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राग दरबारी: जब गाते-गाते मोहम्मद रफी के गले से खून आ गया

गाने की रिकॉर्डिंग के बाद रफी साहब काफी दिनों तक गाना नहीं गा सके क्योंकि उनकी आवाज बैठ गई थी.

Shivendra Kumar Singh

नौशाद साहब ने एक बार एक अखबार में बड़ी ही दिलचस्प खबर पढ़ी ये जिक्र उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में किया था. हुआ यूं कि एक शहर में किसी को फांसी का हुकुम हुआ. फांसी के रोज उस मुलजिम से पूछा गया कि 'तुम्हारी आखिरी इच्छा क्या है, कुछ खाओगे? कुछ पियोगे? किसी से मिलोगे?' मुलजिम ने कहा, 'नहीं'.

जेल के अधिकारियों ने दोबारा पूछा, 'कोई आखिरी तमन्ना.' उसने कहा, 'हां एक तमन्ना है', अधिकारियों ने पूछा- क्या? मुलजिम ने कहा- 'मुझे फांसी से पहले वो गीत सुना दिया जाए- ओ दुनिया के रखवाले, सुन दर्द भरे मेरे नाले, जीवन अपना वापस ले ले जीवन देने वाले.'


फांसीघर में ऐसा ही किया गया. टेप रिकॉर्डर मंगाया गया और फांसी पर लटकाने से पहले उसे वो गाना सुनाया गया. इस दिलचस्प किस्से के बहाने राग दरबारी का जिक्र करें उससे पहले ये गाना सुन लेते हैं.

इस क्लिप को ध्यान से देखिए नौशाद साहब बाकयदा इस बात का भी जिक्र कर रहे हैं कि उन्होंने इस गाने को राग दरबारी में क्यों ‘कंपोज’ किया था.

जिस इंटरव्यू का जिक्र इस पोस्ट की शुरूआत में किया था, उसी में आगे नौशाद साहब बताते हैं कि उस गाने के लिए रफी साहब ने पंद्रह बीस दिन रिहर्सल किया था. नौशाद साहब ने सोचा था कि उनकी आवाज की जो ‘रेंज’ है यानी बुलंदी है उसका कितना इस्तेमाल किया जा सकता है.

ये बात भी सही है कि इस गाने की रिकॉर्डिंग के बाद रफी साहब काफी दिनों तक गाना नहीं गा सके क्योंकि उनकी आवाज बैठ गई थी. कुछ लोगों ने तो ये भी कहा था कि इस गाने के दौरान रफी साहब के गले से खून आ गया था. हालांकि रफी साहब ने नौशाद साहब से कभी इस बात का जिक्र नहीं किया.

गौर करने वाली बात ये भी थी कि ये गाना नौशाद साहब ने काफी अरसे के बाद दोबारा रिकॉर्ड किया था और पिछली बार के मुकाबले रफी साहब ने इस बार दो सुर और ऊपर लगाए थे.

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राग दरबारी का एक और किस्सा दिलचस्प है. आपको वो कव्वाली जरूर याद होगी- दमादम मस्त कलंदर, इस हिट कव्वाली को गाने वाले कलाकार जानी बाबू को हिंदी फिल्मों में सिर्फ एक गीत के लिए याद किया जाता है.

वो गीत 1965 में आई फिल्म ‘नूरमहल’ का था. बोल थे- ‘मेरे महबूब ना जा आज की रात ना जा’. सुमन कल्याणपुर की आवाज में गाए इस गीत का आनंद लीजिए.

इस बात का भी जिक्र करते चलें कि बीते दौरे के लोकप्रिय गानों में 'दिल जलता है तो जलने दे आंसू ना बहा फरियाद ना कर' ( फिल्म-पहली नजर) 'तू प्यार का सागर है तेरी एक बूंद के प्यासे हम' (फिल्म-सीमा ) 'हम तुमसे जुदा होकर मर जाएंगे रो रोकर' (फिल्म-एक सपेरा एक लुटेरा) और 'सुहानी चांदनी रातें हमें सोने नहीं देतीं' (फिल्म- मुक्ति) जैसे लोकप्रिय गाने भी इसी राग पर कंपोज किए गए थे.

इस राग के शास्त्रीय पक्ष की तरफ आपको ले चलें उससे पहले इस राग में कंपोज किया गया एक बेहद लोकप्रिय फिल्मी गाना आपको और सुना देते हैं. जो इस राग की गंभीर छवि से अलग दिखता है.

अमूनन ‘सैड सॉन्ग’ की प्रवृति से इस राग को बाहर निकालता है और प्रेमगीत में बदलता है. फिल्म थी- साजन. अपने दौर की इस सुपरहिट फिल्म में नदीम श्रवण ने इस गाने को राग दरबारी में कंपोज किया था-

अब इस राग के शास्त्रीय पक्ष की बात करते हैं. शास्त्रीय पक्ष पर बात करने से पहले एक ऐसा किस्सा जो आपको इस राग के महत्व के बारे में बताएगा. जाने माने सरोद वादक और बेहद लोकप्रिय कलाकार उस्ताद अमजद अली खान के पिता उस्ताद हाफिज अली खान बहुत ही सादी तबीयत के सच्चे संगीतकार थे. अमजद अली खान बताते हैं कि हाफ़िज अली खान को पद्म भूषण दिया गया तो उन्हें देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद से मिलने का मौका मिला.

राजेंद्र बाबू ने पूछा- ‘खान साहब आप ठीक तो हैं ना, बताइये हम आपके लिए क्या कर सकते है?’ हाफ़िज अली खान ने कहा- ‘राग दरबारी की शुद्धता खतरे में है, तानसेन का बनाया राग है, आजकल लोग उसकी शुद्धता पर ध्यान नहीं दे रहे, इसके लिए कुछ कीजिए.’

राजेंद्र बाबू उनके भोलेपन पर मुस्कुरा कर रह गए. ग्वालियर में उस्ताद हाफ़िज अली खान के पुश्तैनी घर को म्यूजियम बना दिया गया है. नाम है- सरोद घर. वहां पुराने उस्तादों के साज़ रखे हैं, अनगिनत दुर्लभ तस्वीरें रखी हैं.

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राग दरबारी के आरोह अवरोह को जान लेते हैं. इसकी जाति सम्पूर्ण षाडव है. जिसमें वादी स्वर - रिषभ (रे) है और सम्वादी स्वर -पंचम (प). इस राग में गन्धार, निषाद व धैवत कोमल लगता है. शेष सभी स्वर शुद्ध लगते हैं. इस राग का थाट आसावरी है.

आरोह- सा रे ग_s म प ध_- नि_ सां,

अवरोह- सां, ध॒, नि॒, प, म प, ग॒, म रे सा.

पकड़- ग॒ रे रे, सा, ध॒ नि॒ सा रे सा

आज शास्त्रीय संगीत की थोड़ी और बारीकियों से आपको परिचित कराते हैं. कहते हैं कि संगीत सात सुरों से बना हुआ है. वो सात सुर हो गए- ‘स’ ‘रे’ ‘ग’ ‘म’ ‘प’ ‘ध’ ‘नी’.

एक सप्तक में पारंपरिक तौर पर सात सुर होते हैं. इससे आगे अगर थोड़ी सी और बारीक जानकारी आपको दी जाए तो दरअसल एक सप्तक में दरअसल बारह सुर होते हैं. इसको और आसानी से इस तरह समझिए कि अगर हम हारमोनियम पर शुद्ध ‘स’ ‘रे’ ‘ग’ ‘म’ ‘प’ ‘ध’ ‘नी’ बजा रहे हैं तो दरअसल शुद्द ‘स’ और ‘रे’ के बीच में एक और सुर होता है जिसको हम छोड़ देते हैं. उसे कहते हैं कोमल ‘रे’. ऐसे ही कोमल ‘ग’ छोड़ते हैं.

ऐसे ही एक सप्तक में हम जितने सुरों को छोड़ते जाते हैं अगर उन्हें भी जोड़ लिया जाए तो एक सप्तक में बारह सुर हो जाएंगे. इसमें से सात सुर शुद्ध होते हैं और पांच विकृत.

विकृत सुर भी दो तरह के होते हैं- कोमल और तीव्र. ‘रे’ ‘ग’ ‘ध’ ‘नी’ कोमल विकृत हो सकते हैं. विकृत को थोड़ा आसान करके इस तरह भी समझा जा सकता है कि शुद्ध से ठीक पहले वाला सुर कोमल सुर होता है. बस ध्यान रखने वाली बात ये है कि कोमल ‘म’ नहीं होता. ‘म’ और ‘प’ के बीच जो सुर छूटता है वो तीव्र ‘म’ कहलाता है. सप्तक में अचल सुर ‘स’ और ‘प’ होते हैं. कोमल सुरों के नीचे ‘हाइफन’ लगाते हैं और तीव्र के ऊपर एक बिंदु लगा देते हैं.

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शास्त्रीय गायक पंडित छन्नू लाल मिश्रा का ये वीडियो देखिए, जिसमें वो राग दरबारी के बारे में एक एक बात बहुत विस्तार से बता रहे हैं. पंडित छन्नू लाल मिश्रा का ये अंदाज हमेशा से काफी लोकप्रिय है जिसमें वो श्रोताओं को राग के बारे में एक एक बारीकियां बड़े ही इत्मीनान से बताते हैं.

इस राग की विविधता को जानने के लिए आपको इसकी एक और तस्वीर दिखाते हैं. मरहूम कव्वाल उस्ताद नुसरत फतेह अली खान का ये वीडियो देखिए, जिसमें वो पीटर गैब्रियल के साथ अपनी जुगलबंदी का जिक्र कर रहे हैं. राग वही है- दरबारी. पीटर ग्रैबिएल पाश्चात्य संगीत का जाना माना नाम है.

राग दरबारी की विविधता को और विस्तार से समझने के लिए ये वीडियो जिसमें हरिहरन इस राग में हनुमान चालीसा कंपोज की है. इस वीडियो का जिक्र इसलिए किया क्योंकि ये हिंदुस्तानी रागों की खूबसूरती है कि जिस कलाकार ने जिस अंदाज और निगाह से उस राग को देखा, उस राग में खोया उसने कोई नई ही चीज तैयार कर डाली.

इस कॉलम के अगले हिस्से में एक और हिंदुस्तानी राग को समझने की कोशिश करेंगे. उसके अलग अलग रंग आपको दिखाएंगे. बस आज खत्म करने से पहले एक बात का जिक्र कर दें कि राग दरबारी नाम से हिंदी के मशहूर साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल का एक उपन्यास भी है. जिसके लिए उन्हें साहित्य अकादेमी सम्मान से नवाजा गया था.