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इस 'रवि' की चमक से हमेशा रोशन रहेगी संगीत की दुनिया

रवि दिल्ली से मुंबई गायक बनने की तमन्ना लिए आए थे लेकिन किस्मत ने उन्हें मकबूल संगीतकार बना दिया

Shailesh Chaturvedi

कुछ गाने हैं, जो जिंदगी का हिस्सा बन जाते हैं. हमने आपने बचपन में एक लोरी सुनी होगी - चंदा मामा दूर के... बड़े हुए, तो किसी दोस्त की शादी में गए होंगे. वहां ये गाना सुना होगा - आज मेरे यार की शादी है. फिर विदाई के समय इस गाने से तो बच ही नहीं सकते - बाबुल की दुआएं लेती जा. जिंदगी का हिस्सा रहे हैं ये गीत और शायद हमेशा बने रहेंगे.


जब तक ये गीत हमारी जिंदगी में रहेंगे, उसके साथ एक नाम और जुड़ा रहेगा और वो नाम है संगीतकार रवि. ये सभी गीत उन्हीं के संगीत में आए थे और फिर हमारी-आपकी जिंदगी में रच-बस गए.

ईश्वर न करे कि आपके जीवन में ऐसा हुआ हो, लेकिन अगर प्रेमिका से अलगाव हो, तो भी एक गाना याद आता है - चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों. साहिर के इस गीत को रवि ने ही धुनों में पिरोया था.

रवि ऐसा नाम हैं, जिन्हें शायद वो नहीं मिला, जिसके वो हकदार थे. उस तरह की मकबूलियत नहीं मिली, जितने मकबूल उन्होंने गीत बनाए. शायद इसीलिए वो जिंदगी के आखिरी समय में मलयालम फिल्मों में गाने देने लगे. वहां भी उनके गाने बेहद मकबूल हुए. उन्हें बॉम्बे रवि कहा जाता था. वो आम लोगों के बीच से निकले थे. उनका संगीत बहुत आसान था, जो सीधे दिल को छू लेता था. इसलिए आम लोगों के संगीतकार बनकर उभरे.

'तुम्हारी आवाज मो. रफी से मिलती है'

दरअसल, उनके पिता एक भजन मंडली में गाते थे. यहीं पर रवि शंकर शर्मा ने भी गाना शुरू किया. गाने में मन रमा, तो पढ़ाई से उचट गया. परीक्षा में फेल हो गए. इसके बाद प्रोफेशनल ट्रेनिंग पर ध्यान दिया गया. 15 रुपए महीने में दिल्ली की एक फैक्ट्री में काम शुरू कर दिया फिर पोस्ट एंड टेलीग्राफ ऑफिस में नौकरी की. टेलीफोन एक्सचेंज में इलेक्ट्रीशियन रहे. अब तक वो रवि शंकर शर्मा ही थे. उन्हें लोग कहते थे कि तुम्हारी आवाज मोहम्मद रफी से मिलती है. उन्हें खुद भी ऐसा लगता था.

एक रोज गायक बनने की तमन्ना लिए रवि बंबई चले आए, जिसे अब मुंबई कहते हैं. ऑफिस से छुट्टी ली. छुट्टियां बढ़ाते रहे. डिपार्टमेंट ने आखिर छुट्टी देने से मना किया, तो उन्होंने नौकरी छोड़ दी.

हिंदी फिल्मों के मशहूर संगीतकार रवि का 86 साल की उम्र में निधन हो गया (फोटो: फेसबुक से साभार)

एक इंटरव्यू में रवि ने कहा था कि, उन्होंने किराए पर घर लिया, जो टिन से बना था. कुल मिलाकर वेयरहाउस था, जिसमें बिजली नहीं थी. उसके बगल में गोदाम था, जहां मिर्च और सीमेंट रखे जाते थे. दरअसल, तीन गोदाम थे, जिनकी छत एक थी. वो सीमेंट के साथ वाले में रहते थे, ताकि मिर्च वाले गोदाम से थोड़ी दूरी बन जाए. एक समय खाना खाते थे, ताकि पैसे बच जाएं. धीरे-धीरे दुखी होने लगे और घर लौटने के बारे में सोचने लगे.

करीब ढाई साल संघर्ष के बाद 1952 में वो हेमंत कुमार से मिले. हेमंत दा ने नाम पूछा... जवाब मिला रवि शंकर शर्मा. हेमंत कुमार उस वक्त फिल्म आनंद मठ का संगीत दे रहे थे. फिल्म में गाना था वंदे मातरम... उसमें कई आवाजें थीं. हेमंत दा ने उस गाने के लिए रवि शंकर शर्मा को भी ले लिया.

मेरे सहायक बन जाओ

फिल्म के एक गाने में हेमंत कुमार एक उर्दू शब्द का गलत उच्चारण कर रहे थे. रवि ने उसे ठीक करने को कहा. हेमंत दा बहुत खुश हुए. उन्होंने रवि से कहा कि मेरे सहायक बन जाओ. साथ में, बाहर कहीं काम मिले, तो करते रहो. उन्हें हर गाने के 20 रुपये और हर रिहर्सल के दो रुपये मिलते थे. इससे रवि ने करीब 60 रुपये महीना कमाना शुरू किया और तबला, हारमोनियम जैसे वाद्य यंत्र खरीद लिए.

यहां से रवि का फिल्मी सफर शुरू हुआ. रवि अपनी सफलता का बड़ा श्रेय हेमंत कुमार और देवेंद्र गोयल को देते रहे. देवेंद्र गोयल ने उन्हें फिल्म वचन में मौका दिया था. वचन के लिए देवेंद्र गोयल को उन्होंने 'चंदा मामा दूर के...' और 'एक पैसा दे दे बाबू...' सुनाया था, जो गोयल साहब को बहुत पसंद आया.

फिल्म नागिन में रवि ने हारमोनियम से बीन की धुन निकाली. फिल्मिस्तान स्टूडियो के लोगों को धुन बड़ी पसंद आई. उन्होंने 250 रुपये प्रति माह पर रवि को नौकरी दे दी. हेमंत कुमार भी उन्हें हर फिल्म के 200 रुपये देने लगे थे. इस बीच हेमंत कुमार ने रवि से कहा कि खुद गाने कंपोज करो. रवि घबरा गए. उन्हें लगा कि नौकरी से निकाला जा रहा है. हेमंत कुमार ने उन्हें समझाया कि अगर अलग काम करोगे, तो बड़े संगीतकार बनोगे. यहां से रवि की जिंदगी बदल गई.

कई गायकों के करियर में बड़ा योगदान

'घराना' और 'खानदान' के लिए रवि को फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला. फिल्म वक्त के गाने भूले नहीं जा सकते. खास तौर पर - ऐ मेरी ज़ोहरा जबीं... कई गायकों के करियर में रवि का बड़ा योगदान रहा. मोहम्मद रफी के साथ तो उन्होंने काम किया ही, आशा भोसले को कई यादगार गाने दिए. महेंद्र कपूर को स्थापित करने में रवि का बड़ा योगदान रहा.

रवि उस दौर के संगीतकार थे, जो पहले धुन नहीं बनाते थे. हमेशा गीत पहले लिखा जाता था, उस पर रवि काम करते थे. उन्होंने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में लंबा ब्रेक लिया. उसके बाद वापसी करते हुए निकाह जैसी फिल्म की लेकिन फिर वो एक तरह से मलयालम फिल्मों के साथ ही जुड़े रहे. सात मार्च 2012 को रवि का मुंबई में निधन हो गया.