'हमारे देश में अगर कोई मेल बॉस बहुत जोश-खरोश के साथ काम करे तो उसकी प्रशंसा होती है लेकिन जब कोई महिला बॉस यही जोश-खरोश दिखाए तो उसे शी-डेविल करार दिया जाता है', समाज के लिंगभेद को कुछ यूं बयां करती हैं जानी मानी लेखिका सुधा मेनन.
सुधा अपनी नई किताब लॉन्च कर रही हैं, जिसका नाम है- देवी, दीवा ऑर शी डेविल.
अपने किताब के नाम पर सुधा कहती हैं, 'हमारे देश में या तो आप देवी बनकर घर के सारे काम करते रहें. अपने आगे दूसरों की भलाई को अहमियत दें. अगर आप अपनी शर्तों पर जिंदगी जी लें तो आप दीवा कहलाती हैं.'
'लेकिन अगर आप किसी ऐसी जगह पर बैठी हैं, जो बहुत महत्वपूर्ण है, जहां आप खुलकर कह सकें कि आप क्या सोचती हैं, तो आप निश्चित ही शी डेविल बन जाती है. मेरी ये किताब ऐसी ही औरतों के लिए है जो इन हालातों में पड़ जाती हैं और उन्हें एक सर्वाइवल गाइड की या टिप्स की जरूरत होती है.'
सुधा मेनन एक जानी मानी पत्रकार, कॉलमनिस्ट और फिक्शन-नॉन फिक्शन राइटर हैं. इसके पहले सुधा की तीन किताबें- 'लीडिंग लेडीज', 'लेगेसी' और 'गिफ्टेड' जैसी किताबें पब्लिश हो चुकी हैं.
सुधा बताती हैं, 'इस किताब के लिए मैंने कई जानी-मानी महिलाओं से बातें की और उनके संघर्ष को कहानी के रूप में लिखा है. जैसे, मनिषो गिरोत्रा जो मोएलिस बैंक की सीईओ हैं,ने बड़ी अजीब सी बात शेयर की कि वो इस बात पर इतनी घबराई हुई थीं कि अगर क्लाइंट को मालूम पड़ा कि वो प्रेगनेंट हैं, तो कहीं बैंक की डील को नुकसान ना हो जाए.
सुधा आगे बताती हैं, 'वो पहली बार प्रेगनेंट थी और उन्हें लंदन में एक मीटिंग में जाना था. उस पूरी मीटिंग के दौरान वो लंबा सा ओवरकोट पहने रहीं ताकि क्लाइंट को ये मालूम ना पड़े कि वो प्रेगनेंट हैं, वर्ना सामने वाले सोच सकते थे कि अब ये महिला तो डिलिवरी और मैटरनिटी ब्रेक पर जाएगी और हमारी डील का क्या भविष्य होगा. ये सोच उनके डील के भविष्य को बदल सकता था. ये बताता है कि कार्यस्थल में जेंडर बाएस कितना ज्यादा है. हमने ऐसे कई उदाहरण इस किताब में शामिल किए हैं ताकि हम लोगों को बता सकें कि ये सोचने का विषय है.'
मेरे साथ भी ऐसा ही होता था जब मैं अपने पत्रकारिता के समय में घर के कई समारोह में नहीं जा पाती थी तो लोग मेरे बारे में कहते थे कि बहुत एंबिशियस है.
सुधा आगे जोड़ती हैं, 'आज भी हमारे देश में महिलाओं का एंबिशयस होना गलत माना जाता है. फेमिनिस्ट शब्द को हेय बात के रूप में देखा जाता है.
रेनड्रॉप मीडिया की मालकिन रोहिणी अय्यर की ही बात कर लें. रोहिणी का मानना है कि उन्हें इस बात को कहने में कोई आपत्ति या खेद नहीं हैं कि वो एंबिशयस हैं और उनके अपने सपने हैं. उन्हें अपने सपनों को पाने के लिए कड़ी मेहनत करने में भी कोई परेशानी नहीं है.
सुधा कहती हैं, 'मैं चाहती हूं कि हर महिला ये बात बार-बार कहे. किताब के जरिए मैं कहना चाहती हूं कि सब कुछ करने के चक्कर में मत रहो. आसानी से भी ये सारे काम किए जा सकते हैं. करियर और घर में सब काम परफेक्टली करने की कोशिश में नहीं लगना है. खुश भी होना जरूरी है.'
फ़र्स्टपोस्ट ने सुधा से पूछा कि ये सारी बातें उन्होंने महिलाओं के लिए लिखी हैं? क्या जरूरी नहीं कि इसे मर्द भी पढ़ें और जानें कि महिलाएं किन बातों से जूझती हैं?
सुधा इसका बड़ा दिलचस्प जवाब देती हैं, 'मैं अपनी निजी बात बताती हूं. मेरा एक ड्राइवर है. पिछले कई सालों से हमारे साथ है उसकी शादी हुई फिर बच्चा भी हुआ.
वो मेरी किताबें खरीद रहा था और पूछने पर बताया कि वो ये किताबें पढ़ना चाहता है और अपनी बेटी को भी पढ़ाना चाहता है.
वो महिलाओं के लिए अपनी सोच को बदलना चाहता है, वो मेरी हर किताब खरीदकर पढ़ता है और साथ ही मराठी-इंग्लिश डिक्शनरी भी साथ रखता है, ताकि लिखी बातों को अपनी भाषा में भी समझ सके.
मुझे ये लगता है कि अगर कुछ बदलना है, तो मर्दों को भी ये किताब पढ़नी चाहिए. हम महिलाएं बिल्कुल ठीक जा रही हैं.
इस किताब में ओलंपिक गोल्ड मेडलिस्ट मैरी कॉम, कोरियोग्राफर फराह खान जैसी महिलाओं के सफलता और मुश्किल वक्त का सामना करने की कहानी है.