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रागदारी : किस राग के साथ हुआ था आजाद भारत के पहले सूरज का स्वागत?

न्योते में कहा गया था कि प्रधानमंत्री चाहते हैं कि आजाद भारत के पहले सूरज का स्वागत शहनाई से किया जाए

Shivendra Kumar Singh

1947 के अगस्त महीने की बात है पंडित नेहरू के न्योते पर उस्ताद बिस्मिल्लाह खान दिल्ली आए थे. भारत आजाद होने वाला था. 15 अगस्त, 1947 को देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को लाल किले से तिरंगा फहराना था. लाखों हिंदुस्तानियों के लिए ये गर्व का लम्हा था.

आजादी के इस पल को देखने के लिए कितनी क्रांतियां की गई थीं. कितने आंदोलन हुए थे. इसके लिए कितने शहीदों ने अपने प्राणों की बलि दी थी. कितने जेल गए थे. कितनों को लाठियां खानी पड़ी थीं. काफी संघर्षों और बलिदान के बाद ये घड़ी आने वाली थी.


15 अगस्त, 1947 के कार्यक्रम की तैयारियां चल रही थीं. इससे ठीक पहले पंडित नेहरू के दिमाग में एक विचार आया. उन्होंने तय किया कि लाल किले से उनके झंडा फहराने के बाद संगीत का एक कार्यक्रम होगा.

इसके लिए उन्होंने उस कलाकार के बारे में भी सोच लिया जिसे कार्यक्रम पेश करना था. उस कलाकार के पास प्रधानमंत्री का न्योता भेज दिया गया. न्योते में कहा गया था कि प्रधानमंत्री चाहते हैं कि आजाद भारत के पहले सूरज का स्वागत शहनाई से किया जाए.

ये कलाकार कोई और नहीं बल्कि भारत रत्न से सम्मानित शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान थे. उन्होंने इतने बड़े ऐतिहासिक लम्हे पर कार्यक्रम पेश करने की रजामंदी दे दी. उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ट्रेन से बनारस से दिल्ली पहुंचे.

तय तारीख यानी 15 अगस्त, 1947 को प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने तिरंगा फहराया, भाषण दिया और उसके बाद शुरू हुआ उस्ताद बिस्मिल्लाह खान का शहनाई वादन. उस वक्त बिस्मिल्लाह खान की उम्र लगभग 30 साल थी. उनकी आंखें नम थीं. वो बस शहनाई बजाते चले. क्या आप जानते हैं कि उस रोज उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने कौन सा राग बजाया था? वो राग था- राग काफी.

आजाद हिंदुस्तान के पहले सूरज का स्वागत उस्ताद बिस्मिल्लाह खान ने राग काफी से किया था. हम आपको दो वीडियो दिखा रहे हैं. एक में बिस्मिल्लाह खान के उस कार्यक्रम का जिक्र है और दूसरे में आजादी के जश्न की कुछ तस्वीरें.

21 मार्च, 1916 को डुमरांव (बिहार) में जन्मे उस्ताद बिस्मिल्लाह खान शहनाई सीखने के लिए बनारस आ गए थे. 20 साल की उम्र तक आते-आते उनका बड़ा नाम हो चुका था. अप्रैल, 1936 में लखनऊ में उनके एक कार्यक्रम की खूब चर्चा होती है. खां साहब बाद में बहुत साल तक आजादी के पहले दिन राग काफी का किस्सा सुनाया करते थे. इस कहानी के साथ ही राग काफी की चर्चा करते हैं.

1981 में एक फिल्म आई थी- चश्मेबद्दूर. साई परांजपे द्वारा निर्देशित इस फिल्म में एक बेहद लोकप्रिय गाना था- काली घोड़ी द्वार खड़ी. इस गाने के ‘पिक्चराइजेशन’ में भी हीरोइन दीप्ति नवल को संगीत सिखाने का ही जिक्र है.

फिल्म के संगीतकार राजकमल ने इस गाने को राग काफी में कंपोज किया था. इसके अलावा भी कई सुपरहिट गाने इस राग में कंपोज किए गए हैं. 1952 में आई फिल्म जाल का गाना- ये रात ये चांदनी फिर कहां सुन जा दिल की दास्तां, 1955 में आई फिल्म मुनीमजी का गाना- घायल हिरनिया, 1963 में रिलीज फिल्म गोदान का गाना- बिरज में होली खेलत नंदलाल, 1966 में आई फिल्म सवाल का गाना- लट उलझी सुलझा जा बालमा और 1979 में आई फिल्म मनोकामना का गाना- तुम्हारा प्यार चाहिए मुझे जीने के लिए अब भी खूब सुना जाता है. गुजरे दौर के इन सुपरहिट गानों में से कुछ गाने आप भी सुनिए.

फिल्मी गीतों के साथ-साथ राग काफी में जगजीत सिंह की गाई एक ग़ज़ल भी काफी लोकप्रिय हुई थी. सईद राही की लिखी ये ग़ज़ल पढ़िए और जगजीत सिंह की आवाज में हम आपको इसे सुनाएंगे भी

तुम नहीं, गम नहीं, शराब नहीं

ऐसी तन्हाई का जवाब नहीं

गाहे-गाहे इसे पढ़ा कीजिए,

दिल से बेहतर कोई किताब नहीं

जाने किस-किस की मौत आई है

आज रुख पे कोई नकाब नहीं

वो करम ऊंगलियों पे गिनते हैं

ज़ुल्म का जिनके कुछ हिसाब नहीं

आइए अब आपको राग काफी के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं. राग काफी की रचना काफी थाट से मानी गई है. बिलावल और कल्याण राग की तरह ही ये भी अपने थाट का आश्रय राग है. इसमें ‘ग’ और ‘नी’ कोमल जबकि बाकि सभी शुद्ध स्वर लगते हैं. राग काफी में ‘प’ वादी और ‘रे’ संवादी है. इस राग की जाति संपूर्ण-संपूर्ण है.

राग काफी को गाने का समय मध्य रात्रि माना जाता है. राग काफी को चंचल किस्म का राग माना जाता है. इस राग में छोटा ख्याल और ठुमरियां खूब गाई जाती हैं. राग काफी में गाई जाने वाले ज्यादातर ठुमरियों में ब्रज की होली का जिक्र रहता है. राग काफी की ठुमरियों को फागुन के महीने में ज्यादा गाया जाता है इसीलिए राग काफी को मौसमी राग भी कहा जाता है. ये राग सिंदूरा के करीब का राग माना जाता है. राग काफी का आरोह अवरोह देखिए

आरोह- सा रे ग म प ध नी सां

अवरोह- सां नी ध प म ग रे सा

पकड़- रे प म प ग रे, म म प S

एनसीईआरटी के इस वीडियो में आप राग काफी के बारे में और विस्तार से जान सकते हैं.

जैसा कि हम आपको बता चुके हैं राग काफी में होली का जिक्र किया जाता रहा है. आपको पंडित छन्नू लाल मिश्रा की गाई एक होरी सुना रहे हैं. बोल हैं- रंग डारूंगी डारूंगी. पंडित छन्नू लाल मिश्र जी इस होरी के बारे में जानकारी भी दे रहे हैं. साथ ही सुनिए ठुमरी क्वीन गिरिजा देवी जी की इसी राग में गाई गई होरी.

(अगली बार एक नई राग के साथ फिर हाजिर होंगे. आपकी राय का हमें इंतजार रहेगा. आप अपनी राय हमें hindifirstpost@gmail.com पर भेज सकते हैं.)