view all

संतूर के संगीत से तर संकट मोचन संगीत समारोह

गुरुवार इस 6 दिनी संगीत समारोह के 94वें संस्करण का आखिरी दिन है

Avinash Mishra

‘संगीत मोक्ष तक पहुंचने का मार्ग है.’

‘संगीत में छल एक कदम भी चल नहीं पाता.’


‘संगीत का संपर्क हृदय को शुद्ध करता है.’

ये उद्धरण बनारस के संगीत-प्रेमियों के हैं. यहां संकट मोचन मंदिर में जारी संगीत समारोह में आए सारे संगीत-प्रेमियों के पास संगीत पर बात करने की एक अनूठी भाषा है. अपने प्रिय संगीतकारों की कुशलता और सहजता पर बात करते हुए वे उद्धरण छोड़ते हुए चलते हैं. ये उद्धरण किताबी नहीं हैं. ये सुनने के अनंत धैर्य से उपजे हैं. दुनिया को बहुत नहीं जान कर भी यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस प्रकार के संगीत प्रेमी दुनिया में और कहीं नहीं होंगे.

काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में प्राध्यापक और हिंदी के चर्चित कवि रामाज्ञा शशिधर गए 11 सालों से संकट मोचन संगीत समारोह में आ रहे हैं. रामाज्ञा मूलतः बेगूसराय से हैं और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पढ़े हैं, लेकिन संगीत की समझ उनमें बनारस आकर ही पैदा हुई. इस संगीत-उत्सव ने उन्हें पूरी तरह बदला है यह स्वीकार करते हुए वह बताते हैं:

‘शास्त्रीय संगीत की परंपरा और उसमें उपस्थित विविधता की समझ बढ़ाने के लिहाज से यह समारोह दुनिया में इकलौता है. बनारस के मूल मन-मिजाज को अगर पकड़ना हो तब शास्त्रीय संगीत के रास्ते से ही जाना होगा. आदमी और आदमी के बीच की दीवार गिराने का काम इस रास्ते पर चल कर ही यहां हुआ है और संकट मोचन संगीत समारोह की इसमें एक बड़ी भूमिका है.’

यह ज्ञान देकर रामाज्ञा संकट मोचन संगीत समारोह की पांचवीं निशा का आनंद लेने के लिए आगे बढ़ जाते हैं.

पांचवीं निशा की शुरुआत कोलकाता से आई लखनऊ घराने की अनुरेखा घोष के कथक से होती है. तबले पर दीनानाथ मिश्र और सारंगी पर उमेश मिश्र हैं, और गा रही हैं कोयल भट्टाचार्य. राग यमन विलंबित तीन ताल में ‘वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ:...’ और ‘गाइए गणपति जगवंदन…’ से प्रारंभ होकर ‘ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनियां...’ तक आने वाली यह प्रस्तुति एक साथ सुर-लय-ताल की त्रिवेणी में निबद्ध रही.

कहते हैं कि संतूर में सौ तार होते हैं और प्रत्येक तार सौवें तार तक दूसरे तार को जागृत करता चलता है. यह भी कहते हैं कि संतूर का शांत संगीत मानव-शरीर की सारी कोशिकाओं को छूकर क्षतिग्रस्त कोशिकाओं में बहुत सीमा तक सुधार कर सकता है.

इस जानकारी के साथ पांचवीं निशा की दूसरी प्रस्तुति में अभय रुस्तम सोपोरी का संतूर सुन कर एक रुहानी-सा अहसास होता है— पीड़ा को कम करता हुआ. इस प्रक्रिया से गुजरना एक आध्यात्मिक विस्तार को पा लेना है. अभय राग कौशिकी से शुरू करते हैं और एक तार से दूसरे तार पर जाते हुए वह प्रभाव को कुछ यों उत्पन्न करते हैं कि लगता है जैसे कहीं झरना गिर रहा हो.

अभय संतूर के युवा-व्यक्तित्व हैं और अपने पिता पद्मश्री भजन सोपोरी की संगीत विरासत को बहुत निष्ठा से संभाले हुए प्रतीत होते हैं. इस प्रस्तुति में तबले पर उनके साथ संगत की शुभ महाराज ने और पखावज को संभाला ऋषि शंकर उपाध्याय ने.

इस प्रस्तुति के बाद आज की सबसे प्रतीक्षित प्रस्तुति शुरू हुई— अजय चक्रवर्ती का गायन. तबले पर उनके साथ रहे संजू सहाय और हारमोनियम पर धर्मनाथ मिश्र.

अजय चक्रवर्ती ने राग जोग से स्वर-वंदना करने के बाद ‘जल में नाव रहे तो...’ और ‘नदी नाव संजोग...’ जैसी बंदिशें सुनाईं. अंत में ठुमरी ‘आए न बालम...’ सुना कर उन्होंने विदा ली.

इसके बाद कोलकाता से आए तरुण भट्टाचार्य और बैंगलुरू से आए प्रवीण गोडखिंडी ने जब संतूर और बांसुरी की जुगलबंदी पेश की तब यों लगा कि जैसे आज की रात संतूर के नाम जा रही है. यहां यह भूलना नहीं चाहिए कि संतूर एक नाजुक वाद्य है और वादक इसे बजाने की तैयारी में कभी-कभी इतना ज्यादा वक्त ले लेते हैं कि वह प्रतीक्षा की परीक्षा-सा लगने लगता है.

इस जुगलबंदी में तबले पर संजू सहाय थे जिनमें मंगलेश डबराल की एक कविता ‘संगतकार’ के सहारे कहें तो अपने स्वर को ऊंचा न उठाने की जो कोशिश थी, उसे विफलता नहीं, उनकी मनुष्यता समझा जाना चाहिए.

मुंबई से आईं कंकना बनर्जी का गायन और दिल्ली से आए गौरव मजूमदार का सितार वादन संकट मोचन संगीत समारोह की पांचवीं निशा के अन्य आकर्षण रहे. आखिर में यह निशा कोलकाता से आए अनिंदो चटर्जी और अनुब्रत चटर्जी के तबला वादन से समाप्त हुई.

गुरुवार इस 6 दिनी संगीत समारोह के 94वें संस्करण का आखिरी दिन है. इस विदा में रतिकांत महापात्र-सुजाता महापात्र (ओडिसी नृत्य), गिरिजा देवी, राजन-साजन मिश्र, अनूप जलोटा (गायन) और निलाद्री कुमार (सितार) को आज अपनी प्रस्तुतियां देनी हैं.