view all

तृप्ति देसाई का अगला निशाना सबरीमाला मंदिर

शनिशिंगणापुर और हाजीअली दरगाह के बाद अब सबरीमाला मंदिर जाएंगी तृप्ति देसाई

TK Devasia

भूमाता ब्रिगेड की तृप्ति देसाई फिर एक नई चुनौती से लड़ने को तैयार हैं. उन्होंने बताया है कि वे अगले महीने उन महिलाओं, जिन्हें मासिक धर्म होता है, के समूह के साथ केरल के सबरीमाला मंदिर में जाएंगी.

गौरतलब है कि केरल का यह सबरीमाला मंदिर विश्व के सभी तीर्थस्थानों के बीच विशिष्ट स्थान रखता है. यहां हर साल 16 नवंबर से 14 जनवरी के बीच देशभर से लगभग 50-60 लाख तीर्थयात्री आते हैं.


इस बार नोटबंदी के बाद आ रही समस्याओं के बावजूद भी श्रद्धालुओं की संख्या पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा है.

सरकार के त्रावणकोर देवाश्म बोर्ड द्वारा संचालित इस तीर्थस्थल पर दस से पचास वर्ष तक की महिलाओं के प्रवेश की मनाही है. ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर के प्रमुख देवता स्वामी अयप्पा एक ब्रह्मचारी थे. महिलाओं के प्रवेश पर लगी इस रोक के नियम को ही भूमाता ब्रिगेड की तृप्ति बदलना चाहती हैं.

उन्होंने इस नियम के खिलाफ सभी आयु वर्गों की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश देने के लिए एक विरोध मार्च की घोषणा की है. हालांकि राज्य की लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) सरकार तृप्ति की मांग के साथ है पर उन्होंने तृप्ति से कोर्ट में चल रहे इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का इंतजार करने को कहा है.

बोर्ड ने चेताया बुरे होंगे परिणाम

उधर त्रावणकोर देवाश्म बोर्ड चेता चुका है कि अगर कार्यकर्ताओं ने इस साल मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश की तो परिणाम बुरा होगा. तृप्ति ने फ़र्स्टपोस्ट से बात करते हुए कहा कि भूमाता ब्रिगेड इस सीजन के खत्म होने यानी 14 जनवरी से पहले ही मंदिर में प्रवेश करेगी. वे अभी इस मिशन में साथ आने वाली महिलाओं की स्वीकृति का इंतजार कर रही हैं, जिसके अनुसार ही वे अपने केरल जाने का इंतजाम करेंगी.

तृप्ति को उम्मीद है कि 50 से 100 महिलाएं उनके साथ आएंगी और ये सभी 10 जनवरी तक केरल पहुंचेंगे.

उधर त्रावणकोर देवाश्म बोर्ड के अध्यक्ष प्रयार गोपालकृष्णन ने कहा है कि वे मंदिर में प्रवेश के उद्देश्य से आ रही महिला कार्यकर्ताओं को डिस्ट्रिक्ट हेडक्वार्टर पत्तनमतिट्टा से आगे नहीं आने देंगे.

उन्होंने कहा, ‘एलडीएफ के सत्ता में आने के बाद भी मेरे सरकार से अच्छे संबंध हैं. मैं मंदिर से संबंधित कई मामलों में कोई विवाद होने के डर से चुप रहा हूं पर अब नहीं. अगर मंदिर या श्रद्धालुओं को कोई भी खतरा हुआ तो मैं चुप नहीं रहूंगा.’

उन्हें उम्मीद है कि सरकार इन महिलाओं को मंदिर आने से रोकेगी. वे कानून व्यवस्था के बिगड़ने का हवाला देते हुए कहते हैं, ‘अगर सरकार ने उन्हें नहीं रोका तो ये काम श्रद्धालु स्वयं करेंगे.

गोपालकृष्णन ने बताया कि उनकी नियुक्ति कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट सरकार द्वारा मंदिर को सभी रीति-रिवाजों और परंपराओं के अनुरूप चलाने के लिए हुई थी. उनके अनुसार मंदिर की पवित्रता बनाए रखना उनका कर्तव्य है.

वे कहते हैं, ‘मैं अपने कर्तव्य को पूरा करने की हर कोशिश करूंगा. जब तक मैं इस पद पर हूं तब तक किसी को भी सबरीमाला के नियम तोड़ने नहीं दिए जाएंगे. भले ही मुझे फिर इस पद से हटा दिया जाए. मैं मंदिर के लिए इस पद को छोड़ सकता हूं.’

मंदिर प्रशासन के अलावा भी कई अयप्पा श्रद्धालु समूहों ने भी महिलाओं के मंदिर में जबरन प्रवेश पर रोष जताते हुए चेतावनी दी है. देशभर के सबरीमाला भक्तों के दल अखिल भारतीय अयप्पा सेवा संघम ने तृप्ति से कहा है कि भक्तों की भावनाओं का ख्याल रखते हुए वे मंदिर में प्रवेश की योजना रद्द कर दें.

तृप्ति को रोकने के लिए बनेंगी ह्यूमन चेन

सबरीमाला तांत्रिक परिवार के सदस्य राहुल ईश्वर ने बताया है कि महिला श्रद्धालुओं के कई संगठन तृप्ति और बाकी महिलाओं को मंदिर में प्रवेश से रोकने के लिए सामने आए हैं. इन संगठनों के सदस्य पम्पा (वह स्थान जहां से सबरीमाला की चढ़ाई शुरू होती है) में महिलाओं का प्रवेश से रोकने के लिए ह्यूमन चेन बनाएंगे.

ईश्वर ने बताया कि अयप्पा धर्म सेना और महिलाओं के मंदिर में प्रवेश की बात का विरोध करने वाले कई और संगठन भूमाता ब्रिगेड के रजस्वला महिलाओं को मंदिर में प्रवेश देने की बात का विरोध करेंगे.

वे यह भी बताते हैं कि महिलाओं के मंदिर में प्रवेश के इस आंदोलन को केरल की महिलाओं का समर्थन नहीं है. उनका कहना है कि राज्य की अधिकतर महिलाएं इस तरह मंदिर की पवित्रता भंग करने के खिलाफ हैं. महिला श्रद्धालुओं के प्रतिनिधि समूह ने कहा है कि महिलाओं के मंदिर प्रवेश की मांग करने वाली याचिका के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है.

‘पीपुल फॉर धर्मा’ नाम की इस संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में लंबित केस में इस बात को भी शामिल करने की बात कही है कि वे (महिलाएं) मंदिर में प्रवेश करने के लिए मीनोपॉज (मासिक धर्म बंद होना) तक प्रतीक्षा कर सकती हैं. चेन्नई की यह संस्था नारीवादियों के खिलाफ समर्थन जुटाने के लिए एक ऑनलाइन कैंपेन चला चुकी है. सबरीमाला में महिलाओं को समान अधिकार दिए जाने के लिए चलाए गए ‘राइट टू ब्लीड’ और ‘राइट टू प्रे’ कैंपेन के खिलाफ इस संस्था ने ‘रेडी टू वेट’ नाम से कैंपेन चलाया था.

देवाश्म मंत्री के सुरेन्द्रन ने भी कहा है कि सरकार सबरीमाला के नियमों की अवहेलना करने वाले किसी भी व्यक्ति को मंदिर में प्रवेश नहीं करने देगी.

सरकार से नहीं किया संपर्क 

उन्होंने यह भी बताया कि पुणे की संस्था भूमाता ब्रिगेड ने मंदिर आने की अपनी योजना के बारे में अब तक सरकार से कोई संपर्क नहीं किया है. उन्होंने इस आंदोलन पर अपना पक्ष रखते हुए कहा, ‘हम धार्मिक स्थलों पर लैंगिक भेदभाव के खिलाफ हैं. हम सुप्रीम कोर्ट के सामने अपना पक्ष रख चुके हैं. पर इसका यह अर्थ नहीं है कि हम उस स्थान के नियमों और रिवाजों की अवज्ञा करेंगे.’

जी सुधाकारन भी मानते हैं कि अगर भूमाता ब्रिगेड की महिलाओं ने मंदिर में जबरदस्ती प्रवेश करने की कोशिश की तो गंभीर समस्याएं खड़ी हो जाएंगी.

सुधाकरन एलडीएफ के पिछले शासनकाल में देवाश्म की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं. हालांकि नारीवादियों की मंदिर प्रवेश की मांग का सुप्रीम कोर्ट में समर्थन भी कर चुके हैं.

उनकी सलाह है कि उन्हें ऐसी स्थितियों से बचना चाहिए और इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन द्वारा 2006 में दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट मामले की सुनवाई के दौरान कई बार सबरीमाला मंदिर में लागू इस नियम के कानूनी पक्ष पर सवाल उठा चुका है.

तृप्ति सुधाकरन की इस बात से इत्तेफाक नहीं रखतीं. शनि शिंगणापुर मंदिर और हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश के सफल आंदोलन का नेतृत्व कर चुकी तृप्ति इस सलाह को नकारते हुए कहती है कि मंदिर में प्रवेश की मांग उनका संवैधानिक  हक है.

वे कहती हैं, ‘मैं नहीं समझती कि इस कैंपेन को शुरू करने के लिए हमें कोर्ट के फैसले का इंतजार करने की जरूरत है. कोर्ट में मामला चल ही रहा है. हम तो अपने संवैधानिक हक के लिए लड़ रहे हैं. दोनों को साथ चलने दीजिए.' उन्होंने यह भी बताया कि सबरीमाला जाने से पहले वे और उनके समर्थक श्रद्धालुओं के लिए बने सभी नियमों का पालन करेंगे.

सबरीमाला के रिवाज के अनुसार किसी भी श्रद्धालु को मंदिर में प्रवेश के पहले 41 दिन तक एक संयमित आचरण का पालन करना होता है. तृप्ति ने यह भी कहा कि वे लोग ध्यान रखेंगे कि पहाड़ी पर जाते समय किसी को रक्तस्राव न हो रहा हो. तृप्ति ने मंदिर की इस प्रथा पर सवाल उठाते हुए कहा, ‘हम मंदिर प्रशासन के मासिक स्राव के बारे में विचारों को समझते हैं पर यह सिर्फ चार दिन की बात होती है. किसी महिला को बाकी 26 दिन भी क्यों अपवित्र समझ कर मंदिर से दूर रखा जाए.’

तृप्ति का मानना है कि एलडीएफ सरकार उनके इस कैंपेन का साथ देगी क्योंकि वह सुप्रीम कोर्ट में भी उनके साथ थी. वे उम्मीद करती हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और सरकार से सुरक्षा और सहयोग दोनों मिलेगा.