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इतिहास में गुलाबी पुरुषों का रंग है, लड़कियों का नहीं

पिंक घेटो में वो नौकरियां होती हैं, जिनमें एक सीमा के बाद तरक्की नहीं हो सकती. ऐसी नौकरियों में ज्यादा लड़कियां होने के चलते इसमें पिंक शब्द जुड़ा है.

Animesh Mukharjee

गुलाबी रंग को लड़कियों की पहचान से जोड़ दिया गया है. पैदा हुए बच्चों के गुलाबी पालने से लेकर पिंक पार्टी ड्रेस तक लड़कियों से गुलाबी रंग को हरसंभव तरीके से जोड़ दिया गया है. ये जुड़ाव इतना तगड़ा है कि किसी पुरुष का कुछ गुलाबी इस्तेमाल करना सबके लिए असहज हो जाता है. मगर कभी-कभी ये सवाल उठता है कि ये आखिर गुलाबी रंग लड़कियों की पहचान से कैसे जुड़ गया?

इतिहास में गुलाबी पुरुषों का रंग है


लड़कियों के लिए पिंक बेस्ट है वाली धारणा को शुरु हुए अभी 100 साल भी नहीं हुए हैं. इससे पहले के पूरे इतिहास में गुलाबी रंग पुरुषत्व का प्रतीक रहा है. जिसका कारण भी बड़ा साफ है. गुलाबी लाल रंग से बनता है और लाल हमेशा से रक्त, युद्ध और ताकत का रंग रहा है. अगर याद करें तो देखेंगे कि पुराने रोमन सैनिकों के हेल्मेट पर लगी कलगी अक्सर लाल या गुलाबी होती है. 1794 की किताब ‘ए जर्नी थ्रू माय रूम’ में लिखा गया है कि पुरुषों के कमरे में गुलाबी रंग ज्यादा होना चाहिए क्योंकि ये लाल रंग से जुड़ता है और उत्साह बढ़ाता है.

फिर कैसे बनी लड़कियों की गुलाबी पहचान

हमारी सभ्यता के विकसित होने में युद्ध बहुत प्रभावशाली साबित हुए हैं. लड़कियों के गुलाबी और लड़कों का रंग नीला होने में भी युद्ध का बड़ा हाथ रहा है. प्रथम विश्वयुद्ध के आसपास एक साथ ऐसी कई घटनाएं हुईं, जिनके चलते ये स्टीरियोटाइप तय हुए.

उपन्यास द ग्रेट गैट्स्बी में पुरुषों के गुलाबी सूट पर लंबी चर्चा है. तस्वीर- यूट्यूब स्क्रीन ग्रैब

प्रथम विश्वयुद्ध के समय कई नए रोजगार बने. टायपिस्ट, सेक्रेटरी, वेटर और नर्स जैसी ये नौकरियां पढ़े लिखे समाज की व्हाइट कॉलर जॉब नहीं थीं. मगर ये मजदूरों वाली ब्लू कॉलर जॉब भी नहीं थीं. इसलिए इन्हें पिंक कॉलर जॉब कहा गया.

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पिंक कॉलर जॉब की सबसे बड़ी खासियत ये थी कि इनमें तरक्की एक सीमा तक ही हो सकती थी. इसलिए ये महिलाप्रधान मानी गईं. इसी दौर में गुलाबी रंग से पुरुषों का दूर होना शुरू हुआ. उपन्यास 'द ग्रेट गैट्सबी' में नायक से एक आदमी कहता है कि कोई भी खानदानी अमीर गुलाबी सूट नहीं पहनता है. इस बात का उपन्यास में संदर्भ लड़के-लड़की से नहीं, अमीर और छोटी नौकरी करने से है.

इसी बीच में एक और नई बात हुई. नए पैदा हुए बच्चों के लिए अस्पतालों में लड़कियों के लिए गुलाबी और लड़कों के लिए नीले कपड़े प्रयोग होने लगे. इसके पीछे बड़ी व्यवहारिक वजह थी. सफेद कपड़ों में नवजात बच्चों को दूर से देख कर लड़के लड़की का अंतर करना मुश्किल होता था.

लड़कों के लिए नीला, लड़कियों के लिए गुलाबी की शुरुआत 1920 के आस-पास हुई.

दूसरा विश्वयुद्ध और स्टीरियोटाइप तय हो गए

1950 के दशक ने ये गढ़ दिया कि गुलाबी सिर्फ लड़कियों का रंग है. इसके पीछे एक से ज़्यादा कारण थे. काला रंग पश्चिम के समाज में विधवाओं का रंग था. युद्ध की मार से उबर रहे समाज में पारंपरिक रूप से काली पोशाक पहने महिला का अर्थ था कि उसका पति अब उसके साथ नहीं है. कई पुरुष इसे महिला द्वारा नए रिश्ते का इशारा मानते थे. इसी तरह से नीला रंग जींस के साथ जुड़कर मर्दानगी की पहचान बन गया था. मर्लिन ब्रांडो और जेम्स डीन जैसे अभिनेताओं के निभाए काउबॉय किरदारों के चलते नीली जींस और नीला रंग लड़कों के साथ पूरी तरह से जुड़ गया.

इन रंगों के काउंटर में फैशन इंडस्ट्री लड़कियों के लिए गुलाबी रंग लेकर आई. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति आइज़नहावर की पत्नी के गुलाबी प्रेम ने इस चलन को हवा दी. देखते ही देखते लड़कियों के लिए रुमाल, कपड़े, गुड़िया और सबकुछ गुलाबी आने लगा और गुलाबी लड़कियों का रंग बन गया.

रंगों का ये भेदभाव कई बड़ी चीजें तय करता है. एक शब्द होता है ‘पिंक घेटो’, ये ऐसी नौकरियों के लिए इस्तेमाल होता है जिनमें तरक्की नहीं हो सकती है. इस शब्द में पिंक इसीलिए जुड़ा है क्योंकि ऐसी ज्यादातर नौकरियां महिलाओं को दी जाती हैं. आज सर्विस सेक्टर और एचआर से जुड़ी कई नौकरियों को इसमें गिना जाता है.

आप खुद सोचिए कि अगर कोई लड़की अपना फेवरेट कलर नीला, फिरोजी, चारकोल ग्रे जैसा कुछ बताए और दूसरी लड़की लाइट पिंक कहे तो दोनों के जीवनशैली में क्या फर्क हो सकता है.