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कौन सी है वो इकलौती फिल्म जिसमें बिस्मिल्लाह खान ने बजाई थी शहनाई

डायरेक्टर विजय भट्ट को शास्त्रीय संगीत पर आधारित गानों के प्रयोग करने के लिए जाना जाता है

Shivendra Kumar Singh

पचास के दशक की बात है. व्रजलाल जगनेश्वर भट्ट नाम के निर्माता निर्देशक एक फिल्म बना रहे थे. व्रजलाल जगनेश्वर भट्ट को फिल्मी दुनिया विजय भट्ट के नाम से जानती और पहचानती थी. वही विजय भट्ट जिन्होंने रामराज्य और बैजू बावरा जैसी कमाल की फिल्में बनाई थीं.

बैजू बावरा के संगीत ने कमाल किया था. बैजू बावरा के संगीत पक्ष से ये भी साफ था कि बतौर निर्देशक विजय भट्ट को फिल्मी संगीत में शास्त्रीय संगीत के इस्तेमाल से कोई परहेज नहीं है. आपको बता दें कि फिल्म बैजू बावरा का हर गाना शास्त्रीय राग पर आधारित था. तू गंगा की मौज राग भैरवी में, ओ दुनिया के रखवाले राग दरबारी में और मन तड़पत हरि दर्शन को आज राग मालकौंस में खूब वाहवाही मिली थी.


इस फिल्म के लिए मोहम्मद रफी और लता मंगेशकर जैसे गायकों के अलावा इस फिल्म में उस्ताद अमीर खां साहब और वीडी पलुस्कर जैसे शास्त्रीय संगीत के दिग्गज कलाकारों ने भी गाया था. खैर, विजय भट्ट अपनी अगली फिल्म बना रहे थे-गूंज उठी शहनाई. फिल्म की कहानी एक शहनाई बजाने वाले कलाकार के इर्द-गिर्द बुनी गई थी. इस कलाकार का रोल राजेंद्र कुमार निभा रहे थे.

इस फिल्म के संगीत को बनाने का जिम्मा विजय भट्ट ने वसंत देसाई को दिया. गीत के बोल लिख रहे थे भरत व्यास. फिल्म के बनने के दौरान ही इस बात पर विचार किया गया कि क्यों ना इस फिल्म में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान से शहनाई बजवाई जाए. उस्ताद बिस्मिल्लाह खान उस वक्त चालीस साल की उम्र पार कर चुके थे.

शहनाई वादन की दुनिया में उनका बहुत नाम हो चुका था. इसकी एक बानगी पूरे देश ने तब देखी थी जब 15 अगस्त 1947 को पंडित जवाहर लाल नेहरू ने तिरंगा फहराने के बाद उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का कार्यक्रम खास तौर पर रखा था. जिसकी कहानी हम आपको सुना भी चुके हैं.

खैर, उस्ताद बिस्मिल्लाह खान फिल्मी संगीत से थोड़ा दूर ही रहने वाले थे. उन्हें इस फिल्म की कहानी सुनाई गई. उन्हें क्या करना है ये भी बताया गया. आखिरकार उस्ताद जी मान गए. इस फिल्म में जगह जगह आपको उनकी शहनाई की धुन सुनने को मिलेगी. फिल्म के इस गाने को सुनिए

उस्ताद बिस्मिल्लाह खान को फिल्म में गंभीरता समझ आए इसके लिए बाकयादा फिल्म के गानों को शास्त्रीयता के साथ तैयार किया गया. जो गाना अभी आपने सुना उसे राग बिहाग पर कंपोज किया गया था. जिसे लता मंगेशकर ने गाया था.

इस फिल्म का एक और गाना बड़ा हिट हुआ. उस गाने के बोल थे- दिल का खिलौना हाय टूट गया और उसे भी लता मंगेशकर ने ही गाया था. इस पूरी कहानी को जानने के साथ साथ ये भी जानना बहुत जरूरी है कि विजय भट्ट की बनाई ये फिल्म इकलौती ऐसी फिल्म थी जिसमें उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने शहनाई बजाई थी.

इसके अलावा उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी किसी फिल्म के लिए शहनाई नहीं बजाई. चलिए आपको राग बिहाग की आगे की कहानी सुनाते हैं. यूं तो राग बिहाग में पचास के दशक से लेकर अब तक कई फिल्मी गाने कंपोज किए गए हैं. इसमें 1980 में आई फिल्म गृह प्रवेश का जिक्र जरूरी है. उस फिल्म में भूपिंदर और सुलक्षणा पंडित का गाया एक गाना बहुत हिट हुआ था, जिसके बोल थे बोले सुरीली बोलियां.

इसके अलावा 1963 में आई फिल्म मेरे महबूब का गाना- तेरे प्यार में दिलदार, 1977 में आई फिल्म आलाप का गाना- कोई गाता मैं सो जाता और 1974 में आई फिल्म आप की कसम में किशोर कुमार का गाया जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं वो मकाम भी उन्हीं गानों की फेहरिस्त में शामिल हैं जिन्हें राग बिहाग में कंपोज किया गया था. इनमें से कुछ गाने आप भी सुनिए

आइए अब आपको राग बिहाग के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं. राग बिहाग की रचना बिलावल थाट से मानी गई है. इसके आरोह में 'रे' और 'ध' नहीं लगता है जबकि अवरोह में सभी सात स्वर लगते हैं. इस राग की जाति औडव संपूर्ण है. इस राग में वादी स्वर 'ग' और संवादी स्वर 'नी' है. वादी और संवादी स्वर के बारे में हम आपको आसान परिभाषा बता चुके हैं कि शतरंज के खेल में जो महत्व बादशाह और वजीर का होता है किसी भी राग में वही महत्व वादी और संवादी स्वर का होता है. इस राग को गाने बजाने का समय रात का पहला पहर माना जाता है. इस राग का आरोह अवरोह देखते हैं

आरोह- नी सा ग, म प, नी सां

अवरोह- सां नी, ध प, मं प ग म ग, रे सा

पकड़- नी सा ग म प, मं प ग म ग, रे सा

राग बिहाग की सुंदरता को बढ़ाने के लिए कभी कभार इसमें अवरोह में तीव्र मध्यम का प्रयोग 'प' के साथ किया जाता है. कुछ शास्त्रीय गायक ऐसा प्रयोग बिल्कुल नहीं करते हैं. ऐसे में वो इसी राग को शुद्ध बिहाग कहते हैं. राग बिहाग को गंभीर प्रवृति का राग माना जाता है. इस राग में आपको विलंबित ख्याल, द्रुत ख्याल और तराना सुनने को मिलेगा. इस राग को और विस्तार से समझने के लिए आप एनसीईआरटी का ये वीडियो देख सकते हैं.

शास्त्रीय कलाकारों ने इस राग को कैसे निभाया है इसे जानने के लिए आज आपको विश्वविख्यात कलाकार किशोरी अमोनकर जी का और डॉक्टर प्रभा आत्रे जी का गाया राग बिहाग सुनाते हैं.

राग बिहाग की एक बेहद लोकप्रिय कंपोजीशन है जिसके बोले हैं- लट उलझी सुलझा जा बालम, माथे की बिंदिया बिखर गई है. पंडित जसराज जी को सुनिए

अगली बार एक और शास्त्रीय राग की कहानी के साथ आपसे मिलेंगे.