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रागदारी: जब जया भादुड़ी को सच बताने जुटे थे दर्जनों नामी कलाकार

फिल्मों में दिखे हैं राग केदार के अलग अलग रंग

Shivendra Kumar Singh

1971 में ऋषिकेश मुखर्जी की एक फिल्म आई थी. फिल्म गुलजार ने लिखी थी. इस फिल्म में एक-दो नहीं बल्कि दर्जनों अभिनेता-अभिनेत्रियों ने एक्टिंग की थी.

अगर आपको यकीन ना हो तो हम आपको नाम बताते चलते हैं. इस फिल्म में अमिताभ बच्चन, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना, धर्मेंद्र, शत्रुघ्न सिन्हा, दिलीप कुमार, नवीन निश्चल, प्राण जैसे दिग्गज अभिनेता परदे पर नजर आए थे. इसके अलावा माला सिन्हा और शशिकला जैसी अभिनेत्रियां भी फिल्म में थीं. इस फिल्म में ही दर्शकों ने अभिनेत्री जया भादुड़ी को पहली बार परदे पर देखा था. इससे पहले उन्होंने बाल कलाकार के तौर पर एक फिल्म में रोल जरूर किया था, लेकिन बतौर अभिनेत्री ये उनकी पहली फिल्म थी.


अगर आप समझ गए हैं कि हम कौन सी फिल्म का जिक्र कर रहे हैं तब तो ठीक है वरना एक साथ इतने दिग्गज हीरो-हीरोइन के स्क्रीन पर आने की कहानी का राज हम थोड़ी देर बाद खोलेंगे. बताते चलें कि ये वो दौर था जब सिल्वर स्क्रीन पर हेमा मालिनी और मुमताज जैसी हीरोइनों का जलवा था. ऐसे वक्त में ऋषिकेश मुखर्जी ने एक नई हीरोइन को स्क्रीन पर लाने का रिस्क उठाया. जो बहुत कामयाब भी हुआ. इसी रोल के लिए उस अभिनेत्री को फिल्मफेयर अवॉर्ड का ‘नॉमिनेशन’ भी मिला.

दरअसल, ऋषिकेश मुखर्जी और गुलजार एक ऐसी कहानी पर काम कर रहे थे जिसमें स्कूल जाने वाली एक लड़की उस दौर के एक फिल्मी हीरो की दीवानी है. उसे उस हीरो में सुपरमैन दिखाई देता है. उसे लगता है कि उसका ‘वो’ हीरो कुछ भी कर सकता है. उस नादान लड़की को नहीं पता कि ‘रील’ लाइफ और ‘रीयल’ लाइफ के बीच का अंतर क्या है. आखिर में उस लड़की को बड़ी चतुराई से इस फर्क का अहसास कराया जाता है.

चलिए, राज से परदा उठाते हैं और बताते हैं कि हम 1971 में आई सुपरहिट फिल्म ‘गुड्डी’ की बात कर रहे हैं.

जब ऋषिकेश मुखर्जी ने जया भादुड़ी को इस फिल्म के लिए चुना तो उनकी उम्र यही कोई 21-22 साल रही होगी. जया को फिल्म में अपनी उम्र से 5-6 साल कम उम्र की एक स्कूल जाने वाली भोली भाली लड़की का किरदार निभाना था. जिसे उन्होंने बखूबी निभाया. हालांकि कहते हैं ये रोल जया भादुड़ी के करियर पर ऐसा चिपका कि उनकी वो ‘भोली-भाली’ इमेज निर्देशकों और दर्शकों के दिलो-दिमाग पर लंबे समय तक छाई रही. उस ‘इमेज’ से बाहर निकलने के लिए बाद में जया भादुड़ी ने कुछ ‘बोल्ड’ रोल भी किए. खैर, हम लौटते हैं उस 14-15 साल की बच्ची की कहानी पर जिसपर फिल्माया गया ये गाना आज भी हिट है. आप इस गाने को सुनिए और गुनगुनाइए.

इस गाने में जया भादुड़ी की ‘एंट्री’ से लेकर एक आंख खोलकर देखने की बदमाशी दर्शकों को बहुत ‘रियलिस्टिक’ लगीं. यूं तो अब आपको याद आ गया होगा कि इस फिल्म में दर्जनों स्टारों के परदे पर आने की वजह क्या थी लेकिन अगर आप भूल रहे हों तो हम आपको बताते हैं. दरअसल इस फिल्म में जया भादुड़ी धर्मेंद्र की दीवानी होती हैं. उन्हें धर्मेंद्र की दीवानगी से बाहर निकालने और असल जिंदगी और फिल्मी दुनिया का फर्क समझाने के लिए अभिनेता उत्पल दत्त ये चाल चलते हैं. एक के बाद एक ‘कैमियो’ रोल में बड़े बड़े स्टार सामने आते हैं और गुड्डी को जिंदगी की हकीकत समझ आती है.

आज चूंकि ‘हमने हमको मन की शक्ति देना’ गाने से अपनी कहानी शुरू की है इसलिए आपको बता दें कि आज हम राग केदार की बात करने जा रहे हैं. ये गाना इसी राग में कंपोज किया गया है. इस फिल्म का संगीत वसंत देसाई का था और सभी गाने वानी जयराम ने गाए थे.

राग केदार पर आधारित एक और फिल्मी गीत की ऐसी ही कहानी आपको सुनाते हैं. इस कहानी का गुड्डी फिल्म से कनेक्शन ये है कि इस फिल्म में भी एक साथ कई दिग्गज स्टार्स स्क्रीन पर नजर आए. धर्मेंद्र, विनोद खन्ना, जीतेंद्र, हेमा मालिनी, परवीन बाबी, नीतू सिंह, विनोद मेहरा, डैनी, सिमी ग्रेवाल, ओम शिवपुरी, मदन पुरी, नवीन निश्चल जैसे अभिनेताओं ने फिल्म में एक्टिंग की थी. ये फिल्म थी 1980 में आई- द बर्निंग ट्रेन. फिल्म के डायरेक्टर थे रवि चोपड़ा. फिल्म का स्क्रीनप्ले जाने माने लेखक कमलेश्वर ने लिखा था और संगीत दिया था आरडी बर्मन ने, इसी फिल्म का ये गीत भी राग केदार पर ही कंपोज किया गया था- पल दो पल का साथ हमारा ये गाना सुनिए और एक साथ तमाम दिग्गज अभिनेता-अभिनेत्रियों को स्क्रीन पर देखिए.

इन दो बेहद लोकप्रिय गानों के अलावा और भी तमाम गानों की फेहरिस्त है जिसे राग केदार पर कंपोज किया गया. इसमें 1949 में आई फिल्म ‘अंदाज’ का ‘उठाए जा उनके सितम और जिए जा’, 1952 में आई फिल्म ‘आशियाना’ का ‘मैं पागल मेरा मनवा पागल’, 1955 में आई फिल्म ‘मुनीमजी’ का ‘साजन बिन नींद ना आवे’, 1960 में आई बेहद लोकप्रिय फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ का ‘बेकस पर करम कीजिए’, 1962 में आई फिल्म ‘एक मुसाफिर एक हसीना’ का ‘आप यूं ही अगर हमसे मिलते रहे देखिए एक दिन प्यार हो जाएगा’ और 1978 में आई फिल्म ‘घर’ का ‘आपकी आंखो में कुछ महके हुए से राज हैं’ प्रमुख हैं. इसमें से एक गाना सुनिए और सुनिए उस्ताद मेंहदी हसन की राग केदार में गाई गई वो ग़ज़ल जो आज भी किसी भी महफिल की शान है.

आइए अब आपको हमेशा की तरह राग केदार के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं. इस राग की उत्पत्ति कल्याण थाट से मानी जाती है. इस राग में दोनों मध्यम प्रयोग किए जाते हैं. इसके अलावा बाकी सभी स्वर शुद्ध लगते हैं. इस राग का वादी ‘म’ और संवादी ’स’ है. इस राग को गाने बजाने का समय रात का पहला पहर माना जाता है. इस राग की जाति औडव षाडव है. राग केदार के आरोह में में ‘रे ग’ और अवरोह में ‘ग’ वर्जित किया जाता है. इस राग का आरोह अवरोह देख लेते हैं

आरोह- सा, म, प, म प ध नी सां

अवरोह- सां नी ध प, म प ध प म, रे सा

पकड़- सम प, म प ध प म, रे सा.

राग केदार को राग हमीर के करीब का राग माना जाता है. इस राग पर एनसीईआरटी का वो वीडियो देख लेते हैं जिसमें उन्होंने बड़ी बारीकी और विस्तार से राग केदार की जानकारी दी है

रागदारी में हमेशा की तरह हम आपको राग केदार के शास्त्रीय पक्ष का आनंद लेने के लिए कुछ और वीडियो दिखाते हैं. शास्त्रीय गायकों में बेहद लोकप्रिय कलाकार उस्ताद राशिद खान को राग केदार गाते सुनिए. आखिर में दो महान कलाकारों को एक साथ इसी राग की प्रस्तुति करते देखिए. पंडित जसराज की गायकी और पंडित हरिप्रसाद चौरसिया का बांसुरी वादन.

अगली बार एक नया राग, उस राग की कहानियां और किस्से. अपनी प्रतिक्रियाओं से हमें जरूर वाकिफ कराएं.