view all

रागदारी: हिंदी सिनेमा का सबसे प्रिय राग रहा है राग भैरवी

राग भैरवी की सबसे खास बात ये है कि इसे सदा सुहागिन राग माना गया है यानी भैरवी को गाने बजाने का कोई तय समय या मौसम नहीं

Shivendra Kumar Singh

साल 1976 की बात है. फिल्म निर्माता-निर्देशक शक्ति सामंत ने पुनर्जन्म पर आधारित एक फिल्म बनाई- महबूबा. राजेश खन्ना और हेमा मालिनी की जोड़ी वाली इस फिल्म में ‘मेरे नैना सावन भादो’ बहुत लोकप्रिय हुआ. इस गाने को ‘मेल’ और ‘फीमेल’ दोनों आवाजों में रिकॉर्ड किया जाना था.

राग शिवरंजिनी पर आधारित इस गाने को रिकॉर्ड करने से पहले एक ‘रफ रिकॉर्डिंग’ आरडी बर्मन ने किशोर कुमार को भेजी. किशोर को लगा कि वो इस गाने के साथ न्याय नहीं कर पाएंगे. उन्होंने आरडी को बोला कि वो पहले इस गाने को लता जी से रिकॉर्ड करा लें उसके बाद उन्हें सुनाएं. आरडी इसके लिए मान गए. उन्होंने लता जी का ‘वर्जन’ रिकॉर्ड करके किशोर कुमार के पास भेजा. किशोर कुमार उसे सुनते रहे-सुनते रहे. इसके बाद उन्होंने उस गाने से शास्त्रीयता के पक्ष को हटाकर अपने अंदाज में गाया. आप भी मानेंगे कि उनकी आवाज में गाया ये गाना ज्यादा लोकप्रिय हुआ.


इस किस्से को आज आपको सुनाने का एक खास मकसद है. ऐसा इसलिए क्योंकि इस तरह का वाकया करीब पांच साल बाद किशोर कुमार की जिंदगी में फिर से आया. ठीक पांच साल बाद 1981 में चेतन आनंद फिल्म बना रहे थे-कुदरत. इस फिल्म में भी बतौर हीरो-हीरोइन राजेश खन्ना और हेमा मालिनी ही थे. संगीत भी आरडी बर्मन का ही था. आरडी ने इस फिल्म में एक गाना राग भैरवी पर कंपोज किया. इस गाने के भी दो ‘वर्जन’ रिकॉर्ड होने थे.

फीमेल वर्जन के लिए आरडी बर्मन ने शास्त्रीय गायिका परवीन सुल्ताना को चुना.जब ‘मेल वर्जन’  की बारी आई तो एक बार फिर आरडी की पसंद किशोर कुमार ही थे. किशोर कुमार ने ठीक वही काम किया जो उन्होंने 5 साल पहले महबूबा फिल्म में किया था. उन्होंने इस गाने को अलग अंदाज में गाया और एक बार फिर लोकप्रियता के मामले में इस गाने का ‘मेल वर्जन’ ज्यादा हिट हुआ. ये गाना हम आपको बताते भी हैं और सुनाते भी हैं. मजरूह सुल्तानपुरी के लिखे उस गाने के बोल थे- हमें तुमसे प्यार कितना ये हम नहीं जानते. इस गाने के दोनों वर्जन सुनिए.

एक ही राग पर एक ही गाने के दो वर्जन 

परवीन सुल्ताना के गाने वाले वर्जन को अरुणा ईरानी पर फिल्माया गया था. इस गाने से जुड़े किस्सों का अंत यहीं नहीं है. इस गाने के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड में ‘मेल’ और ‘फीमेल’ दोनों वर्जन की दावेदारी थी. यहां किशोर कुमार मात खा गए थे. 1982 में हुए फिल्मफेयर अवॉर्ड में परवीन सुल्ताना को ‘बेस्ट फीमेल प्लेबैक सिंगर’ के लिए चुना गया था. इसी साल फिल्म-लावारिस में 'मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है' के लिए अलका यागनिक, फिल्म-पूनम के 'मोहब्बत रंग लाएगी', फिल्म-अरमान का 'मेरे जैसी हसीना' और अरमान फिल्म में ही उषा उत्थुप के गाए ‘रंभा हो’ को भी इस कैटेगरी में नॉमिनेट किया गया था. खैर इन किस्सों की शुरूआत में बताए गए राग शिवरंजिनी के बारे में हम आपको पहले ही बता चुके हैं इसलिए आज राग भैरवी की बात करते हैं.

राग शिवरंजिनी के बारे में जानने के लिए ये लेख पढ़े

हिंदी सिनेमा के लिये रागों की रानी है भैरवी

वैसे तो हर राग पर फिल्मों में खूब काम हुआ है लेकिन राग भैरवी तो फिल्मी संगीतकारों का कुछ ज्यादा ही पसंदीदा राग रहा है. हालत ये है कि साठ-सत्तर के दशक से लेकर एआर रहमान तक की पीढ़ी ने इस राग पर खूब गाने कंपोज किए हैं. इन गानों में से कुछ बेहतरीन गानों को खोजना अपने आप में बड़ी चुनौती है. बोल राधा बोल संगम होगा कि नहीं, जब दिल ही टूट गया, दोस्त दोस्त ना रहा, ऐ मेरे दिल कहीं और चल, रमैया वस्तावैया और जिया जले जान जले जैसे कुछ गाने तुरंत याद आ जाते हैं. राग भैरवी की कहानी को आगे बढ़ाने से पहले इनमें से कुछ गाने सुनते भी चलते हैं.

गज़लों की खूबसूरती है राग भैरवी

जब फिल्मी गीतों में राग भैरवी इतना छाया रहा तो फिल्मी गीतों के बाहर गज़ल की दुनिया के फनकार इसे कैसे छोड़ते. जाने माने गजल गायक उस्ताद गुलाम अली की राग भैरवी में गाई ये गजल सुनिए. बोल हैं- ये दिल ये पागल दिल मेरा.

इसके साथ ही गजल सम्राट जगजीत सिंह की भी एक गजल आपको सुनाते हैं. गजल के बोल हैं- मेरी तन्हाइयों तुम ही लगा लो मुझको सीने से...

शास्त्रीय संगीत का खूबसूरत अहसास है राग भैरवी

राग भैरवी में ही आपको भारत रत्न से सम्मानित पंडित भीमसेन जोशी की गाई और वाजिद अली शाह की लिखी ये रचना भी सुनाते हैं. राग भैरवी में तैयार की गई इस रचना को शायद ही किसी शास्त्रीय गायक-गायिका ने नहीं गाया हो.

राग भैरवी का शास्त्रीय पक्ष भी आपको बताते हैं. इस राग की रचना भैरवी थाट से मानी गई है. इस राग में ‘रे’ ‘ग’ ‘ध’ औ ‘नी’ कोमल लगते हैं जबकि बाकि सुर शुद्ध लगते हैं. इस राग की जाति संपूर्ण है. इस राग को गाने बजाने का समय सुबह का होता है. हालांकि राग भैरवी की सबसे खास बात ये है कि इसे सदा सुहागिन राग माना गया है यानी भैरवी को गाने बजाने का कोई तय समय या मौसम नहीं. इसे किसी भी मौसम में, किसी भी वक्त गाया-बजाया जा सकता है. भैरवी में अगर ख्याल गाया जा रहा हो तो अलग बात है वरना आम तौर पर संगीत समारोहों में कलाकार भैरवी को आखिरी राग के तौर पर गाते हैं. भैरवी में कोई रचना गाकर या बजाकर समारोह का समापन किया जाता है.  इस राग को चंचल प्रवृत्ति का राग माना जाता है. इसमें छोटा ख्याल, टप्पा, तराना, गजल और भजन गाए जाते हैं. इस राग का आरोह अवरोह देख लेते हैं. कुछ लोग इस राग का वादी संवादी ‘प’ तथा ‘सा’ को मानते हैं लेकिन ज्यादा प्रचलित वादी संवादी ‘म’ और ‘सा’ को माना गया है.

इस राग का आरोह अवरोह देख लेते हैं.

आरोह- सा रे॒ ग॒ म प ध॒ नि॒ सां।

अवरोह- सां नि॒ ध॒ प म ग॒ रे॒ सा।

पकड़- म, ग॒ रे॒ ग॒, सा रे॒ सा, ध़॒ नि़॒ सा

जरा देखिए राग भैरवी की पूरी पहचान को कैसे दो लाइन के दोहे में समेटा गया है-

कोमल सब ही सुर भले, मध्यम वादि बखान

षड़ज जहां संवादि है, ता हि भैरवी जान

अब तक अपनी इस सीरीज के शास्त्रीय पक्ष वाले हिस्से में आ गए हैं. सबसे पहले तो एनसीईआरटी का वो वीडियो देखिए जिसमें इस राग के शास्त्रीय पक्ष से जुड़ी तमाम बातें आपको सुनने सीखने को मिलेंगी.

राग भैरवी में कुछ और उपशास्त्रीय चीजें हैं जो बड़ी मशहूर हुई हैं. जिसमें 'हमरी अटरिया पर आ जाओ सावंरिया' खूब सुनी और सराही गई हैं. 'हमरी अटरिया' की लोकप्रियता को तो मौजूदा दौर के फिल्म निर्माताओं ने भी भुनाने की कोशिश की है.  फिल्म 'डेढ़ इश्किया' में भी इसे इस्तेमाल किया गया. इसे माधुरी दीक्षित पर फिल्माया गया था. गायिका थीं- रेखा भारद्वाज. बेगम अख्तर के साथ साथ आपको हम रेखा की आवाज में भी इसे सुनाते हैं.

बड़े गुलाम अली खान साहब की गाई ठुमरी ‘बाजूबंद खुल खुल जाए’ के जिक्र के बिना राग भैरवी की बात पूरी नहीं होगी. इस ठुमरी को सुनिए -

ये भी एक ऐसी ही ठुमरी है जिसे तमाम गायक गायिकाओं ने गाया है. आज हम आपको भारत रत्म से सम्मानित एक और महान कलाकार उस्ताद बिस्मिल्लाह खान की बजाई राग भैरवी के साथ छोड़े जा रहे हैं- अगली बार एक और राग और उसकी कहानी के साथ हाजिर होंगे.