते कट्टरपंथ पर तुफै़ल अहमद की चार लेखों की एक श्रृंखला जिसमें वे ऐसी परिस्थितियों और परिदृश्यों का जायजा ले रहे हैं जिनके कारण महाराष्ट्र, हैदराबाद, केरल और समूचे भारत में युवाओं को कट्टरपंथी बनाया जा रहा है. पेश है इस श्रृंखला का दूसरा हिस्सा.
नौ अगस्त को उर्दू अखबार रोजनामा इंकलाब ने तीन रिपोर्टें छापी जिनमें बताया गया था कि महाराष्ट्र में इस्लामिक स्टेट यानी आईएस के पक्ष में किस तरह मुसलमानों में कट्टरपंथ फैलाया जा रहा है.
एक रिपोर्ट में मुस्लिम नेता अबु आसिम आजमी का हवाला दिया गया था. इसके मुताबिक मुंबई में उन्होंने मुसलमानों से कहा, 'इस्लामिक स्टेट एक गैर-इस्लामी संगठन है और यह मुसलमान युवाओं को गुमराह कर उनका इस्तेमाल कर रहा है. इसका इस्लाम से कोई संबंध नहीं है.'
दूसरी रिपोर्ट में जलगांव जिले के कलेक्टर को चिट्ठी भेजकर स्वतंत्रता दिवस पर जलगांव के चार ट्रेन स्टेशनों और शिरडी जैसे धार्मिक स्थलों को बम से उड़ाने की धमकी दी गई. चिट्ठी में 'पाकिस्तान जिंदाबाद, भारत मुर्दाबाद' जैसे नारे लिखे थे.
तीसरी रिपोर्ट में बताया गया था कि आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) ने हिंगोली शहर से एक उर्दू स्कूल टीचर रईसुद्दीन सिद्दिकी को गिरफ्तार किया है क्योंकि वह आईएस में भर्ती होने की कोशिशों में लगा था.
ये रिपोर्टें मुसलमानों के सामने मौजूद जिहादी समस्याओं का सार बयान करती हैं. पहला, आजमी का बयान सच से आंख चुराने जैसा है जिसमें मुसलमानों से कहा है कि वे अपनी युवा पीढ़ी में फैलती कट्टरता पर आंखें मूंद लें. दूसरा, चिट्ठी में 'पाकिस्तान जिंदाबाद, भारत मुर्दाबाद' के नारे से पता चलता है कि पाकिस्तान समर्थक नारे कुछ मुसमलान और हिंदू पत्रकारों की नजरों में जायज हैं.
ठीक इसी तरह, जम्मू कश्मीर से बाहर मिसाल के तौर पर बिहार के नालंदा जिले में पाकिस्तानी झंडे फहराए जाने को मुसलमान ठीक समझते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि नीतीश कुमार जैसे नेता पाकिस्तान का दौरा करते हैं. ऐसे नेता अनजाने में भारतीय मुसलमानों को एक सामाजिक संदेश देते हैं कि वे पाकिस्तानी हैं. ऐसे नेता बांग्लादेश का दौरा तो कभी नहीं करते.
एक और बंटवारा
इस तरह की बातें भारतीय समाज को बांटती हैं. विचार सकारात्मक हों या नकारात्मक, उनका लोगों और राष्ट्र पर असर पड़ता है. भले ही हम चाहें या न चाहें. पत्रकार सिद्धार्थ सिंह कहते हैं कि हम 'विभाजन का एक नया चक्र' देख रहे हैं. यह भारत की क्षेत्रीय अखंडता के लिए एक दीर्घकालीन खतरा बन सकता है.
भारत में जमीयत-उलेमा-ए-हिंद जैसा प्रभावशाली संगठन है जो कहता है कि भारत का संविधान मुस्लिम पर्सनल लॉ पर लागू नहीं हो सकता.
हाल में उज्जैन के तीस मदरसे सुर्खियों में थे क्योंकि उन्हें खाने में भी मजहब दिखाई देता है. उन्होंने एक हिंदू मंदिर से मिड डे मील लेने से इनकार कर दिया.
2014 में झारखंड के धनबाद जिले में नौजवानों ने टीशर्ट पहनी हुई थीं जिन पर 'इस्लामिक स्टेट पाकिस्तान' जैसे नारे लिखे हुए थे.
लेकिन भारतीय राज्य के सामने जो तत्काल मुद्दा है वह आईएस समर्थक कट्टरपंथ का है. जिहादी गुट तभी सफल होते हैं जब समाज में विचारों का एक ऐसा ढांचा मौजूद हो जो उनके लक्ष्यों की हिमायत करता हो.
अन्य राज्यों के मुकाबले, पिछले तीन साल के दौरान महाराष्ट्र में मुसलमान युवाओं को शायद सबसे ज्यादा कट्टरपंथी बनाया गया है. यहीं से और खास कर मुंबई से चार युवक 2014 में आईएस में भर्ती होने के लिए इराक गए थे. इनमें से अरीब मजीद नाम के युवक को तुर्की से वापस लाया गया जहां वह सीरिया में घायल होने के बाद इलाज के लिए पहुंचा था.
अहम बात यह है कि अबु बकर अल बगदादी की तरफ से खुद को सभी मुसलमानों का खलीफा घोषित किए जाने से बहुत पहले ही इन चारों ने भारत छोड़ दिया था. इसके बाद सोचा गया कि मुसलमानों को कट्टरपंथी बनाने का सिलसिला थम जाएगा. पर हुआ इसका उल्टा.
जारी है कट्टरपंथ का फैलाव
हाल में औरंगाबाद जिले से हुई गिरफ्तारियों से संकेत मिलता है कि महाराष्ट्र में 2014 से लेकर अब तक लगातार कट्टरपंथ फैल रहा है. गिरफ्तार किए गए सभी लोग परभानी से थे. नसीर बिन याफी उर्फ चाउ को 14 जुलाई और मोहम्मद शाहिद अली खान को 23 जुलाई को गिरफ्तार किया गया. इसके बाद 8 अगस्त को एटीएस ने इकबाल अहमद, कबीर अहमद और रईसुद्दीन सिद्दीकी को गिरफ्तार किया. इन चारों में से चाऊ सीरिया में एक जिहादी फारूकी के संपर्क में था.
मीडिया रिपोर्टों में अलग-अलग नेताओं के हवाले से औरंगाबाद और नांदेड़ इलाके से लापता मुसलमान युवाओं की संख्या कम से कम आठ और ज्यादा से ज्यादा सौ तक बताई गई. ये आंकड़े सही नहीं है लेकिन इनसे लोगों की चिंताओं के स्तर को समझने में मदद मिलती है.
इसी वजह से एटीएस ने महाराष्ट्र में 'आई एम एंटी-टेरेरिस्ट' नाम की मुहिम शुरू की है, जिसमें 25 हजार कॉलेज छात्रों को शामिल किया गया है.
अहम बात यह है कि परभानी से हुई गिरफ्तारियों से मुसलमानों के बीच कट्टरपंथ का चलन खत्म नहीं हुआ. 2015 में चार मुसलमान युवा वाजिद शेख, मोहसिन इब्राहिम, अयाज सुल्तान और नूर मोहम्मद शेख मुंबई के करीब मलवानी इलाके से लापता हो गए. इनमें से दो तो लौट आए लेकिन अयाज इराक चला गया.
इस साल गणतंत्र दिवस से पहले, सुरक्षा अधिकारियों ने छह शहरों में 12 ठिकानों से 14 युवाओं को गिरफ्तार किया. ये गिरफ्तारियां तुमकुर, मंगलुरु, बेंगलुरु, हैदराबाद, लखनऊ और मुंबई से हुईं. इनमें से वैजापुर के रहने वाले इमरान मोअज्जम खान पठान और मुम्ब्रा के मुदब्बिर शेख, दोनों महाराष्ट्र के थे. पठान से जुड़े एक अन्य व्यक्ति खालिद अहमद अली नवाजुद्दीन को उत्तर प्रदेश के कुशीनगर से गिरफ्तार किया गया.
कट्टरपंथ के तार
जिस तरह बांग्लादेश में जिहादियों की मौजूदा फसल जमात-ए-इस्लामी से निकले जमातुल मुजाहिदीन बांग्लादेश से पैदा हो रही है. ठीक उसी तरह भारत में बहुत से संदिग्ध इंडियन मुजाहिदीन या स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट इन इंडिया (सिमी) जैसे आतंकवादी गुटों से जुड़े दिखाई देते हैं.
सिमी जमात-ए-इस्लामी-हिंद से निकला है. चाऊ 2012 में पुलिस मुठभेड़ में मारे गए सिमी के सदस्य खलील कुरैशी की मौत का बदला लेने के लिए अकेले दम पर औरंगाबाद के पुलिस मुख्यालय पर हमला करना चाहता था. कुरैशी को खलील खिलजी के नाम से भी जाता था, जो अयोध्या मामले पर फैसला देने वाले जजों की हत्या की योजना बनाने वाले एक मॉड्यूल का हिस्सा था.
महाराष्ट्र में कुछ और मामले भी सामने आए हैं. इनमें अनीस अंसारी का मामला भी शामिल है. अनीस अंसारी बांद्रा में एक अमेरिकन स्कूल पर आत्मघाती हमले की योजना बनाने के मामले में गिरफ्तार किया गया था. पुणे की 16 साल की एक लड़की को हिरासत में लिया गया जो आईएस में शामिल होना चाहती थी. इसके अलावा नागपुर एयरपोर्ट पर हैदराबाद के तीन युवकों को हिरासत में लिया गया जो आईएस में शामिल होने जा रहे थे.
साथ ही महाराष्ट्र के शोएब अहमद खान और शाह मुदस्सिर को हैदराबाद में हिरासत में लिया गया. मुंबई के एक पत्रकार जुबैर अहमद खान को दिल्ली में गिरफ्तार किया गया क्योंकि आईएस में शामिल होने के लिए वह वीजा की खातिर इराकी दूतावास में गया था.
इसी साल मुंबई में रहने वाले एक परिवार के पांच लोग आईएस में शामिल होने के लिए भारत से रवाना हुए.
यवतमाल जिले के पुसाड में एक पुलिसवाले को चाकू घोंपे जाने के बाद एक मौलवी को गिरफ्तार किया गया है. जिसने हमला करने वाले अब्दुल मलिक और अन्य लोगों को कट्टरपंथी बनाया था.
इन पर रखी जानी चाहिए नजर
फिलहाल, अनुमान है कि आईएस में शामिल होने वाले भारतीय मुसलमानों की संख्या लगभग 30 है. लेकिन यह ज्यादा भी हो सकती है.
जून में खुफिया एजेंसियों के कुछ इंटरव्यू से पता चला कि पुणे में कुछ शिक्षित और अमीर मुसलमान युवा खिलाफत के वैश्विक विचार की तरफ आकर्षित हैं और मानते हैं कि शरिया कानून भारतीय संविधान से ऊपर है.
ये सारे लोग राज्य के दुश्मन नहीं, लेकिन इनमें से कुछ लोगों को इस्लामी उपदेशक कट्टरपंथी बना सकते हैं. कट्टरपंथ को रोकने के लिए भारत को मौलवियों, टीवी के जरिए उपदेश देने वाले जाकिर नाइक और भाई इमरान जैसे प्रचारकों और उर्दू पत्रकारों के साथ साथ खुद को शांतिपूर्ण बताने वाले इस्लामी संगठनों पर नजर रखनी होगी.
इस श्रृंखला का पहला हिस्सा यहां पढ़ें: 'भारत में इस्लामी कट्टरता की जड़ें गहरी जमी'