view all

शेक्सपियर सबसे बड़ा साहित्यकार या कोरी कल्पना की उड़ान?

रोलां एमरिच की फिल्म थी 'एनॉनिमस' और फिल्म का सब्जेक्ट था- शेक्सपियर 'फेक' था

Avinash Dwivedi

हॉलीवुड निर्देशक रोलां एमरिच ने 2011 में एक फिल्म बनाई थी 'एनॉनिमस'. फिल्म का सब्जेक्ट था- शेक्सपियर 'फेक' था. फेक यानि जालसाज. निर्देशक की शेक्सपियर से क्या जाती दुश्मनी थी ये तो वही जाने पर फिल्म की खूब तारीफ हुई.

निर्देशक रोलां एमरिच ने भी की कई फिल्में, जैसे, यूनिवर्सल सोल्जर (1992), इनडिपेंडेंस डे (1996), गॉडजिला (1998) और 2012 (2009) भी डायरेक्ट की हैं. फिल्म के प्रमोशन के लिए रोलां एमरिच ने एक वीडियो बनाया, जिसमें वो शेक्सपियर के फेक होने के बारे में तर्क देते हैं.


तर्क ऐसे हैं दिए गए हैं कि एकबारगी आदमी मान ही बैठे कि एक-एक बात सही है. आपके सामने वो सारे तर्क पेश हैं. पढ़ें और फैसला करें कि बात में दम है या नहीं. सिनेमा आलोचकों ने भी फिल्म की तारीफ की.

फिल्म की कहानी इस तर्क पर आधारित है कि शेक्सपियर के नाम से जाने गए नाटक वास्तव में 'अर्ल ऑफ ऑक्सफोर्ड' ने लिखे हैं, जो शेक्सपियर ने अपने नाम से छपवा लिए. बेन जॉनसन भी इस षड्यंत्र का एक अंग हैं. ये संघर्ष आगे चलकर खूनी होता जाता है.

वो सारी बातें जो उन्होंने वीडियो में कही हैं उसे पढ़िए.

1.शेक्सपियर का हाथ से लिखा कहीं कुछ नहीं मिलता

शेक्सपियर के नाटकों की हस्तलिखित पांडुलिपि तो छोड़ ही दीजिए, कहीं एक छोटी कविता भी उनकी हैंडराइटिंग में नहीं मिलती. वो भी तब जब उनका अच्छा-खासा वक्त लंदन और स्ट्रैटफोर्ड के बीच गुजरा.

स्ट्रैटफोर्ड में ही शेक्सपियर का जन्म हुआ था और वहीं उनका पैतृक घर था. उपलब्ध तथ्यों से पता चलता है कि वो वहां अक्सर आया-जाया करते थे.

पर स्ट्रैटफोर्ड के घर से दूर रहने वाले शेक्सपियर ने कभी अपने घर एक पत्र भी नहीं लिखा, ये बात गले नहीं उतरती क्योंकि कोई भी घर से दूर रहने वाला साधारण से साधारण व्यक्ति कम से कम अपने घर के बारे में ये तो जरूर जानना चाहेगा कि घर पर सब कैसे हैं? बच्चे कैसे हैं?

फिर इतने बड़े लेखक का न ही घर पर, न ही किसी साथी को, न ही किसी तरह का ऑफिशियल खत लिखना. इस तथ्य पर विश्वास करना मुश्किल है ना?

2. अंग्रेजी साहित्य के महानतम रचनाकार के बच्चों को पढ़ना नहीं आता था

विलियम शेक्सपियर का जन्म स्ट्रैटफोर्ड के एक गरीब और अनपढ़ परिवार में हुआ था. हालांकि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि कई लोग ऐसी मुश्किल शुरुआत करने के बावजूद अपनी आगे की जिंदगी में बहुत अच्छा कर ले जाते हैं.

पर जो समझा पाना मुश्किल है वो ये है कि उसकी दोनों ही बेटियां सुजैना और ज्यूडिथ को न ही लिखना आता था, न ही पढ़ना.

ये लगभग अविश्वसनीय है कि दुनिया का सबसे महान साहित्य रचने वाले ने अपनी बेटियों को इस लायक भी नहीं बनाया कि वो उसके लिखे नाटक और कविताएं पढ़ सकें.

3. इंग्लैण्ड के हाई -फाई लोगों की जिंदगी के बारे में इतना कैसे जान गए

सभी जानते हैं कि स्ट्रैटफोर्ड के विलियम शेक्सपियर कुलीन वर्ग से नहीं आते थे. तब उन्होंने इतनी सफलतापूर्वक कुलीन परिवारों के बारे में, राजा के बारे में, रानी के बारे में और उससे भी कहीं ज्यादा कोर्ट की सारी गतिविधियों के बारे में कैसे लिख लिया?

ये माना जा सकता है कि ये सारी बातें उन्होंने किसी से सुनकर जानी और लिखी होंगीं. पर वर्णन इतना सटीक है कि माना नहीं जा सकता कि खुद किसी कुलीन वर्ग से आने वाले इंसान को छोड़कर इसे कोई और लिख सकता है! साथ ही शेक्सपियर के काम में कभी भी उनका परिवेश और समाज भी नहीं झलकता.

मसलन, उन्हीं के वक्त के दूसरे लेखक 'बेन जॉनसन' की बात करें तो बेन के काम में उनका समाज अच्छे से झलकता है, जिसमें बेन पले-बढ़े थे.

लेकिन शेक्सपियर के मामले में ये बात बिल्कुल ही उल्टी है क्योंकि शेक्सपियर अपने समाज के लोगों को कोई इज्जत नहीं देते बल्कि अपनी रचनाओं में उन्हें मजाकिया नाम देकर उनका मजाक भी उड़ाते हैं.

क्या आपको लगता है कोई भी उन लोगों का मजाक उड़ाएगा, जिनके बीच ही वो पला-बढ़ा है?

4. शेक्सपियर को ढंग से कलम पकड़ना नहीं आता था!

हमें शेक्सपियर की जो लिखावट उनके सिग्नेचर के तौर पर मिलती है वो है बड़ी ही बेतरतीब और गंदी है. जिससे समझ आता है कि इस बेचारे इंसान को तो अपना नाम लिखने में ही बहुत प्रॉब्लम होती रही होगी.

इस राइटिंग को उनके समकालीनों से तुलना करते हैं तो पाते हैं कि 'क्रिस्टोफर मार्लो', 'फ्रांसिस बेकन' और 'बेन जॉनसन' तीनों ही बेहतरीन राइटिंग वाले लोग थे और ये कहना बिल्कुल अविश्वसनीय होगा कि इतना ज्यादा साहित्य रचने वाले और अंग्रेजी के सबसे बड़े शब्दकोष के मालिक शेक्सपियर को कलम पकड़ने का एक्सपीरियंस नहीं रहा होगा.

शेक्सपियर के हस्ताक्षर

क्रिस्टोफर मार्लो, बेन जॉनसन, फ्रांसिस बेकन के हस्ताक्षर

5. शेक्सपियर के साहित्य में उसकी जिंदगी से जुड़ी कोई बात नहीं मिलती

मेरा मानना है कि लेखन दिल से निकलता है और लेखक की जिंदगी के कई अनुभवों की झलक उसमें देखने को मिलती है. पर जब बात स्टैनफोर्ड के विलियम शेक्सपियर की आती है तो ऐसा कुछ भी उनके साहित्य में दिखाई नहीं पड़ता.

शेक्सपियर दूसरी चीजों के वर्णन में अपना दिल निकाल के रख देते हैं पर अपने 11 साल के बच्चे की मौत पर कुछ भी नहीं लिखते.

वहीं बेन जॉनसन की एक बेहद भावुक कविता मिलती है, जो उन्होंने अपने बेटे की मौत पर लिखी थी. ये बात हर वक्त में होती रही है. बेन के बाद ऐसी ही कविता मार्क ट्वेन ने अपनी बेटी सुजैन के मरने पर लिखी थी और फिर कुछ दशकों पहले ही जॉन लिनेन ने अपनी मां जूलिया की मौत पर एक गाना लिखा था.

चाहे इस तथ्य को थोड़ा रोमांटिक ही मानें पर ये बात माननी होगी कि अच्छे कलाकार अपनी जिंदगी से इंस्पायर होते हैं.

जाहिर है, स्ट्रैटफोर्ड का शेक्सपियर ऐसा नहीं था. या फिर उसके साहित्य में जिन इवेंट का जिक्र है, वो शेक्सपियर के नहीं, 'अर्ल ऑफ ऑक्सफोर्ड' की जिंदगी का हिस्सा रहे होंगे. ऐसा संभव भी है क्योंकि अगर अर्ल ऑफ ऑक्सफोर्ड ने वो काम किए होते जो शेक्सपियर के नाम के साथ जुड़े हैं तो लोगों को कम आश्चर्य होता.

6. समझ आता है शेक्सपियर को उसकी पढ़ाई से ज्यादा ज्ञान हो गया था

बड़े-बड़े शिक्षा संस्थान तो छोड़ ही दें, कोई ऐसा जिक्र भी नहीं मिलता कि विलियम शेक्सपियर ने स्ट्रैटफोर्ड प्राइमरी स्कूल में भी एडमिशन लिया था. जबकि उनकी रचनाएं बताती हैं कि लेखक को दवाओं, खगोलविज्ञान, कला, संगीत, मिलिट्री, कानून और दर्शन का गहरा ज्ञान था.

इसके साथ ही कुलीनों को ही जिनकी जानकारी हो सकती हो ऐसी बातें, जैसे रॉयल टेनिस वगैरह का उन्हें अच्छा ज्ञान था.

माना जाता है, विलियम शेक्सपियर के पास अंग्रेजी शब्दों का अब तक का सबसे भण्डार था. ये कारनामा बिना स्कूल का मुंह देखे उन्होंने कर दिखाया था, ये सोचना बिल्कुल भी गले नहीं उतरता है.

7. इतना बड़ा साहित्यकार साहित्य को हमेशा के लिए कैसे छोड़ सकता है?

हम जानते हैं कि अपनी 40 की उम्र के आखिरी दौर में विलियम शेक्सपियर ने रिटायरमेंट ले लिया और वापस अपने स्ट्रैटफोर्ड वाले घर बैठ गए. वहां पर उन्होंने सारी जिंदगी एक भी कविता या नाटक नहीं लिखा बल्कि उन्होंने ऐसे जिंदगी गुजारी जैसे साहित्य से तो उनका कोई रिश्ता ही नहीं रहा है.

किसी भी कलाकार के लिए अचानक से अपनी कला से रिटायर हो जाना और जिंदगी भर उसके बारे में सोचना तक नहीं, ये बात हजम नहीं होती.

8. इंग्लैण्ड की सीमा से बाहर कदम भी न रखने वाले शेक्सपियर ने लिखा है विदेशों का ऑथेंटिक अकाउंट

किसी भी स्त्रोत से ऐसी कोई जानकारी नहीं मिलती कि विलियम शेक्सपियर कभी भी अपने देश इंग्लैण्ड की सीमाओं के बाहर कहीं गए थे. जबकि शेक्सपियर के लेखन में इटली के शहरों का बड़ी मात्रा में जिक्र मिलता है, फ्रांस के राजसी जीवन का भी. यहां तक की विदेशों के कुलीन समुदाय के रहन-सहन का भी इसमें अच्छी-खासी मात्रा में जिक्र होता है.

ये तो सोचने वाली बात है कि लेखक को उन सारे शहरों के बारे में ये जानकारी कैसे हुई जहां वो कभी गया ही नहीं था?

याद रखना चाहिए कि विलियम शेक्सपियर के सारे नाटकों में से एक तिहाई में इटली का जिक्र आता है. जो कि साफ बताते हैं कि इनका लेखक इन सारी बातों और जगहों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ था.

9. बोरे वाले शेक्सपियर को किताबों वाले शेक्सपियर से बदल दिया गया!

अब स्ट्रैटफोर्ड के मॉन्यूमेंट की बात करते हैं. इसमें शेक्सपियर बैठी हुई मुद्रा में हैं और एक कलम पकड़े हुए सामने कागज पर कुछ लिख रहे हैं.

इतिहासकार इस बात को मानते हैं कि शेक्सपियर की इस मूर्ति का पुनरुद्धार करवाया गया है. जबकि पहले इसी मूर्ति की तस्वीर में शेक्सपियर एक बोरा पकड़े हुए दिखाई देते हैं. ये भी एक कारण है कि शेक्सपियर को झूठा माना जा सकता है!

शेक्सपियर की वर्तमान मूर्ति

शेक्सपियर का पुराना स्मारक

10. मौत के वक्त शेक्सपियर को अपने साहित्य से कोई मतलब नहीं था?

क्या आप विश्वास कर पाएंगे कि इतने महान लेखक विलियम शेक्सपियर ने अपनी आखिरी वसीयत में अपनी एक भी किताब या किताब की पांडुलिपि का जिक्र नहीं किया है.

ऐसी किसी भी बात का जिक्र नहीं जो साबित कर सकें कि वो 36 नाटकों, 54 कविताओं और 3 चर्चित किताबों के लेखक हैं.

क्या उसे बिल्कुल भी चिंता नहीं थी कि उसके जाने के बाद उसके लिखे हुए साहित्य का क्या होगा?

इसके बजाए स्ट्रैटफोर्ड के विलियम शेक्सपियर को अपने दूसरे सबसे प्रिय पालतू जानवर की ज्यादा चिंता थी जो वो अपनी पत्नी के लिए छोड़े जा रहे थे. आखिर ये सारे तथ्य क्या साबित करते हैं.