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मन्ना डे को किस मजाकिया गाने से मिली थी पहचान

जिस एक संगीतकार ने मन्ना डे को उनकी काबिलियत के मुताबिक काम दिया वो थे शंकर-जयकिशन की जोड़ी के शंकर

Shivendra Kumar Singh

मन्ना डे जैसे महान गायक का शुरुआती सफर बहुत मुश्किलों भरा रहा. उनके सबसे पहले गुरु थे- कृष्णचंद डे. कृष्णचंद डे मन्ना डे के सबसे छोटे चाचा थे. मन्ना डे अपने गायन का श्रेय उन्हें ही देते थे. ये अलग बात है कि चाचा और गुरु होने के नाते कृष्णचंद डे का मन्ना डे के प्रति बर्ताव बहुत कड़क रहता था. वो आए दिन मन्ना डे को जमकर डांटा करते थे.

एक बार तो ऐसा तब हुआ जब मन्ना डे 'सेकंड असिसटेंट' के तौर पर उनका लगभग पूरा काम देखने लगे थे. कलाकारों को 'ब्रीफ' करना, संगीत कंपोज करने में मदद करना, गायकों को प्रशिक्षण देना सबकुछ मन्ना डे करते थे. एक रोज मन्ना डे को लगा कि अब उन्हें चाचा से कहना चाहिए कि उन्हें विष्णु मित्रा को हटाकर अपना टफर्स्ट असिसटेंट' बना देना चाहिए. मन्ना डे अपनी इस बात को लेकर चाचा के पास पहुंचे. उनके इस प्रस्ताव पर उन्हें इतनी जोर से डांट पड़ी कि वो उल्टे पांव वापस आ गए.


मन्ना डे के लिए वो लम्हा बहुत कठिन रहता था जब चाचा किसी गाने की कंपोजीशन तैयार करने के बाद मन्ना डे से कहते थे कि फलां गायक को बुलाकर वो गाना रिकॉर्ड कराना है. मन्ना डे को लगता था कि चाचा उन्हें गाने का मौका क्यों नहीं दे रहे हैं? एक बार तो चाचा कृष्णचंद डे ने एक ऐसे गाने के लिए मोहम्मद रफी को बुलवाया था, जिसमें रफी को उस गाने की ट्रेनिंग तक मन्ना डे को देनी थी लेकिन गाना मोहम्मद रफी से ही गवाया गया था.

हालांकि बाद में मन्ना डे ने माना भी था कि रफी ने उस गाने को उनसे बेहतर गाया था. इन मुश्किलों से गुजरने के बाद जिस एक संगीतकार ने मन्ना डे को उनकी काबिलियत के मुताबिक काम दिया वो थे शंकर-जयकिशन की जोड़ी के शंकर. जिनका पूरा नाम था शंकर सिंह. ये गाना सुनिए फिर इस कहानी को आगे बढ़ाएंगे.

1954 में रिलीज हुई फिल्म-बूट पॉलिश में डेविड पर फिल्माए गए इस गाने का अंदाज भले ही मजाकिया है लेकिन आपको इसे सुनने के बाद अहसास हुआ होगा कि इस गाने को गाना कितना मुश्किल था. शास्त्रीय राग अड़ाना पर आधारित इस गाने को शंकर जयकिशन ने मन्ना डे से गवाया था. ये वो दौर था जब मन्ना डे ने फिल्म-श्री 420 का 'दिल का हाल सुने दिलवाला', फिल्म चोरी-चोरी का 'ये रात भीगी-भीगी' और फिल्म उजाला का 'झूमता मौसम' जैसे हिट गाने एक के बाद एक गाए और जो गाने फिल्म इंडस्ट्री में मन्ना डे की पहचान बनाने में बहुत काम आए। मन्ना डे कहा करते थे वो फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनवाने के लिए ताउम्र संगीतकार शंकर के कर्जदार रहेंगे.

ऐसा इसलिए क्योंकि शंकर को पता था कि मन्ना डे की काबिलियत कितनी है और वो किस 'रेंज' तक जाकर गा सकते हैं. एसडी बर्मन के साथ लंबे समय तक काम करने के बाद भी मन्ना डे को कभी नहीं लगा कि बर्मन दादा ने उनके उस हुनर को स्थापित करने का काम किया. बर्मन दादा ने उनसे गाने जरूर गवाए. जो काफी हिट भी हुए थे. खैर, मन्ना डे की इन कहानियों के हवाले से हम आज राग अड़ाना की कहानी आपको सुना रहे हैं.

हिंदी फिल्मों में और भी कई गाने हैं जो राग अड़ाना को आधार बनाकर कंपोज किए गए. इसमें 1955 में आई फिल्म-झनक झनक पायल बाजे का शीर्षक गीत, 1962 में आई फिल्म-अनपढ़ का आपकी नजरों ने समझा प्यार के काबिल मुझे, 1964 में फिल्म-कैसे कहूं का मनमोहन मन में हो तुम्हीं और गरम कोट का घर आजा काफी लोकप्रिय हुए. इनमें से कुछ गानों को आपको सुनाते हैं.

आइए अब आपको हमेशा की तरह राग के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं. आज का राग है अड़ाना. राग अड़ाना आसावरी थाट से हुई है. इस राग में ‘ग’, ‘ध’, और ‘नी’ कोमल लगते हैं. राग की सुंदरता बढ़ाने के लिए कलाकार ‘नी’ के साथ प्रयोग किया करते हैं. इस राग के अवरोह में ‘ग’ का वक्र प्रयोग किया जाता है. राग अड़ाना के आरोह में ‘ग’ और अवरोह में ‘ध’ वर्जित स्वर हैं.

चूंकि आरोह अवरोह दोनों में 6-6 स्वर ही लगते हैं इसलिए राग अड़ाना की जाति षाडव षाडव है. इस राग का वादी स्वर तार सप्तक का ‘स’ है और संवादी स्वर ‘प’ है. हम आपको पहले भी बता चुके हैं कि किसी भी राग में वादी और संवादी स्वर का महत्व वही है जो शतरंज के खेल में बादशाह और वजीर का होता है. राग अड़ाना को गाने बजाने का समय रात का तीसरा पहर है. आइए इस राग का आरोह अवरोह देख लेते हैं.

आरोह- सा रे म प, ध नी सां

अवरोह- सां ध नी प, म प ग म रे सा

पकड़- म प ध नी सां, ध नी प, म प ग म रे सा

राग अड़ाना के बारे में प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में जानकारी नहीं मिलती है. इस राग का जन्म ऐसा माना जाता है कि मध्य काल के दौरान हुआ था. इस राग को और विस्तार से जानने के लिए एनसीईआरटी का बनाया ये भी वीडियो देखिए

राग अड़ाना को शास्त्रीय कलाकारों ने किस खूबसूरती से बरता है इसके लिए आपको कुछ विश्वविख्यात कलाकारों के वीडियो दिखाते हैं. इस वीडियो में पटियाला घराने के कलाकार पंडित अजय चक्रवर्ती की गाई एक पुरानी बंदिश सुनाते हैं. जिसके बोल हैं- ‘राम चढ़ो रघुबीर’

इसी राग मे पंडित जसराज को सुनिए. अगला वीडियो ‘गुंदेचा ब्रदर्स’ के नाम से मशहूर उमाकांत गुंदेचा और रमाकांत गुंदेचा का है. दो डागरवाणी के जाने माने कलाकार हैं. इस वीडियो में वे राग अड़ाना गा रहे हैं.

राग अड़ाना की कहानी यहीं खत्म करते हैं. अगले हफ्ते किसी और नए राग और उससे जुड़े मजेदार किस्सों को लेकर हाजिर होंगे.