एक बार की बात है हिंदी की प्रसिद्ध कवयित्री महादेवी वर्मा की मुलाकात एक कार्यक्रम में सुमित्रानंदन पंत से हुई. पंत जी ने जैसे ही अपना नाम बताया महादेवी बुरी तरह हंसने लगीं. अपनी किताब ‘पथ के साथी’ में महादेवी लिखती हैं कि वो पूरी अशिष्टता से हंसे जा रही थी.
दरअसल महादेवी को भी सुमित्रानंदन पंत के बारे में वही भ्रम था जो काफी समय तक बहुतों को रहा. महादेवी ‘सुमित्रा जी’ को महिला समझती थीं. छल्लेदार लंबे बाल, गोरे रंग और कोमल हाव-भाव के चलते ऐसा भी हुआ है जब पंत जी को किसी ने मेमसाहब कह दिया हो.
निराला और पंत की दोस्ती और झगड़ा
इन दोनों समकालीन महानतम कवियों के बीच बड़ा ही अजीब रिश्ता रहा. दोनों अलग-अलग वजहों से एक दूसरे के मुरीद भी रहे और एक दूसरे की बुरी तरह आलोचना और निंदा भी करते रहे. दोनों ने पहले एक दूसरे की रचनाएं ‘सरस्वती’ में पढ़ीं और पत्र लिखकर तारीफ की. मगर जब दोनों आपस में मिले तो काफी बातें बदल गईं.
रामविलास शर्मा निराला की साहित्य साधना लिखते हैं कि निराला हमेशा से राजकुमार बनना चाहते थे. और पंत राजकुमार थे. 65 कमरों के मकान में रहने वाला. हाथ में हीरे की अंगूठी. गोविंद बल्लभ पंत जैसे प्रतिष्ठित लोगों के साथ उठने-बैठने वाला. निराला ये सब पाना चाहते थे और पंत इन सबको जी रहे थे. दूसरी ओर निराला के पास एक अलग तरह का वैराग्य, उग्रता और आकर्षण था जो पंत के पास नहीं था.
तुम राधा और मैं कृष्ण
निराला ने अपना उपन्यास ‘अप्सरा’ जिसे वो हिंदी के अभाव खत्म करने वाला मानते थे, पंत को समर्पित कर दिया. लखनऊ प्रवास के दौरान निराला सायटिका के भीषण दर्द से पीड़ित थे. पंत उनकी कमर पर चढ़कर पैरों से मालिश किया करते थे. दोनों के बीच की घनिष्ठता इतनी बढ़ी कि निराला कहते कि तुम राधा हो मैं कृष्ण हूं. पंत को भी निराला का चेहरा कृष्ण जैसा नीला लगता.
पंत का लेख और निराला की कविता
पंत के काम में जो आत्ममुग्धता दिखती है वो उनके व्यहवार की कोमलता में छिप जाती थी. पंत ने अपनी किताब पल्लव की भूमिका लगभग 40 पन्नों में लिखी इसमें हिंदी के कई रीतिकालीन कवियों को लगभग खारिज कर दिया. इसमें उन्होंने निराला के मुक्त छंद को हिंदी कविता के अनुकूल नहीं माना.
रामविलास शर्मा 'निराला की साहित्य साधना' में भी पंत और निराला के बीच मनमुटाव का जिक्र करते हुए कहते हैं कि पंत निराला के मुक्त छंद को कई बार खोटा कहा था. हालांकि कई बार पंत ने निराला के मुक्त छंद की प्रशंसा भी की है.
इसी तरह के तमाम कारणों से पंत और निराला की मित्रता में कुछ कड़वाहट सी आ गई. एक ओर पंत को सारे सम्मान मिलते जा रहे थे और खुद को तुलसी, टैगोर और ग़ालिब की श्रेणी का प्रतिभावान कवि मानने वाले निराला कुंठित हो रहे थे.
क्या 'कुकुरमुत्ता' कविता पंत पर थी कटाक्ष?
निराला की प्रसिद्ध कविता 'कुकुरमुत्ता' को लेकर सबसे प्रचलित मत हैं कि ये कविता सर्वहारा और पूंजीवाद के वर्ग संघर्ष पर लिखी गई है.
इसके बारे में कुछ और समीक्षक अलग मत भी रखते हैं. आलोचक और कवि शिव ओम अंबर निराला के एक करीबी साहित्यकार से हुई बातचीत का हवाला देते हुए कहते हैं कि जिस तरह के रूपक और उपमान इस कविता में गुलाब के लिए आए हैं वे पंत के लिए इस्तेमाल किए गए हैं वो पंत को निशाना बनाते हैं और ये पंत को सीधे तौर पर दी हुई गाली है.
हालांकि ये लंबी कविता है जो इसके बाद व्यापक हो जाती है और किसी एक विशेष व्यक्ति पर केंद्रित नहीं रहती. हां इस बात को किसी प्रसिद्ध आलोचकों ने किसी पुस्तक में मान्यता नहीं दी. मगर समीक्षकों के एक बड़े वर्ग में इसकी चर्चा होती है.
शुरुआत की कुछ पंक्तियों पर गौर फरमाइये.
'अब, सुन बे, गुलाब,
भूल मत जो पायी खुशबू, रंग-ओ-आब,
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट,
डाल पर इतरा रहा है कैपीटलिस्ट'
राजभवन के बाग में उगने वाला सुंदर गुलाब मतलब सुमित्रानंदन पंत और गंदगी में खुद उग आया कुकुरमुत्ता मतलब सूर्यकांत त्रिपाठी निराला. दरअसल पंत की कालाकांकर के राजकुमार से घनिष्ठ मित्रता थी. जिनके सहयोग से पंत ने 'रूपाभ' नामक पत्रिका भी निकाली थी.
इसके बाद भी दोनों के बीच के ये खट्टे-मीठे संबंध बने रहे. पंत बीमार पड़ते तो निराला परेशान रहते. निराला की तारीफ भी पंत कर देते.
हरिवंश राय बच्चन के बेटे को उसका नाम अमिताभ देने वाले सुमित्रानंदन पंत एक ऐसे कवि हैं जिसने चींटी, सेम, पल्लव जैसे विषयों पर कविता लिखी. ब्रज भाषा के भाषाई सौंदर्य के बीच नहाती, ठिठोली करती और कान्हा के विरह की आग मे जलती गोपियों के बाद हिंदी काव्य कालिदास के जिन प्रकृति से जुड़े उपमानों को भूल गया था, पंत उसे वापस लेकर आए. अपनी कृति पल्लव के साथ घोषणा की कि हिंदी काव्य अब तुतलाना छोड़ चुका है. उनकी प्रसिद्ध कविता के लिरिकल फ्लो को पढ़िए और उसे अंग्रेज़ी के पीबी शेली की प्रसिद्ध कविता से भाव और लय दोनों के स्तर पर तुलना करिए.
‘वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान,
निकलकर आंखों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान’ (सुमित्रानंदन पंत)
‘ऑवर स्वीटेस्ट सॉन्ग्स आर दोज़
दैट टेल ऑफ सैडेस्ट थॉट’ (पी. बी. शैली)