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उस फिल्म की कहानी जिसके दो-दो कलाकारों को मिला था भारत रत्न

रागदारी में इस बार राग भूपाली की कहानी

Shivendra Kumar Singh

आज जिस राग की कहानी हम आपको सुनाने जा रहे हैं उसके बारे में शास्त्रीय संगीत से जुड़े कलाकार एक चुटकुला सुनाते हैं. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि संगीत में सात सुर होते हैं- सा रे ग म प ध नी. इन्हीं सात सुरों को अदल-बदल कर और जोड़-घटा कर अलग-अलग राग बनते हैं. ऐसा ही एक राग है भूपाली.

राग भूपाली में भक्ति संगीत जमकर गाया-बजाया जाता है. अब मजे की बात ये है कि राग भूपाली में ‘म’ और ‘नी’ वर्जित है, यानी ‘म’ और ‘नी’ इस राग में नहीं लगता है. ‘म’ और ‘नी’ को आपस में जोड़ दिया जाए तो ‘मनी’ हो जाता है. अंग्रेजी के इस शब्द मनी का हमारे जीवन में जो महत्व और जरूरत है उससे हम सभी वाकिफ हैं.


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अमूनन भक्ति संगीत के कलाकारों को कार्यक्रमों के लिए बहुत ज्यादा पैसा नहीं मिलता इसीलिए मजाक में वे कहा करते हैं कि हम वो राग ज्यादा गाते बजाते हैं जिसमें ‘मनी’ नहीं होता. खैर, इस चुटकुले से अलग आपको एक और किस्सा बताते हैं.

भारत की आजादी से भी पहले 1945 में एलिस रॉड्रिक डंगन की एक फिल्म आई थी- मीरा. एलिस यूं तो अमेरिकी फिल्म निर्देशक थे लेकिन उन्होंने भारत में तमिल फिल्मों को लेकर काफी काम किया था. मीराबाई के जीवन पर आधारित इस फिल्म में महान कलाकार एमजी रामाचंद्रन ने एक छोटा सा रोल किया था. इसके अलावा शास्त्रीय संगीत की महान कलाकार एमएस सुब्बालक्ष्मी इस फिल्म में मुख्य भूमिका में थीं.

एमएस सुब्बालक्ष्मी ने अपने करियर की शुरुआत में कुछ फिल्मों में भी काम किया था. इस फिल्म का संगीत एसवी वेंकटरमन ने तैयार किया था, जो दक्षिण भारतीय फिल्मों का बड़ा नाम थे. हिंदी में उन्होंने मीरा और मनोहर नाम की दो फिल्मों में संगीत दिया था. इस फिल्म में उन्होंने राग भूपाली में एक बहुत सुंदर गीत की रचना की थी. बोल थे- गिरिधर गोपाला. आइए आपको सुनाते हैं.

दिलचस्प बात और एक संयोग ये है कि इस फिल्म में परदे पर नजर आए दो कलाकारों ने बाद में फिल्म और संगीत की दुनिया में इतना योगदान दिया कि उन दोनों को भारत रत्न से सम्मानित किया गया. एमजी रामचंद्रन को 1988 में और एमएस सुब्बालक्ष्मी को 1998 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था.

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राग भूपाली से जुड़ा एक और किस्सा है. इस किस्से के लिए आपको 90 के दशक में ले चलते हैं. 1993 में कल्पना लाजमी एक फिल्म बना रही थीं- रुदाली. फिल्म का संगीत भूपेन हजारिका दे रहे थे. भूपेन हजारिका असम से थे और इस फिल्म का बैकग्राउंड राजस्थान पर केंद्रित था. भूपेन हजारिका महान कलाकार थे. उन्होंने इस फिल्म का संगीत तैयार करते समय राजस्थान की लोकधुनों और वहां के वाद्यंत्रों को बखूबी इस्तेमाल किया.

उन्होंने इस फिल्म के लिए अपने ही एक पुराने असमी गीत ‘बुकु हुम हुम करे’ को फिल्म में इस्तेमाल करने के लिए कल्पना लाजमी को तैयार किया. इसे हिंदी में लिखने का जिम्मा गुलजार साहब ने ले लिया. अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि इसके बाद कौन सा बेहद लोकप्रिय गाना तैयार हुआ. उस गाने को सुनते-सुनते ये भी जान लीजिए कि ये गाना भी राग भूपाली पर ही आधारित था.

राग भूपाली पर हिंदी फिल्मों में और भी कई लोकप्रिय गीत कंपोज किए गए हैं. इसमें से कुछ गानों का जिक्र बहुत जरूरी है. इसमें 1956 में आई फिल्म-चोरी चोरी का ‘पंछी बनूं उड़ती फिरूं मस्त गगन में’ 1961 में आई फिल्म- भाभी की चूड़ियां का ‘ज्योति कलश छलके’, 1963 में आई फिल्म- गुमराह का ‘ये हवा ये फिजां आ भी जा’, 1963 में ही रिलीज हुई फिल्म-सेहरा का ‘पंख होते तो उड़ आती रे’ गाना भी राग भूपाली पर ही आधारित था.

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इस फिल्म का संगीत रामलाल जी ने तैयार किया था. जिन्हें इस खूबसूरत और बेहद लोकप्रिय गाने को बनाने के बाद भी बड़ी देर से फिल्म इंडस्ट्री में पहचान मिली. आपको लता मंगेशकर का गाया गाना ज्योति कलश छलके और पंख होते तो उड़ आती रे सुनाते हैं.

इसके अलावा राग भूपाली पर आधारित फिल्मी गानों में 1966 में आई फिल्म-लव इन टोकियो का सायोनारा-सायोनारा, 1969 में आई फिल्म-आराधना का ‘चंदा है तू मेरा सूरज है तू’, 1981 में आई फिल्म-सिलसिला का ‘देखा एक ख्वाब तो ये सिलसिले हुए’, 1981 में ही आई फिल्म-उमराव जान का ‘इन आंखों की मस्ती के मस्ताने और 1997 में आई फिल्म-जिद्दी का ‘हम तुमसे ना कुछ कह पाए’ खूब सुने और सराहे गए. इसी में से दो नगमें हम भी आपको सुनाते हैं.

राग भूपाली के शास्त्रीय पक्ष को भी जान लेते हैं. इस राग की रचना कल्याण थाट से मानी गई है. जैसा हम शुरू में ही बता चुके हैं कि इस राग में ‘म’ और ‘नी’ नहीं लगता है। इस राग में ‘ग’ वादी और ‘ध’ संवादी सुर हैं. इस राग की जाति औडव-औडव है. इस रात को रात के पहले पहर में गाया बजाया जाता है. राग भूपाली में ध्रुपद, बड़ा ख्याल, छोटा ख्याल जैसी शैलियों में गायन होता है, लेकिन इसमें ठुमरी नहीं गाई जाती है. कर्नाटक संगीत में इसी राग को मोहन राग के नाम से जाना जाता है. आइए इस राग का आरोह, अवरोह और पकड़ देख लेते हैं.

आरोह- सा रे ग, प, ध सां

अवरोह- सां ध प, ग रे स

पकड़- प ग, रे ग, सा रे, ध सा

इस राग के शास्त्रीय पक्ष को और बारीकी से जानने के लिए एनसीईआरटी का ये वीडियो देखिए।

फ़र्स्टपोस्ट हिंदी के संस्कृति कॉलम में हम आपको शास्त्रीय संगीत की विधा ध्रुपद के बारे में जानकारी दे चुके हैं. आज आपको ध्रुपद गायकी के बड़े नाम गुंदेचा बंधुओं का गाया राग भूपाली सुना रहे हैं. साथ ही आपको उस्ताद राशिद खान का गाया राग भूपाली भी सुनाते हैं. इसमें वो दो भक्ति रचनाएं ‘कब मोरी नैया पार करोगे’ और ‘तू करीम करतार’ गा रहे हैं.

अपने इस सिगमेंट का अंत हम हमेशा राग के वाद्ययंत्र पर प्रदर्शन से करते हैं. आज हमने राग भूपाली की बात की इसलिए आपको चलते-चलते विश्वविख्यात बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया का बजाया राग भूपाली सुनाते हैं. अगले हफ्ते एक नए राग के साथ फिर मिलेंगे.