दुनिया की 4,000 भाषाओं के अगले 50 वर्षों में विलुप्त होने का खतरा है और उनमें से 10 प्रतिशत भाषाएं भारत में बोली जाती हैं.
भाषाविद् गणेश देवी ने यह बात कही. उनका मानना है कि प्रमुख भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी से असल में कोई खतरा नहीं है.
पीपल्स लिंगविस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया (पीएलएसआई) के अध्यक्ष देवी ने कहा कि सबसे ज्यादा खतरा देश की तटीय इलाकों में बोली जाने वाली भाषाओं को है. उन्होंने भाषा को दिए एक इंटरव्यू में कहा, 'कई भाषाएं लुप्त होने की कगार पर हैं और इनमें से ज्यादातर तटीय भाषाएं हैं.
तटीय इलाके की भाषाओं पर खतरा ज्यादा
इसका कारण यह है कि तटीय इलाकों में आजीविका सुरक्षित नहीं रही. कॉरपोरेट जगत गहरे समुद्र में मछली पकड़ने लगा है. दूसरी ओर पारंपरिक मछुआरा समुदायों को तट से दूर अंदर की ओर जाना पड़ा है जिससे उनकी भाषाएं छूट गई हैं.'
बहरहाल, उन्होंने कहा कि कुछ जनजातीय भाषाओं में हाल के वर्षों में वृद्धि दिखाई दी है.
'दुनिया का सबसे बड़ा भाषाई सर्वे'
देवी ने गुरुवार को पीएलएसआई के 11 भागों को जारी किया. इस सर्वे में दावा किया गया है कि यह दुनिया का सबसे बड़ा भाषाई सर्वेक्षण है. इसमें 27 राज्यों में 3,000 लोगों के दल ने देश की कुल 780 भाषाओं का सर्वे किया.
भाषा अनुसंधान एवं प्रकाशन केंद्र, वडोदरा और गुजरात के तेजगढ़ में आदिवासी अकादमी के संस्थापक निदेशक देवी ने कहा कि इस अध्ययन में शामिल राज्यों सिक्किम, गोवा और अंडमान निकोबार का सर्वे दिसंबर तक पूरा कर लिया जाएगा.
अंग्रेजी से खतरा नहीं
देवी ने कहा कि इस सर्वे में हमारी भाषाओं को संरक्षित रखने के तरीकों पर भी गौर किया गया है. साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता देवी ने इस धारणा को भी खारिज कर दिया कि अंग्रेजी कई भारतीय भाषाओं के आगे खतरा पैदा कर रही है.
देवी ने कहा कि दुनिया की 6,000 भाषाओं में से 4,000 भाषाओं पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है जिनमें से दस फीसदी भाषाएं भारत में बोली जाती हैं. उन्होंने कहा कि दूसरे शब्दों में, हमारी कुल 780 भाषाओं में से 400 भारतीय भाषाएं विलुप्त हो सकती हैं.