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सोनल मानसिंह को पंडित जसराज ने दिया था किस राग का तोहफा

फिल्मों में कम ही दिखने वाले लेकिन शास्त्रीय गायकी में प्रचलित राग कौशिक कांहड़ा की कहानी 

Shivendra Kumar Singh

1965 के अप्रैल महीने की बात है. देश की एक बहुत जानी मानी नृत्यांगना का 21वां जन्मदिन था. ये नृत्यांगना देश के एक बेहद प्रतिष्ठित परिवार से थीं. उनके दादा जी मंगलदास पकवासा राज्यपाल थे. श्री पकवासा कलाप्रेमी थे. लिहाजा उनके घर पर एक से बढ़कर एक कलाकारों का आना जाना था.

सिद्धेश्वरी देवी, पंडित ओंकारनाथ ठाकुर, बड़े गुलाम अली खान, उस्ताद फैयाज हुसैन खान, मोइनुद्दीन डागर, उस्ताद विलायत खान जैसे कलाकार अक्सर आते थे और उनकी बैठकियां हुआ करती थीं. ऐसे सांगीतिक माहौल में इस कलाकार का भी बचपन और तरुणाई बीत रहा था. उसने भी नृत्य और संगीत की परंपरागत शिक्षा लेना शुरू कर दिया था.


21वें जन्मदिन से करीब चार साल पहले 1961 में उनके गुरु प्रोफेसर यू.एस. कृष्णराव और पत्नी श्रीमती चंद्रभागा देवी के निर्देशन में बैंगलोर के राजभवन में उनका ‘अरंग्रेत्रम्’ हो चुका था. इसके बाद उनकी अपनी ख्याति फैलने लगी थी. इतने संपन्न परिवार की होने के बाद भी इस कलाकार ने घर छोड़ने का फैसला किया.

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ये बड़ी दिलचस्प कहानी है. हुआ यूं कि जब इन्होंने कहा कि मुझे सिर्फ नृत्य करना है तो घर वाले नाराज हो गए. उनकी नाराजगी को नजरअंदाज कर इस कलाकार ने 1963 में अपना घर छोड़ दिया और अपने गुरु के पास चली गईं. बाद में उस कलाकार ने अपनी मेहनत और लगन के दम पर जबरदस्त शोहरत कमाई. जीवन में तरह तरह की चुनौतियां आईं लेकिन उन्होंने हमेशा जीत हासिल की.

उन्हें पद्मभूषण, पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया. यहां तक कि जब मौजूदा सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान के लिए नवरत्न चुने तो उसमें इन्हें भी जगह दी गई. चलिए अब आपको इस विश्वविख्यात कलाकार का नाम बता ही देते हैं. वो कलाकार है प्रख्यात भरतनाट्यम और ओडिसी नृत्यांगना डॉ. सोनल मानसिंह.

आज रागदारी की शुरुआत डॉ. सोनल मानसिंह से इसलिए कि क्योंकि उनके 21वें जन्मदिन का किस्सा सुनाना था. जैसा मैंने लेख की शुरुआत में बताया कि सोनल मानसिंह के यहां बचपन से ही बड़े नामी गिरामी कलाकारों का आना-जाना था. उनके 21वें जन्मदिन पर एक और दिग्गज कलाकार आए थे. वो कलाकार थे- पंडित जसराज. पंडित जसराज सोनल जी से उम्र में यही कोई 13-14 साल बड़े हैं. तब तक उन्हें भी शास्त्रीय संगीत की दुनिया में बड़ी पहचान मिल चुकी थी. उन्होंने सोनल के 21वें जन्मदिन पर बड़े स्नेह के साथ एक शास्त्रीय राग गाया. वो राग था- कौशिक कांहड़ा. पंडित जसराज जी का गाया ये राग सुनते हैं फिर इस राग की कहानी को आगे बढ़ाएंगे.

यूं तो हम किसी फिल्मी गाने के किस्से से राग की कहानी शुरू करते हैं लेकिन आज के राग का किस्सा फिल्मी गायन से थोड़ा अलग रहा. चलिए अब लौटते हैं इस राग के फिल्मी कनेक्शन पर. फिल्मों में इस राग को कुछ गानों में बड़ी खूबसूरती से इस्तेमाल किया गया है. मसलन- 1963 में एक फिल्म आई थी- उस्तादों के उस्ताद. इस फिल्म में अशोक कुमार और प्रदीप कुमार थे. इस फिल्म में संगीतकार रवि ने मोहम्मद रफी से एक ‘सोलो’ गाना गवाया था- सौ बार जन्म लेंगे. ये गाना भी कौशिक कांहड़ा पर भी आधारित था. आप भी इस गाने को सुनिए.

इस राग के साथ एक दिलचस्प संयोग ये भी दिखता है कि इसमें संगीतकारों ने जो कुछ गाने बनाए. उन्हें गाने के लिए एक ही गायक को चुना. वो गायक थे मोहम्मद रफी. उनका गाया एक गाना हम आपको सुना भी चुके हैं. अब आइए आपको बताते हैं इसी राग में गाए गए उनके कुछ और गाने. जिसमें सबसे पहले फिल्म मधुमती का जिक्र आता है. 1958 में आई इस फिल्म को विख्यात बिमल रॉय ने बनाया था.

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इस फिल्म के साथ एक दिलचस्प किस्सा ये भी है कि इसी फिल्म के गाने ‘आ जा रे परदेसी मैं तो कब से खड़ी इस पार’ के लिए पहली बार लता मंगेशकर को फिल्मफेयर अवॉर्ड दिया गया था. इससे पहले गायकों को फिल्मफेयर नहीं दिया जाता था. फिल्म मधुमती का संगीत सलिल चौधरी ने तैयार किया था. उन्होंने इस फिल्म में कौशिक कांहड़ा पर एक गाना मोहम्मद रफी से गवाया था- 'टूटे हुए ख्वाबों ने हमको ये सिखाया है.' ये गाना दिलीप कुमार पर फिल्माया गया था. इसके बाद 1965 में आई फिल्म ‘एक सपेरा एक लुटेरा’ में अभिनेता फिरोज खान पर फिल्माया गया ये गाना भी सुनिए.

आइए अब आपको इस राग के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं. इस राग के नाम को अलग अलग तरीके से पुकारा जाता है. कौशिक कांहड़ा को कौंसी कांहड़ा भी कहा जाता है. इस राग के विस्तार में मालकौंस और भीमपलासी का मिश्रण दिखाई देता है. इस राग के बारे में शास्त्रों में कहा गया है कि जिस तरह ऋषि मुनि भगवान विष्णु के विविध स्वरूपों का वर्णन करने में खुद को असमर्थ पाते हैं वैसे ही इस राग का वर्णन करना जटिल है.

ऐसा इसलिए क्योंकि इस राग को विविध स्वरूप वाला राग माना गया है. इसकी वजह ये है कि उत्तर भारत के तमाम घरानों में इस राग को अलग अलग तरीके से गाया बजाया जाता है. जैसा कि लेख की शुरुआत में हमने कहा कि शायद यही वजह है कि ये राग अन्य रागों के मुकाबले कम प्रचलित है. इस राग को मध्यरात्रि का राग माना गया है. राग कौशिक कांहड़ा के आरोह-अवरोह को देख लेते हैं

आरोह- नि सा ग म, ध नि सां

अवरोह- सां नि ध प म, (म) ग S रे ग म (सा) रे सा

मुख्य स्वर समूह- ग म ध नि ध म, प ग (म) S रे ग म स रे स

लेख के आखिरी हिस्से में हम आपको कुछ विश्वविख्यात कलाकारों का गाया यही राग सुनाते हैं. दिलचस्प बात ये है कि फिल्मी संगीतकारों के मुकाबले शास्त्रीय गायन में इस राग को जमकर गाया बजाया गया है. आपको सुनाते हैं भारत रत्न से सम्मानित पंडित भीमसेन जोशी का गाया राग कौशिक कांहड़ा

एक और वीडियो में आपको इसी राग में विश्वविख्यात संतूर वादक पंडित शिव कुमार शर्मा और दूसरे नामचीन कलाकार उस्ताद जाकिर हुसैन की जुगलबंदी भी सुनाते हैं

अगली बार आपको एक नए राग की कहानी सुनाएंगे आप हमें इस कॉलम के बारे में अपनी राय से जरूर अवगत कराएं.